सद्‌गुरु

सद्‌गुरु से प्रश्न पूछा गया कि क्या आजकल योग बहुत व्याव्सयीं बनता जा रहा है? सद्‌गुरु बता रहे हैं कि ऐसा होना स्वाभाविक है।  वे इससे बचने का तरीका भी बता रहे है।

प्रश्न: सद्‌गुरु, क्या योग इन दिनों बहुत ज्यादा व्यावसायिक नहीं बनता जा रहा है?

सद्‌गुरु : कोई भी चीज अगर थोड़ी सी भी लोकप्रिय हो जाए तो उसके इर्द-गिर्द व्यवसाय खड़े होने लगते हैं। हमें इन चीजों से परेशान नहीं होना चाहिए और भटकना नहीं चाहिए। ये सारी चीजें होती हैं। साथ ही योग का जो मूल तत्व है वह इससे किसी भी तरह से बाधित नहीं होता है। सतही स्तर पर इसमें इधर-उधर, कुछ विकार नजर आते हैं।

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बच्चों तक बड़ी संख्या में योग को पहुँचाना होगा

पिछले साल मेरी जानकारी में आया कि भारत में अठारह साल से कम उम्र के 9000 बच्चों ने आत्महत्या कर ली और तेरह साल से कम उम्र वाले 1700 बच्चों ने आत्महत्या कर ली।

 यह बच्चों के बारे में कोई टिप्पणी नहीं है, यह टिप्पणी तो हम सब पर है कि हम लोग अपने समाज के साथ क्या कर रहे हैं?
यह जानने के बाद मुझे लगा कि अगर हमारे बच्चे आत्महत्या करने लगे हैं, तो इसका मतलब है कि हम लोग कहीं न कहीं कोई बुनियादी गलती कर रहे हैं। बच्चा तो एक नया जीवन होता है। वह अपने आप में खुशियों व उत्साह से भरपूर एक जीवन होता है। उसे तो खुशियों और मस्ती का खजाना होना चाहिए, लेकिन उसकी जगह वे खुद अपनी जिंदगी लेने का निर्णय ले रहे हैं, जो कि अपने आप में बेहद परेशान कर देने वाली बात है। यह बच्चों के बारे में कोई टिप्पणी नहीं है, यह टिप्पणी तो हम सब पर है कि हम लोग अपने समाज के साथ क्या कर रहे हैं?

उप-योग से ऐसा हो सकता है

मैंने बिना किसी तैयारी के ही कह दिया था कि हम दस हजार स्कूलों तक पहुंचेंगे।

‘उप-योग’ को ‘उपयोग’ के रूप में देखें तो उसका अर्थ होगा - काम में आने वाली चीज। लेकिन मूल रूप से इस शब्द की शुरुआत ‘योग से पहले’ या ‘योग के शुरुआती कदम’ के अर्थों में हुई।
लेकिन कई राज्य सरकारों से मिले सहयोग के चलते हम अभी तक लगभग तीस हजार स्कूलों में पढऩे वाले लगभग दो करोड़ बच्चों तक पहुंच चुके हैं। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि हम बच्चों के पास उप-योग लेकर गए। इन स्कूलों में बच्चों को हम उप-योग करा रहे हैं। उप-योग का मतलब है, योग से पहले। सवाल आता है कि उप-योग को लेकर इतनी कोशिशों का क्या तुक है? क्योंकि अगर आप योग सिखाते हैं तो शुरू में योग अभ्यास जितना भी सहज व सरल लगे, लेकिन इसमें आध्यात्मिक पहलू जुड़ा होता है। ऐसे में आध्यात्मिकता को एक अचेतन आबादी तक पहुंचाना, जो इसके लिए अभी तैयार नहीं हो, और वह भी बिना खास दक्षता प्राप्त शिक्षकों द्वारा, आगे चलकर एक गैर जिम्मेदारी भरा कदम साबित हो सकता है।

तो हम लोगों को उप-योग सिखा रहे हैं, जिसके मुख्य रूप से शारीरिक व मनोवैज्ञानिक फायदे हैं और इसमें आप कुछ भी गलत नहीं कर सकते। यह सब कुछ वीडियो में उपलब्ध है। इसमें टीचर्स का काम सिर्फ अभ्यास में सुधार कराना और यह देखना होता है कि कहीं कोई कुछ गलत तो नहीं कर रहा। मेरा मानना है कि दुनिया में योग का प्रचार-प्रसार करने का उप-योग एक अच्छा तरीका है। ‘उप-योग’ को ‘उपयोग’ के रूप में देखें तो उसका अर्थ होगा - काम में आने वाली चीज। लेकिन मूल रूप से इस शब्द की शुरुआत ‘योग से पहले’ या ‘योग के शुरुआती कदम’ के अर्थों में हुई।

योग के लिए सभी लोग तैयार शायद न हों

एक बड़ी आबादी के साथ योग की शुरुआत करने के लिए उप-योग सबसे अच्छा तरीका है, क्योंकि जब आप अचेतन रूप से एक आध्यात्मिक प्रक्रिया की शुरुआत करते हैं तो हो सकता है कि उनमें से बहुत सारे लोग इसके लिए तैयार न हों, भले ही यह बहुत अच्छी चीज ही क्यों न हो। अगर आप तैयार नहीं हों और आपके साथ कोई अच्छी चीज घटित हो भी जाए तो वह चीज आपके लिए उतनी अच्छी तरह से काम नहीं कर पाएगी। तो योग को विश्व स्तर पर ले जाने के लिए उप-योग एक बिल्कुल अलग व सुरक्षित तरीका है। एक बार जब यह हो जाएगा, लोगों को इसका फायदा समझ में आने लगेगा, वे महसूस करने लगेंगे कि इससे उनके जीवन पर क्या फर्क पड़ रहा है, तो वे स्वाभाविक रूप से योग को पूरी गंभीरता के साथ अपनाना चाहेंगे और फिर उनकी जिदंगी में योग के आने का वही सही समय होगा।

बिजनेस और योग के मेल का अर्थ है - योग कारगर है

आपने अपने सवाल में जिस चिंता को जताया, इससे उसके समाधान में भी मदद मिलेगी। लेकिन इसी के साथ अगर कोई व्यक्ति योग के नाम पर कुछ हास्यास्पद चीजें कर रहा है तो इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि ये चीजें हमेशा होंगी। लेकिन यह अच्छी बात है कि व्यावसायिक संस्थान भी योग की बात कर रहे हैं। इसका मतलब है कि यह वाकई काम कर रहा है।