जिनेवा शांति सप्ताह में रैली फॉर रिवर्स

2018 में आयोजित जिनेवा शांति सप्ताह में, जल व्यवहार पर हुए सम्मेलन ने ‘रैली फॉर रिवर्स’ अभियान से सीखी हुई बातों को साझा करने के लिए एक मंच का काम किया। यह अभियान अनेक क्षेत्रों से विभिन्न राजनैतिक और आर्थिक विचारधारा वाले सहभागीयों को सफलतापूर्वक साथ लेकर आया। आंदोलन की पुकार से ये लोग भारत के सूखते हुए जल संसाधनों को बचाने के लिए संगठित हुए, ताकि जीवन निर्माण करने वाला यह पानी आने वाली पीढ़ियों के लिए टकराव का स्रोत न बन जाए।

9 नवंबर 2018 को हुए ‘जल व्यवहार सम्मेलन – शांति कायम रखने के लिए सेतु निर्माण’ ने इस बात की छानबीन की कि पानी सब समाजों को एकजुट करने वाला कैसे बने, न कि झगड़े की एक वजह। ‘रैली फॉर रिवर्स’ पर हुई प्रस्तुति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस आंदोलन में इसे कैसे हासिल किया गया। आधिकारिक रूप से इसे धरती के इतिहास में पर्यावरण से जुड़ा सबसे बड़ा आंदोलन माना गया है।

रैली फॉर रिवर्स ने इस चीज का ख्याल रखा कि यह आंदोलन समाज के किसी हिस्से या तबके के खिलाफ नहीं हो। बल्कि इसकी शुरुआत से ही, एक व्यावहारिक और टिकाऊ समाधान की खोज में इसने एक समावेशी रूप ले लिया जो सभी हितधारकों के लिए लाभदायक हो। ‘अगर आप आर्थिक के मुकाबले पर्यावरण को खड़ा कर देते हैं, तो जैसे आज कल विकास की तमामों चर्चाओं में अक्सर होता है, आर्थिक पक्ष जीत जाएगा। हमें इसे थोड़ी अलग दिशा में मोड़ने की जरूरत है। हमें वास्तव में अर्थ लाभ को एक बाधाकारी ताकत से एक मुख्य स्रोत बनाने की आवश्यकता है, जो पर्यावरणीय लाभ की ओर ले जाए।”

आंदोलन को सभी तबकों से समर्थन मिलने की वजह पानी जैसे एक जटिल संकट के समाधान को सरलता से प्रस्तुत करना भी है। इसका हल नदी के दोनों तटों पर कम से कम एक किलोमीटर की चौड़ाई में पेड़ लगाना है। भारत में, भूजल स्तर गिरने और जल स्रोतों के सूख जाने के कारण जल संकट न सिर्फ चिंताजनक है, बल्कि यह जटिल भी है, क्योंकि नदियों के लिए वैधानिक अधिकार राज्य और केंद्रीय सरकारों के पास हैं। यह नदी के भौगोलिक मार्ग पर निर्भर करता है। कई राज्यों से गुजरने वाली नदियों पर केंद्रीय नियम लागू होते हैं, जबकि एक ही राज्य में बहने वाली नदी के लिए राज्य सरकार निर्णय ले सकती है। निःसंदेह यह अंतर्राज्य जल विवाद का कारण बना है, जिसमें दक्षिण भारत के दो राज्य, कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच का झगड़ा बहुत बदनाम है।

कावेरी नदी के पानी को इन दो राज्यों के बीच साझा करने पर विवाद एक सदी से भी पुराना है। नदी अभियान के दौरान, दोनों राज्यों के किसान कावेरी नदी के तट पर यह दर्शाने के लिए एक साथ इकट्ठा हुए कि जल आपूर्ति को बढ़ाना ही सौ साल पुराने झगड़े को निपटाने का तरीका है।

जिनेवा शांति सप्ताह, स्विस कनफेडरेशन के सहयोग से जिनेवा के संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (यूएनओजी), अंतर्राष्ट्रीय एवं विकास अघ्ययन का ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट, और जेनेवा शांति वृद्धि मंच की एक सामूहिक कार्यवाही की पहल है। शांति बढ़ाने से संबंधित विभिन्न विषयों पर कार्यक्रम और मीटिंग को एक सप्ताह के दौरान एक साथ आयोजित करके जिनेवा शांति सप्ताह, जेनेवा में विभिन्न संस्थाओं के बीच अधिकतम तालमेल पैदा करता है और विभिन्न क्षेत्रों में शांति बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता है।

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