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जान लें आदियोगी कौन थे

इस हफ्ते के स्पॉट में सद्‌गुरु बता रहे हैं कि आदियोगी को योग के मूल दाता के रूप में पहचानने का क्या महत्व है।

आदियोगी ने यह संभावना दिखायी कि हमें उन सीमाओं के अंदर कैद रहने की ज़रूरत नहीं है जो मानव-जाति के लिए कुदरती समझी जाती है। एक तरीका है जिससे आप शरीर की सीमा में रहते हुए भी उसी का होकर यानी सिर्फ शरीर होकर ना रह जाएं। शरीर में रहें लेकिन शरीर ना बन जाएं। अपने मन की तकलीफों से पूरी तरह‍ अछूता रहकर अपने मन को बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल करने का उपाय भी है। आप फिलहाल अस्तित्व के जिस भी आयाम में हैं उसके परे जाने की काबिलियत आपमें है– ज़िंदगी जीने का एक दूसरा तरीका भी है। आदियोगी ने कहा था, “आपकी मौजूदा सीमाओं के परे भी आपका विकास हो सकता है बशर्ते आप अपने ऊपर कुछ जरूरी काम करें।” फिर उन्होंने विकास के तरीके बताये। यही है आदियोगी का महत्व।

मरने से पहले मैं यह सुनिश्चित कर देना चाहता हूं कि मानवता के लिए उनके इस योगदान को पूरी दुनिया पहचान ले। इस दिशा में हमारा काम कई चरणों में आगे बढ़ रहा है। एक तो यह कि हम आदियोगी मंदिर बना रहे हैं। यहां आदियोगी की 21-फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा स्थापित की जायेगी और उनके सामने एक लिंग की प्राण-प्रतिष्ठा की जायेगी। यह एक शक्तिशाली स्थान होगा। सबसे पहला मंदिर अमेरिका के टेनीसी में स्थित हमारे आश्रम में बन रहा है।

धरती पर हर इंसान को यह पता होना चाहिए कि सारी दुनिया को यह विज्ञान देने वाले आदियोगी ही हैं। पिछले पांच-छह वर्षों में यूरोप में चार बड़ी किताबें छपी हैं जिनमें यह दावा किया गया है कि योग भारत से नहीं आया बल्कि, यह यूरोपीय व्यायाम प्रणालियों का एक विकसित रूप है। अगर वे दस-पंद्रह ऐसी किताबें और लिख डालेंगे तो यही सच मान लिया जायेगा। आप स्कूल-कॉलेज की इतिहास की किताबों में जो कुछ पढ़ते हैं उसी को सच मानते हैं। मैं आपसे कहता हूं कि वह सच नहीं है, यह आम तौर पर कुछ ऐसे लोगों द्वारा लिखा गया है जिनका इसमें कोई स्वार्थ छुपा है। इसलिए अगर अगले दस-पंद्रह साल में वे चालीस-पचास ऐसी किताबें और लिख डालेंगे तो कुछ समय बाद लोग कहने लगेंगे कि योग अमेरिका या कैलिफोर्निया में पैदा हुआ था या यह भी कह सकते हैं कि मॉडोना ने योग का आविष्कार किया था। यह हंसने की बात नहीं, ऐसा सचमुच हो सकता है। ऐसे लोग हैं जो कुछ भी लिखने को तैयार हो जायेंगे। कुछ बहुत प्रसिद्ध किताबों में यह बात कही गयी है। अपनी किताब एंजेल्स ऐंड डीमंस में डैन ब्राउन कहते हैं कि योग एक प्राचीन बौद्ध कला है। गौतम सिर्फ ढाई हज़ार साल पहले हुए जबकि आदियोगी पंद्रह हज़ार साल पहले के हैं। आज वे कह रहे हैं गौतम, कल को मैडोना कहेंगे। आप भी अगर कुछ किताबें लिख डालेंगे तो आपकी बात ही सच मान ली जायेगी। इसलिए इस दुनिया से जाने से पहले मैं यह सुनिश्चित कर देना चाहता हूं कि हर कोई यह जान जाये कि योग का स्रोत आदियोगी हैं; केवल आदियोगी ही हैं, और कोई नहीं। इस धरती पर हर इंसान को यह जान लेना चाहिए कि पूरी दुनिया को यह विज्ञान आदियोगी ने ही दिया।

हमें ऐसा करना होगा क्योंकि भारत में साधकों का वर्चस्‍व रहा है। हम मुक्ति की बात को यूं ही नहीं मान लेते उसके लिए खोज और साधना करते हैं। यही बात हम सबको एक सूत्र में पिरोये हुए है। आप हर सौ-डेढ़ सौ किलोमीटर पर पायेंगे कि लोगों के नैन-नक्श, पहनावा, बोलचाल, खान-पान, सब-कुछ अलग है। एक समय था जब राजनीतिक दृष्टि से हम दो सौ से ज़्यादा टुकड़ों‌ में बंटे हुए थे। जबकि आज विदेशी लोग कहते हैं कि यही हिंदुस्तान है या यही भारत है क्योंकि इसके वज़ूद की खूबी यही है कि यह जिज्ञासुओं और साधकों की भूमि रही है, अंधविश्वासियों की नहीं।

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि राम ने और कृष्ण ने क्या कहा या वेद और उपनिषद् क्या कहते हैं – ये सब तो अपनी जगह हैं, पर इस भूमि पर जन्मे हर इंसान को अपने सच का पता खुद लगाना होता है। आपको अपनी मुक्ति की साधना खुद करनी होती है। जिज्ञासुओं और साधकों की भूमि होने के कारण यहां के लोग कभी किसी दूसरे देश पर चढ़ाई करने नहीं गए। अगर आप इस धरती की पूरी मानव जाति को अंधविश्‍वासी नहीं, बल्कि साधक बना देंगे तो कोई किसी पर चढ़ाई नहीं करेगा। हिंसा की प्रेरणा ही खत्म हो जाएगी। हो सकता है लोग छोटी-छोटी चीजों के लिए लड़ें पर बड़ी लड़ाइयां नहीं होंगी। चूंकि मैं एक बात को मानता हूं और आप दूसरी बात – इसलिए लड़ाई कभी खत्म नहीं होती।

जब आप यह समझ लेंगे कि आप ब्रह्मांड की प्रकृति के बारे में नहीं जानते – जैसा कि आज वैज्ञानिक मानने लगे हैं – तो फिर आप किससे लड़ाई करेंगे? “बिलकुल गलत, ब्रह्मांड को मेरे भगवान ने बनाया, तुम्हारे भगवान ने नहीं।” यही समस्या है। जिज्ञासु वह व्यक्ति होता है जिसे यह अहसास हो कि वह नहीं जानता। अगर मानव जाति के साथ यह एक बात हो जाए तो हिंसा को चिनगारी देने वाला नब्बे फीसदी कारण खत्म हो जायेगा।

तो एक ऐसी दुनिया के निर्माण के लिए आदियोगी से बढ़ कर कोई प्रेरणा-स्रोत नहीं है। और हम अनेक प्रकार से उनको व्यक्त करना चाहते हैं।

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