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मई 2021

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इच्छा

इच्छा की शाश्वत भूखी आग
निरंतर चाटती रहती है
हर उस चीज़ को जिसे यह
छू सकती है,
इस पूरे ब्रह्माण्ड को भी
अपने भीतर समाने और पचाने को है आतुर।
तृप्ति की चाहत में इच्छा रहती है हमेशा भूखी
और चाहती है खा जाना
पूरी सृष्टि को ही
यही है प्रकृति इच्छा की।
इच्छा में आप नहीं चाहते
कुछ ऐसा, जो भर दे आपको
और कर दे तृप्त
बल्कि चाहते हैं आप
स्वाद लेना सृष्टि और स्रष्टा का ही।
है यही मेरी कामना कि आप
बन जाएं एक ठंडी अग्नि
जो किसी को भस्म न करे
बल्कि करे प्रकाशित
सकल जगत को।

सद्‌गुरु

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मुख्य चर्चा

हमारे मंदिरों को भक्तों को सौंप दो

‍

हमारे प्राचीन मंदिर उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, जितना हम समझते हैं। इसीलिए सद्‌गुरु ने हाल में ‘फ्री टेंपल्स’ आंदोलन शुरू किया है। इसका मकसद सिर्फ गुमनाम मौत मर रहे शिल्पकला और वास्तुशिल्प के श्रेष्ठ उदाहरणों को संभालना या उपनिवेश काल में हुए एक भारी अन्याय को सुधारना ही नहीं है।

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सचेतन जीवन

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हमारी जीवन शैली में कैसे बदलाव की ज़रूरत है?

चंद्रमा: क्यों आपको इसकी चमत्कारी, रहस्यमयी शक्ति का लाभ उठाना चाहिए?

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ज्ञान-ध्यान

मन और चेतना

विचारों का लगातार चलते रहना, इसके लिए क्या कर सकते हैं?

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महाभारत

संवाद

क्या आज भी दुनिया में भक्ति के लिए जगह है?

जीवन का आपका अनुभव कितना गहन है?

लैटिन सुपरस्टार मलूमा का सद्‌गुरु के साथ संवाद


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अभिनेत्री टिफनी हदीश, गायिका केरी हिल्सन और एक्टिविस्ट चाकबार्स क्लार्क का सद्‌गुरु के साथ संवाद

नई पुस्तक ‘कर्म’ पर चेतन भगत ने की सद्‌गुरु से बातचीत

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मंदिर बचाएं

चर्चा में

घटना क्रम

स्वाद और सेहत

मंदिर बचाएं

मंदिरों को बचाने के लिए, कैसे एक युवा व्यक्ति ने अपने भीतर की पुकार सुनी

अध्यात्म के विज्ञान को जानने के लिए, वैज्ञानिक भी करें ध्यान

सद्‌गुरु के साथ एक सफ़र

भुनी हुई कुरकुरी सब्जी

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मुख्य चर्चा

हमारे मंदिरों को भक्तों को सौंप दो

हमारे प्राचीन मंदिर उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, जितना हम समझते हैं। इसीलिए सद्‌गुरु ने हाल में ‘फ्री टेंपल्स’ आंदोलन शुरू किया है। इसका मकसद सिर्फ गुमनाम मौत मर रहे शिल्पकला और वास्तुशिल्प के श्रेष्ठ उदाहरणों को संभालना या उपनिवेश काल में हुए एक भारी अन्याय को सुधारना ही नहीं है। जो चीज़ दाँव पर है, वह एक सबसे गहन संस्कृति का केंद्रबिंदु है, और उसका नष्ट हो जाना केवल भारत नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए एक अपूरणीय क्षति होगी। आगे पढ़िए।

मंदिरों की दयनीय स्थिति

2020 में, हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्त विभाग ने मद्रास उच्च न्यायालय में निवेदन किया कि पैसे की कमी के कारण वे 11,999 मंदिरों में दिन में एक पूजा या अनुष्ठान भी नहीं कर पा रहे हैं। करीब 34,000 मंदिरों में 10,000 रुपये प्रतिवर्ष से कम की आय है। 37,000 मंदिरों में, मंदिर के लिए जरूरी चीज़ों को करने के लिए एक से अधिक व्यक्ति को नियुक्त नहीं कर पा रहे। इसका मतलब है कि एक ही व्यक्ति उसमें पूजा करेगा, सफाई का काम करेगा, व्यवस्था देखेगा और बाकी सब काम करेगा।

अब समय है कि मंदिर सरकार के चंगुल से बाहर आएँ और जिम्मेदार, योग्य भक्तों के हाथों में दे दिए जाएँ। इस देश में कभी ऐसा समय था, जब मंदिरों का निर्माण और उसकी देखभाल मुख्य रूप से राजा करवाते थे। अब कुछ लोग तर्क देते हैं कि यह सरकार के अधीन होने जैसा था, लेकिन ऐसा नहीं है। राजा इस हद तक भक्त होते थे कि कई राज्यों में देवता को शासक माना जाता था, जबकि राजा खुद को देवता का सेवक मानता था। उनकी भक्ति इस स्तर की थी।

यह प्राचीन संस्कृति हमारे भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है

मूल रूप से, भारतीय मंदिरों को प्रार्थना स्थल के रूप में नहीं बनाया गया था। अधिकांशत:, वे अलग-अलग प्रकार के ऊर्जा केंद्र हैं, जिनमें लोग अपने आप को सराबोर कर सकते हैं। यह सदियों से लाखों लोगों का अनुभव रहा है। हमारी संस्कृति में यह नहीं माना जाता कि ऊपर बैठी कोई ताकत सब कुछ चलाती है। यहाँ, हमें हमेशा बताया गया है, ‘आपका जीवन आपका कर्म है। जो भी होता है, वह आपका किया हुआ है।’ लेकिन आप अपने जीवन को अपनी इच्छानुसार बनाने के लिए आध्यात्मिकता और भक्ति से खुद को लैस कर सकते हैं। यह प्राचीन संस्कृति भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और प्रतिष्ठित ऊर्जा केंद्रों के रूप में मंदिर उसका एक अहम पहलू हैं।

मंदिरों की मौजूदा स्थिति, एक घोर अन्याय

किसी के पास, किसी दूसरे के पूजा स्थलों पर कब्जा करने का कोई अधिकार नहीं है, चाहे वे कोई भी हों और किसी भी चीज़ में विश्वास करते हों। लेकिन तमिलनाडु में, सत्तासी प्रतिशत आबादी के पूजा स्थल दुर्भाग्य से सरकार के हाथों में हैं। इसका संबंध भारत के नागरिकों के मूलभूत अधिकारों और धर्मनिरपेक्षता से है। क्योंकि मेरी समझ में, धर्मनिरपेक्ष होने का अर्थ है कि धर्म, सरकार के साथ खिलवाड़ न करे और सरकार, धर्म के साथ।

मंदिर की व्यवस्था सिर्फ उसकी सफाई और दो बार पूजा करना नहीं, बल्कि उससे कहीं ज्यादा है – वह बहुत जटिल विज्ञान है। यह देखकर मेरा दिल खून के आँसू रोता है कि एक ऐसी चीज़, जिसे अतीत में इतनी मेहनत और विज्ञान के साथ बनाया गया था, जो चीज़ जबर्दस्त खुशहाली, समृद्धि, वैज्ञानिक विकास और सबसे बढ़कर एक उल्लासमय संस्कृति लेकर आई, वह आज नष्ट होने की प्रक्रिया में है।

हमारा संविधान हर किसी को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार देता है, चाहे उनकी आस्था कुछ भी हो। जब ऐसी बात है, तो बहुसंख्यक आबादी के मंदिरों का प्रबंधन सरकार के हाथ में होना बहुत शर्मनाक है। चाहे आप किसी भी समुदाय के हों, हर समझदार भारतीय को इस दिशा में काम करना चाहिए। मैं नियमित रूप से मंदिर जाने वाले लोगों में नहीं हूँ। मैं यह इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि यह एक घोर अन्याय है। हाल में, अमेरिकी कवि अमांडा गोरमैन ने एक कविता पढ़ी, जिसमें यह शानदार पंक्ति थी: ... ‘जो हो रहा है, ज़रूरी नहीं कि वो न्याय हो।’ इस समय जो स्थिति है, वह अंग्रेज़ों के जमाने से मौजूद है। यह न्याय नहीं है – यह भारी अन्याय है कि एक समुदाय के लोग अपने पूजास्थलों का रखरखाव नहीं कर सकते।

मंदिर विज्ञान को समझे बिना किए जा रहे बदलाव

कुछ लोग सिर्फ उस पैसे और संपत्ति के बारे में सोचते हैं, जो मंदिरों के पास है। मेरी चिंता यह है कि पवित्र स्थानों को व्यवस्थित तरीके से दूषित किया जा रहा है। इन मंदिरों को जिस सौंदर्यबोध के साथ बनाया गया था, वह अद्भुत है। तमिलनाडु के मंदिरों में, ग्रेनाइट को, जो बहुत सख्त पत्थर होता है, असाधारण कलात्मक तरीके से तराशा गया था। लेकिन आजकल, मंदिरों का प्रबंध करने वाले लोगों ने इन पत्थरों की नक्काशी पर ऑयल पेंट या इनेमल पेंट लगा दिया है। वह उनका सौंदर्यबोध है। उन्होंने इधर-उधर दीवार खड़ी कर दी है। इस प्रकार का अपवित्रीकरण किया गया है और मंदिर निर्माण के विज्ञान पर विचार किए बिना मंदिर की प्रक्रियाओं को बदल दिया गया है। इतनी सूक्ष्म प्रक्रियाओं और सौंदर्यबोध की हत्या कर दी गई है।
आप इन मंदिरों को दोबारा नहीं बना सकते। उन्हें कैसे बनाया गया था और सबसे बढ़कर उनकी प्राण प्रतिष्ठा कैसे की गई थी, इसके पीछे एक गहन विज्ञान है। तमिलनाडु में ऐसे मंदिर भी हैं, जिनकी प्राण प्रतिष्ठा अगस्त्य मुनि, पतंजलि महर्षि और नयनमारों सहित दूसरे साधु-संतों द्वारा की गई थी। यह एक विरासत है, जिसे नष्ट नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से बहुत नुकसान हो चुका है। मेरे ख्याल से अब समय आ गया है कि उन्हें मुक्त कर दिया जाए।

हमारा लोकतांत्रिक अधिकार और कर्तव्य

हमारे मंदिरों को मुक्त कराने का आंदोलन, विरोध करने या आंदोलन करने या किसी को घेरने की कोशिश नहीं है। यह हमारे प्राचीन मंदिरों के साथ हो रही बदसलूकी से पैदा हुई गहरी पीड़ा से निकला है। मैं दृढ़ता से यह मानता हूँ कि एक लोकतांत्रिक देश में, हर जिम्मेदार नागरिक को चुनावों से पहले साफ-साफ बताना चाहिए कि वे कौन सी चीज़ें हैं जो उनके राज्य या देश में होनी चाहिए। राजनीतिक दलों को जानना चाहिए कि लोग यह चाहते हैं और उन्हें उसी के आधार पर अपने घोषणा पत्र तैयार करने चाहिए। और इसे पूरा करने के लिए, जो भी लोग चुने जायेंगे, हम उनके साथ मिलकर काम करेंगे। लोगों के दिलों में है कि ऐसा होना चाहिए। लगभग 3.32 करोड़ लोगों ने अब तक मिस्ड कॉल और संचार के दूसरे साधनों से इस आंदोलन का समर्थन किया है। जब इतने सारे लोग यह चाहते हों, तो मुझे नहीं लगता कि कोई सरकार इसे अनदेखा कर सकती है।


सचेतन जीवन

हमारी जीवन शैली में कैसे बदलाव की ज़रूरत है?

कॉमेडियन रसेल ब्रांड का सद्‌गुरु के साथ संवाद

इंग्लिश कॉमेडियन और अभिनेता रसेल ब्रांड का एक पॉडकास्ट, अंडर द स्किन, सद्‌गुरु के साथ कुछ सतही बातों की खोज कर रहा है। क्या हमारे समाज और अर्थव्यवस्था की बनावट हमें पागल बना रही है? पूंजीवाद और साम्यवाद के बीच क्या साझा है? हम कहाँ पर गलत हैं और इस दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के लिए किस मूलभूत चीज़ को बदलने की जरूरत है?

क्या आधुनिक जीवन हमें दिमागी तौर पर बीमार बना रहा है?

रसेल ब्रांड: जब आप कहते हैं कि अच्छी-खासी संख्या में अमेरिकी, किसी न किसी तरह की दवाइयां ले रहे हैं (अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिए), चाहे वह डॉक्टर के कहने पर हो या गैर कानूनी तौर पर, मुझे लगता है कि यह महज़ संयोग नहीं है कि ऐसा आर्थिक रूप से सबसे विकसित और गहरे पूंजीवादी उपभोक्तावाद में लिपटी संस्कृति में हो रहा है। यहाँ एक ऐसी संस्कृति है जिसका पूंजीवादी उपभोक्तावाद आर्थिक मदद प्रदान करता है, और जिसकी विचारधारा सांस्कृतिक रूप से लोगों पर लादी गई है। मैं मानता हूं कि मेरी एकमात्र भूमिका जिसे मैं सार्थक रूप से निभा सकता हूं, वह है मेरा अपना विकास और जागरुकता। मैं उम्मीद करता हूं कि इसके पर्यावरणीय लाभ भी होंगे। मैं महसूस करता हूं कि यह लापरवाही होगी, अगर हम उन विचारधाराओं के सांस्कृतिक प्रभाव पर ध्यान न दें जो ड्रग एडिक्ट बना रहे हैं और मानसिक बीमारी पैदा कर रहे हैं।

मानव चेतना से समाज को आकार मिलना चाहिए। समाज से व्यक्तिगत मानव चेतना पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।

मुझे लगता है कि ये स्थितियां अकेले में पैदा नहीं होती हैं – ये महामारी की तरह पैदा होती हैं, जिनकी वजह टूटी हुई विचारधाराएँ हैं, जो ख़ुद में एक अचेतन भूख की अभिव्यक्ति हैं। हमें अभी सांस्कृतिक और व्यक्तिगत – दोनों स्तर पर इनको प्रोसेस करना होगा।

सद्‌गुरु: मैं कहूंगा कि सभी विचारधाराएं आध्यात्मिक पटरी से उतर गई हैं। दो बुनियादी विचारधाराएं हैं: एक पूंजीवादी जीवन शैली है, जिसमें मुख्य रूप से अधिक उत्पादन और अधिक उपभोग पर ज़ोर दिया जाता है। फिर एक साम्यवादी सिद्धांत है, जिसमें साझा करने और एक समुदाय बनाने की बात की जाती है।

पूंजीवाद: पटरी से उतर चुकी रेलगाड़ी?

रेलगाड़ी जब पटरी पर होती है, तो वह अच्छी होती है – जब वह पटरी से उतर जाती है तो एक आपदा होती है। पूंजीवाद या उपभोक्तावाद, एक आध्यात्मिक लालसा है, जो पटरी से उतर गई है। अधिक की इच्छा मानव चेतना की प्रकृति है क्योंकि एक इंसान सीमित नहीं होना चाहता – वह सब कुछ होना चाहता है। लेकिन हम किस्तों में बढ़ रहे हैं। अगर आप असीमित होना चाहते हैं, तो क्या आप एक, दो, तीन, चार, पांच गिनते हुए एक दिन असीम हो सकते हैं? नहीं, आप सिर्फ अंतहीन गिनती बनकर रह जाएंगे। यह उपभोक्तावाद है। एक समय में, दस पाउंड बड़ी आमदनी होती थी। आज आप भले ही कहें कि वह दस अरब के बराबर है लेकिन वास्तव में उसका कोई अर्थ नहीं है क्योंकि लोगों के पास कितना है, इसका उनके कष्ट से कोई संबंध नहीं है। अगर आपके पास दो अरब डॉलर हैं और आपको एक अरब डॉलर का नुकसान हो जाए, तो आप दुखी हो जाएंगे। लेकिन एक दूर के समाज में कोई और, जिसके पास सिर्फ दो गायें हैं और वह एक गाय खो दे, तो वह भी उतना ही दुखी होगा। क्योंकि व्यक्तिगत अनुभव के अर्थ में इससे वास्तव में कोई अंतर नहीं पड़ता, सिर्फ सामाजिक संदर्भ में पड़ता है।

दुनिया की मौजूद आर्थिक स्थिति यह है कि हर किसी का पैर रफ़्तार बढ़ाने वाली पैडल पर है, किसी का हाथ दिशा देने वाली स्टीयरिंग व्हील पर नहीं है।

तो, हमें समाज को कैसे चलाना चाहिए? मानव चेतना से समाज को आकार मिलना चाहिए। समाज से व्यक्तिगत मानव चेतना पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। अभी, आपके पास एकमात्र मूल्य अर्थशास्त्र है। हर कोई आर्थिक विकास का दास बन गया है। लेकिन मुख्य रूप से, अर्थव्यवस्था गुजर-बसर की एक महिमामंडित प्रक्रिया है, जो दुनिया भर में फैल गई है। दुनिया की मौजूद आर्थिक स्थिति यह है कि हर किसी का पैर रफ़्तार बढ़ाने वाली पैडल पर है, किसी का हाथ दिशा देने वाली स्टीयरिंग व्हील पर नहीं है। सिर्फ कोरोना वायरस ही अर्थव्यवस्था में थोड़ी समझ और ब्रेक लेकर आया है। यह खुद को फिर से व्यवस्थित करने और कई पहलुओं पर पुनर्विचार करने का समय है।

साम्यवाद: पटरी से उतरी एक और रेलगाड़ी

तो, मुख्य रूप से अधिक होने की इच्छा करना पूंजीवाद का आधार है। साम्यवाद का आधार भी यही है। जिसे आप अपने लिए खुशहाली मानते हैं, आप हर किसी तक उसे फैलाना चाहते हैं। शायद भौतिक दृष्टि से नहीं, लेकिन एक समुदाय के रूप में खुशहाली के संदर्भ में, इसका मुख्य रूप से अर्थ है कि हम सब साझा करें। यह भी पटरी से उतर गया क्योंकि जिनके पास साझा करने के लिए कुछ नहीं था, वे साझा करना चाहते थे। जिन लोगों के पास साझा करने के लिए कुछ था, वे साझा नहीं करना चाहते थे। दुर्भाग्य से, दुनिया में साम्यवाद के साथ यही हुआ।

अनंत होने की लालसा

अगर देखें तो पूंजीवाद और साम्यवाद, दोनों समावेश की बात करते हैं, मगर कैसे? समावेश कई अलग-अलग रूपों में होता है। अगर विस्तार की यह लालसा एक सरल बुनियादी शारीरिक रूप में अभिव्यक्त होती है, तो हम इसे सेक्सुअलिटी कहते हैं। अगर इसकी अभिव्यक्ति भावनात्मक रूप में होती है, तो हम इसे प्यार कहते हैं। अगर यह मानसिक तौर पर अभिव्यक्त होती है, तो हम इसे महत्वाकांक्षा, जीत या आज की दुनिया में शायद सिर्फ शॉपिंग, कहते हैं। लेकिन मुख्य रूप से, आपकी लालसा उससे ज्यादा होने की है, जितने आप अभी हैं। अगर यह सचेतन रूप से अभिव्यक्त होता है, तो हम इसे योग कहते हैं। दुर्भाग्य से, योग शब्द पश्चिमी समाजों में इतना विकृत हो गया है कि लोगों को लगता है कि योग का अभ्यास करने का मतलब है कि आपको बासी नूडल जैसा दिखना चाहिए।

आपका एक व्यक्ति होना सिर्फ आपका विचार है

योग शब्द का अर्थ है, मेल। आपका एक व्यक्ति होना सिर्फ आपका विचार है। जिस शरीर को आप ढो रहे हैं, यह धरती का एक अंश है। जिसे आप अपना मानसिक ढांचा मानते हैं, वह उन प्रभावों का एक ढेर है जो आपने इकट्ठा किए हैं। हर चीज़ जिसे आप ‘मैं खुद’ के रूप में जानते हैं, वह चीज़ों का एक समूह है, लेकिन फिर भी आप मौजूद हैं। अगर आप अपनी आंखें खोलकर देखते हैं, तो आप दुनिया को देखते हैं। लेकिन अगर आप अपनी आंखें बंद करते हैं और दुनिया को नहीं देखते, फिर भी आप मौजूद होते हैं। आप सिर्फ इसलिए मौजूद नहीं हैं क्योंकि आप देखते, सुनते, सूंघते और चखते हैं। अगर आप गहरी नींद में हैं, बेहोश हैं, फिर भी आप मौजूद होते हैं।

एक बुलबुले की तरह है हमारा अस्तित्व

आपकी शख्सियत से परे, आपके भौतिक और मनोवैज्ञानिक ढांचे से परे, कुछ ऐसा है, जो ‘आप’ हैं। चलिए उसे जीवन कह लेते हैं। अभी, जीवन का आपका अनुभव ऐसा है। रस(रसेल ब्रांड), क्या आपने साबुन के बुलबुले उड़ाए हैं, कम से कम बचपन में?

रसेल ब्रांड: बुलबुले उस फुटबॉल क्लब का मोटिफ हैं, जिसे मैं समर्थन देता हूं। ‘मैं हमेशा बुलबुले उड़ाता हूं’ (वेस्ट हैम यूनाइटेड फुटबॉल क्लब का ऐन्थम) – क्षणभंगुर, सुंदर बुलबुले।

सद्‌गुरु: अगर हम दोनों बुलबुले उड़ाते और मेरा बुलबुला यहां उड़ रहा होता और आपका वहां तो आप कहते, ‘यह मेरा बुलबुला है – वह आपका बुलबुला है।’ लेकिन अगर वे फट जाते, तो आप यह नहीं कहते, ‘यह मेरी हवा है – वह आपकी हवा है।’ बुलबुले में वही हवा है। जीवन के संदर्भ में, यह एक जीवित ब्रह्मांड है। यह एक बड़े सौभाग्य की बात है कि जीवन ने हमें एक व्यक्तिगत अनुभव की इजाजत दी है, हालांकि अस्तित्व में कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है।

जीवन:
एक अद्भुत प्रक्रिया

ऊपर से ऐसा लग सकता है लेकिन इस शरीर में कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है – यह सब एक ही मिट्टी है। हमने जो भी प्रभाव अपनाए हैं, या जो जीवन हम हैं, उसमें कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है। यह जीवन की उदारता है कि उसने हमें एक व्यक्तिगत अनुभव दिया है। यह निराश, बेचैन या चिंतित होने का समय नहीं है। जीवन सबसे महान घटना है, जो आपके साथ हो रही है। हालांकि आपके अंदर कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है, लेकिन फिर भी एक पूरा व्यक्तिगत अनुभव है – मानो आप वास्तविक और संपूर्ण हैं। यहां हमारा अस्तित्व काफी कुछ साबुन के बुलबुले की तरह है। मुझे खुशी है कि आपके फुटबॉल क्लब, वेस्ट हैम, का मोटिफ यह साबुन का बुलबुला है, क्योंकि वे जानते हैं कि आज आप भले ही एक चैंपियन हों, कल आप फट सकते हैं।

तकनीक से हमारा सशक्तिकरण हुआ है?

महत्वपूर्ण यह है कि अभी आप गेंद को कैसे मारते हैं। इन दिनों हर कोई इस महामारी को ‘सबसे बड़ी मुसीबत’ बता रहा है। वे भूल गए हैं कि पिछली पीढ़ियां किन मुश्किलों से गुज़री हैं। चूंकि आप लंदन में हैं, आप किसी बूढ़े आदमी से, जो अब भी जीवित हो, पूछिए कि 1942 उनके लिए कैसा था (जब जर्मन लुफ्तवाफे ने करीब दो महीने तक लंदन पर बम बरसाए थे)। अगर वे ब्लैकआउट के दौरान सड़क पर सिगरेट भी सुलगाते, तो उनके अपने सिपाही उन्हें गोली मार देते। आज, आपको सिर्फ घर पर रहने के लिए कहा जा रहा है – किसी जेल में नहीं, बल्कि अपने घर में – और बाहर आने पर मास्क पहनने के लिए। लेकिन लोग शिकायत कर रहे हैं। ‘नहीं, हम आज़ादी चाहते हैं।’ हम इतने शिकायती हो गए हैं।

अपनी सुख-सुविधाओं को अपनी रचनात्मकता और अपनी प्रतिभा के लिए एक मंच के तौर पर इस्तेमाल करने के बजाय, हमने खुद को अशक्त बनाने के लिए उनका इस्तेमाल किया।

अपनी सुख-सुविधाओं को अपनी रचनात्मकता और अपनी प्रतिभा के लिए एक मंच के तौर पर इस्तेमाल करने के बजाय, हमने खुद को अशक्त बनाने के लिए उनका इस्तेमाल किया। मैंने हाल में चेन्नई के कुछ उद्योगपतियों के समूह से बात की। मैंने उन्हें देखा और पूछा, ‘मान लीजिए, आप चेन्नई की सड़कों पर चल रहे हैं और एक बाघ आ गया, आपमें से कितने लोग दौड़कर किसी पेड़ पर चढ़ सकते हैं, वहां बैठकर वन्य जीवन का आनंद उठा सकते हैं? आपमें से ज्यादातर लोग हर जगह गिर-पड़कर अपनी हड्डियां तुड़वा लेंगे, इससे पहले कि बाघ आपको खा जाए। सिर्फ कुछ लोग जो सड़क पर छोटे-मोटे काम करके गुज़ारा करते होंगे, पेड़ पर चढ़ पाएंगे, जबकि आप बाघ का नाश्ता बन रहे होंगे।’

विकास, सभ्यता, तकनीक, सुख-सुविधाएं और आर्थिक खुशहाली से हमें खुद को सशक्त बनाना चाहिए लेकिन फिलहाल इसका उल्टा हो रहा है।

चंद्रमा

क्यों आपको इसकी चमत्कारी, रहस्यमयी शक्ति का लाभ उठाना चाहिए?

योगिक संस्कृति में चंद्र कैलेंडर का इस्तेमाल क्यों किया जाता है? चंद्रमा हमें कैसे प्रभावित करता है? चंद्रमा और मादकता के बीच क्या संबंध है? मासिक सत्संगों की एक नई श्रृंखला के पहले भाग के दौरान, सद्‌गुरु इन सभी सवालों के जवाब दे रहे हैं और बता रहे हैं कि वह क्यों इसे ‘फुल मून फ्लर्टेशन (इश्कबाज़ी)’ कहते हैं।

सद्‌गुरु: पूर्णिमा का मतलब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग होता है। कुछ लोगों के लिए, इसका मतलब आत्मज्ञान है। ऐतिहासिक रूप से, इस संस्कृति में, कई योगियों ने पूर्णिमा के दिन आत्मज्ञान प्राप्त किया। कुछ लोगों के लिए, इसका संबंध प्यार से है। कुछ के लिए, वह ध्यान है। कई लोगों के लिए, इसका मतलब फ़्लर्ट करना होता है। मैं इस कार्यक्रम का नाम – ‘फुल मून फ्लर्टेशन’ रख रहा हूँ, आत्मज्ञान, प्यार या ध्यान नहीं। अधिकतर लोगों के लिए, आत्मज्ञान, बहुत दूर की बात है, कम से कम वे ऐसा सोचते हैं। प्यार के लिए बहुत समर्पण चाहिए और वह अक्सर बहुत दर्द देने वाला होता है। सबसे बड़ी बात प्यार किससे किया जाए? यह जटिल चीज़ है। दुनिया में ध्यान की जो छवि है, वह दर्द देते घुटने, दुखती हुई कमर और नीरसता की है। लेकिन फ़्लर्ट करने के लिए समर्पण की ज़रूरत नहीं है, उसके लिए बस थोड़ा ध्यान देना पड़ता है और आप परिणाम की चिंता किए बिना खेल सकते हैं।

क्या होता है, जब फ़्लर्ट प्यार में बदल जाएलोग सोचते हैं कि फ़्लरर्टेशन का संबंध हमेशा विपरीत सेक्स से होता है, लेकिन अधिकांश इंसान जीवन के साथ ही फ़्लर्ट करते हैं। उनकी भागीदारी डर पर आधारित होती है, इसलिए वे वास्तव में कभी खुद को इसमें पूरी तरह शामिल नहीं कर पाते हैं। वे जीवन में गोता लगाने के इच्छुक नहीं होते, वे जो कुछ भी करते हैं, उससे जीवन को केवल उंगलियों के पोरों से स्पर्श मात्र करते हैं। मैं हार्मोन-प्रेरित फ़्लर्ट की बात नहीं कर रहा बल्कि जीवन के प्रति खेल पूर्ण होने की बात कर रहा हूँ। कई बार, लोग फ़्लर्ट करने की कोशिश करते हैं, लेकिन आखिरकार प्यार में पड़ जाते हैं या जिस व्यक्ति से वे फ़्लर्ट करना चाहते थे, उसे पत्नी या पति बना लेते हैं।
मैं फ़्लर्ट करूँगा, आप भी फ़्लर्ट कीजिए। इस प्रक्रिया में, आप प्यार में भी पड़ सकते हैं। अगर आप प्यार में पड़ गए, तो वह रूपांतरणकारी हो जाएगा। जब आप प्यार में होंगे, तो मैं आपसे ध्यान करा सकता हूँ, शायद मैं आपको आत्मज्ञानी भी बना दूँ। प्यार ऐसा जाल है, जिसमें से निकलने का रास्ता नहीं है। इसीलिए लोग फ्लर्ट करते हैं। मुझे उससे कोई परेशानी नहीं है क्योंकि अगर आप फ़्लर्ट शुरू करते हैं, तो हो सकता है आप प्यार में भी पड़ जाएँ और निश्चित रूप से वह आपको रूपांतरित कर देगा। लेकिन अगर आप सिर्फ फ़्लर्ट करते हैं – तो इसमें न कोई नुकसान है, न ही फायदा।

कब होता है चंद्रमा का सूर्य से ज्यादा असर?

हम दुनिया में घटित होने वाली घटनाओं को जानने के लिए सौर कैलेंडर का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन जो चीज़ें हमारे अंदर होती हैं, उसके लिए हम चंद्र कैलेंडर का अनुसरण करते हैं। यह इस भूमि का ज्ञान है – योग प्रणाली ने इसे हमेशा ऐसे ही इस्तेमाल किया है। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारा अंदरूनी तंत्र सूर्य की तुलना में चंद्रमा से ज्यादा प्रभावित है। सूर्य का प्रभाव समग्र रूप में होता है क्योंकि वह हर उस चीज़ का आधार है, जो हम हैं, लेकिन रोजा के तौर पर, चंद्रमा का असर ज्यादा होता है, खासकर हमारी ग्रंथियों के स्राव पर।
अगर आप थोड़े ज्यादा जागरूक हैं, अपने भीतरी जीवन से थोड़े ज्यादा जुड़े हुए हैं – तब आप अपनी आँखें बंद करके अपने शरीर पर ध्यान देने पर, ये अहसास कर पाएंगे कि अभी चंद्रमा की कौन सी अवस्था है। क्योंकि आपका शरीर जिस तरह से काम करता है, उसका चंद्रमा की अवस्था से सीधा संबंध है। यह सिर्फ मानवों पर ही नहीं, बल्कि दूसरे स्थलीय और जलीय जीवों पर भी लागू होता है। इसी तरह समुद्र की लहरों पर भी चंद्रमा की अवस्थाओं का असर सूर्य से अधिक होता है।

पागलपन का चंद्रमा से क्या संबंध है?

अमेरिकी न्याय विभाग ने 1979 में पूर्णिमा के संबंध में एक अध्ययन प्रकाशित किया जिसके अनुसार केमिकल उतार-चढ़ाव और मानवीय भावनाएँ, अव्यवस्थित मनोदशा और अस्थिर तथा हिंसक व्यवहार का चंद्रमा की अवस्थाओं से सीधा संबंध है। पुलिस रिकार्डों, मानसिक चिकित्सालयों और मनोचिकित्सकों से इकट्ठे किए गए आंकड़े दिखाते हैं कि चंद्रमा के अलग-अलग चरण, मानव शरीर के अंदर अलग-अलग अनुभवों, मनोदशाओं और तंत्रों को उत्तेजित करते हैं।
अभी हम कैसा महसूस करते हैं, सोचते हैं और जीवन का अनुभव करते हैं, वह हमारी ग्रंथियों से होने वाले स्रावों के संचालन द्वारा तय होता है। आपकी पाचन प्रक्रिया, आपकी प्रजनन प्रक्रिया, आपकी न्यूरोलॉजिकल प्रक्रिया, आपकी मनोदशाएँ और भावनाएँ ठीक हैं या नहीं – ये सब एक जटिल प्रकार के ग्रंथियों के स्राव से नियंत्रित होता है। इसीलिए, जब अंदरूनी आयामों की बात आती है, तो हम चंद्रमा के चक्रों पर आधारित कैलेंडर को मानते हैं। और जब बाहरी स्थितियों की बात होती है, तो हम सौर चक्रों के अनुसार चलते हैं।
पूर्णिमा और अमावस्या का शरीर पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। भारतीय भाषाओं में, चंद्रमा को सोम कहा गया है। सोम का अर्थ मादकता भी होता है, क्योंकि चंद्रमा में आपको नशे में लाने की क्षमता है।

जीवन का नशा

चूँकि यह एक ऑनलाइन कार्यक्रम है, इसीलिए मैं थोड़ा हिचक रहा हूँ कि मैं आपको पूर्णिमा के दिन कितना नशे में लाऊँ। जो लोग यहाँ हैं, वे डाइनिंग हॉल तक रेंग कर जाएँ तो हम इस हरकत को समझ सकते हैं। लेकिन मान लीजिए, ऐसा आपके घर में या कहीं और होता है, तो आपका परिवार डॉक्टर बुला सकता है। इसीलिए मैंने कहा कि इस सत्संग के लिए रेजिस्ट्रेशन होना चाहिए। अगर वही लोग हर महीने इसमें भाग लेते हैं, फिर हम देखेंगे कि बिना शराब या ड्रग्स के आपको नशा कैसे कराया जाए।
खासकर, पूर्णिमा जीवन के प्रति नशा होने से संबंधित है। आपका अनुभव से जुड़ा आयाम, जो शरीर में मौजूद द्रवों और ग्रंथियों के स्राव से तय होता है, पूर्णिमा के दौरान अपने चरम पर होता है। आप कैसा पेय तैयार करते हैं, आनंद, अवसाद, डर या ध्यान का, यह आपके ऊपर है। आशा है कि अगले बारह महीनों में हम आपको अपने अंदर परमानंद का पेय तैयार करना सिखा पाएंगे।

कायर न बनें

अगर आपके शरीर की हर कोशिका आनंदमय हो, तब जीवन बोझ नहीं लगता है। जब जीवन बोझ नहीं होता, तो आप हर उस काम को करने के लिए तैयार रहते हैं जिसकी दुनिया को आवश्यकता है। वरना, आप डरते रहेंगे कि आगे क्या होगा। आपके जीवन में कायरता इसलिए आती है क्योंकि आप हमेशा नतीजों को लेकर चिंतित रहते हैं। जो लोग फल की चिंता में डूबे रहते हैं, वे अपने जीवन में जो काम करने की जरूरत है वो नहीं कर पाएंगे केवल परमानंद में डूबे लोग ही वह कर पाएंगे, जिसे करने की ज़रूरत है।

आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले लोगों के लिए पूर्णिमा ध्यान के लिए अनुकूल होती है, क्योंकि इस दिन प्रकृति आपको ऊर्जा की मुफ्त सवारी प्रदान करती है। सद्‌गुरु, दुनिया भर के साधकों के लिए पूर्णिमा की संभावनाओं को आत्मसात् करने का द्वार खोलते हुए, मासिक पूर्णिमा सत्संग की भेंट दे रहे हैं।
यह सत्संग, हर पूर्णिमा की रात को आपको अपनी मूल प्रकृति को पाने की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए एक अभूतपूर्व संभावना प्रदान कर सकता है।
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अपने योग अभ्यास की तीव्रता को कैसे बनाए रखें?

यदि आपने कभी अपने दैनिक हठ योग या क्रिया के अभ्यास में खुद को सुस्त पाया है, तो ऐसे आप अकेले नहीं हैं। सद्‌गुरु बताते हैं कि हम उसी पुराने गड्ढे में बार-बार क्यों गिर जाते हैं, कैसे हम इससे बाहर निकल सकते हैं और प्रेरित रह सकते हैं।

दो रास्ते: पुरानी आदतों से बाहर निकलने के लिए

प्रश्नकर्ता: सद्‌गुरु, मैं अपने अभ्यासों में नियमित रहा हूँ, लेकिन पिछले कुछ दिनों से, मुझे ऐसा लगता है कि मैं अपनी पुरानी आदतों पर वापस जा रहा हूँ। मेरा उत्साह, भागीदारी और निष्ठा कमज़ोर हो गई है। मैं प्रेरित कैसे रहूँ?

सद्‌गुरु: यह पुरानी आदतें बिना किसी अपवाद के हम सभी में होती हैं। जो आदतें हमारे कर्म के प्रभाव के कारण होती हैं वे हमें वापस पुराने ढर्रे में फंसने के लिए मजबूर करती हैं। सवाल केवल यह है कि क्या आपमें ‘ज़िद’ है उनसे बाहर आने की या नहीं। यदि आप उड़ना जानते हैं, तो आप इन ढर्रों से बाहर निकल आएंगे। यदि आप उड़ने वाले प्राणी नहीं हैं, तो फिर आपको जिद्दी होना ही पड़ेगा। ‘उड़ने वाले’ लोग वे होते हैं जिनके लिए अपनी आँखे बंद कर लेना ही काफी है। मैं उनके बारे में यह सोचकर परेशान नहीं होता कि वे सुबह हठ योग अभ्यास कर रहे हैं या नहीं। उड़ते हुए लोगों को केवल मौसम के बारे में थोड़ा ध्यान रखने की ज़रूरत होती है। लेकिन सभी पैदल चलने वालों को हर कंकड़, पत्थर, कांटे और फिसलन के बारे में चिंता करनी होती हैआपके ये ढर्रे निर्धारित करते हैं कि आप कौन सा मार्ग पकड़ेंगे। विशेष रूप से जब ग़लत मार्ग पकड़ लें, या दूसरे शब्दों में, मजबू करने वाला ढर्रा - जो शारीरिक, मनोवैज्ञानिक या भावनात्मक हो सकता है - तब यह ज़रूरी हो जाता है कि तब आप अपनी ज़िद दिखाएँ।

क्या आप अपने कर्म के आधीन हैं?

पारंपरिक भाषा में, यदि कोई व्यक्ति किसी ढर्रे पर चल रहा हो, तो हम कहते हैं, ‘यह उनका कर्म है।’ कर्म का अर्थ है कुछ कार्य करना - अतीत के किए हुए कार्य। आप शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक तथा ऊर्जा के स्तर पर कार्य कर सकते हैं। आपके द्वारा किया जाने वाला प्रत्येक कार्य कुछ अवशेष छोड़ता है। यह अवशेष ख़ुद में एक ढर्रा बन जाता है। यह आपको अपने वश में कर लेने वाली चीज़ है। यह आपको उन कार्यों को करने के लिए मजबूर करता है जो आप करना नहीं चाहते और जो आप करना चाहते हैं उन चीजों को करने नहीं देता है। आपका ख़ुद का कर्म आपको अपने कब्ज़े में रखता है। आपका वर्तमान, अतीत के वश में होकर भविष्य की संभावनाओं को नष्ट करने लगता है। विशेष रूप से ऐसी स्थितियों में, आपजिद्दी या दृढ़ निश्चयी होना चाहिए। यदि आपमें वह ज़िदनहीं है, तो आपके पुराने ढर्रे आपको ख़त्म कर देंगे। जो आप करना चाहते हैं, उस पर ध्यान केंद्रित न कर पाने के कारण आप शुरू में निरुत्साहित महसूस करेंगे। कुछ समय बाद, यह आपको उत्साहहीन और निर्जीव बना देगा।

क्या आप उन लोगों के संपर्क में हैं जो आपको प्रेरित करते हैं?

लोगों के आध्यात्मिक विकास के लिए, आध्यात्मिक अभ्यास और उसके लिए सहयोगी व्यवस्था, दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। यही कारण है कि आध्यात्मिक गतिविधियों ने हमेशा संघ को - लोगों का समुदाय जो इस मार्ग पर है - सबसे अधिक महत्व दिया है। उनके अपने भी संघर्ष और समस्याएं हैं। कुछ लोग इन समस्याओं को अपने चेहरे पर मुस्कान के साथ लेकर चलते हैं, और कुछ अपनी समस्याएं सभी को दिखाते हुए चलते हैं - यह उनकी मर्ज़ी है। लेकिन आपको जो चाहिए वह हैदृढ़ता और एक जुड़ाव।आपको उनके साथ संपर्क में रहना होगा जो आपके लिए सहायक हैं। जो लोग ख़ुद उस मार्ग पर हैं वे आपकी प्रतिबद्धता को दृढ़ रखने में आपकी मदद करेंगे। अगर आप गलत लोगों से मिलते हैं, वे कहेंगे, ‘क्या! आप सुबह पाँच बजे उठते हैं?’ आपको उन लोगों से मिलने की ज़रूरत है जो कहें, ‘क्या आप 5:00 बजे उठ रहे हैं? मैं सुबह 3:45 में उठता हूँ।’ आपको उन लोगों से मिलना चाहिए जो आपसे अधिक प्रतिबद्ध और दृढ़ हैं। अगर आप ऐसे लोगों से मिलते रहते हैं, तो आपकी आकांक्षाओं के बढ़ने के साथ-साथ, आपको कैसा होना चाहिए उसका आदर्श भी बढ जाएगा।

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ईशा लहर - मई 2021
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