सद्‌गुरुपुराने कर्मों से जुड़ी कई सारी इच्छाएं और वासनाएँ अभी भी आपके अंदर मौजूद हैं। कुछ लोग इनके खिलाफ हो जाते हैं और इनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। कोई कैसे पाए छुटकारा? जानें सद्‌गुरु से

इच्छाओं और वासनाओं से लड़ना महिषासुर से लड़ने जैसा है

अगर आप अपने जीवन का लक्ष्य तय कर लेते हैं, फिर आप कुछ खोएंगे नहीं। हरेक व्यक्ति के अंदर प्रवृत्तियाँ मौजूद हैं।

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उनसे लडऩे से कोई फायदा नहीं। बस अपनी वासनाओं को शिक्षित करें, अपनी वासनाओं को सही दिशा में बहने की शिक्षा दें, सिर्फ इतना ही।
आप के ऊपर पूर्व कर्मों का प्रभाव है, वे आपको इधर-उधर ढकेलते हैं। अपनी सारी इच्छाओं और वासनाओं से आप लड़ नहीं सकते। अपनी इच्छाओं और वासनाओं के साथ कभी लड़ने का प्रयास भी मत कीजियेगा। उनके साथ लडऩा महिषासुर राक्षस से लडऩे जैसा है। अगर उसके खून की एक बूँद गिरती है, तो हज़ारों महिषासुर उठ खड़े होंगें। आपकी इच्छाएँ और वासनाएँ ठीक वैसी ही हैं। अगर आप उनसे लडऩे की कोशिश करेंगे, अगर आप उन्हें काटेंगे तो उनसे खून बहेगा और हर बूंद से सैंकड़ों-हज़ारों पैदा हो जाएँगी। उनसे लडऩे से कोई फायदा नहीं। बस अपनी वासनाओं को शिक्षित करें, अपनी वासनाओं को सही दिशा में बहने की शिक्षा दें, सिर्फ इतना ही।

इच्छाओं को सही दिशा दें

जीवन में सिर्फ सर्वोच्च की इच्छा करें। अपनी सभी वासनाओं को सर्वोच्च की ओर मोड़ दें। अगर आप क्रोध भी करते हैं, उसे भी सर्वोच्च की दिशा में लगाएँ।

आपकी ऊर्जा का हरेक अंश, आपकी हरेक आकांक्षा, भावना, विचार यदि सभी एक दिशा में केन्द्रित हो जाएँ तो परिणाम बहुत शीघ्र मिलेगा। चीज़ें घटित होंगी।
अपनी वासनाओं के साथ पेश आने का भी यही तरीका है। ऊर्जा का हर अंश जो अभी आपके पास है, उसे आप इच्छा, वासना, भय, क्रोध तथा कई दूसरी चीज़ों में खर्च कर देते हैं। हो सकता है ये भावनाएँ अभी आपके हाथ में न हों, लेकिन इन्हें एक दिशा देना आपके हाथ में है। हो सकता है जब आप क्रोध में हैं, आप प्रेम नहीं कर सकते; आप अचानक अपने क्रोध को प्रेम में नहीं बदल सकते लेकिन स्वयं क्रोध को तो मोड़ा जा सकता है। क्रोध बहुत बड़ी ऊर्जा है, है कि नहीं? उसे सही दिशा दीजिये, बस। आपकी ऊर्जा का हरेक अंश, आपकी हरेक आकांक्षा, भावना, विचार यदि सभी एक दिशा में केन्द्रित हो जाएँ तो परिणाम बहुत शीघ्र मिलेगा। चीज़ें घटित होंगी। एक बार जब आप जान लेते हैं कि कुछ बेहतरीन है और आप वहाँ पँहुचना चाहते हैं, फिर उस संबंध में कोई प्रश्न नहीं होना चाहिए।

आधी अधूरी कोशिशों से आत्मज्ञान नहीं मिल सकता

अब, आपके साथ यह बार-बार हो रहा है - यह आध्यात्मिकता, आत्मज्ञान, ईश्वर-साक्षात्कार बहुत दूर दिखाई देता है। एक क्षण के लिए यह बहुत करीब तो दूसरे ही क्षण करोड़ों मील दूर दिखाई देता है।

यह जान लें कि जो सहज है, ज़रूरी नहीं कि वो आसान भी हो। यह बहुत सूक्ष्म और नाजुक है। जब तक कि आप अपनी पूरी जीवन-ऊर्जा इसमें नहीं लगा देते, यह नहीं खुलेगा।
फिर एक खास तरह की संतुष्टि आ जाती है। आपको हमेशा यह सिखाया गया है कि हाथ में आई एक चिडिय़ा झाड़ी पर बैठी दो चिडिय़ों से ज़्यादा कीमती है। अभी जो यहाँ है, वो कहीं और की, किसी अन्य चीज़ से बेहतर है। आपको यह समझने की ज़रूरत है- यह कहीं दूसरी जगह नहीं है, यह अभी और यहीं है। चूँकि आप खुद यहाँ नहीं हैं इसलिये आपको ऐसा दिखता है। ईश्वर कहीं और नहीं हैं, वे बस यहीं हैं। गैर हाज़िर तो आप हैं। यही एकमात्र समस्या है। यह कठिन नहीं है, लेकिन निश्चित रूप से यह आसान भी नहीं है। यह बिल्कुल सहज है। जहाँ आप अभी हैं, यहाँ से अनन्त की ओर चलना बहुत आसान है, क्योंकि यह ठीक यहीं है। यह जान लें कि जो सहज है, ज़रूरी नहीं कि वो आसान भी हो। यह बहुत सूक्ष्म और नाजुक है। जब तक कि आप अपनी पूरी जीवन-ऊर्जा इसमें नहीं लगा देते, यह नहीं खुलेगा।

आधी-अधूरी पुकारों से ईश्वर कभी नहीं आता। आधे मन से कोशिश करने पर आत्म ज्ञान कभी नहीं होता। इसे सब कुछ होना होगा तभी यह पल भर में घटित हो सकता है। इसमें बारह वर्ष लगेंगे, ऐसा नहीं है। एक मूर्ख को अपने अंदर तीव्रता पैदा करने में भले ही बारह वर्ष लगे, यह अलग बात है। अगर आप अपने अंदर खूब तीव्रता पैदा करते हैं तो बस एक पल में घटित होगा। उसके बाद जीवन धन्य हो जाता है। फिर आप सहज जीते हैं, आप जैसे चाहें, जो भी मार्ग चुनें। परंतु उस एक पल को पैदा किये बिना हर तरह की बेतुकी चीज़ें करना - फायदा क्या है?