सद्‌गुरुजाने-माने मार्केटिंग सलाहकार, लेखक और स्तंभकार सुहेल सेठ ने सद्‌गुरु से बातचीत की। इस बातचीत में उन्होंने कुछ विवादित और उत्तेजक सवाल सद्गुरु के सामने रखे। पेश है, इस बातचीत के मुख्य अंश:


सुहेल सेठ : लोग कहते हैं कि अगर आप किसी खास राजनीतिक विचारधारा या धर्म के सिद्धांतों को अपनाते हैं, तो आपको शाकाहारी होना पड़ेगा। धर्म हमारे टेलीविजन सेट पर क्यों आ रहा है? आतंकवाद को धर्म का जामा क्यों पहनाया जा रहा है? हम एक ऐसी दुनिया तैयार कर रहे हैं, जो नफ रत से भरी है और उस स्थिति से वापस लौटने की कोई गुंजाइश नहीं है। मैं किसी धर्म या मत को नहीं मानता, क्योंकि यह नफ रत फैलाता है और इसका इस्तेमाल लोगों को बांटने के लिए किया जाता है। हमलोग जिस सभ्य समाज में जी रहे हैं, क्या आपको लगता है कि उसमें किसी की निजता पर हमला करना सही है? हमें किस धर्म को मानना चाहिए, क्या खाना चाहिए, क्या पीना चाहिए, कैसी जिंदगी जीनी चाहिए, क्या इन सब पर विवाद की जरूरत है?

सद्‌गुरु : इस सवाल के कई पहलू हैं। विभाजन या नफरत वे लोग फैलाते हैं, जो अपने धर्मग्रंथों से उलझे हुए हैं, उन्होंने उसे पढ़ा नहीं है, उसे बांध कर रखा है। ये वे लोग हैं, जो सोचते हैं कि उनका तरीका ही सही है और जो उसे नहीं मानेगा, उसे इस दुनिया में रहने का कोई हक नहीं है। लोग ऐसी बातों के लिए उन किताबों का हवाला देते हैं, जिन्हें वे पवित्र मानते हैं, जिसे वे अपने ईश्वर के द्वारा लिखा हुआ, ईश्वर के शब्द मानते हैं। इसलिए आप उस पर तर्क नहीं कर सकते। लेकिन यह सब धीरे-धीरे अगले अस्सी से सौ सालों के अंदर खत्म हो जाएगा। तब तक आपको इसे सहना ही पड़ेगा।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

अब खाने की बात पर आते हैं। कोई दूसरा जो भी खा रहा है, अगर आप उसे नहीं पचा पाते तो यह वाकई समस्या है। मुझे लगता है कि गोमांस की जो पूरी चर्चा है, उसे गलत दिशा दे दी गई है। सबसे पहले तो यह समझना होगा कि इस देश में गायों को लेकर ऐसा क्यों है? इसका सबसे पहला कारण यह है कि हमारा देश हजारों साल से पशुपालकों का देश रहा है। आपकी संपत्ति का आकलन इस बात से होता था कि आपके पास कितने पशु हैं।

गाय के साथ रिश्ते की वैज्ञानिक पुष्टि

मैं आपको अपने बचपन की बात बताता हूं। हमारे दादाजी के घर में एक गाय थी। उसका अपना एक नाम था। उसे वह मुझे दिखाते और कहते कि तुम इसी गाय का दूध पीते हो। यह तुम्हारी गोमाता है। वह रोजाना मुझे गुड़ देते जिसे मुझे गाय को खिलाना होता था, क्योंकि वह मुझे दूध देती थी। गाय और मेरे बीच एक तरह का संबंध बन गया था। इसे आप भावनात्मक बेवकूफी नहीं कह सकते। आज वैज्ञानिक अध्ययनों से यह बात साबित हो चुकी है कि अगर किसी गाय के साथ आपका गहरा रिश्ता स्थापित हो जाए तो उस गाय के दूध की रासायनिक संरचना ऐसी हो जाती है कि वह दूध आपको जबर्दस्त पोषण देगा। मैं पांच से दस साल तक जिस गाय का दूध पी रहा हूं, उसके बूढ़ी हो जाने पर उसे काट डालने की बात तो सोची भी नहीं जा सकती। वह दूसरी मां के जैसी है।

रेड मीट या लाल मांस है बीमारियों की वजह

दूसरा पहलू यह है कि जब गाय के साथ आपका रिश्ता गहरा हो जाता है, जैसा कि भारतीय ग्रामीणों का होता है। अगर आपके खराब दिन चल रहे हों, तो आप पाएंगे कि गाय की आंखों से आंसू निकलने लगते हैं। उनके भीतर इंसानों की तरह भाव होते हैं। गाय को मारना और खाना, नरभक्षण के जैसा है। इसके अलावा, वैज्ञानिक सबूत इस बात के भी हैं कि अमेरिका में ज्यादातर दिल की बीमारियां, दिल के दौरे से होने वाली मौतें और कैंसर जैसे रोग रेड मीट खाने से होते हैं, इसीलिए पश्चिम के देशों में बहुत से डॉक्टर अब लाल मांस (रेड मीट) नहीं खाने की सलाह देते हैं। वैसे भी इसका उत्पादन हमारे पर्यावरण के लिए भी खतरनाक है।

निर्यात का चलन धरती को नष्ट कर देगा

इसका एक पहलू और है, जिस पर हमें गर्व करना चाहिए। बिना किसी खास संसाधन के, बिना किसी आधुनिक तकनीक के, हमारे किसान देश के एक अरब से भी ज्यादा लोगों के लिए भोजन पैदा कर रहे हैं। यह कोई छोटी बात नहीं है। एक देश के रूप में हम इस बात पर गर्व कर सकते हैं। उनकी खुद की स्थिति काफी खराब है लेकिन वे भोजन पैदा कर रहे हैं। अगर आप किसी एमबीए को दस एकड़ अच्छी जमीन दे दें, अच्छे से अच्छा बीज दे दें और उससे फ सल उगाने को कहें, तो उसे समझ आ जाएगा कि यह सब कितना जटिल है। अपने देश में हमारे पास खेती का यह ज्ञान आठ से दस हजार साल पुराना है। यह पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कार के रूप में हस्तांतरित होता रहा है, किसी तकनीक या शिक्षा की तरह नहीं। हमारी धरती काफी भरी-पूरी थी, क्योंकि हमने जानवरों को कभी नहीं मारा। आज भारत गोमांस के सबसे बड़े निर्यातक देशों में से एक है। यह स्वीकार करने लायक बात नहीं है। अगर इस देश में कोई उन्हें खाना चाहता है तो उसे खाने दें, यह उनका जीने का तरीका है, लेकिन हमें गोमांस का निर्यात तो नहीं ही करना चाहिए, क्योंकि यह चलन इस धरती को नष्ट कर देगा। अगर ऐसा ही होता रहा तो एक समय ऐसा आएगा जब हम उतना भोजन भी नहीं पैदा कर पाएंगे, जितना आज कर रहे हैं।

धर्म नहीं कृषि के दृष्टिकोण से सोचना होगा

मैं समझता हूं कि सरकार को कुछ नीति निर्धारित करनी चाहिए, मसलन हर एक एकड़ जमीन के लिए कम-से-कम चार से पांच मवेशी होने चाहिए। ऐसा नहीं हुआ तो हम जमीन को नष्ट कर देंगे। हम इस देश के भविष्य को बर्बाद कर देंगे। हमें इस पर उस तरह से सोचना होगा, धर्म के नजरिये से नहीं। गौर से देखें तो हिंदू धर्म में ऐसा कोई बंधन नहीं है कि हमें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं। यह सांस्कृतिक भावनाएं हैं क्योंकि हम गाय को दूसरी माता के समान देखते हैं, क्योंकि हम उसका दूध पीते हैं।

सुहेल सेठ: आपके तर्कों में दम है। गाय हमारे लिए दूसरी माता है, लेकिन दूसरे धर्म के लोग गाय को माता नहीं मानते। वे इसी देश में रहते हैं और संविधान के तहत उन्हें भी अपने अधिकार प्राप्त हैं। अगर वे कानूनन कोई गलत काम नहीं कर रहे हैं, तो फि र हमें उनके मामलों में हस्तक्षेप क्यों करना चाहिए? मुझे लगता है कि यह भी एक तरह की असहिष्णुता ही है। अगर आध्यात्मिकता खुद को खोजने के लिए है, तो जब तक खोजने के सभी रास्ते खुले हैं, हम इन चीजों को इतना तूल क्यों दे रहे हैं कि किसको क्या खाना चाहिए, खासकर तब जबकि वह कानूनन गलत नहीं है?

सद्‌गुरु : लेकिन अभी इसके लिए कानून है, इसलिए यह गैरकानूनी है।