अध्यात्म जगत में ब्रह्मचर्य और देवी-भक्ति दो अलग-अलग पथ माने जाते हैं। एक ओर देवी-भक्ति में संगीत और नृत्य मिलता है, तो दूसरी ओर ब्रह्मचर्य को तपस्वियों के गेरुए रंग से जोड़ा जाता है। जानते हैं इस विडियो में, इन दोनों के बीच के अंतर को...

(प्रश्नकर्ता): क्या आप हमें भैरागिनी माँ के विषय में बताएंगे ? भैरागिनी माँ के विषय में और भैरागिनी का क्या अर्थ है ? और यह ब्रह्मचर्य से किस प्रकार से अलग है ?

सद्‌गुरुसद्‌गुरु : राग अर्थात रंग। भैरागिनी अर्थात एक अर्थ में वह देवी का रंग हो गई है। ब्रह्मचारी से अर्थ है वैराग्य हो जाना। जिसका मतलब है रंगहीन हो जाना। अंग्रेजी का शब्द कलरलेस नकारात्मक है …नकारात्मकता का बोध देता है - किन्तु रंगहीन का अर्थ है जो पारदर्शी है। इस समय हवा रंगहीन है। क्या आप चाहेंगे ये रंगीन हो जाये? तो एक ब्रह्मचारी प्रयास कर रहा है कि वैराग्य की अवस्था में कैसे प्रवेश किया जाये, जिससे अर्थ है जीवन का पारदर्शी हो जाना। उस अवस्था में स्पष्टता ही परम लक्ष्य होता है - ऐसी स्पष्टता जो जीवन और मृत्यु के पार देख सकती है। एक भैरागिनी चन्द्रमा की भांति होती है। चन्द्रमा का प्रकाश उसका स्वयं का नही है, वह प्रतिबिम्ब होता है। किन्तु ज़्यादातर लोग चन्द्रमा को पसंद करते हैं सूर्य को नही, यद्द्यपि सूर्य ही चन्द्रमा को भी प्रकाशित कर रहा है। किन्तु फिर भी ज़्यादातर लोग चन्द्रमा की ओर देखते हैं, सूर्य की तरफ कभी नही देखते। अधिक सुगम्य और ज़्यादा विविधतापूर्ण, चन्द्रमा हर दिन भिन्न दिखाई देता है। सूर्य प्रत्येक दिन एक सा दिखता है - साल भर, हर दिन एक सा, वही.. जबकि चन्द्रमा अट्ठाइस रूपों में दिखता है।

तो ये दो अलग मार्ग हैं – और ये सुन्दर बात है। मेरे विचार में अगले एक या दो सालो में वह समय आ रहा है जब बहुत से लोग इस मार्ग पर चल सकते हैं। यदि आप स्वयं को पूर्णतः समर्पित कर दें तो यह एक सुन्दर मार्ग है। किन्तु यदि आप तर्क के आधार पर इसका विश्लेषण करेंगे तो आप पागल हो जायेंगे। किन्तु यदि आप स्वयं को समर्पित का सकें तो आप एक सुन्दर, परम आनंदपूर्ण अवस्था में प्रवेश करेंगे। तो वो लोग जिन्हे गर्व है कि उनके पास एक बड़ा ह्रदय है और बुद्धि नही है, उनके लिए ये बहुत सुन्दर मार्ग है यात्रा के लिए। या फिर, यदि आपका मस्तिष्क इतना सूक्ष्म और तीक्ष्ण है कि वह तर्क के पार जा सके, मौलिक तर्क की क्या काला व सफ़ेद है , गलत और सही के पार जा सके और जीवन को देख पायें, तब भी यह एक सुन्दर पथ है - दोनों ही रूपों में ये सुंदर है। क्योंकि तर्क के पार तार्किक रूप से देखने के लिए एक ख़ास बौद्धिक तीक्ष्णता की आव्यशकता होती है। नहीं तो तर्क हमेशा कहेगा कि यह सही है, वह गलत है, यह ठीक है, यह ठीक नही है, यह अंदर है, यह बाहर है। वह भीतर भी है और बाहर भी है। और यदि आप स्वयं को देवी के प्रति समर्पित करें - एक बैरागिनी के रूप में या ऐसे ही - प्रत्येक दिन जब आप जाते हैं – देवी मंदिर में ऊर्जा का अलग ही रूप होता है। वह (ध्यानलिंग को संकेत करते हुए) ऐसा नही है, हर दिन एक जैसा - विश्वसनीय। वह(लिंग भैरवी की ओर संकेत करते हुए) अपने तरीके से चलती है।

भैरागिनी के मार्ग का अर्थ है देवी का रंग ले लेना, केवल वस्त्रो में नही अपितु हर रूप में। रक्त तो लाल होता ही है , आपका सिर भी लाल हो जाना चाहिए। आपमें सब कुछ लाल हो जाता है। आप देवी का रंग हो जाते हैं। आपके पास स्वयं का कुछ नही बचता। क्या " ओह क्या मै स्वयं को समर्पित कर दूँ ? यदि आप जीवन में कुछ सार्थक पाना चाहते हैं , आपको स्वयं को खोना होगा , और कोई उपाय नही। यदि आप अपनी संकीर्ण शख्सियत को, जो आप हैं, संभाल के रखने या बचाने का प्रयास कर रहे हैं, तो आपको मेरी शुभकामनाएँ हैं। अंतिम दिन तक यही किस्सा अनवरत चलता रहेगा, यकीन करें। मै चाहता हूँ आप पीछे मुड़कर देखें। यदि आप बीस वर्ष के हैं तो हो सकता है बहुत कुछ नही है पीछे। किंतु यदि आप तीस या चालीस या पचास के हैं, कृपया पीछे जाएँ और देखें - आप भिन्न वातावरण में होंगे किन्तु संघर्ष वही है, समस्याएं वैसी ही हैं। वातावरण बदल गया हो, शायद प्रसंग बदल गया हो किन्तु बुनियादी बात वही है और भरोसा करें, बहुत से लोग ऐसे ही मर जातें है। उनकी मरणशय्या पर भी काम ही लोगो को ये आभास होता है की जीवन व्यर्थ ही गया बाकी ऐसे ही चले जाते हैं।

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https://youtu.be/jcT903k4iSY

मेरे ख्याल में मैंने ये पहले भी बताया है - एक बार ऐसा हुआ, शंकरं पिल्लै अपने पिछले जन्म में मरणशय्या पर था। देखिये , वह बार- बार जन्म लेता है तो आश्चर्य न करें। (हंसी की आवाज़ )

तो वह जागरण और मूर्छा की अवस्था में था, वैसे ही जैसा आपके शून्य ध्यान में होता है, कभी आप सो जाते हैं, कभी सचेत होते हैं - इसी प्रकार उसकी स्थिति थी वह होश में आता और फिर मूर्छित हो जाता और इसी होश और मूर्छा कि अवस्था में वह थोड़ा होश में आया, फिर उसने देखा और कहा –

उसने अपनी पत्नी की ओर देखा और कहा , " मेरा बड़ा बेटा राम कहाँ है "?

बड़ा बेटा आया और उसने कहा, " पिताजी मै यही हूँ, आप चिंता न करें , मै यहीं हूँ। " फिर अचेत हो गया।

फिर थोड़ी देर बाद उसे होश आया , उसने पत्नी की ओर देखा और पूछा , "हमारा दूसरा बेटा बीमू किधर हैं?”

बीमू कूदा और कहा , " पिताजी मै यहीं हूँ मै आपके पास ही रहूंगा , मै कहीं नही जाऊँगा।"वह फिर अचेत हो गया और लम्बे समय के बाद होश में आया और पूछा ," हमारा तीसरा बेटा सोमु कहाँ हैं ?"

तीसरे बेटे ने उसके पैर पकड़ लिए और कहा ,"पिताजी , मै आपके चरणो में हूँ , मैं यहीं हूँ।" फिर उसने पत्नी की ओर देखा और पूछा - "अरे फिर दुकान कौन देख रहा है"? ये चलता रहेगा।

बस भूख मिटाने और संतानोत्पत्ति की इच्छा की तुष्टि के लिये - सारा जीवन चलता रहेगा। आप इसका महिमामंडन कर सकते हैं, कल्पनायें कर सकते हैं, पर कृपया समझ लें कि य्रे ऐसे ही चलेगा। मैं आपको ये अब दोहराता नही रहूँगा। मैंने ये अब बहुत कह दिया है। जिनके पास थोड़ी बुद्धि है - वे इसे किसी और कार्य में लगायें और यकीन करिये , मैं अपने अनुभव से कह रहा हूँ। मेरे अपने जीवन के अनुभव से जिस तरह मैंने खोजा है और जिस प्रकार मैंने संघर्ष किया इसे जानने के लिए - आपको ये बड़ी ही सरलता से मिल रहा है। हाँ। तो इसलिए हम बांस के परिपक्व होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। तो आप एक भैरागिनी बनना चाहती हो - आप चुन सकते हैं, ये एक अद्भुत तरीका है होने का।