Sadhguruहम अपने जीवन में कई तरह के संबंध बनाते हैं। आपसी प्रेम ही हमारे सभी संबंधों में मिठास लाता है। क्या सभी संबंधों में पाए जाने वाले प्रेम में कुछ समानता होती हैं, या फिर एक रिश्ते का प्रेम दूसरे रिश्ते के प्रेम से बिलकुल अलग होता है? आइये जानते हैं...

शेखर कपूर:

सद्‌गुरु, इस दुनिया में सबसे अधिक चर्चा रिश्तों पर होती है। पुरुष और स्त्री के प्रेम में किसी भी और रिश्ते से अधिक नाराजगी है। मुझे इसकी फितरत के बारे में समझाइए। क्या शादी में ऐसी कोई चीज है जो उसे रोज-रोज के तनावों और परेशानियों से परे ले जाए?

सद्‌गुरु:

आदमी-कुत्ते में प्रेम, पुरुष-स्त्री के प्रेम, पुरुष-मां के प्रेम, पुरुष-बेटे का प्रेम, पुरुष-बेटी का प्रेम जैसी कोई चीज नहीं होती है। प्यार बस भावनाओं की एक खास मिठास है। केवल तरीका महत्वपूर्ण है कि आप उसे कैसे उत्पन्न कर रहे हैं।

इसलिए भारत में शादी के समय मंगलसूत्र बांधा जाता था। इसमें आपसे और आपके साथी से ऊर्जा का एक तंतु लेकर उसे एक खास तरीके से बांधा जाता है ताकि आपके तर्क, आपकी समझ से परे, आपकी मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और शारीरिक जरूरतों से परे कहीं अंतरतम की गहराई में दो जीव, दो जीवन साथ में बंध जाएं।
पुरुष और स्त्री का रिश्ता मजबूरी का प्रेम संबंध है। प्रकृति आपको एक-दूसरे की ओर धकेलती है क्योंकि प्रकृति को सिर्फ एक चीज में दिलचस्पी है, खुद को स्थायी बनाने में। उन्हें किसी न किसी तरह साथ आना है। वरना आप और मैं नहीं जन्मे होते। यह जरूरत आपको साथ आने के लिए बाध्य करती है। यह ऐसा प्रेम संबंध है, जिसे प्रकृति का रासायनिक सहयोग मिला हुआ है।

इनमें से अधिकांश प्रेम संबंधों में बदकिस्मती से जब कैमिस्ट्री यानि रसायन खत्म हो जाता है, तो लोग हैरान होते हैं कि वे आखिर साथ क्यों हैं। इसलिए कैमिस्ट्री के खत्म होने से पहले आपको एक अलग स्तर पर चेतन प्रेम संबंध स्थापित करना पड़ता है जो कैमिस्ट्री से परे हो। अगर ऐसा नहीं होता, तो यह रिश्ता भद्दा हो जाता है।

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शरीर की कैमिस्ट्री अपनी जरूरतों के मुताबिक कुछ चीजों को बढ़ा-चढ़ा कर सामने रखती है। जैसी ही आपकी जरूरत पूरी होती है, आप हैरान होने लगते हैं कि आप यहां पर क्यों हैं। यह प्रकृति की चालाकी है। जब आप 10 या 11 वर्ष के थे, तो दुनिया में सब कुछ ठीक-ठाक था। फिर हारमोनों ने आपकी बुद्धि का हरण कर लिया और अचानक से दुनिया अलग सी लगने लगी। कैमिस्ट्री ने आपका हरण कर लिया था। इसमें कुछ भी गलत या सही नहीं है, बस यह सीमित है। क्या सीमित होना कोई अपराध है? नहीं। लेकिन इंसान की फितरत यह है कि सीमाओं से उसे दुख होता है। उसे ये पसंद नहीं हैं।

जिसे आप प्यार कह रहे हैं, वह मूल रूप से आपकी भावनाओं की मिठास है। अगर आप इसे ध्यान से देखें तो आपकी अंदरूनी चाह धरती के हर इंसान से, सभी चीजों से स्वतंत्र होने की है ताकि आप अपनी मर्जी से यहां रह सकें। जब कोई इंसान अपनी प्रकृति को लेकर अधिक जागरूक हो जाता है, तो वह प्रेमऔर आनंद को महसूस करना शुरू कर देता है। यहां तक कि परमानन्द का अनुभव करने के लिए भी असल में आपको किसी और की जरूरत नहीं है। आप यहां बैठे-बैठे अपने भीतर उसे संभव कर सकते हैं क्योंकि आखिरकार यह आपका शरीर है, यह आपका दिमाग है, यह आपकी भावना है, यह आपकी कैमिस्ट्री है और आप ही अपने जीवन के सभी अनुभवों को उत्पन्न कर रहे हैं। इसलिए अगर यह खुद ही उत्पन्न करना होता है, तो अभी यहां बैठकर आप अपने दिमाग, शरीर, भावना और ऊर्जा की मिठास को कायम रखना चाहेंगे या किसी कड़वाहट का अनुभव करना चाहेंगे?

शेखर कपूर:

मैं मिठास पसंद करूंगा।

सद्‌गुरु:

तो आप स्वाभाविक रूप से प्रेम से भरपूर होंगे। किसी पुरुष या स्त्री को देखने पर आप उनके रिश्ते की चर्चा करते हैं। इसके अलग-अलग पहलू हैं, इसके सामाजिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक या आर्थिक दृष्टिकोण हैं। हम अपने जीवन में बहुत से लोगों से रिश्ता कायम करते हैं। आपके कारोबारी रिश्ते होते हैं, व्यक्तिगत रिश्ते और व्यावसायिक रिश्ते होते हैं। हम मूल रूप से कुछ खास जरूरतों या किसी और की जरूरतों को पूरा करने के लिए रिश्ते बनाते हैं। लेकिन जिसे आप प्रेम कहते हैं, वह बस आपकी भावनाओं की मिठास है। आप अपने भीतर उसे बढ़ाने के लिए किसी दूसरे इंसान का इस्तेमाल कर सकते हैं।

दो जीवों का मेल

शेखर कपूर:

लेकिन क्या दो लोगों को शुरुआत में साथ लाने वाली कैमिस्ट्री या हारमोनों से परे उनका साथ रहना और उस रिश्ते को जारी रखना संभव है?.

सद्‌गुरु:

अगर आपको वाकई किसी के साथ रहना है, तो आपको किसी न किसी रूप में अपना एक हिस्सा छोड़ना पड़ता है। इसलिए ‘फॉलिंग इन लव’ की अंग्रेजी कहावत बहुत सार्थक है। आप उसमें गिर ही सकते हैं। आप उसमें खड़े नहीं हो सकते, आप उसमें चढ़ नहीं सकते – आपको उसमें गिरना पड़ेगा। जो इंसान अपने बारे में कुछ ज्यादा ही सोचता है, वह किसी प्रेम संबंध में नहीं हो सकता। प्रेम संबंध में होने के लिए आपको कहीं न कहीं अपना एक हिस्सा छोड़ना होगा।

शेखर कपूर:

मगर इस स्थिति में क्या आपके लिए किसी ऐसे इंसान के साथ रहना संभव है जो, मैं बस अंदाजा लगा रहा हूं, आपकी अपनी आत्मानुभूति का माध्यम बन जाता है? क्या यह संभव है? क्या यह किसी रिश्ते का आधार हो सकता है?

सद्‌गुरु:

यह निश्चित रूप से संभव है, लेकिन यह जोखिम भरी संभावना है। आप अपनी चरम प्रकृति पाने की बजाय किसी रिश्ते की ढेर सारी जटिलताओं में उलझ कर खो सकते हैं। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि ऐसा संभव नहीं है। यह निश्चित रूप से संभव है।

शरीर की कैमिस्ट्री अपनी जरूरतों के मुताबिक कुछ चीजों को बढ़ा-चढ़ा कर सामने रखती है। जैसी ही आपकी जरूरत पूरी होती है, आप हैरान होने लगते हैं कि आप यहां पर क्यों हैं। यह प्रकृति की चालाकी है।
इसलिए भारत में शादी के समय मंगलसूत्र बांधा जाता था। इसमें आपसे और आपके साथी से ऊर्जा का एक तंतु लेकर उसे एक खास तरीके से बांधा जाता है ताकि आपके तर्क, आपकी समझ से परे, आपकी मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और शारीरिक जरूरतों से परे कहीं अंतरतम की गहराई में दो जीव, दो जीवन साथ में बंध जाएं। इसलिए हमारे देश में हमेशा यह कहा गया कि यह एक जीवनभर का बंधन है, आप इसे तोड़ नहीं सकते। अगर आप इसे तोड़ेंगे तो आपको दो जिन्दगियों को तोड़ना होगा क्योंकि वह एक तरह का मेल था। अगर आप शादी में पढ़े जाने वाले सभी मंत्रों को ध्यान से सुनें, तो उनमें दो जीवों को साथ जोड़ने की बात कही गई है।

एक खास तरीके से संपन्न होने वाली इन शादियों में कभी आपका महत्व नहीं था। इसमें हमेशा दूसरे इंसान की अहमियत थी। अगर दोनों लोग इस तरह सोचें, तो यह एक खूबसूरत दुनिया होगी। अगर सिर्फ एक व्यक्ति इस तरह सोचे, तो यह शोषण हो जाता है। अगर दोनों की सोच ऐसी नहीं है, तो यह बस एक मजबूरी का रिश्ता है, मैं आपसे कुछ निचोड़ने की कोशिश कर रहा हूं, आप मुझसे कुछ निचोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। यह हर समय एक संघर्ष की स्थिति होती है।