सम्मोहन और ध्यान में क्या अंतर है?
‘ध्यान’ को लेकर तरह-तरह के लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। कुछ अपने अजीबोगरीब अनुभव भी सुनाते हैं। तो आखिर ध्यान है क्या? क्या यह सचमुच किसी दूसरी दुनिया में जाने जैसा होता है?
ध्यान क्या होता है? और कैसे पहुँच सकते हैं ध्यान की अवस्था तक? हमारे मन से जुडी एक और प्रक्रिया है सम्मोहन। क्या अंतर है सम्मोहन और ध्यान में?
ध्यान कोई दूसरी दुनिया नहीं है। ध्यान का अर्थ है जिस दुनिया में हम रह रहे हैं, उसी में गहराई में जाकर झांकना। आपके पास दो विकल्प हैं - या तो आप सतह पर रहें या जीवन की गहराई में उतरने की कोशिश करें। ध्यान भीतरी भाग तक पहुंचने का एक माध्यम है। अगर भीतरी भाग सतह से अलग तरह का महसूस होता है तो हैरान न हों, क्योंकि यह पूरी तरह अलग होता है, हमेशा अलग होता है।
प्रश्न:
क्या ध्यान एक सम्मोहन है?
क्या सम्मोहन की क्रिया को ध्यान की अवस्था तक पहुंचने के लिए एक साधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है?
सद्गुरु:
मूलरूप से सम्मोहन सुझावों की ऐसी उच्च अवस्था है, जो आपको बेखबरी की स्थिति में पहुंचा देती है। जबकि ध्यान विशुद्ध जागरूकता की अवस्था है। इसलिए ये दोनों चीजें कभी मिल नहीं सकतीं। सम्मोहन के सहारे ध्यान की अवस्था में पहुंचना - ऐसा कभी संभव ही नहीं है। सम्मोहन की मदद से आप खुद को मानसिक और शारीरिक आराम पहुंचा सकते हैं, लेकिन वह ध्यान नहीं है। दुर्भाग्य से बहुत सारे लोग ध्यान को थकावट दूर करने का एक तरीका मानते हैं। यह सही है कि ध्यान से आराम की एक गहरी अवस्था में पहुंचा जा सकता है, लेकिन ध्यान का अर्थ आराम नहीं है। ध्यान आपके मौजूद होने का एक तीव्र तरीका है।
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प्रश्न:
कैसे पहुंचे ध्यान तक? कोई कैसे ध्यान की अवस्था में पहुंच सकता है?
सद्गुरु:
ध्यान में जाना नहीं है, क्योंकि यह आपसे बाहर नहीं है। यह सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की तरह है। जिस मूर्ख को ऐसा लगता है कि अंडे मुर्गी के भीतर छिपे हैं, उसे कुछ भी हासिल नहीं होगा।
आप इस जीवन को जितनी गहराई में अनुभव कर सकते हैं, महसूस कर सकते हैं, आप इसे उतनी ही अच्छी तरह से जी सकते हैं। जीवन जैसा है, अगर आप उसे उसी रूप में नहीं महसूस करते हैं, तो आप अच्छी तरह से नहीं जी सकते। आप बस ऐसे ही संयोग से जीते रहेंगे।
इस दुनिया में जब आप एक इंसान के तौर पर आए हैं तो मरने से पहले आपको इस जीवन के बारे में सब कुछ जान लेना चाहिए। कम से कम जीवन के इस अंश को, खुद को, जानना ही चाहिए। जो भी क्षमताएं इसके भीतर हैं, आपको उनकी तलाश करनी चाहिए। नहीं तो मानव शरीर का क्या फायदा हुआ? तो ध्यान इस दिशा में एक संभावना है, एक साधन है।
जरा ध्यान दें:
- मेडिटेशन बस ध्यान देना है। इस लायक हो जाना है कि आप किसी भी एक चीज की ओर ध्यान लगा सकें, हर चीज की ओर ध्यान लगा सकें और यहां तक कि शून्य पर भी ध्यान लगा सकें।
- यहां जब तक आपका अस्तित्व केवल शरीर और मन के रूप में है, पीड़ा तो होगी ही, इससे बचा नहीं जा सकता। ध्यान का अर्थ है अपने शरीर और मन की सीमाओं से परे जाना।
- जीवन का मूल उद्देश्य है- इसे परम संभावना तक ले जाना, अपनी सर्वोच्च अवस्था में खिलना। ध्यान खिलने के लिए खाद-पानी का काम करता है।
- ध्यान एक ऐसे आयाम में प्रवेश करने का अवसर है जहां आपके अंदर तनाव जैसी कोई चीज नहीं होती।
- ध्यान, विज्ञान का वो आयाम है जो आपके अंदर सही तरह का माहौल पैदा करता है, तकि आप एक शांतिपूर्ण और प्रसन्नचित्त जीवन जी सकें।
- ध्यान का अर्थ है पूरी तरह से बोध में स्थित होना। पूरी तरह से मुक्त होने का यह एकमात्र मार्ग है।
- ध्यान न तो एकाग्रता है न ही आराम। यह एक तरह से घर लौटने जैसा है।
दुर्भाग्य से बहुत सारे लोग ध्यान को थकावट दूर करने का एक तरीका मानते हैं। यह सही है कि ध्यान से आराम की एक गहरी अवस्था में पहुंचा जा सकता है, लेकिन ध्यान का अर्थ आराम नहीं है। ध्यान आपके मौजूद होने का एक तीव्र तरीका है।