कोमलता का प्रतीक
पार्वती एक बच्चे को जन्म देकर माँ बनने की तृप्ति पाने के लिए बेचैन थीं। जब शिव ने यह देखा तो, हालांकि उनकी कामुकता कभी पार्वती के लिए नहीं उभरती थी, उनकी करुणा उमड़ पड़ी और वह बोले, ‘देखो, चाहे तुम्हारे पास एक बच्चा हो या 1000 बच्चे, फिर भी तुम्हें पूर्णता नहीं मिलेगी। अपनी लैंगिक प्रवृत्तियों पर मत जाओ, वह एक सीमित संभावना है। अपने जीवन को इस तरह बर्बाद मत करो। एक और रास्ता है। मैं तुम्हें सिखाता हूँ कि तुम कैसे पूर्णता पा सकती हो।’ फिर उन्होंने योग शिक्षा की प्रणाली, ‘शिव-सूत्र’ को प्रकट किया।
योग के विज्ञान को सिखाने के दो तरीके हैं। अगर आपके सामने बैठे व्यक्ति के अंदर थोड़ा प्रतिरोध है, तो आपको उसके प्रतिरोध की दीवारों को तोड़ते हुए उसे एक प्रकार से सिखाना होगा। अगर उसे प्राप्त करने वाला व्यक्ति आपके साथ अंतरंग है, तो आप दूसरे तरीके से उसे सिखा सकते हैं। अंतरंगता को कामुकता समझने की जरूरत नहीं है, इसका मतलब दरअसल यह है कि जिसका हृदय आपके लिए पूरी तरह खुला है।
शिव और पार्वती के बीच एक अंतरंगता थी, तो उन्होंने पार्वती से कहा, ‘देवी, आप आकर मेरी गोद में बैठिए, मैं आपको तरीका सिखाता हूं।’ फिर उन्होंने सबसे कोमल तरीके से उन्हें बताया, जिसकी आप कल्पना कर सकते हैं। उन्होंने पार्वती को, ‘उज्जवल,’ ‘कोमल,’ और ‘सुंदर’ कहा। यह लुभाना नहीं था बल्कि ऐसी अंतरंगता विकसित करने का तरीका था, जहाँ वह प्रतिरोध से पूरी तरह मुक्त हों, ताकि शिव में जो कुछ है, वह उन तक पहुँचा सकें। जब देवी तैयार हुईं, तो वह उन्हें अपने करीब, और ज्यादा करीब ले आए, इस हद तक कि वह उनका एक हिस्सा बन गईं। किसी को अपना एक हिस्सा बनाने के लिए, आपको अपना एक हिस्सा हटाने के लिए तैयार रहना चाहिए। तो, उन्होंने पार्वती को अपना एक हिस्सा बना लिया और अर्धनारीश्वर बन गए – आधे पुरुष, आधे स्त्री।
शिव को पौरुष के परम प्रतीक के रूप में देखा जाता है, लेकिन वह आधे स्त्री भी हैं क्योंकि कोई भी पुरुष अपने स्त्रैण भाग को जाने बिना संपूर्ण नहीं है। फिर शिव ने कई सुंदर और अंतरंग तरीकों से पार्वती को आत्मज्ञान का मार्ग बताया। देवी ने पूर्ण आत्मज्ञान पा लिया और दोनों परमानंद में नाचने लगे।