Sadhguruजानते हैं कि कैसे हठ योग हमारे भौतिक कोषों – अन्नमय, मनोमय और प्राणमय कोष पर काम करता है और हमारी पहुँच आनंदमय कोष तक बनाता है।

आप जो तीन तरह के बंध लगाते हैं, उसको लेकर हम चाहते हैं कि आप खुद को ऐसी स्थिति तक ले जाएं, जहां आप इन तीनों बंध को मांसपेशियों का इस्तेमाल किए बिना भी लगा सकें।

अगर आप अपने जीवन में सार्थक काम करना चाह रहे हैं तो इसके लिए सिर्फ शक्ति की ही जरूरत नहीं होती, इसके लिए शक्ति की निरंतरता की भी जरूरत होती है, ताकि जब आप अपनी शक्ति लगाकर लगातार काम करें तो कहीं वो आपको हारने न दे।  
लेकिन अभी आप इसकी कोशिश मत कीजिए। अगर अभी आप ऐसा करते हैं तो यह आपके समय व ऊर्जा दोनों की बर्बादी होगी। पहले तो आपको शारीरिक तौर पर ठीक तरीके से बंध लगाना आना चाहिए, फिर अगर आपकी इच्छा हो तो आप ऐसी स्थिति में पहुंच सकते हैं, जहां बिना अपनी मांसपेशियों का इस्तेमाल किए आप अपनी इच्छानुसार कोई भी बंध लगा सकें। इससे आपकी गतिविधि बेहद शानदार ढंग से होने लगेगी, क्योंकि तब आपकी ऊर्जा इधर-उधर बर्बाद नहीं हो रही होगी, बल्कि एक जगह केंद्रित होगी। बुनियादी रूप से बंध का मकसद अपनी ऊर्जा को रोककर उसे अपनी इच्छानुसार लगाना है।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

ऊर्जा शरीर को भौतिक शरीर की तरह हिलाने की क्षमता

मान लीजिए कि आप अभी बोलना चाहते हैं, तो इसके लिए आपकी ऊर्जा को हर ओर बहने की जरुरत नहीं है। अगर आपका अपनी ऊर्जा पर नियंत्रण होगा तो आप उसे रोककर वहां लगा सकते हैं, जहां किसी खास गतिविधि के लिए आप इसे लगाना चाहते हैं। आपकी ऊर्जा की गैरजरुरी चंचलता आपको अयोग्य बनाती है। ठीक वैसे ही जैसे अनावश्यक रूप से मन की चंचलता आपको अकुशल बनाती है।
अगर आप अपने जीवन में सार्थक काम करना चाह रहे हैं तो इसके लिए सिर्फ शक्ति की ही जरूरत नहीं होती, इसके लिए शक्ति की निरंतरता की भी जरूरत होती है, ताकि जब आप अपनी शक्ति लगाकर लगातार काम करें तो कहीं वो आपको हारने न दे। रिफाइंड यानी परिष्कृत गतिविधि के लिए आपके अन्नमय, मनोमय व प्राणमय कोश को आपकी इच्छानुसार काम करना चाहिए। आप अपने ऊर्जा शरीर को इतने आराम से हिलाने में सक्षम हो जाएं जैसे आप अपनी ऊंगली को हिलाते हैं। तब आपकी काम करने की क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी।

इंसानी शरीर विकास के चरम पर है

फिलहाल तो इंसान पंगु बना हुआ है - वह कुदरती तौर पर जो कर सकता है और उसने खुद को जैसा बना रखा है, इन दोनों में जबरदस्त अंतर है। जब एक शेर, एक बंदर या दूसरे प्राणी अपनी पूरी कुशलता के साथ पैदा होते हैं तो फिर इंसान को इसके लिए इतनी मेहनत क्यों करनी पड़ती है? ये विकास से सम्बंधित समस्या है।
आपको मालूम है कि आपके और एक चिंपांजी के डीएनए में सिर्फ 1.2 प्रतिशत का फर्क होता है। लेकिन चेतना, जागरूकता व बुद्धिमत्ता के लिहाज से आप दोनों में जमीन आसमान का फर्क है। मानव चेतना दूसरी कई चीजों से प्रभावित होती है, जबकि यह भौतिक शरीर पूरी तरह से इस सौर मंडल की देन है, जिसमें हम रहते हैं। आज से हजारों साल पहले आदियोगी ने कहा था कि जब तक इस सौर मंडल में कोई बहुत बड़ा नाटकीय बदलाव नहीं होता, हमारा भौतिक शरीर और आगे विकसित नहीं हो सकता। लेकिन हम इसे इतना स्थिर व संतुलित जरूर बना सकते हैं, जहां हमारी जागरूकता व बुद्धिमत्ता बेकार न जाए।

एक आसन भी बंध बन सकता है

बंध का एक दूसरा आयाम है कि जब आप किसी आसन में कुछ खास समय तक रुकते हैं तो यह खुद ही एक तरीके से बंध बन जाता है। जब आप एक मुद्रा में बने रहते हैं, तो आपके अन्नमय कोश, मनोमय कोश व प्राणमय कोश एक सीध में आ जाते हैं। आनंदमय कोश को पाने के लिए आपके भौतिक शरीर, मानसिक शरीर व ऊर्जा शरीर को एक सीध में होना चाहिए, नहीं तो आप उसका अनुभव नहीं कर पाएंगे। हठ योग इन तीनों आयामों को इस तरह से एक सीध में लाता है कि अगर आप कहीं बैठ जाएं तो बिना भावुक हुए आनंद के रस में नहाते रहेंगे। यह इसलिए जरूरी है, क्योंकि भावनाएं केवल एक खास दूरी तक जा सकती हैं। आप अपनी ऊर्जा को तो आगे भी बढ़ा सकते हैं, लेकिन अपनी भावनाओं को आप एक सीमा के बाद आगे नहीं ले जा सकते। योग का मतलब है कि आप खुद को सिर्फ अपने विचारों व भावनाओं तक ही सीमित नहीं रखना चाहते। आप नहीं चाहते कि आपका भौतिक शरीर और आपकी मनोवैज्ञानिक सीमाएं आपके जीवन की चारदीवारी को तय करें, आप उस चारदीवारी से बाहर जाना चाहते हैं।

मन और शरीर के परे है विशुद्ध ऊर्जा की स्थिति

एक बार अगर आप अपने ऊर्जा शरीर का इस्तेमाल भी उसी तरह से करने में सक्षम हो गए, जैसे आप अपने भौतिक शरीर का इस्तेमाल करते हैं तो फिर कोई सीमा ही नहीं रहेगी।

एक बार जब आप भौतिक व मनोवैज्ञानिक सीमाओं से परे निकल जाते हैं तो फिर आप एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाते है, जहां विशुद्ध ऊर्जा होती है।
भौतिकता की अपनी एक सीमा होती है, लेकिन अनुभव, जिज्ञासा या खोज की कोई सीमा नहीं होती। यही वो चीज है, जो एक योगी बंध के जरिए पाने की कोशिश करता है। किसी भी आसन को लंबे समय तक लगाने को मैं बंध की तरह ही लेता हूं। आपने भारत में ऐसे कई योगियों के बारे में सुना होगा, जो अपने दोनों हाथ ऊपर किए दशकों तक खड़े रहे।

यह आसन नहीं है, यह बंध ही है।

एक बार जब आप भौतिक व मनोवैज्ञानिक सीमाओं से परे निकल जाते हैं तो फिर आप एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाते है, जहां विशुद्ध ऊर्जा होती है। अगर आप यहां एक ऊर्जा अंश के रूप में रहते हैं तो फिर आपमें और इस ब्रह्माण्ड में कोई फर्क नहीं रहता, आप इसके साथ एक हो जाते हैं, इसका अनुभव करने लगते हैं, इसके साथ मिल जाते हैं और तब आपके लिए सृष्टि व स्रष्टा को जानना एक संभावना बन जाता है। बंध इस दिशा में मदद करते हैं।