जीवन भर याद रहने वाली यात्रा

पारुल शाह ने सद्गुरु और ईशा के साथ कैलाश और मानसरोवर की यात्रा की। वह हमें जीवनभर याद रहने वाली इस यात्रा का अनुभव सुना रही हैं।

मेरे लिए कोई भी तस्वीर तिब्बती पठार की भव्य और अद्भुत सुंदरता का अंदाजा लगाने के लिए काफी नहीं होती। अनंत क्षितिज और शुष्क तथा बंजर प्राकृतिक दृश्यों से मैं इतनी मंत्रमुग्ध थी। वहां न पेड़ थे, न झाड़ियां, न पक्षी न ति‍तलियां, दूर-दूर तक सिर्फ निर्जनता। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि यह सब असली था या मैं सपना देख रही थी। हमने नेपाल-चीन सीमा से मुश्किल इलाकों में चलने वाली गाड़ियों पर अपना सफर शुरू किया। कुछ घंटों की ड्राइविंग के बाद हम अपने ग्रुप के दूसरे वाहनों का इंतजार करने के लिए एक जगह रुके। ऐसी जगह इंतजार करना, जहां अनंत आकाश के सिवा कुछ न हो, सब कुछ ठहरा हुआ हो, जहां आपकी नजर सिर्फ रहस्यों से भरे गहरे नीले आकाश पर ही जाकर रुकती है, ये चीजें मुझे लगातार इस शरीर, जिसे मैं ‘मैं’ कहती हूं, की महत्वहीनता की याद दिला रहा था। आखिरी गाड़ी के आने तक रात गहराने लगी थी। हमने फिर से अपना सफर शुरू किया।

हम नेपाल-तिब्बत सीमा और कैलाश के बीचोबीच कहीं स्थि‍त एक शहर सागा पहुंचे। सागा में अधिक ऊंचाई पर होने वाली बिमारी आपको घेर लेती हैं। सिर में लगातार हल्का-हल्का दर्द होता रहता है और जरा जरा सी बात पर उबकाई के लिए पेट में मरोड़ उठती रहती है। तिब्बती गाइडों ने हमें बताया कि अगर हम सांस की समस्याओं से हारे बिना सागा को पार करने में सफल हो जाएं, तो बाकी का सफर भी ठीक रहेगा। खुशकिस्मती से हमारा पूरा ग्रुप इसमें सफल रहा, किसी को नेपाल वापस नहीं लौटना पड़ा।

सफर का अगला हिस्सा परयांग तक था, जो मानसरोवर से पहले रात का आखिरी पड़ाव है। रास्ते में ऐसा लग रहा था कि हर चीज सीधे-सीधे हम पर चोट कर रही है – भेदने वाली और फैली हुई रोशनी, निर्मम हवा, त्वचा पर चुभती रेत, ये सब दर्शा रहे थे कि हम इंसान कितने छोटे या तुच्छ हैं। आकाश, धरती और वहां के लोगों के साथ हमारा सामना हमारे अंदर एक ऐसी जगह बना गया, जिसका मुकाबला दुनिया की कोई दूसरी जगह नहीं कर सकती।

मानसरोवर पहुंचने की प्रतीक्षा में परयांग में वह रात असहनीय थी। अगली सुबह जब यात्रा फिर से शुरू हुई, तो मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।

मानसरोवर पहुंचने की प्रतीक्षा में परयांग में वह रात असहनीय थी। अगली सुबह जब यात्रा फिर से शुरू हुई, तो मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। कभी-कभी दूर तक फैले मैदानों में विचरने वाले खानाबदोश मेरा ध्यान आकृष्‍ट कर लेते। वे सदियों से ऐसा ही जीवन जी रहे हैं। एक शांत, उथल-पुथल रहित जीवन। मैं सोचने लगी कि उनका कठोर जीवन गुजर-बसर का संघर्ष है, या मानवता की जीत।

आखिरकार जब हम मानसरोवर पहुंचे, तो इस जगह ने मुझे अभिभूत कर दिया – मौन, शांत और रहस्यपूर्ण। एक गहरी नीली-हरी झील, मिलते-जुलते रंगों वाला आसमान और विशाल पहाड़ों के साथ एक अंतहीन क्षितिज। हर पहाड़ की भव्यता अलग-अलग थी, कुछ बर्फ से ढके हुए थे और बाकी भूरे और धूसर रंग के सभी शेड्स में। मेरे मन में कई सवाल उभरे। मैं आखिर हूं कौन? इस जीवन का मकसद क्या है? जब दिन की रोशनी रात के धुंधलके में बदल रही थी, तो ऐसा लग रहा था मानो तेज हवाओं के बीच रोशनी और अंधेरा एक-दूसरे से आंख-मिचौली खेल रहे हों।

अगले दिन, सद्गुरु की अगुआई में एक ध्यान प्रक्रिया के बाद हमने पवित्र जल में डुबकी लगाई। ठिठुराने वाले जल में बिताए गए वे पल आनंद से भरपूर थे। ऐसा लग रहा था मानो मैंने झील की भव्यता में खुद को डुबो दिया हो, पर फिर भी कैलाश के दर्शन का इंतजार हो - अभी कैलाश के ऊपर से बादल छंटे नहीं थे।

रात को हम मानसरोवर पर रुके। अचानक एक आनंदपूर्ण पल आया जब बादलों से घिरा आकाश साफ हुआ और हमने दूर में पवित्र पर्वत के दर्शन किए...

रात को हम मानसरोवर पर रुके। अचानक एक आनंदपूर्ण पल आया जब बादलों से घिरा आकाश साफ हुआ और हमने दूर में पवित्र पर्वत के दर्शन किए। उसकी चोटी चमकीली श्वेत बर्फ से ढकी थी, जो सूर्य की सुनहरी किरणों में चमक रही थी। इस दृश्य ने मेरी आत्मा को झकझोर दिया। यह कैलाश से पहली नजर का प्रेम था – भव्य कैलाश!

अगले दिन जब कैलाश तक की पैदल यात्रा शुरू हुई, तो हर किसी का मन आशा से आनंदित था। और जैसे कि प्रकृति हमारा स्वागत कर रही हो, बर्फबारी होने लगी। पैदल चलने के क्रम में एक पवित्र मंत्र हमें ऊर्जा देता रहा। सांस एक मौन प्रार्थना बन गई, एक दिव्य शक्ति के साथ जुड़ा एक दिव्य पल, जो हमारे अंदर ऊर्जा भरता रहा। मुझे अब तक संचित अपने सारे ज्ञान पर शंका होने लगी। मैं क्या थी, कौन थी? क्यों थी? आगे बढ़ने पर हमने उस विशाल पर्वत के दो भिन्न पहलू देखे। उन दोनों के बीच इतना अधिक अंतर था कि मैं उन्हें एक ही पर्वत के दो पक्षों के रूप में नहीं देख पा रही थी।

शाम को हम उस आश्रम में पहुंचे, जहां हमें ठहरना था। वह कैलाश के उत्तरी भाग के ठीक नीचे स्थित है। विशाल काली चट्टान के रूप में कैलाश अपनी पूरी भव्यता में अकेला खड़ा था। मैं उस बर्फ से ढके पहाड़ से नजरें नहीं हटा पा रही थी। ऐसा लग रहा था मानो कोई शक्ति, एक जबर्दस्त गुरुत्वाकर्षण मुझे खींच रहा हो।

अगले दिन उतराई के दौरान हमने देखा कि तीन तिब्बती कैलाश की ओर जाते हुए हर कदम पर दंडवत कर रहे थे। भोजन, पानी या प्रकृति के सदा बदलते मिजाज से किसी सुरक्षा के बगैर। मैं सोचती रह गई कि आखिर भक्ति का अर्थ क्या है।

अगले दिन हमने भीतरी परिक्रमा के लिए अपना छोटा चक्कर शुरू किया। हमारे गुरु द्वारा एक दीक्षा प्रक्रिया ने हमें इस पवित्र स्थान का अनुभव करने में मदद की। मुझे लगा मानो मेरे भीतर विस्फोट हो रहा है – मैं उसी जगह जीना और मरना चाहती थी। मैं पूरी तरह मुक्त महसूस कर रही थी, न कहीं जाना, न कहीं से आना, बस उस स्थान में पूरी तरह विसर्जित।

अगले दिन उतराई के दौरान हमने देखा कि तीन तिब्बती कैलाश की ओर जाते हुए हर कदम पर दंडवत कर रहे थे। भोजन, पानी या प्रकृति के सदा बदलते मिजाज से किसी सुरक्षा के बगैर। मैं सोचती रह गई कि आखिर भक्ति का अर्थ क्या है।

आम तौर पर किसी यात्रा की एक खास मंजिल होती है, मगर यहां यात्रा ही मंजिल बन गई थी। किसी चीज ने मुझे सबसे गहराई में छुआ, जो चीज मेरी समझ से परे है। मगर मैं इतना जानती हूं कि मैं वहां बार-बार जाना और उस जगह, उस ऊर्जा का अनुभव करना चाहती हूं। मैं कैलाश की विशालता का अनुग्रह प्राप्त करना चाहती हूं।

वास्तव में इस यात्रा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता, इसका सिर्फ अनुभव किया जा सकता है।