झूठ मुश्किल और सच आसान होता है
हम अकसर ये सोच लेते हैं कि झूठ बोल देने से काम आसानी से निकल जाता है, जबकि सच बोलने में परेशानी हो सकती है। लेकिन इस सिक्के को जरा दूसरी तरफ पलट कर तो देखिए...
अगर हमें आध्यात्मिक प्रक्रिया की सरलतम शब्दों में व्याख्या करनी हो तो हम कह सकते हैं कि इसका मतलब है - 'असतो मा सद्गमय’ यानी 'असत्य से सत्य की ओर जाना’। असत्य से सत्य की ओर जाने का क्या मतलब है और इसके लिए किसी को क्या करना होगा?
सत्य को बनाए रखने की जरुरत नहीं होती
दरअसल, असत्य एक विशेष योग्यता है। अगर आपको झूठ का जाल बुनना है, तो आपको बहुत कुछ करना पड़ता है। सत्य वह है, जिसे कोई निपट मूर्ख भी कर सकता है, क्योंकि इसमें कुछ भी करने की जरूरत नहीं होती। यह तो है ही, इसके लिए करना क्या है? सत्य को बनाए रखने की जरूरत नहीं होती, जबकि असत्य की काफी देखभाल करनी पड़ती है। इसके लिए आपके पास काबिलियत होनी ही चाहिए।
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समस्या पहचान बनाने की है
अगर कुल मिलाकर देखें तो समस्या पहचान बनाने की है। आप किसी चीज के साथ अपनी पहचान बना लेते हैं और दिमाग का स्वभाव कुछ ऐसा है कि इसे आप जो भी पहचान देंगे, यह भरोसा करने लगता है कि यह वही है। अगर आप खुद को मोर मान लेंगे तो आप उसी की तरह व्यवहार करने लगेंगे। आपका दिमाग आपको यह भरोसा दिला देगा कि आप वही हैं।
एक बार अगर पहचान बन गई तो असुरक्षा की भावना आ जाएगी, क्योंकि झूठ की हमेशा रक्षा करनी पड़ती है और उसका पोषण भी करना पड़ता है। अगर आप किसी से झूठ बोलते हैं तो आपको हर पल उस झूठ को याद रखना पड़ता है, क्योंकि अगर आपसे किसी ने अचानक कुछ पूछ लिया तो आप कहीं कुछ और न बता बैठें। दूसरी तरफ फर्ज कीजिए आपने सच बोला है। कोई आपसे पूछता है और मान लीजिए आप इसके बारे में भूल गए हैं, तो आप उससे पूछ सकते हैं कि अरे, कल मैंने क्या कहा था? मैं महज सच बोलने की बात नहीं कर रहा हूं, बल्कि पूरा का पूरा जीवन इसी तरह का है। अगर आप सच के साथ हैं तो आप हमेशा आराम में रहते हैं और अगर आप झूठ के साथ हैं तो आपको हरदम, रात-दिन मेहनत करनी पड़ती है। आपको अपना झूठ नींद में भी याद रखना पड़ता है। सपने में भी आप वही देखते हैं, क्योंकि अगर आपने इसे हर पल याद नहीं रखा तो यह मिट जाएगा।
असत्य से लड़ने पर वो वास्तविक होता जाएगा
जैसे ही आप अपनी पहचान बना लेते हैं, आपका दिमाग उसके इर्द-गिर्द काम करने लगता है और असत्य का एक जाल बुन लेता है, ऐसी चीजों का जाल जिनका सच्चाई से कोई वास्ता नहीं, बल्कि यों कहें कि जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं।
तो इसीलिए हम आपको 'असतो मा सद्गमय’ सुनाते आ रहे हैं। जब एक दिन आप इसे गाएंगे तो आप कहेंगे - वाह, तो यह इतना सरल है। कितना मूर्ख हूं मैं! कितने जीवन बीत गए और मैं इसे देख नहीं पाया। बिल्कुल, यह इतना ही सरल है।