सद्‌गुरुकभी-कभी माता-पिता को ये लगता है कि उन्हें बच्चों की गलितियों को सहना पड़ रहा है। क्या है इसका कारण? कैसे रोकें बच्चों को गलती करने से? आइये जानते हैं ऐसे ही कुछ प्रश्नों के उत्तर सद्‌गुरु से


समीर : माता-पिता को अपने बच्चों का गैरजिम्मेदार व्यवहार क्यों सहना पड़ता है?

सद्‌गुरु: एक गलती को पैदा करने के कारण!

समीर : उन्होंने तो कभी उम्मीद नहीं की थी कि बच्चा बड़ा होकर ऐसा हो जाएगा।

सद्‌गुरु: आपने इस धरती पर बहुत से ऐसे इंसान देखे होंगे जो तरह-तरह के बुरे काम कर रहे हैं। वे सब लोग किसी न किसी के बच्चे हैं। आप कभी ऐसा नहीं सोचते। आपके ख्याल से जो सबसे बुरा आदमी है, वह भी तो किसी का बच्चा है? इसलिए इस बात की संभावना हमेशा होती है कि आपका बच्चा वैसा बन सकता है। जब आप एक बच्चे को पैदा करते हैं, तो आप यह जोखिम उठाते हैं।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.
अपने बच्चे के लिए आपकी कुछ भौतिक जिम्मेदारियां है, आपको उन्हें पूरी करने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन वह एक निश्चित सीमा तक ही होना चाहिए, उसके आगे वह एक आजाद इंसान है।
कभी-कभार उसका नतीजा अच्छा होता है, कभी नहीं होता। हो सकता है कि हमने भरपूर मेहनत नहीं की या हो सकता है कि आपने सब कुछ किया लेकिन किसी और ने आपसे ज्यादा मेहनत की। सडक़ पर, स्कूल में, गली-मुहल्ले में या कहीं और किसी ने उसे आपसे अधिक प्रभावित किया, उस पर आपसे अधिक किसी और का असर पड़ा। इसलिए यह एक ऐसा जोखिम है जो आपको जीवन के साथ हमेशा उठाना पड़ता है।

हर मनुष्य के लिए एक सा महसूस करें

अब यह चुनाव आपका है कि इस बात से आपको लगातार दुखी होते रहना है या नहीं। आप एक सीमा तक हर संभव कोशिश करते हैं। उस सीमा से आगे हर इंसान को अपना जीवन तय करना पड़ता है, चाहे वह कोई भी हो, वह आपका बच्चा हो या न हो।

यह अच्छा होगा अगर आप हर इंसान के लिए ऐसा ही महसूस करें, सिर्फ अपने बच्चे के लिए नहीं। आप किसी को अपना बच्चा समझते हैं, यह सिर्फ एक ख्याल है, यह सच्चाई नहीं है।

समीर : खास तौर पर एक पुरुष के लिए तो यह सच है।

सद्‌गुरु: अब आप ऐसी बात कर रहे हैं, तो मैं आपको एक वाकया सुनाता हूं। एक बार शंकरन पिल्लै की पत्नी को दो शब्द समझ नहीं आ रहे थे। वह अपनी उलझन दूर करने अपने पति के पास गई और पूछा- ‘सच्चाई और विश्वास में क्या फर्क है?’ शंकरन पिल्लै बोले, ‘रामू तुम्हारा बच्चा है, वह तुम्हारा बेटा है, यह एक सच्चाई है। रामू मेरा बेटा है, यह एक विश्वास है।’

सिर्फ यही नहीं, मैं एक स्त्री के लिए भी कह रहा हूं - मान लीजिए आपका बच्चा अस्पताल में बदल गया, आप जिस बच्चे को भी घर ले गईं उसे मान लिया कि यह मेरा बच्चा है। यह सिर्फ एक ख्याल है। अगर मैं आपकी याद्दाश्त को मिटा दूं, तो आप नहीं जान पाएंगे कि कौन आपका बच्चा है, कौन नहीं है। इसलिए यह सिर्फ एक ख्याल है, यह एक विचार है, यह आपके दिमाग में बसी एक स्मृति है।

सिर्फ अपनों से नहीं, सभी से पूर्ण रूप से जुड़ें

आप जीवन को सिर्फ इसलिए महसूस नहीं कर पाते क्योंकि आपके दिमाग में जीवन के बारे में ऐसे बहुत से विचार होते हैं। क्योंकि जीवन से आपके जुडऩे की भावना बहुत भेदभावपूर्ण हो गई है। आप जिसे अपना समझते हैं, सिर्फ उसी के साथ जुड़ते हैं, बाकी के साथ आप नहीं जुड़ते। आप जीवन की पूर्णता को खो रहे हैं और यही जीवन के साथ उलझाव की वजह भी है। अगर आप जीवन के साथ बिना किसी भेदभाव के जुड़े होंगे, हर चीज के साथ, जिस हवा में आप सांस लेते हैं, जिस जमीन पर आप चलते हैं, अपने आस-पास की हर चीज के साथ, तो जीवन कभी उलझाने वाला नहीं होगा, बल्कि बहुत आनंदमय होगा।

कैसे रोकें बच्चों को गलतियां करने से?

क्या इसका मतलब यह है कि अगर मेरा बच्चा राह से भटक गया है और खुद को नुकसान पहुंचा रहा है या कोई मूर्खतापूर्ण चीज कर रहा है, तो मुझे कुछ भी महसूस नहीं होना चाहिए? आप महसूस कर सकते हैं, लेकिन वह आपके जीवन का एक निर्णायक तत्व नहीं होना चाहिए। उससे आपके जीवन की गुणवत्ता तय नहीं होनी चाहिए।

आप एक सीमा तक हर संभव कोशिश करते हैं। उस सीमा से आगे हर इंसान को अपना जीवन तय करना पड़ता है, चाहे वह कोई भी हो, वह आपका बच्चा हो या न हो।
अपने बच्चे के लिए आपकी कुछ भौतिक जिम्मेदारियां है, आपको उन्हें पूरी करने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन वह एक निश्चित सीमा तक ही होना चाहिए, उसके आगे वह एक आजाद इंसान है। आपका यह सोचना कि ‘यह मेरा बेटा है’, आपके दिमाग में मौजूद सिर्फ एक ख्याल है। एक ख्याल, जो भावना के आवेश में है। इसलिए स्वाभाविक रूप से आपको पीड़ा होगी। चाहे वे कुछ भी करें, या कुछ भी न करें। और कई बार आप जिसे गलत समझते हैं, वह गलत नहीं भी हो सकता है, हो सकता है कि वे सही चीज कर रहे हों, जिसके बारे में आपको पता न हो।

भागीदारी में कमी है - दुःख का कारण

कोई ब्रह्मचारी बन जाता है, तो किसी को बहुत गहरी चोट पहुंचती है। कोई किसी से प्रेम करने लगता है और अपनी जाति से बाहर शादी कर लेता है, तो उसके माता-पिता टूट जाते हैं। कोई अपने बेटे को डॉक्टर बनाना चाहता है, लेकिन वह संगीतकार बन जाता है, तो वे आहत हो जाते हैं। कोई अपने बेटे को अमीर आदमी बनाना चाहता है, लेकिन वह एक योगी बन जाता है, तो वे बिखर जाते हैं। तो वह भले ही गलत चीज न हो, हो सकता है कि जीवन की आपकी समझ बहुत सीमित हो और जीवन के साथ आपकी भागीदारी, आपका जुड़ाव बहुत पक्षपातपूर्ण हो। किसी न किसी वजह से आपको दुखी होना ही है। या तो आप इसलिए दुखी होते हैं कि कुछ गलत हो रहा है या आप इस डर से दुखी होते हैं कि कुछ गलत हो सकता है, क्योंकि आप जीवन के साथ अपनी भागीदारी में भेदभाव करते हैं।