सद्‌गुरुजब जाने-माने न्यूरो वैज्ञानिक डॉ डेविड ईगलमैन अप्रैल 2015 में टेक्सास के ह्यूस्टन में सद्‌गुरु से मिले, तो दोनों के बीच विज्ञान और अध्यात्म को लेकर एक प्रेरक और रोचक बातचीत हुई। पेश है उस बातचीत का पहला अंश।


एक श्रोता: सबसे पहले मेरा सवाल डॉ डेविड से है - क्या आपने किसी ऐसे व्यक्ति को देखा है, जिसने खुद को बाहर से देखा हो? और सद्‌गुरु से सवाल है कि क्या ऐसी कोई तकनीक है, जिससे मानवीय बुद्धि का वो स्तर पाया जा सके, जहां आप खुद का बाहर से अवलोकन कर सकें?

ऐसा भ्रम पैदा किया जा सकता है

डेविड ईगलमैन: यह इस बात पर निर्भर करता है कि ‘खुद को बाहर से देखने’ से वास्तव में आपका मतलब क्या है। ऐसे कुछ प्रयोग हुए हैं, जिन्हें हम ‘आउट ऑफ दि बॉडी इल्यूजन’ कहते हैं, यानी ‘शरीर से बाहर होने का भ्रम’। इन प्रयोगों के सेट-अप की व्याख्या करना थोड़ा मुश्किल और जटिल काम है।

मैं भारत में, किसी संस्थान में गया हुआ था, जहां वे मेरी दिमाग की गामा तरंगें मापना चाहते थे। उन्होंने मुझसे ध्यान लगाने के लिए कहा।
इतना बता सकता हूं कि यह काम एक तरह के वीडियो गॉगल्स पहन कर किया जाता है, जिसमें आपके पीछे एक कैमरा रखा जाता है। इन गॉगल्स के जरिए आप अपने ही शरीर को पीछे से भी देख सकते हैं। मान लीजिए कोई आपकी पीठ पीछे से खुजाता है तो इसे आप विडियो गॉगल्स के जरिए देख सकते हैं। आपको वह खरोंच तुरंत महसूस होगी, लेकिन आपको अपना शरीर एक दूरी पर दिखाई देगा। इस प्रयोग में कई बार लोगों को साफ अनुभव होता है कि वह अपने शरीर से छह फीट दूर हैं। यूरोप में न्यूरोसांइस से जुड़ा एक ऐसा दल है जिसने अपने प्रयोगों द्वारा लोगों को इस भ्रम में तब भी डाल दिया, जब वे लेटे हुए थे। इस तकनीक ने इन लोगों को ऐसा मौका दिया कि प्रयोग किए जा रहे इंसान के दिमाग में स्कैनर लगाया जा सके, जहां वे लोग दिमाग की गतिविधियों को उस समय माप व देख सकें, जब प्रयोग किए जा रहे इंसान को अपने शरीर से बाहर होने की अनुभूति हो रही हो। बहरहाल, हम लोग हर व्यक्ति के अनुभव को उसकी तंत्रिकाओं के साथ संबंध जोडक़र व्याख्या कर सकते हैं, लेकिन हम अभी तक यह नहीं जान पाए कि कैसे दोनों चीजें एक सी होती हैं। विज्ञान यहां आकर थोड़ा अटक जाता है।

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गामा किरणें मापे जाने का सद्‌गुरु का अनुभव

सद्‌गुरु : इस बारे में मैं अपना अनुभव बताना चाहूंगा। मैंने फिर कभी खुद को ऐसे अपमान का विषय बनने नहीं दिया। कई साल पहले की बात है। मैं भारत में, किसी संस्थान में गया हुआ था, जहां वे मेरी दिमाग की गामा तरंगें मापना चाहते थे। उन्होंने मुझसे ध्यान लगाने के लिए कहा। मैंने, उनसे कहा, ‘मुझे ध्यान करना नहीं आता।’ यह सुनकर वे बोले, ‘लेकिन आप तो सबको ध्यान सिखाते हैं।’ मैंने कहा, ‘बिलकुल, क्योंकि लोगों को पता ही नहीं है कि सहज रूप से शांत व स्थिर होकर कैसे बैठा जाए। हम उन्हें बस इसी का तरीका सिखाते हैं। अगर आप चाहते हैं तो मैं स्थिर होकर बैठ जाऊंगा।’

प्रयोग करते समय मृत समझने लगे वैज्ञानिक

उन्होंने मेरे सिर पर कोई चौदह इलेक्ट्रॉड्स लगाए। मैं शांत होकर बैठा रहा। करीब पंद्रह-बीस मिनट बाद उन लोगों ने किसी धातु की चीज से मेरे घुटने पर चोट करना शुरू कर दिया। मैंने सोचा- ‘हो सकता है कि यह उनके प्रयोग का हिस्सा हो’।

अगर कोई आपका हाथ छूता है तो आपको लगता है कि आपको उसके हाथ का अहसास हो रहा है, लेकिन वास्तव में आपको केवल अपने हाथों की संवेदनशीलता का अहसास होता है।
उसके बाद भी मैं शांत भाव से बैठा रहा। उसके बाद उन्होंने मेरी एड़ी की हड्डी को ठोकना शुरू कर दिया, जहां बहुत दर्द हो रहा था। फि र भी मैंने सोचा कि यह उनके प्रयोग का हिस्सा होगा। लेकिन ऐसा बार-बार होने लगा और मुझे बहुत तकलीफ होने लगी। तब धीरे से मैंने अपनी आंखें खोलीं। वे सब मुझे अजीब सी नजरों से देख रहे थे। मैंने उनसे पूछा, ‘क्या मैंने कुछ गलत किया?’ उन्होंने जवाब दिया, ‘हमारे उपकरण बता रहे थे कि आप मर चुके हैं।’ मैंने कहा, ‘यह तो जबरदस्त डायग्नोसिस हुआ!’ इस पर उन लोगों ने कहा, ‘हमारे यंत्रों के मुताबिक या तो आप मर चुके थे या आपकी दिमागी रूप से मृत्यु हो चुकी है।’ मैंने कहा, ‘यह तो बेहद अपमानजनक है। मैं आपका पहले वाला डायग्नोसिस तो स्वीकार कर सकता हूं। अगर आप मुझे यह प्रमाणपत्र दे दें कि मैं मर चुका हूं, तो इस प्रमाणपत्र के साथ मैं रह सकता हूं। लेकिन अगर आप यह प्रमाणपत्र देंगे कि मैं दिमागी तौर पर मर चुका हूं तो यह अच्छी चीज नहीं होगी।’

इंसानी तंत्र सबसे उत्कृष्ट यंत्र है

मैं ये सब क्यों कह रहा हूं, वह इसलिए कि इंसान द्वारा बनाए गए सारे यंत्र मानव के अपने सिस्टम की तुलना में कमजोर यंत्र हैं। एक टेलीफोन इंसान द्वारा बोली गई बात या आवाज को इंसान से ज्यादा दूरी तक भेज सकता है।

उन्होंने मेरे सिर पर कोई चौदह इलेक्ट्रॉड्स लगाए। मैं शांत होकर बैठा रहा। करीब पंद्रह-बीस मिनट बाद उन लोगों ने किसी धातु की चीज से मेरे घुटने पर चोट करना शुरू कर दिया।
हमारी रफ्तार से तेज साइकिल चल सकती है, मोटरसाइकिल तो उससे भी ज्यादा तेज भाग सकती है, हवाई जहाज उड़ सकता है। इसका मतलब हुआ कि किसी काम को करने में वे हमसे बेहतर हो सकते हैं। लेकिन जहां तक जटिलता का सवाल है तो ये सारे उपकरण हमसे कमतर हैं। ये उपकरण कभी भी इंसान से ज्यादा परिष्कृत नहीं हो सकते, क्योंकि हम लोग कभी भी खुद से ज्यादा परिष्कृत उपकरण नहीं बना सकते। इसीलिए किसी भी चीज को मापने वाले यंत्रों के इस्तेमाल की अपनी सीमा होती है। आप बड़े आराम से मस्तिष्क को मूर्ख बना सकते हैं, योग में ऐसा करने की बहुत सी तकनीकें हैं। डेविड मुझे बता रहे थे कि आप मस्तिष्क को कैसे बहका सकते हैं, जहां कोई महक ध्वनि बन जाती है और ध्वनि कुछ और बन जाती है। यहां तक कि बिना किसी वैज्ञानिक उपकरण के दिमाग को धोखा देने के कई तरीके हैं।

हर चीज़ सिर्फ भीतर ही होती है

दुनियाभर के जादूगरों ने इस युक्ति पर महारत हासिल कर रखी है। वे आपके जाने बिना आपकी जेब से चीजें निकाल सकते हैं, और आपको पता ही नहीं चलता कि आपके साथ क्या हो रहा है।

अगर कोई आपका हाथ छूता है तो आपको लगता है कि आपको उसके हाथ का अहसास हो रहा है, लेकिन वास्तव में आपको केवल अपने हाथों की संवेदनशीलता का अहसास होता है।
अगर बुनियादी परिष्करण की बात करें तो मानव सिस्टम से ज्यादा परिष्कृत और कोई चीज नहीं है। यही वह गैजट और एकमात्र जरिया है, जिसके द्वारा आप दुनिया का अनुभव कर सकते हैं। आप दुनिया का अनुभव कैसे करते हैं? आप सब मुझे देख सकते हैं। अगर आपको यह बताना हो कि मैं कहां हूं तो मेरी तरफ , यानी अपने से दूर इशारा करेंगे। इसका मतलब हुआ कि आप सब कुछ गलत जान रहे हैं। दरअसल मेरे ऊपर रोशनी पड़ रही है, जो परावर्तित होकर आपकी आंख के रेटिना पर एक छवि बना रही है, यह सब तो आपको पता है। आप मुझे अपने भीतर देखते हैं, आप मुझे अपने भीतर सुनते हैं। आपने दुनिया में जो भी देखा हैं, उसे अपने भीतर ही देखा है। हर चीज जो आपके साथ होती है, वो केवल आपके भीतर ही होती है।

आप खुद ही संवेदनाएँ पैदा करते हैं

अगर कोई आपका हाथ छूता है तो आपको लगता है कि आपको उसके हाथ का अहसास हो रहा है, लेकिन वास्तव में आपको केवल अपने हाथों की संवेदनशीलता का अहसास होता है।

ये उपकरण कभी भी इंसान से ज्यादा परिष्कृत नहीं हो सकते, क्योंकि हम लोग कभी भी खुद से ज्यादा परिष्कृत उपकरण नहीं बना सकते।
उदाहरण के लिए अगर कोई आपका हाथ पांच बार छूता है तो आप गौर करेंगे कि धीरे-धीरे बिना उस व्यक्ति के छुए भी आप वैसी ही संवेदना अपने भीतर पैदा कर सकते हैं। आप कोई भी संवेदना या तो किसी बाहरी कारणों से पैदा कर सकते हैं या फिर आप अपने भीतर खुद ही जैसी चाहें वैसी संवेदना पैदा कर सकते हैं। कुछ हद तक हर व्यक्ति बिना किसी बाहरी कारण के हर समय अलग-अलग तरीकों से तरह-तरह के अनुभवों का निर्माण कर रहा है। जब यह स्थिति नियंत्रण के बाहर चली जाती है तो हम इसे मानसिक रोग कहते हैं। लेकिन हर व्यक्ति कुछ हद तक यह सब कर रहा है। जब आप सपने में होते हैं तो यह हकीकत जितना ही सच होता है। कुछ साल पहले की बात है। एक दिन मैं ईशा होम स्कूल में था, तभी एक बच्चा मेरे पास आया और बोला- ‘सद्‌गुरु, यह जीवन एक वास्तविकता है या सपना?’ मैंने उसकी ओर देखा, वह आठ-नौ साल का एक बच्चा था, इसलिए उसे सच बताना ही था। मैंने उससे कहा, ‘जीवन एक सपना है। लेकिन यह सपना सच है।’ यही वास्तविकता है। जिस तरह जीवन फि लहाल आपके भीतर घटित हो रहा है, यह एक सपना है, लेकिन यह सपना आपके अनुभवों में एक सच्चाई है। लेकिन आप इस सपने को जैसा चाहें, वैसा बना सकते हैं।

यह आपका ही सपना है

क्या आप एक चुटकुला सुनना चाहेंगे? एक दिन एक महिला सोने के लिए गई। नींद में उसने सपना देखा कि एक लंबा-चौड़ा तगड़ा आदमी पास ही खड़ा उसे घूर रहा है। कुछ देर बार उस आदमी ने उसके नजदीक आना शुरू कर दिया। वह उसके इतना पास आ गया कि वह औरत उसकी सांसें भी महसूस कर सकती थी। वह सिहर उठी। महिला ने उससे पूछा, ‘तुम मेरे साथ क्या करोगे?’ आदमी ने जवाब दिया, ‘यह तो आप तय करेंगी, क्योंकि यह सपना आपका है।’ तो यह आपका सपना है, आप इसे जैसा चाहें, वैसा बना सकते हैं। विज्ञान और तकनीक ने हमारे सपनों को बड़ा करने के लिए शानदार चीजें की हैं, लेकिन मैं चाहता हूं कि वैज्ञानिक भी ध्यान व साधना करें।