प्रश्नकर्ता: नमस्कारम सद्‌गुरु !

हनुमान एवं आदी शंकराचार्य जैसे लोगों ने अपने जीवन में अदभुत पराक्रम एवं विशेष कार्य किये। लोग इसका श्रेय उनके ब्रह्मचर्य को देते हैं। तो, एक ब्रह्मचर्य होने पर क्या क्षमताएं मिलती हैं?

सद्‌गुरु: अगर आप ब्रह्मचर्य हो जाते हैं तो एक अदभुत बात तो ये होती है कि आप कम से कम एक जीवन को बचा लेते हैं। अगली बात ये है कि आप अपनी तरह का एक और बिगड़ैल बच्चा पैदा नहीं करते। ये ब्रह्मचर्य के आसानी से देखे जा सकने वाले लाभ हैं!

ब्रह्मचर्य का क्या अर्थ है? 'ब्रह्म', इस शब्द को हम कई तरह से, कई अर्थों में देख सकते हैं। मूल रूप से ब्रह्म का अर्थ है, 'सृष्टि के स्रोत की असीमित उपस्थिति'। सृष्टि के कर्ता भी ब्रह्मा हैं। हमारी संस्कृति में, हम ये नहीं मानते कि सृष्टिकर्ता स्वर्ग में बैठे हुए हैं। सृष्टिकर्ता ने खुद को अस्तित्व के प्रत्येक परमाणु में निवेशित किया है - वे कण कण में है और अस्तित्व के एक बहुत बड़े भाग में हैं। एक परमाणु में 99.99999 % भाग खाली है। तो वास्तविक परमाणु या परमाणु के कणों का ढांचा 0.00001% से भी कम भाग में है। बाकी सब खाली है।

 

यही अनुपात ब्रह्माण्ड में भी है। 99.99999% से भी अधिक भाग खाली है। तुलनात्मक दृष्टि से ग्रहमंडल, तारे आदि थोड़े से ही हैं, अधिकांश रूप से ब्रह्माण्ड खाली ही है। आधुनिक विज्ञान सृष्टि के उस आयाम को समझा पाने में सफल नहीं हो पा रहा, जो हमारे मन के तर्कों के अनुकूल नहीं है। वे इसे काली ऊर्जा, खाली स्थान आदि के रूप में बता रहे हैं। वे कह रहे हैं, "ये शून्य है, लेकिन......"।

सृष्टि के रचनाकार को हमने कहा, 'ब्रह्मा'। जब हमने उनका वर्णन करना चाहा तो हमने कहा, 'शिव', जिसका अर्थ है 'कुछ नहीं'। जब हमने उनकी क्षमता का वर्णन करना चाहा तो हमने उन्हें ब्रह्मा कहा। जो शिव हैं, वे ब्रह्मा बन गये। जो खाली स्थान था, वो सृष्टि का स्रोत बन गया।

 

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ब्रह्मचर्य का अर्थ है कि आप अपनी भौतिकता के सीमित परिमाण को समाप्त कर देते हैं, जिससे आप सृष्टि के स्रोत की ओर, ब्रह्म की ओर बढ़ते हैं। अगर आप सृष्टि के स्रोत में प्रवेश कर जाते हैं, तो स्वाभाविक रूप से आप उनकी ओर बढ़ते हैं जिन्हें हम शिव कहते हैं, 'वे जो नहीं हैं'।

हम वहां क्यों जाना चाहते हैं ? क्योंकि जब आप किसी सीमा के अंदर बंद हो जाते हैं तो आप के अंदर 'कुछ' ऐसा है जो उस सीमा के बाहर जाना चाहता है। ये इच्छा या चाहत सीमा को फैलाने की नहीं है। आप की जो भी सीमा है, ये उससे बाहर जाना चाहता है। चाहत असीमित होने की है। जिसकी रचना हुई है वह असीमित नहीं हो सकता। जिसकी रचना नहीं हुई है, सिर्फ वही असीमित हो सकता है। जीवन के इस अरचित, असीमित आयाम को ही शिव कहते हैं।

 

रॉकेट जैसी ऊर्जा

ब्रह्मचर्य का अर्थ है कि आप ने ब्रह्म की ओर एक रास्ता बना लिया है, जिससे आप ऐसे आयाम में पहुँचते हैं, जो आयाम रहित है, जिसे शिव कहते हैं। आप जब ब्रह्मा या शिव जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं तो लोग तुरंत ही उन्हें एक धर्म विशेष के साथ जोड़ देते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है, ये बस इस देश की पारंपरिक भाषा है। ब्रह्मचर्य का एक और आयाम है जो कुछ ऐसा है – रॉकेट से कहीं जाने के पीछे सोच ये है कि आप सभी मौजूद सीमाओं को तोड़ कर एक दूसरे ही आयाम में प्रवेश करना चाहते हैं, और इसके लिये बहुत ज्यादा मात्रा में ईंधन चाहिये। और रॉकेट जैसे जैसे ऊपर जाता है, वह अपना वजन कम करता जाता है। अगर उसका वज़न वही बना रहे, कम न हो, तो आगे तक जाने के लिये उसका ईंधन कम पड़ जायेगा।

ब्रह्मचर्य का अर्थ है कि आप ने ब्रह्म की ओर एक रास्ता बना लिया है, जिससे आप ऐसे आयाम में पहुँचते हैं, जो आयाम रहित है, जिसे शिव कहते हैं।

अगर आप को ऑफिस जाना है तो आप ये काम एक टीवीएस मोपेड पर कर सकते हैं, या आप कार में जा सकते हैं पर उसमें कुछ ज्यादा ईंधन लगेगा। आप हेलीकाप्टर में भी जा सकते हैं मगर उसके लिये तो काफी ज्यादा ईंधन की ज़रूरत पड़ेगी। लेकिन अगर आप रॉकेट इस्तेमाल करना चाहें तो उसके लिये रॉकेट को ज़मीन से उठाने में ही हज़ारों गुना ज्यादा ईंधन लग जायेगा। लेकिन आप ऑफिस जाने के लिये रॉकेट का उपयोग नहीं करते। रॉकेट का उपयोग तो सभी मौजूद सीमाओं को तोड़ कर एक अलग आयाम में जाने के लिये होता है।

इसी तरह से, ऑफिस जाने के लिये, घर वापस आने के लिये, और हर दिन किसी छोटी सी बात की शिकायत करने के लिये भी आप को ख़ास स्तर की ऊर्जा चाहिये। लेकिन अगर आप ब्रह्म की ओर जाना नहीं चाहते बल्कि ब्रह्म का उपयोग, दिव्यता को प्राप्त करने के लिये, एक मार्ग के रूप में करना चाहते हैं तो आप को बहुत ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता होगी। जब आप को इस तरह की ज्यादा ऊर्जा की ज़रूरत हो तो आप को देखना होगा कि आप के जीवन में वे कौन सी प्रक्रियायें हैं जिनमें आप की अधिक ऊर्जा खर्च होती है। उन सब बातों को आप को कम करना होगा। आप जैसे जैसे आगे बढ़ते हैं, आप को उतना वजन कम करना होगा, जितना आप कर सकें। बस आप अपने विचार, अपना फिलोसोफी सब कुछ छोड़ते जाइए।

 

पार्वती की साधना

आपने पार्वती की साधना के बारे में सुना ही होगा। पार्वती एक राजकुमारी थीं पर वे शिव से विवाह करना चाहतीं थीं। शिव ने उन्हें जाने के लिये कह दिया और बोले, "कोई अच्छा पुरुष ढूंढो। तुम्हें बस एक पुरुष की आवश्यकता है"। पार्वती बोलीं, "नहीं, मैं आप को ही चाहती हूँ"। उन्हें मालूम था कि अच्छी अच्छी पोशाकें पहन कर उनके सामने प्रदर्शन करने से भी कोई असर पड़ने वाला नहीं। उन्हें पता है कि इसके लिये साधना की तीव्रता चाहिये। तो वे वहीं, उनके सामने बैठ जाती हैं। शिव उनकी ओर देखते हैं और उन्हें जाने के लिये कहते हैं क्योंकि पार्वती की साधना के स्तर -- सिर्फ ॐ नमः शिवाय का जप - का उनके लिये कोई अर्थ ही नहीं है।

तो वे भोजन और वस्त्रों का त्याग कर देती हैं। सिर्फ शरीर को ज़िंदा रखने के लिये दो पत्ते खाती हैं और दो अन्य पत्तों से अपने शरीर को ढकती हैं, तो उनको लोग द्विपर्णा कहते हैं - दो पत्ते वाली।

पार्वती को यह समझ में आता है, "वे मुझ पर हँस रहे हैं क्योकि मैं सिर्फ अपने शरीर के बारे में सोच रही हूँ -- मैं अपने शरीर को वस्त्रों से ढकती हूँ और खाना खाती हूँ। तो वे भोजन और वस्त्रों का त्याग कर देती हैं। सिर्फ शरीर को ज़िंदा रखने के लिये दो पत्ते खाती हैं और दो अन्य पत्तों से अपने शरीर को ढकती हैं, तो उनको लोग द्विपर्णा कहते हैं - दो पत्ते वाली। उनकी माँ का रक्तचाप बढ़ जाता है - एक तो उनकी बेटी जंगल में बैठी है और फिर वो अपने शरीर को बर्बाद कर रही है। वो ऐसी कंकाल होती जा रही है, उसका विवाह कैसे होगा? दूसरी चिंता ये है कि वो अपने वस्त्रों का भी त्याग कर के बैठी है।

शिव पर अब भी असर नहीं होता। तो पार्वती एक पत्ती और छोड़ देती हैं। वे अब सिर्फ एक पत्ती खाती हैं और सिर्फ एक पत्ती से अपने स्त्रीत्व को ढकती हैं। तो अब उन्हें एकपर्णा कहा जाता है -- एक पत्ते वाली। शिव पर अब भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता तो वे खाना बिल्कुल ही छोड़ देती हैं - एक पत्ती भी नहीं। और वो एक पत्ती जिससे वो अपना तन ढकती थीं, वो भी छोड़ देती हैं। वे अब भूखी और निर्वस्त्र बैठी हैं, पूर्णतः खोयी हुईं। तो अब उन्हें अपर्णा कहा गया -- बिना पत्तों की। न किसी चीज़ से उन्होंने खुद को ढंका है, और न ही वे कुछ खा रही हैं। सभी चक्रीय गतियों को तोड़ दिया है। यही ब्रह्मचर्य है। ये बात अलग है कि बाद में उन्होंने विवाह किया।

 

भौतिक आयाम को पार करना

ब्रह्मचर्य का अर्थ है, अपने आप में इतने शक्तिशाली हो जाना कि सभी चक्रीय गतियां उस सीमा तक टूट जायें कि आप की शारीरिकता और आसपास की अन्य बातें आप को पकड़ न सकें, आप पर उनका कोई असर न हो।

वो सबकुछ, जिसमें आप की ऊर्जा खर्च होती है, टूट जाए। ये वैसे ही है जैसे एक रॉकेट में ईंधन का जलना – पूरी ऊर्जा एक ही दिशा में जाती है। यही कारण है कि ये उस तरह ऊपर की ओर जाता है। यदि ऊर्जा पांच अलग अलग दिशाओं की ओर जाये तो रॉकेट कहीं भी नहीं जा सकेगा। ऐसा ही आप के साथ भी है -- जब सब कुछ एक ही दिशा में हो तभी आप कहीं जायेंगे। जब आप की ऊर्जा पांच अलग अलग दिशाओं में जाती है, तो स्वाभाविक रूप से ये कहीं जाना नहीं चाहता।

इतनी शक्तिशाली कोशिका को एक ऐसे अत्यन्त शक्तिशाली ईंधन में बदला जा सकता है, जो आप को भौतिक आयाम से परे जाने के योग्य बना दे - और ये अपने आप में एक महान शक्ति है।

आप जानते हैं कि रामायण और महाभारत में ऐसी कहानियां हैं कि जब आप एक मनुष्य को मारना चाहते हैं और उसके रक्त की एक बूँद गिरती है तो उसमें से एक वैसा ही व्यक्ति पैदा हो जाता है। अगर सौ बूंदें गिरती हैं तो सौ व्यक्ति और आ जाते हैं। वे उस मनुष्य के बारे में बता रहे हैं जिसने इतनी अधिक शक्ति प्राप्त कर ली है की उसके खून की हरेक बूँद वीर्य का काम करती है, वह हरेक बूँद जो गिरती है -- एक अन्य व्यक्ति को उत्पन्न कर देती है। जीवन के इस आयाम का यही महत्त्व है। अगर मनुष्य की एक कोशिका एक और व्यक्ति बना सकती है तो इसमें बहुत अधिक क्षमता होगी। इतनी शक्तिशाली कोशिका को एक ऐसे अत्यन्त शक्तिशाली ईंधन में बदला जा सकता है, जो आप को भौतिक आयाम से परे जाने के योग्य बना दे - और ये अपने आप में एक महान शक्ति है। अगर आप भौतिक आयाम को पार करना चाहें तो आप को अपने शरीर को एक अलग ही ढंग से प्रयुक्त करना होगा। इसीलिये ब्रह्मचर्य है, यद्यपि इसके और भी कई आयाम हैं।