हम सभी पर्यावरण के संरक्षण में पेड़ों के महत्व को समझते हैं। लेकिन हम में से ज्यादातर लोग जीवन में व्यस्त रहने के कारण खुद पेड़ नहीं लगा पाते। और हममें से कई लोग दिन का एक बड़ा हिस्सा कंप्यूटर के सामने बैठकर गुजार देते हैं। ऐसे में अगर इन्टरनेट के माध्यम से हमें पेड़ लगाने और उनकी देखरेख करने की सुविधा मिल जाए तो हम भी पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे पाएंगे।

प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स (पीजीएच) ईशा की एक ऐसी पहल है, जो हर किसी को मौका देती है अपने पर्यावरण के प्रति अपने फर्जों और जिम्मेदारियों को निभाने का - और वह भी घर बैठे। जानिए क्या है ये पीजीएच – 

प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स (पीजीएच) जब से शुरु हुआ है तब से अब तक 1करोड़ 97 लाख पेड़ लगाए जा चुके हैं। ये पेड़ मुख्य रूप से दक्षिण भारत के खेतों में लगाए गए हैं। ना तो यह महज संयोगवश हुआ है ना यह बस सुख - सुविधा के लिए किया गया है। इसके पीछे एक वजह  है, और इसे करने का एक खास तरीका रहा है।

 किसान की रोजी-रोटी

एक सरकारी अनुमान के मुताबिक 2001 के बाद से औसतन हर 30 मिनट में एक किसान खुदकुशी कर लेता है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के रिकार्ड बताते हैं कि 1995 के बाद से अब तक कम से कम 2,84,694 भारतीय किसान आत्महत्या कर चुके हैं। गरीबी और कर्ज के साथ-साथ मौसम का बदलता मिजाज, मिट्टी का कटाव और बाजार की समझ का अभाव किसान को तोड़ डालता है। अपने काबू से बाहर की ताकतों से हर ओर से पिसता किसान अक्सर घोर निराशा में डूब जाता है। निराशा के कारण वह अपने साथ-साथ अपने परिवार की भी जिन्दगी खत्म कर देता है। एक औसत भारतीय किसान पृथ्वी पर सबसे कम कार्बन फुटप्रिंट छोड़ता है। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग की वजह से उसे बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

पर्यावरण

भारत के भूभाग के करीब 32 फीसदी यानी लगभग 105.48 मिलियन हेक्टेयर जमीन का उपजाऊ-पनकम हो रहा है। यह स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। सद्गुरु कहते हैं कि अगर अगले 5 से 10 सालों में कुछ नहीं किया गया, तो कितना भी पैसा या कोशिश मिट्टी की गुणवत्ता और पेड़ों को वापस नहीं ला पाएगी।

नतीजों की परवाह किए बिना पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से, ऊपर की उपजाऊ मिट्टी बारिश के पानी में बह जाती है। यह भारतीय किसानों के लिए बहुत बड़ा नुकसान है, जो अक्सर अपनी फसलों के लिए मिट्टी के प्राकृतिक उपजाऊ-पन पर निर्भर होते हैं।

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पेड़ कैसे मदद करते हैं:

खेतों की सीमा पर पेड़ों की दो कतारें लगा देने से, जिसमें खेत का 15 फीसदी से भी कम हिस्सा इस्तेमाल होता है, खेत, किसान और पर्यावरण तीनों को बहुत फायदा होता है।

  • ये किनारे लगे पेड़ भारी बारिश से होने वाले मिट्टी के कटाव को काफी कम कर देते हैं।
  • पेड़ खेतों में बहने वाली हवा की गति और तापमान को कम कर देते हैं, जिससे जल की कम मात्रा वाष्प बन कर उड़ पाती है। इससे खेत के लिए जरूरी जल की मात्रा की सीधी बचत होती है।
  • भारत में पक्षियों की लगभग 40 प्रजातियां हैं, जो कीड़ों को खाकर गुजारा करती हैं। पक्षियों के लिए आश्रय बनाकर हम अप्रत्यक्ष रूप से किसान के लिए कीटनाशकों का खर्च कम कर रहे हैं।

लेकिन एक किसान के लिए यह भी महत्वपूर्ण है कि वह पेड़ लगाते हुए कुछ सीधा आर्थिक लाभ भी ले। इन लाभों पर एक नजर डालते हैं।

पीजीएच की देखरेख में तीन किस्म के पेड़ लगाए जाते हैं:

  • चारा देने वाले पेड़, जो तेजी से बढ़ते हैं और पशुओं का चारा उपलब्ध कराते हैं। किसान पेड़ के जैव ईंधन का एक बड़ा हिस्सा पशुओं के चारे के रूप में काट सकते हैं।
  • फलों के पेड़ जो किसान के परिवार की पोषण संबंधी महत्वपूर्ण जरूरतों को पूरा करते हैं। इस्तेमाल के बाद बचे फलों को बाजार में बेच कर किसान अपनी आय को भी बढ़ा  सकता है।.
  • इमारती लकड़ी के पेड़ खेतों में पीजीएच के वृक्षारोपण अभियान का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। रोपे गए 70 फीसदी से अधिक पेड़ इमारती लकड़ी के होते हैं। इमारती लकड़ी के पेड़ किसानों के लिए एक जीवन बीमा का काम करते हैं। यह परियोजना सुनिश्चित करती है, कि हर खेत में विभिन्न किस्म के इमारती पेड़ हों। अलग-अलग पेड़ होने से हर सात साल में अलग-अलग किस्मों को काटा जा सकता है। 15 साल बाद ये पेड़ किसी मुश्किल की घड़ी में किसानों के लिए एक कीमती सहायक हो सकते हैं।
  • इसके अलावा, किसानों को काली मिर्च के पौधे दिए जाते हैं जिनकी लताओं को पेड़ों पर चढ़ा दिया जाता है। काली मिर्च के एक स्वस्थ पौधे से 300 से 400 रुपये प्रतिवर्ष की औसत कमाई हो सकती है। 

पेड़ क्यों लगाएं, अगर उन्हें काटना ही है?

इसका सीधा सा जवाब है - सदाबहार वनों को बचाने के लिए। पृथ्वी के भूभाग का केवल 7 फीसदी हिस्सा सदाबहार वनों का है। लेकिन वे पृथ्वी पर मौजूद ऑक्सीजन का एक बड़ा हिस्सा उपलब्ध कराते हैं। अगर हम इंसानी जरूरत के लिए लकड़ी को खेतों में नहीं पैदा करेंगे, तो हमें मजबूरी में सदाबहार वनों से पेड़ काटने होंगे।

भारत में पेड़ क्यों लगाएं?

पेड़ जहां भी लगाये जाएं वे कार्बन डाइऑक्साइड को सोखते हैं। लेकिन यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि ऊपरी अक्षांशों में पेड़ गरमी को कैद कर लेते हैं। अगर पेड़ों को पृथ्वी की भूमध्य रेखा के आस-पास लगाया जाए, तो वे जलवायु में होने वाले बदलावों से लड़ने में अधिक प्रभावी होते हैं। वास्तव में, मध्य या उच्च अक्षांश वाले स्थानों में अधिक पेड़ लगाना ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा सकता है। क्योंकि इन जगहों पर लगाये गए पेड़ गर्मी को ज्यादा सोखेंगे। और इससे कार्बन को सोखने के लाभ समाप्त हो जाएंगे।

भारत की संतुलित जलवायु इसे एक आदर्श जगह बनाती है, जहां कार्बन को सोखने की प्रक्रिया का पर्यावरण पर सकारात्मक असर पड़ता है। इसके अलावा, भारत में पेड़ लगाने की लागत बहुत से दूसरे देशों की तुलना में बहुत कम है। अधिकांश जनसंख्या खेती से जुड़ी है और इसकी वजह से उनके पास अपनी जमीन होती है। इसलिए पेड़ों को बचाया जाना संभव हो पाता है।

प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स क्यों?

प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स (पीजीएच) आपकी तरफ से पेड़ों को लगाता है और उनका पोषण करता है। आपको बताया जाता है कि आपका पेड़ किस स्थान पर लगाया गया है। आपको उस पेड़ की देखभाल करने वाले किसान का नाम भी बताया जाता है। 100 रुपये/2 डॉलर प्रति पेड़ की दर से अपने पेड़ों को बढ़ते देखें। इस खर्च में पौधा लगाना, उसके बाद उसकी देखभाल और जरूरत पड़ने पर उसे दोबारा लगाना भी शामिल है।

प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स (पीजीएच) एक ऐसी कोशिश है जिसे संयुक्त राष्ट्र्संघ (यूएन) के पर्यावरण कार्यक्रम ने भी सराहा है। इसे 3 दिन की अवधि  में सबसे ज्यादा पेड़ लगाने का गिनीज वर्ल्ड रिकार्ड भी दिया गया है। वृक्षारोपण के अलावा यह परियोजना समाज में पर्यावरण के बारे में जागरूकता और पर्यावरण अनुकूलता उत्पन्न करने की दिशा में भी काम करती है।

 

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