ईशा के प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स को भारत के सबसे बड़े पर्यावरण पुरस्कार - इंदिरा गाँधी पर्यावरण पुरस्कार - से सम्मानित किया जा चूका है - प्रोज़ेक्ट ग्रीनहैंड्स की पहल पर 5 जनवरी को 450 स्कूलों के 3 लाख बच्चों ने 9 लाख पौधे लगाते हुए एक रिकार्ड बनाया। आइये जानते है कैसे बना ये रिकॉर्ड ।...

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2006 में 852,587 पौधे लगाने के पीजीएच के गिनीज वर्ल्ड रिकार्ड के बाद, यह प्रोजेक्ट का दूसरा रिकार्ड है।
आज जब धरती मानव के कामों के विनाशकारी असर से जूझ रही है, दुनिया में हर कहीं लोग पानी और मिट्टी की घटती गुणवत्ता, मौसम में बदलाव और धरती पर बसने वाली प्रजातियों की विविधता में आई कमी को महसूस कर रहे हैं। मौसम में बदलाव को कम करने में पेड़ बहुत अहम भूमिका निभाते हैं मगर बदकिस्मती से आज पेड़ यह लड़ाई हारते नज़र आ रहे हैं। तमिलनाडु के सेलम जिले के विद्यार्थियों ने 5 जनवरी 2015 को एक स्वस्थ पर्यावरण की ओर पलड़ा झुकाने के लिए अपनी तरफ से एक बेहतरीन कोशिश की।

450 स्कूलों के 3 लाख बच्चों ने एक दिन में 9 लाख पौधे लगाते हुए एक रिकार्ड बनाया, जो ईशा के प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स और तमिलनाडू के शिक्षण विभाग की साझा पहल - ग्रीन स्कूल मूवमेंट -  का एक हिस्सा था। ग्रीन स्कूल मूवमेंट 2011 में शुरू हुआ था, और इसका लक्ष्य स्कूली बच्चों को पौधे तैयार करने और लगाने में शामिल करते हुए उन्हें हरियाली को लेकर जागरूक बनाना है। पर्यावरण संरक्षण उन्हें पाठ्यक्रम के रूप में नहीं बल्कि एक अनुभव के रूप में सिखाया जाता है, जो हर बच्चे के मन पर गहरी छाप छोड़ता है। पिछले 4 सालों में इस प्रोजेक्ट में कोयंबटूर, इरोड, त्रिची, कृष्णागिरी और पांडिचेरी के 1,516 से ज्यादा स्कूलों के 7.30 लाख स्कूली बच्चों को शामिल किया गया। इन बच्चों ने 22.76 लाख पौधे लगाए।

2006 में 852,587 पौधे लगाने के पीजीएच के गिनीज वर्ल्ड रिकार्ड के बाद, यह प्रोजेक्ट का दूसरा रिकार्ड है। लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स और इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स के अधिकारी भी इस परियोजना पर नजर रखे हुए थे।

समापन समारोह में, सद्‌गुरु और तमिलनाडु के माननीय राज्यपाल डॉ के.रोजैय्या ने आखिरी पौधा लगाया। इसके बाद कई विशिष्ट अतिथियों ने भाषण दिए और सद्‌गुरु ने अध्यक्ष के तौर पर भाषण दिया। सद्‌गुरु इस प्रोजेक्ट के संस्थापक हैं और पीजीएच के पीछे उन्हीं की प्रेरणा रही है। उन्होंने बताया कि इस समय बुनियादी स्तर पर काम करने वाले ऐसे आंदोलन क्यों जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि इस आंदोलन को पुनर्वनरोपण या वनों को हरा भरा करने वाला आन्दोलन नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इन पौधों को निजी जमीन पर, मुख्य रूप से कृषि भूमि पर लगाया गया ताकि राज्य के हरित क्षेत्र को बढ़ाया जा सके। इससे यह भी सुनिश्चित हो जाता है कि उन्हें अच्छी देख-रेख मिलेगी। पौधों के बचे रहने की दर 68 फीसदी है, जो सराहनीय है। जो पौधे मर गए, उनके बदले नए पौधे लगाए गए हैं। सद्‌गुरु ने इच्छा जताई कि ग्रीन स्कूल मूवमेंट तमिलनाडु में और बड़े आंदोलन का रूप ले ताकि बाकी के राज्य भी इस तरह की चीजों में शामिल हों।

इस कोशिश को बहुत से मशहूर लोगों की सराहना भी मिली है। एड गुरु प्रह्लाद कक्कड़ ने कहा, ‘2 करोड़ पौधे अपने आप में एक बड़ी संख्या हैं। यह संख्या ज्यादा महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि यह परियोजना एक आंदोलन बन गयी है। इसे लोगों, स्कूलों, किसानों, परिवारों द्वारा चलाया जा रहा है और ऐसे उद्योगपतियों और व्यक्तियों द्वारा समर्थन दिया जा रहा है जिन्होंने एक रचनात्मक, असरदार और सस्ते तरीके से काम करने की अहमियत को समझा है।’

पूर्व डीजीपी और सामाजिक कार्यकर्ता किरण बेदी ने कहा, ‘नई पीढ़ी को पर्यावरण के रखवालों की भूमिका में देखना बहुत ख़ुशी देता है। यह परियोजना बुनियादी स्तर पर हो रहे पर्यावरण संरक्षण प्रयासों का सच्चा उदाहरण है।’