अप्रैल 2021

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मेरा दिल, मेरी बाँहें

रखा होता मैंने
अपना दिल अगर अपने पास,
तो कर सकता था
आपसे प्रेम
रख पाता अगर मैं
अपनी बाँहें अपने ही पास,
तो लगा सकता था
आपको गले से।
पर मसल दिया मैंने अपने दिल को
और फैला दिया उसे
दुनिया भर में।
मेरी बाँहें हैं
पूरी धरती के आलिंगन में।
अगर आपको बचना है
मेरे दिल या मेरी बांहों से
तो आपको जाना होगा
किसी ऐसी जगह
जो हो ब्रह्माण्ड से कहीं दूर,
और मेरी कल्पना से परे।
पर जो परे है,
उसे भला प्रेम की क्या ज़रूरत!

‍

सद्‌गुरु

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इस अंक में पढ़ें

मुख्य चर्चा

खाने की थाली से जुड़े हैं दिमाग़ी सेहत के तार

‍

कोविड महामारी के दौरान चिंता, अवसाद और आत्मघाती विचारों के बढ़ने के साथ, दुनिया भर में मानसिक चिकित्सकों की मांग अचानक बढ़ गई है। यूके के मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक प्रमुख दल ने सद्‌गुरु से बात की, जिसमें उन्होंने मानसिक बीमारी के मूलभूत कारण को उजागर किया।

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4 सबक जो हम राम से सीख सकते हैं

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हार्वर्ड में सद्‌गुरु

सद्‌गुरु के साथ एक सफ़र


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मुख्य चर्चा

खाने की थाली से जुड़े हैं दिमाग़ी सेहत के तार

कोविड महामारी के दौरान चिंता, अवसाद और आत्मघाती विचारों के बढ़ने के साथ, दुनिया भर में मानसिक चिकित्सकों की मांग अचानक बढ़ गई है। यूके के मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक प्रमुख दल ने सद्‌गुरु से बात की, जिसमें उन्होंने मानसिक बीमारी के मूलभूत कारण को उजागर किया।

प्रोफेसर स्वर्ण: सद्‌गुरु, मानसिक विकारों की मूल वजह क्या होती है?

ध्यान दें कि आप क्या और कैसे ग्रहण करते हैं

सद्‌गुरु: हम जिस तरह से खाते हैं, वह हमारी मानसिक बीमारी का एक बड़ा कारण है। जिस तरह से हम बेखबरी में रसायन और हारमोंस निगल रहे हैं, वह हमारी मानसिक सेहत पर बड़ा असर डाल रहा है। हम भोजन को कैसे निगलते हैं, यह भी बहुत महत्वपूर्ण है। जीवन कई स्तरों पर चीज़ों को ग्रहण करता है, जिसमें ऊर्जा का स्तर भी शामिल है। भारत में, जब हम कोई चीज़ ग्रहण करते हैं, तो हम पालथी मारकर बैठते हैं क्योंकि हम अपने शरीर के निचले हिस्से से ग्रहण नहीं करना चाहते। हम कोई भी सकारात्मक चीज़ अपने शरीर के ऊपरी भाग से ग्रहण करना चाहते हैं। अगर हम खाते हैं, तो हम पहले पालथी मारते हैं। अगर हम किसी ऐसी जगह जाते हैं, जिसे हम ऊर्जा की दृष्टि से शक्तिशाली स्थान समझते हैं, तो वहाँ हम पालथी मारकर बैठते हैं और अपने हाथ खुले रखते हैं।

मानव ऊर्जा-तंत्र की समझ

यौगिक विज्ञान के अनुसार मानव-तंत्र में 114 चक्र होते हैं, जिनमें से 112 मानव शरीर के भीतर हैं। इन 112 में सात श्रेणियाँ हैं और हर श्रेणी में 16 चक्र हैं। इन सात श्रेणियों को आम तौर पर आज दुनिया में चक्रों के नाम से जाना जाता है। पहले तीन चक्र जीवन-यापन की प्रक्रियाओं से जुड़े हैं। चौथा चक्र जो पहले 3 और आखिरी 3 चक्रों के बीच है - अनाहत चक्र – यह जीवन-यापन की प्रक्रियाओं और आत्मज्ञान की प्रक्रियाओं के मिलन को दर्शाता है। अनाहत से आगे के चक्र आत्मज्ञान की प्रक्रियाओं से जुड़े होते हैं। जीवन का वह आयाम अधिकांश लोगों के लिए खुला नहीं भी हो सकता है। फिर भी कुछ लोग बिना किसी खास अभ्यास या ख़ास इरादे के – सिर्फ शिक्षा, एकाग्रता और नज़रिए की वजह से अपना विकास कर पाते हैं।
हर इंसान अपनी रफ्तार से विकास कर रहा है। सवाल यह है कि क्या वह चेतन होकर तेज़ गति से विकास कर रहा है या उसकी रफ्तार धीमी है? लेकिन कोई यह नहीं कह सकता कि वह आज भी वैसा ही है जैसा वह दस साल की उम्र में था। हम सभी अपनी समझ, अनुभव, बोध और समझदारी में विकास कर रहे हैं। आध्यात्मिकता का मतलब यह है कि हम जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी अपना विकास करना चाहते हैं, क्योंकि हम समझते हैं कि हमारी प्रकृति नश्वर है और हमारा समय बहुत सीमित है।

Sadhguru: The way we eat is a very big part of mental illness. The way we are unconsciously ingesting chemicals and hormones at various levels is a serious part of mental illnesses today. How we ingest food is also important. Life receives on so many levels, including the energetic level. In India, when we receive something, we sit with crossed legs because we do not want to receive from the lower part of our body. We want to receive anything positive from the upper part of our body. If we eat, we first cross our legs. If we go to a place that we think is energetically strong, we cross our legs and keep our hands open.

किस तरह का भोजन ग्रहण करना चाहिए?

शरीर की सबसे बुनियादी ग्रहणशीलता है भोजन को ग्रहण करना। हम भोजन को कैसे ग्रहण करते हैं और भोजन के रूप में क्या ग्रहण करते हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण है। जैसे-जैसे समाज में संपन्नता आ रही है, लोग खराब खाना खाने लगे हैं। शहरी आबादी ऐसा खाना खा रही है, जिसे एक गांव वाला छुएगा भी नहीं। उत्तरी अमेरिका, एंटासिड (बदहज्मी की दवा) का सबसे बड़ा बाज़ार है जहाँ दुनिया के सबसे संपन्न लोग रहते हैं। उनके पास पोषण के सारे विकल्प हैं, लेकिन वे बदतर भोजन करते हैं, क्योंकि आजकल बाज़ारू ताकतें यह तय करती हैं कि वे क्या खाएँगे। अधिकांश लोग अपनी चेतना में नहीं खाते। पश्चिमी देशों में लोग आजकल जो खाना खाते हैं, वह कम से कम तीस से साठ दिन पुराना होता है। योग में, भोजन को सत्व, रजस और तमस के रूप में बाँटा गया है। तमस का अर्थ है, सुस्ती। अगर आप कोई ऐसी चीज़ खाते हैं, जिसमें तमस होता है, तो आपके सिस्टम में सुस्ती आ जाती है।
सुस्ती का मतलब सिर्फ आलसी होना नहीं है। सुस्ती का अर्थ है कि सिस्टम के पुनर्जनन की प्रक्रिया धीमी हो जाती है या कहें कि जीवंतता कम जाती है। दिमाग को जीवन भर ठीक-ठाक सक्रिय रखने के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है -‘न्यूरोनल रीजेनरेशन’ जिसे हम तंत्रिकाओं के पुनर्जनन के रूप में समझ सकते हैं। अनुभूति हर व्यक्ति में एक समान नहीं होती। ऐसा क्यों है - इसके कई पहलू हैं। अगर आप तामसी भोजन करते हुए अपने सिस्टम के सामान्य कामकाज और अपनी ऊर्जा प्रक्रिया में सुस्ती पैदा करते हैं, तो समय के साथ आपकी अनुभूति का स्तर कम होने लगता है। इसीलिए लोगों को भोजन के साथ कोला, कॉफी या कुछ और पीना पड़ता है क्योंकि उन्हें सुस्ती को संतुलित करना है। यह अपने सिस्टम को संतुलित करने का बहुत नासमझी भरा तरीका है।

भोजन कैसे मदद कर सकता है आपको युवा बनाए रखने में?

यौगिक संस्कृति में भोजन के पकने के ज्यादा से ज्यादा डेढ़ घंटे के भीतर आपको उसे खा लेना चाहिए। उसके बाद, हम भोजन को नहीं छूते क्योंकि उसमें तमस इकट्ठा होने लगता है, जिससे सुस्ती आने लगती है। अगर आप प्रयोग करके देखना चाहते हैं, तो एक सप्ताह तक बिल्कुल ताज़ा खाना खाइए। उसके बाद एक सप्ताह के लिए, एक-दो महीने तक स्टोर किया गया प्रोसेस्ड खाना खाइए। आप कोशिका के स्तर पर सिस्टम में सजगता का अंतर देखेंगे। हम इस सजगता को ओजस कहते हैं – इसके लिए कोई अंग्रेजी शब्द नहीं है। अगर आप पर्याप्त ओजस पैदा करते हैं, जो ऊर्जा का एक अभौतिक आयाम है, अगर आपके शरीर की हर कोशिका ओजस में लिपटी हुई है, तो आपकी कोशिकीय आयु लंबे समय तक लगभग एक जैसी रहेगी।

किसके साथ क्या खाएँ – क्या नहीं खाएँ?

भोजन के मामले में और आगे बात करें तो ‘विरुद्ध-आहार’ नाम की एक चीज़ होती है। इसका अर्थ है कि अगर आप दो ऐसी चीज़ें एक साथ खाते हैं, जो एक-दूसरे के खिलाफ काम करती हैं, तो यह आपके शरीर में एक युद्ध जैसा होगा। पाचन प्रक्रिया मुख्य रूप से अम्ल और क्षार के बीच होती है। मसलन, अगर आप माँस खाते हैं, जो अपने आप में वसा होता है, तो वह उतना नुकसान नहीं करेगा। लेकिन अगर आप उसे चावल और घी के साथ खाते हैं, जैसे बिरयानी, तो वह बड़ा नुकसानदायक होगा क्योंकि ये चीज़ें एक दूसरे के अनुकूल नहीं हैं। इसीलिए माँसाहारी भोजन और दूध के उत्पादों को कभी मिलाया नहीं जाता था क्योंकि जब आप ऐसा करते हैं तो वे एक-दूसरे के खिलाफ हो जाते हैं और आपके अंदर एक लड़ाई सी छेड़ देते हैं।

स्वस्थ मन के लिए जरूरी है पेट का साफ होना

यौगिक संस्कृति में कहा जाता है कि भोजन को ढाई घंटे से ज्यादा आपके पेट में नहीं रहना चाहिए। ढाई घंटे के अंदर आपका पेट खाली हो जाना चाहिए। हम चाहते हैं कि हमारा पेट खाली रहे क्योंकि खाली पेट में सब कुछ अच्छी तरह से काम करता है। दूसरा पहलू जिसे आजकल पूरी तरह उपेक्षित कर दिया जाता है, वह है मलाशय की सेहत। अगर आप अपने मलाशय को स्वस्थ नहीं रखते, तो अपने मन को संतुलित रखना बहुत मुश्किल होता है। आयुर्वेद और सिद्धा पद्धति में, अगर आपको अनिद्रा की समस्या है या कोई हल्की मनोवैज्ञानिक समस्या है, तो पहला काम वे शरीर की सफाई का करते हैं। अगर आप सिस्टम को शुद्ध करके मलाशय को साफ कर लेते हैं, तो आप ज्यादा संतुलित महसूस करेंगे। हालाँकि यह पूर्ण समाधान नहीं है लेकिन यह दवाओं या कुछ अभ्यासों के जरिए सुधार करने के लिए शरीर में जरूरी माहौल पैदा करता है।


सचेतन जीवन

4 सबक

जो हम राम से सीख सकते हैं

सद्‌गुरु राम के चरित्र के उन गुणों को आज के जीवन से जोड़ते हुए यह बता रहे हैं कि राम आख़िर आज भी क्यों प्रासंगिक हैं। चलिए पता करते हैं कि उन्होंने हज़ारों साल पहले जो शानदार मिसाल कायम की थी, वह अब भी इतनी महत्वपूर्ण क्यों है – शायद ऐसे समय में पहले से कहीं ज्यादा।


सद्‌गुरु: राम को हमेशा ‘पुरुषोत्तम’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है, सबसे उत्तम पुरुष। वह बहुत सी मुसीबतों और आपदाओं से गुज़रे। उन्होंने अपना राज्य खो दिया, जंगल गए, वहाँ अपनी पत्नी खो दी, उन्हें युद्ध लड़ना पड़ा, वापस आए, फिर से अपनी पत्नी को खो दिया और अपने बच्चों को लगभग मारने ही वाले थे। लेकिन उन्होंने इन सभी चीज़ों को शांति और खुशी से झेला। व्यक्तिगत स्तर पर उन्होंने बहुत दर्द सहा और उसे व्यक्त भी किया लेकिन उन्होंने कभी उस दर्द को अपने क़दम तय नहीं करने दिए। जब एक व्यक्ति ऐसा काम करता है, तो हम उसे पुरुषोत्तम कहते हैं क्योंकि वह पुरुषों में सबसे श्रेष्ठ होता है।

 

संस्कृति – संतुलित भी और उल्लासमय भी

हम राम की पूजा इसलिए नहीं करते क्योंकि वह बहुत सफल थे। हम उनके गुणों के लिए उनकी पूजा करते हैं। जीवन ने चाहे उन्हें कुछ भी दिया, वह संतुलित रहे। जीवन आपके साथ क्या करता है, यह हमेशा आपका चुनाव नहीं होता, लेकिन आप क्या करते हैं, यह आपका चुनाव होता है। कर्म का अर्थ यही है। उनके कर्म पूरी तरह उनके काबू में थे। दुनिया ने उनके साथ कई तरह की चीजें कीं, लेकिन उन्होंने बिना किसी कड़वाहट, नफरत या गुस्से के, वही किया, जो उन्हें करना चाहिए था।
उनके साथ बुरी से बुरी चीज़ें हुईं, लेकिन वह संस्कृति में थे। ‘संस्कृति’ शब्द में सम का अर्थ है, संतुलित और उल्लासमय और कृति का अर्थ है कार्य। संस्कृति का अर्थ है संतुलित और उल्लासमय रूप में जीवन को जीना। संतुलित का मतलब मरे समान नहीं, और उल्लासमय का मतलब नशे में डूबा नहीं। राम इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं। उन्होंने अपना जीवन पूरी भागीदारी और संतुलन के साथ जिया। अगर कोई शख्स अपनी मानवता को खोए बिना अपने जीवन से इस तरह गुज़र सकता है कि उसके साथ चाहे कुछ भी हो – गरीबी, अमीरी, सफलता, विफलता, वह इन सबसे बेअसर रह जाए, तो इस संस्कृति में उसे वास्तव में एक सफल इंसान माना जाता है।

आम राय हमेशा गलत क्यों होती है?

रामायण में एक बहुत सुंदर घटना हुई। जब राम को उनके राज्य से निकाल दिया गया और वह जंगल में एक कठोर जीवन बिता रहे थे, तब रावण ने उनकी पत्नी का अपहरण कर लिया। अपनी पत्नी के प्रेम में वह सुदूर दक्षिण तक चले गए, तमिल लोगों की एक सेना बनाई, समुद्र पार करके श्रीलंका तक गए, युद्ध किया और लड़ाई में दस सिरों वाले रावण को मार डाला।
युद्ध जीतने के बाद राम ने कहा, ‘मैं अपने राज्य वापस नहीं जाना चाहता। मैं हिमालय जाकर अगस्त्य मुनि की गुफा में कुछ समय बिताना चाहता हूँ क्योंकि मैं अपने घोर पाप का प्रायश्चित करना चाहता हूँ। मैंने एक धार्मिक, महान शिव भक्त, असाधारण विद्वान, एक महान राजा और एक उदार इंसान का वध किया है।’ दूसरे लोग अवाक रह गए। उनके भाई लक्ष्मण ने कहा, ‘आप क्या बात कर रहे हैं? रावण ने आपकी पत्नी का हरण किया था।’ राम ने जवाब दिया, ‘उसके नौ सिरों में लालच, ईर्ष्या और वासना जैसे अवगुण थे। लेकिन एक सिर में महान समझदारी, ज्ञान, पवित्रता और भक्ति थी। मुझे उस सिर के वध पर पछतावा है।’
यह कहानी यह बताने की कोशिश करती है कि हम सभी के दस या उससे ज्यादा सिर हैं। एक दिन, आपका सिर लालच में होता है, दूसरे दिन ईर्ष्या में, फिर किसी दिन नफरत में, किसी दिन प्यार में, किसी दिन सुंदरता में और किसी दिन कुरूपता में होता है। जब लोग आपको ईर्ष्या के एक क्षण में देखते हैं, तो वे कहते हैं, ‘यह लालची है।’ जब वे आपको नफरत के किसी क्षण में देखते हैं, तो कहते हैं, ‘यह नफरत से भरा है।’ जब वे आपको कामुकता के क्षण में देखते हैं, तो वे कहते हैं, ‘यह कामुक है।’ अलग-अलग समय पर अलग-अलग सिर काम करते हैं, लेकिन हर किसी के पास प्यार, सुंदरता, उदारता और करुणा का कम से कम एक सिर जरूर होता है। लोग सबसे बड़ी गलती यह करते हैं कि किसी अवगुण की निंदा करने के बजाय वे व्यक्ति की निंदा करते हैं। राम यही कहने की कोशिश कर रहे थे, ‘उसने जो भयावह चीज़ें कीं, वे उसके दूसरे नौ सिर थे। लेकिन मैंने जबर्दस्त संभावना वाला वह एक सिर भी देखा जिसे दुर्भाग्यवश मुझे काटना पड़ा।’

एक नेता के लिए, परिवार से पहले देश होता है

चौदह सालों के वनवास के बाद, राम ने प्रायश्चित करने के लिए एक और साल लिया क्योंकि उन्होंने रावण का वध किया था, जो एक भक्त था लेकिन उसने उनकी पत्नी का हरण भी किया था। लेकिन जैसे यह काफी नहीं था, कुछ राजनीतिक हालातों ने उन्हें अपनी गर्भवती पत्नी को फिर से जंगल में भेजने पर मजबूर कर दिया।
एक राजा के लिए, रानी का गर्भवती होना और राज्य के उत्तराधिकारी की आशा बहुत महत्वपूर्ण होती है। वह पत्नी से बहुत प्यार करते थे और वह उनकी दुनिया थी, लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी जनता को ऊपर रखा और उन्हें जंगल भेज दिया, जहाँ उन्होंने जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया। अनजाने में वे अपने ही बच्चों को लगभग मारने ही वाले थे, जो कि सबसे भयानक चीज़ थी। उन्होंने कभी अपनी प्यारी पत्नी को दोबारा नहीं देखा। उनका वन में ही देहांत हो गया। लोगों ने मुझसे पूछा, ‘क्या उन्होंने अपनी पत्नी के साथ ठीक किया? क्या यह परिवार के साथ पेश आने का सही तरीका है?’ अगर आप कोई आम आदमी हैं, तो यह अच्छा सवाल है। लेकिन अगर आप राजा या देश के नेता हैं, तो हम ऐसे शख्स को चाहते हैं जो अपने परिवार से ऊपर देश को रखे। इसीलिए हम इस व्यक्ति के आगे सिर झुकाते हैं।

हर चीज़ के लिए जुनून, सिवाय...

राम को एक इंसान की तरह देखना बहुत महत्वपूर्ण है। अगर वह एक भगवान थे, तो आप उन्हें दीवार पर लटकाकर उन्हें भूल जाएँगे। कोई किसी भगवान का अनुकरण करने की कोशिश नहीं करता। अगर एक इंसान वाकई अच्छा काम कर रहा है, तो स्वाभाविक रूप से हर कोई उसकी तरह होना चाहता है। मुख्य रूप से राम के अंदर हर चीज़ के लिए जुनून और अपने लिए पूरी तरह उदासीनता थी। अपनी जनता की खुशहाली के लिए राम का जुनून आत्मत्याग की हद तक था। मेरे ख्याल से यह एक गुण सभी इंसानों को अपनाने की जरूरत है, चाहे वे कहीं भी हों।

कर्म से भाग्य बनता है या भाग्य से कर्म?

जर्मन लाइफ कोच लॉरा मेलिना सेलर, सद्‌गुरु से कर्म के बारे में आम गलतफहमियों को दूर करने के लिए कहती हैं। सद्‌गुरु बता रहे हैं कि कर्म का असली अर्थ क्या है और कैसे उसका इस्तेमाल करके खुद अपने भाग्य का मालिक बना जा सकता है।

लॉरा: आपने हाल में कर्म के ऊपर एक नई किताब लिखी है जिसके लिए मैं बहुत उत्सुक और उत्साहित हूँ, क्योंकि मुझे लगता है कि पश्चिमी दुनिया में कर्म को लेकर बहुत गलतफहमी है। लोग सोचते हैं कि यह कोई सज़ा है या कुछ ऐसा है जिसे आप बदल नहीं सकते। मैं कर्म पर आपके नज़रिए को सुनना चाहूँगी।

 

कार्य के चार स्तर

सद्‌गुरु: कर्म का अर्थ है – कार्य यानी गतिविधि। जीवित इंसान के रूप में, चाहे हम जागे हुए हों या सोए हुए हों, हम मुख्य रूप से चार स्तर की गतिविधि करते हैं। एक शारीरिक गतिविधि चलती रहती है, चाहे आपको वह अच्छी लगे या नहीं। आप उसे बढ़ा या घटा सकते हैं, लेकिन उसे बंद नहीं कर सकते। इसके अलावा हैं - मनोवैज्ञानिक गतिविधियाँ, भावनात्मक और ऊर्जा स्तर की गतिविधियाँ। गतिविधियों के ये चार आयाम हमेशा सक्रिय रहते हैं, जागी और सोई दोनों अवस्था में। लेकिन अगर आप उन सभी शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और ऊर्जा गतिविधियों को देखें जिन्हें आपने आज सुबह उठने के बाद से किया है, तो आप पाएँगे कि वह काफी हद तक अचेतन तरीक़े से हुई हैं। आपने जो कुछ भी ग्रहण किया है उसकी वजह से पैदा हुई किसी न किसी बाध्यता की वजह से वे सब गतिविधियाँ हुई हैं।

क्या आपका जीवन संयोगवश चल रहा है?

मान लीजिए, आप एक कार चला रहे हैं और सिर्फ एक प्रतिशत समय में जगे होते हैं, तो आप नतीजे की कल्पना कर सकते हैं। लोगों के जीवन में यही हो रहा है क्योंकि वे अपने शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और ऊर्जा कार्यों को चेतना में नहीं करते। इसलिए ऐसा लगता है कि हर समय कोई दूसरी ताक़त कहीं और से उनको टक्कर मार रही है। अगर कोई बुरी चीज़ उनसे टकराती है, तो वे कहते हैं, ‘यह एक मुसीबत है।’ अगर कोई अच्छी चीज़ उनसे टकराती है, तो वे कहते हैं, ‘मैं खुशकिस्मत हूं।’ लेकिन हमेशा ऐसा लगता है कि जीवन संयोगवश चल रहा है। जीवन संयोगवश नहीं है। हमारे अस्तित्व का भौतिक आयाम हमेशा कारण और प्रभाव के बीच घटित होता है। बात बस इतनी है कि अधिकांश लोग अपने जीवन में होने वाली घटनाओं का कारण नहीं देख पाते, चाहे वे उसका आनंद उठा रहे हों या उससे दुखी हों। लेकिन बिना कारण के कोई प्रभाव नहीं हो सकता। यही हमारे भौतिक अस्तित्व की प्रकृति है।

आपके हर काम का जो प्रभाव आपके ऊपर शेष रह जाता है वही कर्म है। हो सकता है यह सचेतन नहीं हो, लेकिन वह हमारे जीवन में सक्रिय भूमिका निभाता है।

कर्म का अर्थ मुख्य रूप से कार्य होता है – वह कार्य जो जाने या अनजाने में किया जा चुका है। यह कर्म बेशक अलग-अलग स्तरों पर होता है, लेकिन मुख्य रूप से वह याद्दाश्त के रूप में हमारे भीतर जमा होता रहता है। आपकी याद्दाश्त का एक छोटा सा हिस्सा ही चेतन होता है। चाहे आपकी याद्दाश्त कितनी भी शानदार क्यों न हो, आप अपने दिमाग में जितना रखते हैं, वह आपके शरीर में मौजूद याद्दाश्त के मुकाबले बहुत सीमित होता है। मुझे यकीन है कि आपको यह याद नहीं होगा कि आपकी दादी की परदादी कैसी दिखती थीं, लेकिन उनकी नाक आपके चेहरे को याद है। हज़ारों साल पहले के आपके पूर्वजों की त्वचा की रंगत अब भी आपके शरीर में दिखती है। याद्दाश्त के आनुवांशिक, विकासमूलक और तमाम दूसरे स्तरों को हम कर्म कहते हैं। कर्म आपके हर काम का बचा हुआ प्रभाव है। वह पूरी तरह चेतन नहीं है, लेकिन वह हमारे जीवन में सक्रिय भूमिका निभाता है।

क्या कर्म का सिद्धांत हमें भाग्यवादी बनाता है?

कर्म का सिद्धांत भाग्यवादी नहीं है – यह अपने जीवन के करीब पहुँचने का सबसे जीवंत तरीका है। ‘मेरा जीवन मेरा कर्म है’ इसका अर्थ है ‘मेरा जीवन मेरी रचना है। मेरे जीवन को बनाने वाला कोई दूसरा नहीं है।’ दुनिया आप पर क्या फेंकती है, वह हमेशा आपके हाथ में नहीं होता। दस हज़ार साल पहले, उन्होंने आपकी तरफ पत्थर फेंका होगा। हज़ार साल पहले, उन्होंने आपकी ओर भाला फेंका होगा। आज, वे आपकी तरफ वाट्सऐप मैसेज फेंक सकते हैं।

दुनिया आप पर जो फेंकती है, वह उस दौर का नतीजा है, जिसमें हम जीते हैं। लेकिन हम अपने जीवन को अनुभव कैसे करते हैं, उसकी प्रकृति और दायरा पूरी तरह हमारे हाथ में होता है। हम हमेशा यह तय नहीं कर सकते कि दुनिया हम पर क्या फेंकती है, लेकिन उससे हम क्या बनाते हैं, वह सौ फीसदी हमारे हाथ में होता है। कर्म का अर्थ यही है – अपने जीवन को अपने हाथ में लेना। अपने कर्म को ज्यादा सचेतन प्रक्रिया बनाकर, आप खुद अपने भाग्य के स्वामी बन जाते हैं।

संपादक की टिप्पणी: इस विषय में और गहराई तक जाना चाहते हैं? सद्‌गुरु अपनी नई किताब ‘कर्म – ए योगीज़ गाइड टू क्राफ़्टिंग योर डेस्टिनी’ में समझाते हैं कि कर्म क्या है और हम अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए उसके सिद्धांतों का लाभ कैसे उठा सकते हैं। सद्‌गुरु हमें कुछ सूत्र भी बताते हैं जो इस चुनौतीपूर्ण दुनिया में हमें अपना रास्ता बनाने और अपना भाग्य गढ़ने में मदद करते हैं।

पंचतत्वों पर महारत से मिल सकती है समय पर महारत

हाल में हुए ‘इन द ग्रेस ऑफ योगा’ प्रोग्राम के सत्र में, सद्‌गुरु कुछ मूलभूत बाधाओं और व्यवस्थाओं के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें आज मनुष्य खुद के लिए पैदा कर रहा है, जो असल में उन्हें अपनी पूरी क्षमता तक उठने और जीवन को सबसे बेहतर तरीके से अनुभव करने से रोकते हैं। वह यह भी समझा रहे हैं कि समय और भौतिक अस्तित्व के क्या कार्य हैं और किस तरह पंचतत्वों पर थोड़ा अधिकार करके आप मुक्त हो सकते हैं।

समय के प्लेटफॉर्म पर भौतिक का खेल चलता है

इस शरीर का अस्तित्व समय में है। समय वह प्लेटफॉर्म है, जिस पर इसका खेल चलता है। लेकिन खेल में क्या होगा और कैसा होगा – यह इस बात से तय होता है कि हममें पांच तत्वों के ऊपर कितना लचीलापन, महारत और बोध है। हमारे बोध में समय या काल का मतलब मुख्य रूप से चक्रीय गति होती है। चाहे वह चंद्रमा हो, पृथ्वी हो, सूर्य हो या घड़ी, चक्रीय गति से ही हमारी समय की धारणा बनती है। अलग-अलग चक्र हमारे मन में समय की अलग-अलग इकाइयों को दर्शाते हैं।

लेकिन यह केवल तब तक सच है, जब तक आप यहाँ एक भौतिक प्राणी के रूप में मौजूद हैं। लेकिन मनुष्य होने की अहमियत और खुशकिस्मती यह है कि अगर हम चाहें तो इस भौतिकता को दुनिया में काम करने के लिए सिर्फ़ एक साधन की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। तो सवाल यह है कि क्या हम अपने शरीर का इस्तेमाल एक साधन के तौर पर करते हैं या हम भी दूसरों जीवों की तरह जीवन बिता देते हैं? इन दिनों, कीड़े-मकोड़ों, पक्षियों, मछलियों और कई दूसरे जीवों की इतनी शानदार तस्वीरें मिलने लगी हैं कि लोग यह सोचने लगे हैं कि बाकी जीव इंसानों से ज्यादा सुंदर हैं। तो फिर इस मुक़ाम तक पहुँचने के लिए लाखों सालों की विकास-यात्रा का क्या मतलब रह जाता है?


आपकी सोच और अहसास कोई मायने नहीं रखते

वे सारे जीव बहुत ही सुंदर हैं – इसमें कोई शक नहीं। निश्चित रूप से वे आपसे ज्यादा रंग-बिरंगे हैं। आपको रंगबिरंगा दिखने के लिए रंगीन कपड़ा पहनना पड़ता है। वे इसी रूप में आते हैं। और आम तौर पर, नर पक्षी सबसे रंग-बिरंगे होते हैं। जब शरीर की बात आती है, तो आप जीवन को दो तरीकों से देखने से बच नहीं सकते – पुरुष और स्त्री, पौरुष और स्त्रैण। अगर आप जीवन को भौतिकता से परे देखते हैं, फिर कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप पुरुष हैं या स्त्री, ज्यादा पौरुष या ज्यादा स्त्रैण।

योग कोई मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं है। हो सकता है कि यह बात आपको सही न लगे, लेकिन हम परवाह नहीं करते कि आप क्या सोचते और क्या महसूस करते हैं। हमें सिर्फ जीवन की वास्तविकताओं में दिलचस्पी है। जब आप जीवन की वास्तविकताओं को संभालना सीख लेते हैं, तभी आप जीवन को जान पाएँगे। वरना, आप अपने मनोवैज्ञानिक नाटक को हकीकत समझने की गलती करने लगेंगे।

इंसान की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि वह जीवन को उसकी पूरी क्षमता में, उसके बुनियादी पहलुओं में, उसकी सुंदरता में और सबसे बढ़कर उसकी गूढ़ता में अनुभव किए बिना मर जाता है। अगर आप मोर के पंख के रंगों को सराहते हैं, तो आपको यह भी देखना चाहिए कि उसे कितनी बारीकी से बनाया गया है। यह सिर्फ़ उसके शारीरिक बनावट की बात नहीं है, यह उससे कहीं ज्यादा है। वह बहुत गूढ़ और बहुत शानदार है।

पड़ोसी को जलाना महत्वपूर्ण है या अपने सिस्टम को चलाना?

हम आपको ऐसे अभ्यास देना चाहते हैं, जो आपको भौतिकता से परे की पहुँच प्रदान करें। आजकल अगर आप कार के विज्ञापन देखें, तो आप देखेंगे कि अधिकांश में इंजिन, ट्रांसमिशन, गियरिंग या ऐसी किसी चीज़ के बारे में नहीं बताया जाता। उसमें बस पेंट, साजो सामान, स्टीरियो, वुड पैनलिंग आदि की बातें होती हैं। ऐसा लगता है कि अधिकांश लोगों की दिलचस्पी एक सोफा खरीदने में है, लेकिन वे कार खरीद लेते हैं क्योंकि उन्हें यात्रा भी करनी है। उन्हें इंजिन में कोई दिलचस्पी नहीं होती। जब आप उनसे इंजिन के बारे में पूछेंगे, तो वे कहेंगे, ‘ओह, मैं नहीं जानता, लेकिन इसका पेंटवर्क अच्छा है।’

वे पेंटवर्क खरीदना चाहते हैं क्योंकि उनका मकसद पड़ोसी को जलाना है, एक अच्छी कार चलाना नहीं। अगर आपकी दिलचस्पी मेकअप में है, व्यक्ति में नहीं, तो हम आपको बस शुभकामनाएँ दे सकते हैं। कम से कम अपने सिस्टम को लेकर आपको पड़ोसी की जलन की फिक्र नहीं होनी चाहिए। यह आपके सिस्टम के कुशलता से चलने के बारे में है ताकि यह महसूस हो कि वह चालू है और बड़ी से बड़ी चुनौतियाँ लेने के लिए तैयार है। अगर वह घर्षण से भरा है, तो आप उसे छोड़ देना चाहेंगे।

कहीं आपने अपना जीवन गिरवी तो नहीं रख दिया है?

अधिकांश लोगों के लिए उनका शरीर एक बाधा होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि वे बीमार हैं, हालांकि ऐसा भी हो सकता है। लेकिन उनका सारा जीवन सिर्फ शरीर की जरूरतों, जैसे भोजन, नींद और सेक्सुअलिटी को पूरा करने में ही गुज़र जाता है। अधिकांश लोग अपने रोज के भोजन और आराम को निश्चित करने के लिए अपना सारा जीवन गिरवी रख देते हैं। ऐसा हर कहीं हो रहा है, लेकिन अमेरिका एक आदर्श उदाहरण है। हर किसी के पास कोई न कोई बैंक लोन है – विद्यार्थी लोन, कार लोन, हाउस लोन और सेकेंड लेक हाउस लोन आदि। कुल मिलाकर उन्हें पचास सालों तक लोन का भुगतान करना होता है। चाहे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण आयाम उनके सामने खुल जाए, वे वहाँ नहीं जाएँगे। वे सिर्फ बैंक की कतार में लगे रहेंगे।

आप जानते हैं, अमेरिका में इसे लेकर थोड़ी बहस चल रही है कि जीसस अगली बार कहाँ आने वाले हैं। पिछली बार, येरुशलम में 2000 साल पहले, जब उन्होंने कहा था, ‘मेरे पीछे आओ,’ तो सिर्फ बारह लोग उनके पास गए थे। अब अगर वह अमेरिका आकर कहें कि, ‘मेरे पीछे आओ,’ तो कोई नहीं जाएगा क्योंकि हर किसी को अपना लोन चुकाना है। उनका जीवन गिरवी रखा हुआ है।

आर्थिक व्यवस्था हमारे आराम के लिए होती है, ताकि कल सुबह हमें अपने भोजन की चिंता न करनी पड़े। लेकिन अब ये व्यवस्थाएँ आपका सारा समय ले लेती हैं। इसी तरह, आपकी सेक्सुअलिटी, आपकी सुविधाएँ, आपका पूरा जीवन ले लेती हैं।

पंचतत्व आपकी चरम खुशहाली के लिए क्यों जरूरी हैं

अगर आप जीवन को पूरी तरह जीना चाहते हैं, तो आपको पंचतत्वों पर ध्यान देना होगा। भूतशुद्धि आपके सिस्टम को इस तरह जाग्रत करती है कि वह कभी आड़े नहीं आता। आप जो भी करना चाहें, आपके शरीर को रास्ते में नहीं आना चाहिए – उसे सीढ़ी बनना चाहिए, बाधा नहीं।

अगर आप पंचतत्वों पर थोड़ा काबू या महारत रखते हैं, फिर हम समय पर महारत हासिल करने के बारे में सोच सकते हैं। अगर आपको समय पर महारत हासिल है, तो जीवन और मृत्यु आपके लिए बराबर होंगी।

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ईशा लहर - अप्रैल 2021
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