राष्ट्रीय जल पुरस्कार, नई दिल्ली
2018 के राष्ट्रीय जल पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ शिक्षा/जन जागरूकता प्रयास श्रेणी के अंतर्गत रैली फॉर रिवर्स को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ।
इसे मिला सम्मान कीर्तिमान स्थापित करने वाले अभियान के अलावा, आंदोलन की आगे की कार्यवाही को एक सशक्त और समर्पित तरीके से करने का नतीजा है।
This is a recognition of all the volunteers & supporters who rallied for rivers to make revitalisation of our severely-depleting rivers a top priority for the nation to save India's lifelines.-Sg @nitin_gadkari @arjunrammeghwal @rallyforrivers #RallyforRivers #NationalWaterAwards pic.twitter.com/6IOZIl9BxZ
— Sadhguru (@SadhguruJV) February 27, 2019
Press release on National Water Award for Rally for Rivers
तमिलनाडु में टिकाऊ खेती के लिए एक बड़ा कदम
एक स्थान पर एक सप्ताह से ज्यादा समय के लिए राज्यभर से आए 3000 किसानों की सबसे बड़ी सभा। तमिलनाडु में टिकाऊ खेती के दृष्टिकोण से यह प्रशिक्षण त्रिची में हुआ।
नदी अभियान ने एस.आर.एम. मेडिकल कॉलेज में 2 फरवरी से 10 फरवरी 2019 तक एक नौ दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया। यह कार्यक्रम सुभाष पालेकर नेचुरल फार्मिंग (प्राकृतिक खेती ) के तरीकों पर आधारित था जिसे ईशा कृषि अभियान द्वारा प्रस्तुत किया गया।
प्रशिक्षण वर्कशाप के दौरान श्री सुभाष पालेकर जी ने सर्वश्रेष्ठ तरीकों को साझा किया। वे भारत में प्राकृतिक खेती के सर्वोच्च विशेषज्ञ और दुनिया में एक अग्रणी विशेषज्ञ हैं। पद्मश्री विजेता श्री सुभाष पालेकर जी को इस क्षेत्र में विश्वसनीयता उनके प्रमाण आधारित कार्यों के फलस्वरूप मिली है, जो प्राकृतिक खेती की तकनीक और उसके मॉडल के कारगर होने को सिद्ध करते हैं। किसानों को, खाद तैयार करने, मिट्टी को उपजाऊ बनाने के तरीके, पशुओं की स्थानीय नस्लों का महत्व, फसलों की खेती, पारंपरिक बीज, और पैदावार की मूल्य वृद्धि करने और बेचने के बारे में शिक्षित किया गया।
रैली फॉर रिवर्स और ईशा कृषि अभियान के लिए यह कार्यक्रम एक ऐतिहासिक उपलब्धि था। कार्यक्रम के ज़रिए ज्यादा लोग जागरूक हुए, निपुणता की और बढ़े, और इस तरह आर्थिक रूप से लाभकारी और टिकाऊ खेती के तरीकों के जरिए धरती से जुड़े किसानों के लिए समर्थन जारी रखा गया।
खेती की ओर: 3000 सहभागी नौ दिनों तक पूरी तरह से व्यस्त रहे। यहां विविध प्रकार के लोग मौजूद थे, जिनमें बड़ी संख्या में युवा शामिल थे। इसमें अधिकतर पहले से खेती कर रहे किसान हैं, साथ ही दूसरे पेशों और पृष्ठभूमि के लोग भी इस क्रांति का हिस्सा बनने के लिए इससे जुड़े।
आध्यात्मिकता की एक बूंदः प्रतिभागियों के लिए हर दिन सुबह ईशा योग (उइर-नोक्कम) कार्यक्रम संचालित किया गया।
समर्पित हाथः नदी अभियान और प्रोजेक्ट ग्रीन हैंड्स के स्वयंसेवियों ने यह सुनिश्चित किया कि कार्यक्रम के सभी पहलू बेहतरीन तरीके से हों – रजिस्ट्रेशन, प्रेम से पकाया गया खाना, ठहरने की उत्तम व्यवस्था, प्रशिक्षण सहायता, और यह पक्का करना कि हर कोई पूरे नौ दिन मुस्कुराता रहे।
पुणे, महाराष्ट्र में मॉडल फार्म की यात्रा
यह एक पूरी तरह से ग्रामीण इलाकों की यात्रा थी, जिसमें नदी वीरों को देशभर से आये उन किसानों से बातचीत करने का मौका मिला, जिन्होंने वर्कशाप में भी हिस्सा लिया था। सफलता की कहानियाँ और प्रमाण देखकर, नदीवीर प्रशिक्षक नदी अभियान परियोजनाओं में भी यही तरीके अपनाने के बारे में आत्मविश्वास से भर उठे।
‘यात्रा के दौरान हमने देखा कि खेत में जीवामृतम, घनजीवामृतम, और कशायम के इस्तेमाल के रूप में किस तरह से एसपीएनएफ तरीके लागू किए जा रहे हैं। इस यात्रा में सबसे महत्वपूर्ण चीज मैंने यह पाई कि प्राकृतिक खेत और रासायनिक खेत में क्या अंतर होता है। अंतर मिट्टी में होता है। प्राकृतिक फार्म में मिट्टी नरम, गहरे रंग की, नम, घास-फूस से भरपूर और छेददार थी। जबकि रासायनिक फार्म में मिट्टी सख्त और कम छेददार थी।’ – अमरदीप, नदीवीर
‘हमने कई फार्म देखे जिनमें मुख्य फसलें गन्ना, प्याज और नारियल थीं और इनके बीच में सब्जियां, दालें, फलों के पेड़, मसाले और फलियों की फसल थीं। यात्रा की खासियत उसका आखिरी दिन था, जब हमने पांच स्तरीय फसल पद्धति का आदर्श बगीचा देखा, जिसमें एक सूखे – बंजर इलाके में नारियल, पपीता, अनार, चीकू, आम और कई तरह की बीच की फसलें थी। यह फसलें एक सुखी और अधिकतर पथरीली ज़मीन पर उगाईं गईं थी। इस एक अनुभव ने मुझे भारतीय कृषि में एसपीएनएफ तरीके के असरदार होने का एहसास दिलाया। अगर ये तरीके पथरीली जमीन को उपजाऊ मिट्टी में बदल सकते हैं और भारत के लिए भोजन पैदा कर सकते हैं, तो मैं सिर्फ कल्पना ही कर सकता हूं कि यह सामान्य मिट्टी में कितना असरदार हो सकता है।’ – निशांत, नदीवीर
वहाँ के किसानों के जीवन की कहानियाँ मेरे दिल को गहराई तक छू गई। एस.पी.एन.एफ. में बताए गए आसान तरीकों को अपनाकर वे कैसे गरीबी से बाहर निकले और अब वे एक खुशहाल और संतुष्ट जीवन जी रहे हैं।
एक अनुभव जो मैं जीवनभर याद रखूंगी – जब हम अंगूर के बगीचे में गए, वहां हम उन बड़ी-बड़ी हरी अंगूर की बेल की छाया में थे और जमीन पर गीली घास-फूस की पर्त पर बैठे थे। मैं घास-फूस के नीचे की मिट्टी को देखकर बहुत उत्साहित थी। जैसे ही मैंने थोड़ी मिटटी को उठाकर अपनी हथेली में रखा… ओह, वह सच्चा आनंद था!
मैं साफ-साफ देख सकती थी कि मैं दूसरे दिनों में सूखी जमीन पर बैठने की अपेक्षा उस दिन सुभाष पालेकर जी के सत्र में अधिक ध्यान दे पाई। सत्र खत्म हो जाने के बाद भी, मैं उस जगह से उठकर जाना ही नहीं चाहती थी! मैंने अपने सिस्टम में एक खास शांति और सहजता महसूस की।
मेरे भीतर वह मिट्टी और उसकी अनुभूति अब भी स्पंदित होती है।
मेरे लिए यह प्रशिक्षण बागवानी पर बस जानकारी इकट्ठा करने के बारे में नहीं था, बल्कि यह आस-पास जीवन को देखना भी था – मिट्टी, पौधों और पानी को ज्यादा ध्यानपूर्वक और करीब से देखना। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे इस तरह की ट्रेनिंग का हिस्सा होने का मौका मिला। – अर्शिता, नदीवीर
संपादक की टिप्पणीः यवतमाल में रैली फॉर रिवर्स की आरंभिक परियोजना के अगले कदम के बारे में जानने के लिए संपर्क में रहें। 5 मार्च 2019 को महाराष्ट्र कैबिनेट ने वाघरी नदी पर आरंभिक परियोजना को कार्यान्वित करने के लिए बजट को स्वीकृति प्रदान कर दी है। आने वाले महीनों में यह परियोजना तेजी से आगे बढ़ेगी। आप कैसे शामिल हो सकते हैं, इस बारे में अदिक जानकारी के लिए RallyforRivers.org/volunteer पर जाएं।.