महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्य सरकारों ने ईशा फाउंडेशन के साथ नदी पुनर्जीवन के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये
महाराष्ट्र और कर्नाटक, ईशा फाउंडेशन के साथ जल-तनावग्रस्त क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वनीकरण अभियान चलाने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाले पहले दो राज्य बन गए जो तेजी से अपना वन क्षेत्र खो रहे हैं।
महाराष्ट्र ने ईशा के साथ जुलाई 2017 में रैली फॉर रिवर्स अभियान शुरू करने से पहले समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए और जब रैली अपने गंतव्य-दिल्ली जाते समय बेंगलुरु पहुंची तो वहां कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सद्गुरु के साथ समझौता ज्ञापन की प्रति का आदान-प्रदान किया ।
महाराष्ट्र सरकार ने 2019 तक नदियों के तटों पर 50 करोड़ पौधे लगाने पर सहमति व्यक्त की है, इन प्रयासों से वनों की कटाई से होने वाले दुष्परिणाम जिससे राज्य के जल-तनावग्रस्त जिलों में सूखा, असफल फसलों और किसान आत्महत्या इत्यादि के प्रभावों को दूर किया जा सकेगा ।
कर्नाटक सरकार नदियों के आसपास के क्षेत्रों में 25 करोड़ पौधे लगाएगी। पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र की तरह, कर्नाटक में भी अनियमित बारिश के पैटर्न देखे गए हैं जिसके कारण बाढ़, सूखा, और फसल की विफलता का सामना करना पड़ रहा है। बारिश पर अत्यधिक निर्भरता और अनियमित बारिश के कारण कई वर्षों से राज्य भर में किसान आत्महत्याएं एक बड़ी चिंता का विषय है। नदी-तल से अनियंत्रित रेत खनन, और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई ने पानी और मिट्टी की गुणवत्ता को खराब कर दिया है।
“जो लोग हमारे लिए भोजन उगाते हैं वे आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि उनके पास अपने बच्चों को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं हैं। किसान सिर्फ तभी खुश रह सकते हैं जब मिट्टी और पानी स्वस्थ हों, और यह तभी हो सकता है जब नदियाँ स्वस्थ हों,” सद्गुरु ने बेंगलुरु में नदी अभियान की रैली के दौरान अपने सार्वजनिक संबोधन में कहा।
गुजरात और पंजाब ने ईशा फाउंडेशन के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये
महाराष्ट्र और कर्नाटक के नक्शे कदम पर चलते हुए, गुजरात और पंजाब राज्य सरकारों ने सितंबर 2017 में ईशा फाउंडेशन के साथ अपने राज्यों में वनीकरण अभियान शुरू करने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
सितंबर में नदी अभियान की शुरुआत से पहले, महाराष्ट्र जुलाई 2017 में ईशा फाउंडेशन के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाला पहला राज्य था। 9 सितंबर को, जब रैली कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु पहुंची , तो राज्य के मुख्यमंत्री ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में सद्गुरु के साथ समझौता ज्ञापन की एक हस्ताक्षरित प्रति का आदान-प्रदान किया।
गुजरात और पंजाब ईशा फाउंडेशन के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाले राज्यों में नवीनतम प्रवेशकर्ता हैं, इन्हें मिलाकर कुल राज्यों की संख्या 4 हो गयी है। 20 सितंबर को साबरमती नदी के तट पर सद्गुरु ने गुजरात सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने सद्गुरु को भारत की नदियों को पुनर्जीवित करने में राज्य के समर्थन का आश्वासन दिया। 29 सितंबर को जब रैली चंडीगढ़ पहुंची तब पंजाब सरकार ने भी समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, इस अवसर पर पंजाब और हरियाणा के राज्यपालों के साथ-साथ हरियाणा के मुख्यमंत्री भी शामिल हुए। समझौते के अनुसार, राज्य सरकार राज्य में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ईशा फाउंडेशन के साथ काम करेगी।
पूरे रैली के दौरान, सद्गुरु ने न केवल नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए, बल्कि किसानों की आय में सुधार करने और देश के पोषण मानकों को बढ़ाने के लिए, तटीय भूमि पर बागवानी-आधारित खेती के महत्व पर ज़ोर दिया है।
“हमारी कुल आबादी के केवल 4% लोग फल खाते हैं। हमारे स्थानीय फलों की किस्में सचमुच गायब हो चुकी हैं क्योंकि कोई भी उन्हें उगाता नहीं है। इस अभियान के माध्यम से, मैं चाहता हूं कि भारत उस समय में लौटे जब फल हमारे आहार का कम से कम 30% हिस्सा होते थे,”सद्गुरु ने साबरमती नदी के तट पर अपने सार्वजनिक संबोधन के दौरान कहा।
छत्तीसगढ़ ने ईशा फाउंडेशन के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया
छत्तीसगढ़ की सरकार ने 28 नवंबर 2018 को ईशा फाउंडेशन के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जिसमें राज्य में पर्यावरण को हुई क्षति को पलटने और राज्य में तटीय इलाकों को बहाल करने के लिए छत्तीसगढ़ की पांच मुख्य नदियों के तट पर 10 करोड़ पौधे लगाने पर सहमति जताई। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और सद्गुरु इस अवसर पर उपस्थित थे। समझौते में नदियों के किनारे पर स्वदेशी वनस्पति लगाने के लिए सहमती हुई जो भू-जल स्तर में सुधार करने में मदद करेगी । पेड़ की जड़ें ज़मीन में पानी पहुँचाने की क्षमताओं को बढ़ाती हैं, जिससे नदियों में पूरे वर्ष पानी बह सकता है और मिट्टी के कटाव को रोका जा सकता है।
सद्गुरु ने कहा – “यह हमारा उत्तरदायित्व है कि हम इन नदियों को अपनी अगली पीढ़ी के लिए कम से कम उस स्थिति में वापस लायें जिस स्थिति में यह हमें अपनी पिछली पीढ़ी से मिली थी”, और उन्होंने यह भी कहा कि “छत्तीसगढ़ अत्याधिक वर्षा प्राप्त करने वाले राज्यों में से एक है और जब ऐसी वर्षा हो रही है तो इसे संरक्षित करना और 365 दिनों तक नदियों में प्रवाहित होने देना हमारी एक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है।”
सद्गुरु ने कहा – फलों के पौधे के पोषण के लिए नर्सरी बनाने और मानव संसाधन विकसित करने की आवश्यकता होती है और यह महिलाओं, विशेषकर ग्रामीण महिलाओं के लिए आजीविका कमाने का एक ज़बरदस्त अवसर बन सकता है। उन्होंने कहा कि इन पौधों के पोषण के लिए कुछ कौशल की आवश्यकता होती है जो महिलाओं में अधिक पाए जाते हैं क्योंकि उनके हाथ प्राकृतिक रूप से कोमल होते हैं और जीवन के पोषण के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। “हमारे अनुभव ने सिखाया है कि महिलाएं अपने हाथों की कोमलता के कारण यह काम ज्यादा अच्छे से करती हैं।” – सद्गुरु
ईशा फाउंडेशन के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाला छत्तीसगढ़ पाँचवा राज्य है। महाराष्ट्र और कर्नाटक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाले पहले दो राज्य हैं, उनके बाद गुजरात और पंजाब हैं।
असम ईशा फाउंडेशन के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाला 6वां राज्य है
राज्य में नदी पुनरुद्धार के प्रयासों में तेजी लाने के लिए असम ईशा फाउंडेशन के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाला 6वां राज्य बन गया। 18 दिसंबर 2017 को श्रीमंत शंकरादेव कलाक्षेत्र में एक कार्यक्रम में असम सरकार के पर्यावरण और वन विभाग ने, असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु की उपस्थिति में ईशा फाउंडेशन के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
असम के मुख्यमंत्री ने कहा, “असम की सभ्यता को ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों ने पोषित किया है और इन महान नदियों को बचाना राज्य सरकार के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है”। मिट्टी के कटाव और वनों की कटाई से राज्य की मुख्य नदियों में बाढ़ आ गई है। नमामि ब्रह्मपुत्र और नमामि बराक उत्सव का एक उद्देश्य असम की इन दो प्रमुख नदियों के माध्यम से नेविगेशन मार्ग बनाने की संभावना तलाशना है। और अंत में मुख्यमंत्री जी ने उम्मीद जताई कि ईशा फाउंडेशन के साथ समझौता ज्ञापन राज्य को बाढ़ की समस्या से निपटने में मदद करेगा।
सद्गुरु ने स्पष्ट रूप से कहा की आर्थिक भलाई को पर्यावरण संरक्षण में ज़रूर शामिल किया जाना चाहिए, असम भाग्यशाली था कि इसकी नदियां उस वक्त उफान पर थीं जब देश के कई हिस्सों में नदियां सूख रही हैं। बाढ़ की स्थिति में कमी लाना नदी अभियान की नीति एवं सिफारिशों का एक महत्वपूर्ण पहलू है।