मार्च 2021

पढ़ें : अंग्रेजी में | तमिल में

अभी सदस्यता लें

अंतिम नियति

क्या होगी कभी ये दुनिया ऐसी जो बंटी न हो देशों में? क्या होगी कभी ये दुनिया ऐसी जिसमें न हो कोई सीमा? क्या होगा कभी कोई राष्ट्र जो हिस्सों में न बाँटा हो? क्या कभी होंगे ऐसे लोग जिनके बीच कोई द्वंद्व न हो? क्या हम देख पाएंगे ऐसे दिन, जब हमें ज़मीन के लिए एक-दूसरे को मारना न पड़े? हाँ, वो दिन तो वैसे भी आएगा जब हम मिट्टी में मिल जाएंगे वही है हमारी अंतिम नियति!

सद्‌गुरु

ईशा लहर अपने ईमेल में हर महीने पाएं। अभी सदस्यता लें

इसे साझा करें

ट्विटर

फेसबुक

लिंक कॉपी करें

© 2021 Isha Foundation. All rights reserved. • isha.sadhguru.org

इस अंक में पढ़ें

मुख्य चर्चा

कैसे और क्यों शुरू हुई भगवान की खोज?

‍

एक साधक सद्‌गुरु से सदियों पुराना सवाल पूछते हैं कि ‘भगवान क्या है?’ सद्‌गुरु का जवाब आपको हैरान कर सकता है। इस अस्तित्वगत विषय पर नई जानकारी पाने के लिए आगे पढ़िए।

अभी पढ़ें

स्त्री

संस्कृति

तमिलनाडु के मंदिरों को अधीनता से मुक्त करो

आज की स्त्री : क्या वास्तव में वह आज़ाद है?

अभी पढ़ें

अभी पढ़ें

ज्ञान-ध्यान

संस्कृति

योगी बनना चाहते हैं? क्या शरीर को लचीला बना लेना काफी होगा?

होली के रंग में रंगकर जानिए उल्लास का महत्व

अभी पढ़ें

अभी पढ़ें

महाभारत

आरोग्य जीवन

सेहत और खुशहाली की संस्कृति विकसित करनी होगी

व्यासजी महाभारत के रचयिता थे या पात्र?

अभी पढ़ें

अभी पढ़ें

अंतर्पथ के राही

राष्ट्र

ईशा ब्रह्मचारी स्वामी विबोधा

सैन्य बल हमारे देश के विकास के लिए क्यों ज़रूरी हैं?

‍

अभी पढ़ें

अभी पढ़ें

घटना क्रम

चर्चा में

कविता 

चर्चा में

घटना क्रम

चर्चा में

महामारी की भेंट :

सद्‌गुरु के साथ ऑनलाइन दीक्षा की शुरुआत

दो कविताएँ : वह परम प्रकाश और कशिश

देवी महिमा : बलशाली को भी नरम कर देती है

‘हठ योग टीचर ट्रेनिंग’ जीवन के हर पहलू को बेहतर बनाने की ट्रेनिंग

अभी पढ़ें

अभी पढ़ें

अभी पढ़ें

अभी पढ़ें

स्वाद और सेहत

घटना क्रम

चर्चा में

योग के संग मिली गुरु-कृपा और फिर बदल गई ज़िंदगी

पिछले माह की गतिविधियाँ


चुकंदर केला स्मूदी और बादाम लड्डू

अभी पढ़ें

अभी पढ़ें

अभी पढ़ें

कैसे और क्यों शुरू हुई भगवान की खोज?

एक साधक सद्‌गुरु से सदियों पुराना सवाल पूछते हैं कि ‘भगवान क्या है?’ सद्‌गुरु का जवाब आपको हैरान कर सकता है। इस अस्तित्वगत विषय पर नई जानकारी पाने के लिए आगे पढ़िए।

प्रश्नकर्ता: भगवान क्या है, हम उसे कैसे देख सकते हैं और कैसे पा सकते हैं?

जेंडर नहीं होने का अर्थ है, एक समस्या कम हुई

सद्‌गुरु: तो, आपने अपने सवाल में भगवान के लिए अंग्रेज़ी के ‘इट’ (It) का प्रयोग किया, ‘ही’ (He) या ‘शी’ (She) का नहीं, इसका मतलब है कि आपने पहले ही तय कर लिया है कि भगवान न तो पुरुष है, न स्त्री। कोई भी व्यक्ति जो अपने धर्म के सिद्धांतों में दृढ़ विश्वास रखता है, वह ईश्वर को इस तरह से जेंडर विहीन कहने पर नाराज़ हो जाएगा। आप मुसीबत में पड़ जाएँगे, लेकिन आपने भगवान का जेंडर खत्म करके मेरे लिए बहुत सारी समस्याएँ हल कर दीं।
पहले तो इंसान के दिमाग में यह भगवान की बात आई क्यों? इस धरती पर करने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन फिर भी लोग लगातार भगवान और स्वर्ग की बात करते रहे हैं। बुनियादी रूप से, भगवान का यह सवाल इसलिए उठा क्योंकि आपके आस-पास की सृष्टि इतनी जटिल और इतनी शानदार है कि स्वाभाविक रूप से यह सवाल उठता है कि यह सब किसने बनाया। भले ही यह सवाल शब्दों में कहा या लिखा न जाए, लेकिन जिस क्षण आप पैदा होते हैं और चारों ओर देखते हैं, यह सवाल तभी से मौजूद होता है। आप लगातार सृष्टि के संपर्क में होते हैं, चाहे आप उसे पसंद करें या न करें, आप उसे सराहें या न सराहें, चाहे आप उसकी सुंदरता का आनंद उठाएँ या न उठाएँ, लेकिन आप उसकी विशालता को अनदेखा नहीं कर सकते। स्वाभाविक रूप से हर मनुष्य के अंदर एक मौन सवाल होता है – ‘यह सब किसने बनाया?’

विज्ञान इस सवाल को और गहरा करता है

विज्ञान और तकनीक के विकास के साथ आज हम कई सारी चीज़ें कर सकते हैं, जिन्हें पच्चीस साल पहले तक भी हम संभव नहीं मानते थे। विज्ञान और तकनीक के विकास से इंसान के अंदर और ज़्यादा स्पष्टता आ जानी चाहिए थी, लेकिन इसका उल्टा हो रहा है। असल में, जीवन के बारे में लोगों के दिमाग में जो निश्चितता थी, वह खत्म हो रही है। जैसे-जैसे विज्ञान प्रगति कर रहा है, वह ये साबित कर रहा है कि आप असल में कुछ नहीं जानते

स्वाभाविक रूप से हर मनुष्य के अंदर एक मौन सवाल होता है – ‘यह सब किसने बनाया?’

‘इन सबको और मुझे किसने बनाया होगा?’ यह एक ऐसा सवाल है जो हमेशा से रहा है, सिर्फ आपके मन में ही नहीं बल्कि आपके शरीर की हर कोशिका में। चाहे आप चेतना में उसे व्यक्त करें या न करें, वह पल भर के लिए भी आपको आराम नहीं करने देगा। यह लगातार आपको आगे धकेलता है और कुछ ऐसा खोजने के लिए उकसाता है जो आपकी समझ और बोध की मौजूदा हदों से परे है। चाहे आप देशों को जीतने की कोशिश कर रहे हों या सिर्फ थोड़ा और पैसा कमाने की, या अपने लिए एक घर बनाने की कोशिश कर रहे हों – लालसा किसी भी तरह अपने जीवन के दायरे को फैलाने की होती है।

भगवान की खोज असल में आती कहाँ से है?

इसके पीछे एक गहरा सवाल है, और आपके भीतर का जीवन लगातार उसका जवाब खोजने की कोशिश कर रहा है। आप दरअसल यह पूछ रहे हैं कि ‘मेरे अस्तित्व की प्रकृति क्या है?’ या, इस सवाल को आम आध्यात्मिक भाषा में कह सकते हैं, ‘मैं कौन हूँ?’ लोग यही सवाल हमेशा से पूछते रहे हैं। क्या किसी और से यह पूछना कि आप कौन हैं, आपको समझदारी लगती है? लेकिन अध्यात्म के नाम पर हर कोई यही कर रहा है। अगर आप अपना स्रोत खोज रहे हैं, तो कोई आपकी मदद नहीं कर सकता। हम आपको अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुना सकते हैं, अगर आप चाहें, लेकिन कहानियाँ आपको हकीकत के एक इंच भी करीब नहीं ले जाएँगी। आप उन कहानियों से अपना मनोरंजन कर सकते हैं। आप उन कहानियों के बारे में पूरे अधिकार से बोल सकते हैं जो आपने पढ़ी हैं। यह दुनिया के सबसे बड़े पेशों में से एक है। लोग बार-बार ऐसी चीजों को दोहराते रहते हैं, जो किसी किताब में लिखी गई थीं। हमारे अंदर यह समझने की बुद्धि क्यों नहीं है कि ये सब हमें सच्चाई के करीब नहीं ले जा रही हैं? यह देखने के लिए किसी आत्मज्ञान की जरूरत नहीं है, इसके लिए बस थोड़ी समझदारी चाहिए। लेकिन यही समस्या है। दुनिया अच्छे लोगों से भरी हुई है, समझदार लोगों से नहीं।

जानने की दिशा में पहला कदम

अगर आप वाकई जवाब ढूँढ़ना चाहते हैं, तो पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम आपको यह उठाना चाहिए कि साफ-साफ यह देखें और स्वीकार करें कि ‘मैं नहीं जानता।’अगर अज्ञानता की पीड़ा आपको चीर रही है, तो ज्ञान दूर नहीं है। मैं आपको भगवान के नारियल होने के बारे में एक लंबी कहानी सुना सकता हूँ, कि किस तरह वह वहाँ ऊपर हैं और मिठास से भरे हुए हैं, अंदर से नर्म और बाहर से कठोर हैं, और भी कई सारी चीज़ें। यह हास्यास्पद लग सकता है, लेकिन मैं इससे भी बढ़िया एक कहानी बना सकता हूँ अगर आप चाहें। अगर मैं आपको भगवान के बारे में एक शानदार कहानी सुनाऊँ, चाहे वह कहानी कितनी भी सुंदर हो, वह आपको हकीकत के एक इंच भी करीब नहीं ले जाएगी। तो आप किस चीज़ की खोज कर रहे हैं? आप मनोरंजन खोज रहे हैं या वाकई जिज्ञासु हैं?




अगर अज्ञानता की पीड़ा आपको चीर रही है, तो ज्ञान दूर नहीं है।

ख़ुद को जानने के लिए सबसे बुनियादी क़दम यह है कि आप खुद को पूरी तरह इसके लिए तैयार करें कि ‘मैं नहीं जानता।’ लोगों ने ‘मैं नहीं जानता’ की विशालता को नहीं पहचाना है। इसकी वजह से वे ‘मैं नहीं जानता’ को ग़लत समझते हैं और फिर कई मूर्खतापूर्ण विश्वासों से जुड़ जाते हैं। अगर आप अपने ‘मैं नहीं जानता’ को गहरा करेंगे, तो ज्ञान बहुत दूर नहीं होगा, क्योंकि आप जो जानना चाहते हैं, वह किसी नारियल के पेड़ पर नहीं लटका हुआ है। भगवान का विचार आपके मन में सिर्फ सृष्टि के स्रोत के रूप में आया है। जब हम सृष्टि कहते हैं, तो हम साफ-साफ भौतिक चीज़ों, जैसे पेड़ों, पशु-पक्षियों, इंसानों, ग्रहों और सितारों की बात करते हैं। तो सृष्टि का कौन सा हिस्सा आपके सबसे क़रीब है? निश्चित रूप से, आप खुद।

भगवान को कहाँ पाएँ?


जब आप पैदा हुए थे, तो आप बहुत छोटे थे। अब आप इतने लंबे और बड़े हो गए हैं। क्या आप खुद को थोड़ा और लंबा और बड़ा करने के लिए हर सप्ताह स्ट्रेचिंग करने जाते थे? नहीं न, फिर ऐसा कैसे हुआ? बेशक आपने कच्चा माल बाहर से डाला होगा, लेकिन सृष्टि का स्रोत आपके अंदर से काम कर रहा है। जिसे आप स्रष्टा या भगवान कहते हैं, वह आपके भीतर से काम करता है। अगर भगवान नारियल के पेड़ पर या स्वर्ग में बैठा होता, तो मैं परवाह नहीं करता। लेकिन जब सृष्टि का स्रोत आपके अंदर बैठा हो और आप उससे चूक जाएँ, तो यह एक त्रासदी है।

हमारी सारी कोशिश किसी तरह यह देखने की है कि लोग इस त्रासदी की वजह खुद न बनें। सृष्टि का स्रोत ही उनके भीतर धड़क रहा है, और वे कभी उस पर ध्यान भी नहीं देते। मैं इस त्रासदी के साथ नहीं जी सकता। अगर आप उसे जानना चाहते हैं, तो आप चीरफाड़ से उसे नहीं जान पाएँगे। इसका तरीका सिर्फ अपने भीतर मुड़ना है क्योंकि अनुभव का आधार आपके भीतर है। जब आपके अनुभव का आधार आपके भीतर है और आप बाहर कुछ करने की कोशिश करते हैं, तो यह ऐसा है जैसे आप अपने कानों से खाने की कोशिश कर रहे हों। आप देखेंगे कि यह कितना मुश्किल है। लेकिन अगर आप इसे सही तरह से करें, तो आप आसानी से इसे कर सकते हैं। आध्यात्मिकता इतनी ही आसान है। आप उसे कहीं बाहर से करने की कोशिश करते हैं, इसीलिए यह इतनी मुश्किल है। अगर आप अपने अंदर मुड़ जाएँ, तो यह सरल और स्वाभाविक है। यही जीवन का तरीका है।

संस्कृति

तमिलनाडु के मंदिरों को अधीनता से मुक्त करो

तमिलनाडु के मंदिरों की उपेक्षा और जीर्णता को देखकर सद्‌गुरु अपनी व्यथा बता रहे हैं। इसकी वजह है कि उन मंदिरों का प्रशासन सरकार के हाथों में है, जबकि उन्हें भक्तों के हाथों में होना चाहिए, जो उनका प्रबंधन बेहतर कर सकते हैं। वह बता रहे हैं कि अब इस दमनकारी उपनिवेशवादी परंपरा को खत्म करने और तमिलनाडु के मंदिरों को मुक्त करने का सही समय आ गया है।

सद्‌गुरु: सन् 1700 में इस देश में आई ईस्ट इंडिया कंपनी ने लोभ और लालच के कारण इस देश के मंदिरों को अपने कब्जे में लेने का फैसला किया। उन्हें इन जगहों की पवित्रता, शक्ति और फायदे में कोई दिलचस्पी नहीं थी, उन्हें तो बस मंदिरों के स्वर्ण, हीरों, पैसों और जमीन में दिलचस्पी थी। मंदिरों को अपने अधिकार में रखने का यह भद्दा सिलसिला दुर्भाग्य से आज़ादी के चौहत्तर सालों बाद भी अब तक चला आ रहा है। यह बहुत दुखद है क्योंकि मंदिर प्रार्थना की जगह नहीं हैं – ये इस समाज की आत्मा हैं। तमिलनाडु में अधिकांश शहरों को मंदिर के चारों ओर बसाया गया था। ऐसा नहीं होता था कि आपने एक शहर बसाया और फिर मंदिर की जरूरत महसूस हुई। पहले मंदिर का निर्माण किया जाता था और फिर उसके चारों तरफ़ शहर बसाया जाता था। इसीलिए उन्हें ‘टेंपल टाउन’ कहते हैं।


अगर इन मंदिरों का संचालन भक्तों के हाथ में होता, तो वे अपनी जान की कीमत पर भी वही करते, जिसे किए जाने की ज़रूरत है।

भक्ति और आध्यात्मिक प्रक्रिया में इतनी डूबी हुई संस्कृति में, दुर्भाग्य से आज भी ये मंदिर दासता, पतन और जीर्णता की हालतों में हैं। अगर वे मंदिरों को ध्वस्त कर देते, तो लोग उन्हें फिर से बना लेते। लेकिन उन्होंने मंदिरों का दम घोंट दिया, धीरे-धीरे उन्हें खत्म करते गए। मैं बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बोल रहा – आप खुद जाकर देख सकते हैं। 17 जुलाई 2020 को, तमिलनाडु सरकार के ‘हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडाउमेंट्स डिपार्टमेंट’ ने मद्रास हाई कोर्ट में यह निवेदन किया कि वे 11,999 मंदिरों में दिन में एक पूजा या अनुष्ठान भी नहीं करवा पा रहे हैं क्योंकि उनके पास पैसा नहीं है।
अगर इन मंदिरों का संचालन भक्तों के हाथ में होता, तो वे अपनी जान की कीमत पर भी वही करते, जिसे किए जाने की ज़रूरत है। दुर्भाग्य से, 37000 से ज्यादा मंदिरों की आय 10,000 रुपये सालाना से भी कम है। इन 37000 मंदिरों में एक से ज्यादा व्यक्तियों की नियुक्ति नहीं हो पा रही है, जो मंदिर में वो चीज़ें कर सके, जो जरूरी हैं। इसका मतलब है कि जो व्यक्ति पूजा करता है, उसे ही मंदिर की सफाई भी करनी है, प्रबंधन भी करना है और बाकी चीज़ें भी करनी है। यह इन मंदिरों की दशा को बताता है। ऐसी व्यवस्था के साथ ये मंदिर अगले सौ सालों तक भी कैसे जीवंत और प्रासंगिक बने रहेंगे? अगर हमने अभी कदम नहीं उठाया तो अगले 50 से 100 सालों में अधिकांश मंदिर नष्ट हो जाएँगे। कृपया मंदिरों को भक्तों को सौंप दीजिए। हम उनका प्रबंधन करेंगे। हम अपनी जान की कीमत पर भी उनकी देखभाल करेंगे।
तमिलनाडु के मंदिरों को मुक्त कीजिए। समाज के लोगों को उनकी देखभाल करने दीजिए। हम देखेंगे कि उनकी व्यवस्था की क्या जटिलताएँ हैं। सबसे पहले सरकार को इन मंदिरों को लोगों के हाथ में सौंपने का इरादा व्यक्त करना चाहिए। यह इस देश में एक मूलभूत अधिकार है कि लोग अपने धार्मिक और आध्यात्मिक मामलों को ख़ुद संभालें और लोग इसे संभालने में सक्षम भी हैं। हर समुदाय के पास यह अधिकार है। हम खुद को एक धर्मनिरपेक्ष देश कहते हैं। मेरी समझ में, धर्मनिरपेक्ष देश का अर्थ है कि धर्म सरकार के साथ नहीं उलझता और सरकार धर्म के साथ नहीं उलझती।

आज की स्त्री

क्या वास्तव में वह आज़ाद है?

ऐसा समझा जाता है कि महिलाओं के पास आज पहले से कहीं ज्यादा आज़ादी है लेकिन क्या वे वास्तव में आज़ाद हैं? कितनी आज़ादी है उनको? असल में कौन सी चीज़ है जो महिलाओं को मनोरंजन की दुनिया में, सोशल मीडिया पर और रोजमर्रा के जीवन में खुद को इस तरह पेश करने के लिए प्रेरित करती है? इन विषयों पर चर्चा के साथ ही सद्‌गुरु बता रहे हैं कि वह एक स्त्रैण गुण क्या है, जिसमें हर इंसान को रूपांतरित करने की शक्ति है।
सद्‌गुरु ने 28 अक्टूबर 2020 को ‘इंटरनेशनल वुमेंस एंट्रप्रेन्योरियल चैलैंज फाउंडेशन’ के वार्षिक पुरस्कार समारोह में जॉर्डन के शाही परिवार की प्रिंसेस नूर बिंत आसिम के साथ एक ऑनलाइन संवाद में इन विषयों पर चर्चा की।

प्रिंसेस नूर बिंत आसिम: सद्‌गुरु, मेरी तेरह साल की बेटी ने आपसे एक सवाल पूछने के लिए कहा है। स्त्री-पुरुष को लेकर सारी कहानियों और सामाजिक प्रभावों को देखते हुए, उसने पूछा है, ‘मुझे यह जानने की उत्सुकता है कि अगर आज युवाओं के लिए एक सलाह आपको देनी हो, तो वह क्या होगी?’

वह जो पहनती है, क्या वह वाकई उसका चुनाव है?

सद्‌गुरु: इसे बहुत बुनियादी शब्दों में सामने रखने के लिए माफ कीजिएगा, लेकिन मैं कहना चाहूँगा कि किसी का लिंग क्या है, यह सिर्फ़ बाथरूम और बेडरूम जैसी कुछ जगहों पर ही मायने रखता है। बाकी जगहों पर आपके लिंग का कोई मतलब नहीं होना चाहिए। हमें इस दुनिया को उस जगह लाने की जरूरत है कि आपके पास किस तरह का शरीर है, उससे किसी को कोई मतलब न हो। उसका महत्व सिर्फ शारीरिक मामलों में ही होना चाहिए। बाकी समय उससे किसी को कोई मतलब नहीं होना चाहिए। महिलाओं को भी ऐसे ही सोचना चाहिए। लेकिन अभी, महिलाएँ, पुरुषों के ख़्वाबों की तस्वीर बनी हुई हैं। हाल में, मुझे किसी संगीतकार से बात करनी थी, तो मैंने यह जानने के लिए उनके वीडियो देखे, कि वे किस तरह का संगीत बना रहे हैं। मुझे यह देखकर दुःख होता है कि महिलाओं को इस तरह पेश किया जाता है। एक संगीतकार मंच पर अंत:वस्त्रों (अंडर गारमेंट्स) में थी। मैंने कहा, ‘संगीतकार अंत:वस्त्रों में क्यों है?’ मुझे बताया गया, ‘सद्‌गुरु, सिर्फ यही बिकता है।’ यह महिलाओं का भयावह शोषण है और दुर्भाग्यवश महिलाएँ इसमें सहयोग कर रही हैं।

महिलाओं के रूप-रंग और शारीरिक छवि को क्या आकार देता है

वह जो चाहे, पहन सकती है, उससे मुझे मतलब नहीं है। लेकिन अगर वह इसे सिर्फ इसलिए पहन रही है क्योंकि यही बिकता है, तो समाज में कुछ गड़बड़ है। वह क्या पहनना चाहती है, यह उसका चुनाव है। लेकिन जब कोई दूसरा उसके चुनाव को तय कर रहा है, तो यह उसका चुनाव बिलकुल भी नहीं है। युवा लड़के-लड़कियों के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि उनका शरीर उनके लिए है। लोगों को आपकी बुद्धिमत्ता, क्षमता और प्रतिभा से मतलब होना चाहिए। सड़क पर चलते हर किसी को आपके शरीर से मतलब नहीं होना चाहिए।
मैं यह तय करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ कि ड्रेस कोड क्या होना चाहिए। एक पुरुष को एक स्त्री का ड्रेस कोड तय नहीं करना चाहिए। अभी ऐसा लगता है कि पुरुष के मन का विकार एक स्त्री का ड्रेस कोड तय कर रहा है। इसे बदलना होगा तभी महिलाएँ आज़ाद होंगी। अब फोकस पुरुष के बाहुबल से उसकी दिमागी क्षमता पर चला गया है। इसी तरह, स्त्री के मामले में भी फोकस उसके शरीर की जगह उसकी दिमागी क्षमता पर जाना चाहिए। अभी महिलाएँ खुद को उस तरह पेश नहीं कर रही हैं, जिस तरह वह वास्तव में हैं, वह ख़ुद को उस तरह पेश कर रही हैं, जिस तरह पुरुष उनसे पेश करने की उम्मीद करता है। महिलाओं को लगता है कि उनसे यही अपेक्षा है।
यह दुनिया में स्त्री-प्रकृति की सुंदरता को नष्ट करने का पक्का तरीका है। अभी लोग पुरुष-प्रकृति को सफलता का आदर्श समझते हैं। अगर आप सफल होना चाहते हैं, तो आपको पुरुष की तरह होना पड़ेगा, आपको अपनी ताकत दिखानी होगी। इस सोच को बदलना होगा। एक तरह से, यह दुनिया में हर चीज़ को आर्थिक इंजिन से चलाए जाने का नतीजा है। जब सिर्फ आर्थिक पहलू मायने रखता हो, तो हर चीज़ बाजार बन जाती है। और बाज़ार में जब आप कम देकर ज्यादा लेते हैं, तो आपको होशियार समझा जाता है और अगर आप ज्यादा देकर कम लेते हैं तो आपको बेवकूफ समझा जाता है।

पूरे समाज में, हर किसी को हर किसी के लिए अपना बेहतरीन करने की कोशिश करनी चाहिए।

स्त्रैण गुण समाज को रूपांतरित कर सकता है

मैंने महिलाओं को कई रूपों में काम करते देखा है – मेरी अपनी माँ, बहनें, और कई बाकी महिलाएँ। जब वे घर पर होती हैं, वे पूरी तरह खुद को समर्पित कर देती हैं क्योंकि वे कुछ ऐसा कर रही होती हैं, जो करना उन्हें पसंद है। वे उन लोगों के लिए कुछ करती हैं, जो उनके लिए मायने रखते हैं, इसलिए उन्हें क्या मिलता है, यह उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं है। यही उनके जीवन को सुंदर बनाता है। यह चीज़ सिर्फ घर पर ही नहीं होनी चाहिए, पूरे समाज में, हर किसी को हर किसी के लिए अपना बेहतरीन करने की कोशिश करनी चाहिए। यही स्त्रैण प्रकृति है।
अभी आप कहीं भी जाएँ, कम देने और ज्यादा लेने की सोच होती है। चाहे वह बाज़ार हो या शादी, यही चीज़ हो रही है और कोई खुश नहीं है। कोई आराम से नहीं रह सकता। हर कोई सारा समय एक-दूसरे से सतर्क रहता है क्योंकि हर जगह एक बाज़ार है। आप जहाँ भी जाएँ, आप बस यह देखते हैं कि आपको फायदा कैसे हो सकता है। इंसान इस तरह खुशहाल नहीं रह सकता है।

सबसे सुंदर चीज़

मैं स्वयंसेवकों के बीच रहता हूँ जो किसी भी स्थिति में हमेशा अपना बेहतरीन देने की कोशिश करते हैं। लोग मुझसे पूछते हैं, ‘सद्‌गुरु आपके जीवन में आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज़ क्या है?’ मैं कहता हूँ, ‘मैंने अपने आस-पास जिस तरह के लोग इकट्ठा किए हैं, जो बिना किसी उम्मीद के अपना जीवन समर्पित करने के लिए तैयार हैं, मेरे जीवन में सबसे खूबसूरत चीज़ यही है।’ क्योंकि दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण यही है।

जब हर जगह एक बाज़ार बन जाती है, तो इसका अर्थ है कि हम हमेशा किसी का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। जब आपका मन एक बाज़ार बन जाता है, तो कोई चेतना, जीवन का कोई सूक्ष्म पहलू नहीं होगा और दुनिया में स्त्रैण-गुण के लिए कोई गुंजाइश नहीं होगी। पुरुष-प्रकृति हावी होगी। फिर सिर्फ जीत और शोषण होगा। इसमें प्यार, समावेश या जीवन के साथ जुड़ाव नहीं होगा। जब जीवन के साथ कोई बेलगाम जुड़ाव नहीं होगा, तो कोई जीवन नहीं होगा। आप जीवन को सिर्फ जुड़ाव के साथ ही जान सकते हैं। कोई दूसरा तरीका नहीं है।

योग और ज्ञान

योगी बनना चाहते हैं? क्या शरीर को लचीला बना लेना काफी होगा?

क्या लचीलापन अधिक होना भी नुक़सानदायक होता है? ईशा हठ योग शिक्षकों के नए बैच को संबोधित करते हुए सद्‌गुरु ने योग में लचीलेपन की भूमिका पर चर्चा की।

सद्‌गुरु: दुनिया में अधिकांश लोगों के लिए, ‘योग’ का मतलब अंगों को मोड़ना-मरोड़ना है। योग का मतलब मोड़ना, मरोड़ना या सिर के बल खड़ा हो जाना नहीं है। मनुष्य की अस्थि पंजर प्रणाली इस प्रकार से बनी है कि अलग-अलग हड्डियाँ, नसों, मांसपेशियों और लिगामेंट्स से एक साथ जुड़ी हैं। तो हम इन तन्तुओं को खींचते क्यों हैं? अगर आपकी मांसपेशियाँ बहुत उभर जाती हैं, तो आप अपंग हो सकते हैं। विकलांगता सिर्फ शरीर में ही नहीं, बल्कि मन में भी होती है। जिमनास्टिक या एक्रोबेटिक्स करने से आप योगी नहीं बन जाएँगे। स्ट्रेचिंग से आप सिर्फ अपने शरीर के कुछ तारों को खींचकर इस क़ाबिल बना सकते हैं कि आपके हाथ-पैर वहाँ तक पहुँच जाएँ जहाँ तक आप उन्हें ले जाना चाहते हैं।
योग का मतलब अपने हाथ-पैरों को वहाँ ले जाना नहीं है, जहाँ आप चाहते हैं; योग का मतलब है ख़ुद को वहाँ ले जाना, जहाँ आप चाहते हैं। यह एक बड़ा अंतर है। तो सवाल है कि फिर हम स्ट्रेचिंग और टर्निंग क्यों करते हैं, अगर योग का उससे कोई संबंध नहीं है? देखिए, मेरे अनुभव में तो सिर्फ एक ही योगी हैं – आदियोगी, शिव। आपको अपने शरीर को उस योगी के लिए एक आमंत्रण बनाना है ताकि वह इसमें उतर सकें। आप मोड़ते और मरोड़ते हुए योगी नहीं बनेंगे, लेकिन आप अपने शरीर को एक आमंत्रण बना सकते हैं, जिसे वो इंकार न कर सकें। इसे संभव करने के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया है। आपके हर पहलू को इसमें शामिल होना होगा।

योग का मतलब अपने हाथ-पैरों को वहाँ ले जाना नहीं है, जहाँ आप चाहते हैं; योग का मतलब है ख़ुद को वहाँ ले जाना, जहाँ आप चाहते हैं।

अपनी मांसपेशियों और लिगामेंट्स को स्ट्रेच करने या हड्डियों को मरोड़ने से काम नहीं बनेगा। उसे तो सर्जरी या शरीर में कुछ और हेरफेर करके भी किया जा सकता है, लेकिन वह महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि आप सिर्फ एक शरीर नहीं हैं। आप शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और ऊर्जा से जुड़ी प्रक्रियाओं का मेल हैं। ये सभी प्रक्रियाएँ चेतना से चलती हैं। एक आमंत्रण बनने के लिए, आपको हर स्तर पर खुद को अनुकूल बनाना होगा। जो जीवन आप हैं, उसे इच्छुक बनना होगा। सिर्फ मोड़ने-मरोड़ने, जिमनास्टिक करने या अपने शरीर को स्ट्रेच करने से कुछ फायदे हो सकते हैं या कई बार कुछ नुकसान भी हो सकता है।
कई खिलाड़ी जो इस प्रकार से खुद को स्ट्रेच करते हैं, वे जब जवान होते हैं और खेल रहे होते हैं, तब शानदार दिखते हैं। लेकिन जब तक वे चालीस से पैंतालीस साल के होते हैं, वे बेकार हो जाते हैं। उन्हें न जाने कितनी सर्जरी करानी पड़ती हैं। कई एथलीट जल्दी मर जाते हैं। ऐसा सिर्फ इसलिए होता है क्योंकि वे शरीर को इस तरह से स्ट्रेच करते हैं जो शरीर के अनुकूल नहीं होता। हो सकता है कि वे गोल्ड मेडल जीत जाएँ, लेकिन उससे कोई मकसद हल नहीं होता। मैं कई सारे चैंपियन्स से मिला हूँ। उनके अंदर असुरक्षा का जो स्तर है, उनके रोजमर्रा के जो संघर्ष हैं, वे वाक़ई हैरान करने वाले हैं। खिलाड़ियों को तो खुशमिजाज होना चाहिए – क्योंकि वे तो खेल रहे हैं। लेकिन अगर आप उनकी निजी ज़िन्दगी को देखें, तो आप पाएँगे कि बहुत कम लोग अपनी कामयाबी का आनंद ले रहे हैं और अच्छा जीवन जी रहे हैं, बाकी सभी भारी तनाव में जी रहे हैं।
ऐसा इसलिए है क्योंकि सिर्फ शरीर या किसी एक कौशल को विकसित करके जीवन को अनुकूल नहीं बनाया जा सकता। यह महत्वपूर्ण है कि सभी पहलुओं पर ठीक से ध्यान दिया जाए। अगर आप एक योगी बनना चाहते हैं, तो सिर्फ जोड़ों को मोड़ना काफी नहीं है। हम आपके कैल्शियम से भरे अस्थि पंजर को तोड़ना नहीं चाहते, लेकिन हम आपके अंदर उन पहलुओं को झुकाना, मोड़ना चाहते हैं, जो हड्डियों से ज्यादा सख्त हैं। अगर आपके ये पहलू लचीले हो जाएँ, फिर आप एक आमंत्रण बन जाते हैं। उसके लिए आपको जाकर किसी मंदिर में बैठने की जरूरत नहीं है। आप जहाँ भी हों, यह गुण हमेशा मौजूद होता है। यही योगी बनना है।

1 of 19
Share
Project
Current Page
Share
Tweet
Pin
Linkedin
Isha Foundation
ईशा लहर मार्च 2021
1
2
3
4
5
6
7
8
9
10
11
12
13
14
15
16
17
18
19