भारत की नदियां जबर्दस्त बदलाव से गुजर रही हैं। आबादी और विकास के दबाव के कारण हमारी बारहमासी नदियां मौसमी बन रही हैं। कई छोटी नदियां पहले ही गायब हो चुकी हैं। बाढ़ और सूखे की स्थिति बार-बार पैदा हो रही है क्योंकि नदियां मानसून के दौरान बेकाबू हो जाती हैं और बारिश का मौसम खत्म होने के बाद गायब हो जाती हैं।
कुछ चौंकाने वाले तथ्य:
- भारत का 25 फीसदी भाग रेगिस्तान बन रहा है।
- हो सकता है अगले 15 सालों में अपने गुजारे के लिए जितने पानी की हमें जरुरत है उसका सिर्फ 50% जल ही हमें मिलेगा।
- गंगा दुनिया की उन पांच नदियों में से है, जिनका अस्तितव भारी खतरे में है।
- गोदावरी पिछले साल कई जगहों पर सूख गई थी।
- कावेरी अपना 40 फीसदी जल प्रवाह खो चुकी है। कृष्णा और नर्मदा में पानी लगभग 60 फीसदी कम हो चुका है।
हर राज्य में, बारहमासी नदियां या तो मौसमी बनती जा रही हैं या पूरी तरह सूख रही हैं। केरल में भरतपुजा, कर्नाटक में काबिनी, तमिलनाडु में कावेरी, पलार और वैगाई, उड़ीसा में मुसल, मध्य प्रदेश में क्षिप्रा। कई छोटी नदियां तो गायब ही हो गई हैं।
अधिकांश बड़ी नदियों पर कुछ राज्य विवाद कर रहे हैं।
इससे आप कैसे प्रभावित होते हैं
- अनुमान बताते हैं कि जल की हमारी 65 फीसदी जरूरत नदियों से पूरी होती है।
- 3 में से 2 बड़े शहर पहले से ही रोज पानी की कमी से जूझ रहे हैं। बहुत से शहरी लोगों को एक कैन पानी के लिए सामान्य से दस गुना अधिक खर्च करना पड़ता है।
- हम सिर्फ पीने या घरेलू इस्तेमाल के लिए जल का उपयोग नहीं करते। 80 फीसदी पानी हमारे भोजन को उगाने के लिए इस्तेमाल होता है। हर व्यक्ति की औसत जल आवश्यकता 11 लाख लीटर सालाना है।
- बाढ़, सूखा और नदियों के मौसमी होने से देश में फसल बर्बाद होने की घटनाएं बढ़ रही हैं।
- अगले 25-30 सालों में जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ और सूखे की स्थिति और बदतर होगी। मानसून के समय नदियों में बाढ़ आएगी। बाकी साल सूखा रहेगा। ये रुझान शुरू हो चुके हैं।
गंगा नदी

