फ़रवरी 2021

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मर्जी आपकी

एक जुनून, आपके,
आपके और सिर्फ़ आपके लिए।
यह जुनून हर व्यक्ति और
हर वस्तु के लिए
जो नहीं थमता कभी।

एक प्रवाहपूर्ण जीवन और प्रेम
ले जाता है जीवन को
ज़रूरत और इच्छाओं से परे
और बना देता है इसे
एक प्रेम प्रसंग
आप बनाते हैं इसे
एक मंद बयार या फिर एक चीत्कार
यह आपकी मर्जी ।

क्या आप होंगे सवार
जीवन की इस शानदार लहर पर,
या खुद को घिसते रहेंगे
अंतहीन इच्छाओं के चक्रव्यूह में ।

सद्‌गुरु

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इस अंक में पढ़ें

मुख्य चर्चा

शिव के विरोधाभास

परम योगी के अनंत पहलू

महाशिवरात्रि काफ़ी क़रीब है। शिव हैं कौन? सद्‌गुरु शिव के अस्तित्वगत रूप और साथ ही पारंपरिक कहानियों में वर्णित योगी के बारे में बता रहे हैं। उनकी शख्सियत के विरोधाभासी पहलू आपको चकित कर सकते हैं और आपको सोचने पर मजबूर कर सकते हैं कि क्या वास्तव में ये सब एक ही प्राणी हैं? हाँ, और यह कोई संयोग नहीं है। सद्‌गुरु से शिव की कहानियाँ सुनिए।

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ज्ञान-ध्यान

जीवन रहस्य

प्रकृति की लय के साथ तालमेल कैसे बनाएं?

महाशिवरात्रि का लाभ आप कैसे उठा सकते हैं ?

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आरोग्य जीवन

ज्ञान-ध्यान

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रुद्राक्ष दीक्षा – आदियोगी शिव की कृपा पाने का तरीका

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महाभारत

ओजस – अच्छी सेहत और लंबी उम्र का राज

जीवन की मिठास के लिए सृष्टि से जुड़ना होगा

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चर्चा में 

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सत्य पॉल

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शिक्षा-दीक्षा

घटना क्रम

निखरा जीवन

ईशा विद्या – ग्रामीण बच्चों के सपनों को साकार करने की कोशिश

‘ईशा फॉरेस्ट फ्लावर’ के 25 साल

कैसे हुई शुरुआत?

हम भारत को फिर से भव्य भारत कैसे बना सकते हैं?

घटना क्रम: पिछले माह की गतिविधियाँ

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तस्वीरों में

स्वाद और सेहत

आदियोगी की मौजूदगी में सप्तऋषि आरती

ईशा योग केंद्र में पोंगल 2021 उत्सव

तईपुसम 2021 देवी का उत्सव मनाने का दिन

मेवा कद्दू करी

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शिव के विरोधाभास

परम योगी के अनंत पहलू

महाशिवरात्रि काफ़ी क़रीब है। शिव हैं कौन? सद्‌गुरु शिव के अस्तित्वगत रूप और साथ ही पारंपरिक कहानियों में वर्णित योगी के बारे में बता रहे हैं। उनकी शख्सियत के विरोधाभासी पहलू आपको चकित कर सकते हैं और आपको सोचने पर मजबूर कर सकते हैं कि क्या वास्तव में ये सब एक ही प्राणी हैं? हाँ, और यह कोई संयोग नहीं है। सद्‌गुरु से शिव की कहानियाँ सुनिए।

सद्‌गुरु: ‘शिव’ शब्द का अर्थ है, ‘वह जो नहीं है’। सृष्टि का अर्थ है, जो है। जो है, वह हमेशा सीमाओं से घिरा होता है। सिर्फ वह, जो नहीं है, असीम हो सकता है। जिसे आप विशाल आकाशगंगाओं के रूप में देखते हैं, वे भी शून्यता के विशाल आकाश में नन्हें-नन्हें कण हैं। इस असीम खालीपन की गोद में सृष्टि की रचना हुई। सृष्टि की एक शुरुआत और अंत है, लेकिन यह विशाल शून्यता, जिसे हम शिव कहते हैं, हर चीज़ का स्रोत है। इसी से हर चीज़ निकलती है, और वापस इसी में समा जाती है।

अस्तित्व के इस निराकार, असीम मूल को शिव कहा जाता है। लेकिन मानव की बोध-क्षमता, किसी निश्चित रूप और आकार तक सीमित है, इसलिए हमने शिव के लिए कई अद्भुत रूप बनाए। गूढ़, बोध से परे ईश्वर, शुभ शंभो, बहुत ही सरल - भोले, वेदों-शास्त्रों और तंत्रों के महान गुरु दक्षिणमूर्ति, आसानी से माफ कर देने वाले आशुतोष, सृजन के खून से रंगे भैरव, पूर्ण शांत अचलेश्वर, सबसे शानदार नर्तक नटराज। वह सबसे सुंदर और साथ ही सबसे भयानक भी हैं। वह सबसे शानदार हैं तो सबसे असहनीय भी हैं। जीवन के एकदम विरोधाभासी पहलुओं को शिव की शख्सियत में शामिल किया गया है।

परम बोध में स्थित, पर हैं भोलेनाथ

कहा जाता है कि शिव को जीवन का उच्चतम बोध है। वह पहले योगी, आदियोगी हैं जिन्होंने मानव जाति को योग का विज्ञान दिया। लेकिन साथ ही वह बहुत ही भोले हो सकते हैं और मुश्किल हालात से उन्हें निकालने के लिए किसी और की जरूरत हो सकती है

सर्वश्रेष्ठ गुरु

आदियोगी शिव ने बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से सात ऋषियों को योग सिखाया, जिन्हें हम सप्तऋषि के नाम से जानते हैं। उन्होंने 112 अलग-अलग तरीके बताए, जिनसे एक मनुष्य अपनी चरम प्रकृति को पा सकता है। उन्होंने मानव ज्यामिति और ब्रह्मांडीय ज्यामिति की जटिलताओं को समझाया। सप्तऋषियों को सिखाने की इस प्रक्रिया में बहुत ज्यादा मात्रा में सीखना, समझना और अनुभव करना शामिल था। जब उनकी शिक्षा चल रही थी, देवी पार्वती खुद अपने आत्मज्ञान से परमानंद में थीं लेकिन फिर भी उन्हें इस बात की जिज्ञासा थी कि वह सप्तऋषियों को क्या बता रहे हैं। उनके पास अनुभव की मिठास तो थी, लेकिन उनके पास समझ नहीं थी। इसलिए वह उस बौद्धिक चर्चा में दिलचस्पी लेना चाहती थीं, जो इन सात ऋषियों के साथ हो रही थी। जब शिव ने कहा कि सिर्फ 112 द्वार हैं, जिन्हें आप अपने अंदर खोलकर परम तत्व तक पहुंच सकते हैं, तो पार्वती इस शिक्षा के बीच में कूद पड़ीं और बोलीं, ‘सिर्फ 112 क्यों? और भी होंगे।’

शिव ने, जिनका ध्यान पूरी तरह अपने काम पर केंद्रित था, उनसे रुखेपन से कहा, ‘सिर्फ 112 तरीके हैं।’ पार्वती ने इसे अपना अपमान समझा कि उन्होंने सात ऋषियों के सामने ऐसा कहा। वह बोलीं, ‘जरूर और होंगे, हो सकता है आपको नहीं पता हो।’ वह बोले, ‘अगर तुम चाहो तो जाकर पता लगा लो।’ फिर वह चली गईं और कठोर तपस्या करने लगीं।

बारह सालों की खोज के बाद, वह वापस आईं। शिव अब भी सात ऋषियों के साथ इस प्रक्रिया में लगे थे। हालांकि वह पत्नी के रूप में आकर उनके बगल में बैठ सकती थीं, लेकिन वह उनसे थोड़ा नीचे बैठीं, सिर्फ उन्हें यह जताने के लिए कि वह असफल रही हैं। लेकिन वह यह नहीं चाहती थीं कि सप्तऋषियों को यह बात पता चले। यह उन दोनों के बीच की बात थी। आदियोगी ने उन्हें देखा और ऊर्जा की एक चरम स्थिति में पहुँच गए, जहाँ ये 112 तरीके उनके आस-पास भौतिक रूप में अभिव्यक्त हो रहे थे। यह देवी पार्वती के सामने सबसे भव्य क्षण था।


उल्टा पड़ गया वरदान

बहुत से लोगों को शिव से अद्भुत वरदान मिले। दुनिया को ऐसा लग सकता है कि ये लोग उस लायक नहीं थे, जो शिव ने उन्हें दिया। लेकिन शिव ने कभी ऐसी कोई राय कायम नहीं की। जिसने जो मांगा, शिव ने दे दिया। भस्मासुर दुनिया पर राज करना चाहता था। उसने शिव से ऐसी शक्ति मांगी कि वह जिसके सिर पर हाथ रखे वह भस्म हो जाए, उसका विनाश हो जाए। शिव ने कहा, ‘तथास्तु (ऐसा ही हो)’। फिर भस्मासुर ने वरदान की परीक्षा लेने के लिए शिव के सिर पर अपना हाथ रखना चाहा। शिव उठकर भागे। सभी सांसारिक समस्याओं के लिए हमेशा की तरह, उन्होंने विष्णु से सलाह मांगी कि क्या करना चाहिए। विष्णु बोले, ‘ठहरिए।’ उन्होंने खुद को एक आकर्षक स्त्री, मोहिनी में बदल लिया। वह आकर भस्मासुर के सामने नृत्य करने लगे। भस्मासुर शिव को भूलकर इस स्त्री के पीछे भागने लगा। वह बोली, ‘तुम्हें मेरी तरह नृत्य करना पड़ेगा – फिर मैं तुम्हारी हो जाऊँगी।’ वह बोला, ‘ठीक है।’ उसने जो भी किया, वह वैसे ही करने लगा। आखिरकार, मोहिनी ने अपने सिर पर अपना हाथ रखा। भस्मासुर ने भी ऐसा ही किया और राख हो गया।

भयानक और सुंदर

पार्वती के साथ अपनी शादी के दौरान, शिव ने अपने दो रूप प्रकट किए – एक भयानक और दूसरा बहुत ही खूबसूरत।

सद्‌गुरु: जब पर्वतराज ने अपनी बेटी पार्वती की शादी की घोषणा की तो उस इलाके में जो भी ख़ास लोग थे, वे उस भव्य शादी के लिए पहुँचे। भारत में परंपरा है कि दूल्हा घोड़े पर बैठकर, पूरी तरह सजा हुआ, गहनों और धन का प्रदर्शन करते हुए आता है। लेकिन यहाँ जब शिव आए, तो उनकी आँखें चढ़ी हुई थीं, वह नशे में चूर थे, एक ताज़ा मरे हुए हाथी की ख़ाल पहने हुए थे, जिससे खून टपक रहा था, वह सिर से पाँव तक राख में लिपटे हुए थे, और बालों में जटाएँ बनी हुई थीं। वह काफी भयानक लग रहे थे। उनके साथ उनके दोस्त, गण थे, जिनमें से किसी का रूप इंसान जैसा नहीं था और वे ऐसी भाषा में बात कर रहे थे, जो शोर की तरह लग रहा था।

हर कोई यह देखकर एकदम हक्का-बक्का रह गया, ‘क्या यही राजकुमारी का दूल्हा है?’ पार्वती की माँ मैना ने उनसे पूछा, ‘क्या यही वह आदमी है?’ वह बोली, ‘हाँ, यही मेरे प्रभु हैं।’ मैना बेहोश हो गईं। जब वह होश में आईं, तो पार्वती को पकड़कर बोलीं, ‘इस आदमी से शादी मत करो। अगर तुम ऐसा करोगी, तो मैं अपनी जान दे दूँगी।’

फिर पार्वती शिव के पास गईं और उनसे प्रार्थना की, ‘आपने मुझे अपने अलग-अलग रूप दिखाए हैं। मुझे आपके किसी भी रूप से कोई परेशानी नहीं है। शादी होने के बाद, आप जैसे हैं, मैं उसके साथ रह लूँगी। लेकिन सिर्फ इस शादी के लिए, मेरी माँ के लिए, कृपया एक सुंदर रूप धर लीजिए।’ शिव ने नशे से खुद को निकाला और खुद को ऐसे रूप में बदल लिया, जिसे आज सुंदरमूर्ति या सुंदरेश कहा जाता है। वह पौरुष के शानदार रूप बन गए। वह सुगंधित फूलों से सजे खड़े थे, सबसे सुंदर पुरुष, जिसकी आप कल्पना कर सकते हैं। पार्वती की माँ इस पुरुष पर मुग्ध हो गईं और फिर वे शादी के लिए बैठे।



प्रचंड गुस्सा और कोमल प्रेम

कुछ कहानियाँ शिव की निर्मम हिंसा और साथ ही उनके सबसे नाजुक, प्रेममय पक्ष को दर्शाती हैं।


वीरभद्र का जन्म


सद्‌गुरु: एक बार किसी ने शिव को हद से ज़्यादा उकसा दिया। अगर आप उतने उकसाने पर भी कुछ नहीं करते, तो यह शांति का सवाल नहीं होता, यह आपके अंदर गरिमा और निष्ठा की कमी की बात होती है। तो, शिव ने सबसे हिंसक रूप में जवाब दिया। ऐसा तब हुआ, जब शिव की पहली पत्नी, सती, के पिता ने उन्हें एक प्रकार की शर्मिंदगी की स्थिति में डाल दिया था। एक बड़ा यज्ञ हो रहा था और उसमें बहुत से लोग मौजूद थे। अपना अपमान सहने में असमर्थ रहने पर सती ने वहीं आग में कूदकर अपनी जान दे दी। जब शिव ने यह सुना, तो वह इतने क्रोधित हो गए कि उन्होंने अपनी एक जटा तोड़ी, उसे पत्थर पर पटका और उससे भीषण हिंसक प्राणी – वीरभद्र को पैदा किया।

शिव ने वीरभद्र से कहा, ‘जाओ, जो भी इसका जिम्मेदार है, उसे जीवित नहीं बचना चाहिए।’ वीरभद्र ने जाकर सती के पिता दक्ष को मार डाला। उसने सारे यज्ञ को तहस-नहस कर दिया और कहा जाता है कि उसने कुछ ही घंटों में हज़ारों लोगों को मार डाला।

वीर का अर्थ है, बहादुर या साहसी। वीर शब्द वीर्य से बना है। वीर्य का अर्थ है, वह बीज जिससे मनुष्य पैदा होता है। शिव के जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि उन्होंने कभी अपना वीर्य बाहर नहीं निकाला। शरीर में मौजूद मूलभूत जीवन ऊर्जा को भौतिक रूप से प्रजनन के लिए इस्तेमाल करने के बजाय, उन्होंने उसी ऊर्जा का इस्तेमाल चेतना के चरम पर पहुँचने के लिए किया। वीरभद्र की कहानी आपको यह बताने की कोशिश करती है कि शिव ने अपने सिर के ऊपर से अपने वीर्य को निकाला, इसलिए उनका बाल इतना शक्तिशाली है कि सिर्फ एक तार ही एक पूरी सेना को नष्ट कर सकता है।

कोमलता का प्रतीक

पार्वती एक बच्चे को जन्म देकर माँ बनने की तृप्ति पाने के लिए बेचैन थीं। जब शिव ने यह देखा तो, हालांकि उनकी कामुकता कभी पार्वती के लिए नहीं उभरती थी, उनकी करुणा उमड़ पड़ी और वह बोले, ‘देखो, चाहे तुम्हारे पास एक बच्चा हो या 1000 बच्चे, फिर भी तुम्हें पूर्णता नहीं मिलेगी। अपनी लैंगिक प्रवृत्तियों पर मत जाओ, वह एक सीमित संभावना है। अपने जीवन को इस तरह बर्बाद मत करो। एक और रास्ता है। मैं तुम्हें सिखाता हूँ कि तुम कैसे पूर्णता पा सकती हो।’ फिर उन्होंने योग शिक्षा की प्रणाली, ‘शिव-सूत्र’ को प्रकट किया।

योग के विज्ञान को सिखाने के दो तरीके हैं। अगर आपके सामने बैठे व्यक्ति के अंदर थोड़ा प्रतिरोध है, तो आपको उसके प्रतिरोध की दीवारों को तोड़ते हुए उसे एक प्रकार से सिखाना होगा। अगर उसे प्राप्त करने वाला व्यक्ति आपके साथ अंतरंग है, तो आप दूसरे तरीके से उसे सिखा सकते हैं। अंतरंगता को कामुकता समझने की जरूरत नहीं है, इसका मतलब दरअसल यह है कि जिसका हृदय आपके लिए पूरी तरह खुला है।

शिव और पार्वती के बीच एक अंतरंगता थी, तो उन्होंने पार्वती से कहा, ‘देवी, आप आकर मेरी गोद में बैठिए, मैं आपको तरीका सिखाता हूं।’ फिर उन्होंने सबसे कोमल तरीके से उन्हें बताया, जिसकी आप कल्पना कर सकते हैं। उन्होंने पार्वती को, ‘उज्जवल,’ ‘कोमल,’ और ‘सुंदर’ कहा। यह लुभाना नहीं था बल्कि ऐसी अंतरंगता विकसित करने का तरीका था, जहाँ वह प्रतिरोध से पूरी तरह मुक्त हों, ताकि शिव में जो कुछ है, वह उन तक पहुँचा सकें। जब देवी तैयार हुईं, तो वह उन्हें अपने करीब, और ज्यादा करीब ले आए, इस हद तक कि वह उनका एक हिस्सा बन गईं। किसी को अपना एक हिस्सा बनाने के लिए, आपको अपना एक हिस्सा हटाने के लिए तैयार रहना चाहिए। तो, उन्होंने पार्वती को अपना एक हिस्सा बना लिया और अर्धनारीश्वर बन गए – आधे पुरुष, आधे स्त्री।

शिव को पौरुष के परम प्रतीक के रूप में देखा जाता है, लेकिन वह आधे स्त्री भी हैं क्योंकि कोई भी पुरुष अपने स्त्रैण भाग को जाने बिना संपूर्ण नहीं है। फिर शिव ने कई सुंदर और अंतरंग तरीकों से पार्वती को आत्मज्ञान का मार्ग बताया। देवी ने पूर्ण आत्मज्ञान पा लिया और दोनों परमानंद में नाचने लगे।

आम तौर पर, दुनिया के अधिकांश हिस्सों में, लोग जिसे भी ईश्वरीय या देव-तुल्य मानते हैं, उसे अच्छा ही होना होता है। लेकिन आप शिव की पहचान एक अच्छे व्यक्ति या बुरे व्यक्ति के रूप में नहीं कर सकते। वह सब कुछ हैं – सबसे बेहतर और सबसे बदतर। तथाकथित सभ्यता ने शिव के बारे में उन सभी हजम न होने वाली कहानियों को सुविधाजनक तरीके से नष्ट कर दिया है, लेकिन शिव का सार तत्व यही है। अस्तित्व के सभी गुण एक ही व्यक्ति में समा गए हैं क्योंकि अगर आप इस एक प्राणी को स्वीकार कर सकते हैं, तो आपने खुद जीवन को पार कर लिया है। हमारे जीवन में सारा संघर्ष यही है कि हम हमेशा यही चुनने की कोशिश करते हैं कि क्या सुंदर है और क्या नहीं, क्या अच्छा है और क्या बुरा। आपको किसी से कोई समस्या नहीं होगी, अगर आप इस एक व्यक्ति को स्वीकार कर लें, जो हर उस चीज़ का एक जटिल मिश्रण है, जो जीवन हो सकता है।



प्रकृति की लय के साथ तालमेल कैसे बनाएं?

लय हर चीज़ को चलाती है... आप चाहें या नहीं, जैसा कि सद्‌गुरु अपनी युवावस्था की एक प्यारी कहानी के साथ बता रहे हैं। वह समझाते हैं कि लगभग हर चीज़ में लय क्यों है और किस तरह अलग-अलग तरह की लय अस्तित्व के हर पहलू से गुज़रती है, जिसमें हम खुद भी शामिल हैं। सद्‌गुरु की लय की खोज उसकी परतों पर ही खत्म नहीं होती, बल्कि उसके मूल तक जाती है।

प्रश्नकर्ता: सद्‌गुरु, क्या आप प्रकृति की लय के साथ तालमेल में होने के बारे में कुछ बता सकते हैं?

सद्‌गुरु: अगर आप ध्यान से सुनें, तो अस्तित्व की लगभग हर चीज़ में एक लय है। उदाहरण के लिए, आप बहते पानी की आवाज़ सुनें, तो शुरू में वह सिर्फ एक ध्वनि की तरह लगती है, लेकिन अगर आप ध्यान से सुनें, तो इसमें एक लय है। आस-पास भिनभिनाते कीड़े-मकोड़ों की भी एक लय है। यहां तक कि हाइवे के शोर में भी एक लय है। कोई भी चीज़, चाहे कैसी भी ध्वनि निकाल रही हो, उसमें एक प्रकार की लय होती है। आप जो भी आवाज़ सुनते हैं, अगर उसमें एक लय है, तो निश्चित रूप से उस कंपन में भी एक लय होगी, जो उस ध्वनि को पैदा कर रही है। अगर कंपन में लय है तो निश्चित रूप से उस पदार्थ में भी लय होगी जो कंपन पैदा कर रहा है। और अगर कंपन पैदा करने वाले पदार्थ में एक लय है, तो उस पदार्थ के स्रोत में भी लय होगी।


सद्गुरु की माता सुशीला वासुदेव

होंठों पर गीत

सवाल यह है आप किस लय में हैं। संगीत अलग-अलग रूपों में होता है। हमारे घर में ऐसा होता था, मेरी माँ एक अच्छी गायिका थीं, और वह वीणा बजाती थीं। आप हर समय उन्हें गाते हुए सुन सकते थे। वह बहुत बोलने वाली महिला नहीं थीं। वह अपने तरीके से बहुत संकोची और विनम्र थीं। आप शायद ही उनकी मौजूदगी को महसूस कर पाते, क्योंकि वह बहुत मुखर नहीं थीं। वह सिर्फ उतना करती थीं, जितना उन्हें करने की जरूरत थी। उन दिनों टेप रिकॉर्डर, सीडी प्लेयर या आई पॉड नहीं होते थे। यहां तक कि रेडियो भी एक बड़ा डिब्बा होता था, जिसे आप अपने साथ ढो नहीं सकते थे।

अगर कोई गा सकता था, तो यह बहुत बड़ा गुण होता था। अगर आप किसी घर में लोगों से मिलते थे, तो चाहे वह औपचारिक पार्टी हो, पारिवारिक समारोह हो या यूँ ही किसी से मुलाकात, अगर वे जानते कि आप गा सकते हैं, तो वे आपको गाने के लिए ज़रूर कहते। हम जहाँ भी जाते, अगर कोई मेरी माँ से अनुरोध करता, तो वह बिना किसी हिचकिचाहट के गा देतीं। वह बहुत चुप रहने वाली इंसान थीं, जो हमेशा पीछे रहती थीं। लेकिन जब संगीत की बारी आती थी, तो उन्हें किसी के प्रोत्साहन की जरूरत नहीं पड़ती थी। अगर लोग सुनना चाहते, तो वह गा देतीं। अगर कोई आस-पास नहीं होता, तो वह हमेशा गाती रहतीं।

संगीत जो झूमने पर मजबूर कर दे

कर्नाटक संगीत हमारे जीवन का एक हिस्सा था। मेरे पिता कर्नाटक संगीत को बहुत पसंद करते थे। लेकिन हम ‘रोलिंग स्टोन्स’ सुनते हुए बड़े हुए। वह उसे बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। जब वह आस-पास नहीं होते थे, तो हमें रेडियो पर अपना समय मिल जाता था। उन दिनों भारत में सबसे भरोसेमंद रेडियो स्टेशन ‘रेडियो ऑस्ट्रेलिया’ था, और उस पर आप अंग्रेज़ी संगीत सुन सकते थे। हम उस पश्चिमी संगीत को सुनना चाहते थे जो हमारे शरीर को हिला दे। वे चाहते थे कि हम कर्नाटक संगीत सुनें, जो उस समय हम बर्दाश्त नहीं कर पाते थे।

मेरे पिता अखबार या कोई किताब पढ़ रहे होते तो हम धीरे से पश्चिमी संगीत चला लेते थे। वह खबरों में या अपनी किताब में बहुत ज्यादा डूबे हुए होते थे और हम धीरे से वॉल्यूम बढ़ा देते। हम जानते थे कि उन्हें इस संगीत से नफरत थी, लेकिन उनके पाँव थाप देने लगते थे। हम तुरंत उन्हें पकड़ लेते और कहते, ‘अपने पाँवों को देखिए – आपको यह संगीत अच्छा लग रहा है।’ वह कहते, ‘कमबख्त संगीत – बंद करो इसे।’ हम कहते, ‘नहीं, आपको यह अच्छा लगता है। आप हमसे झूठ बोल रहे हैं।’ क्योंकि अनजाने में उनके पैर थिरकने लगते थे। इस लय की प्रकृति ऐसी है कि शरीर हिलने लगता है। लेकिन अगर आप दूसरी तरह का संगीत सुनें, तो आपका शरीर स्थिर हो जाएगा।

ध्रुपद के प्रमुख, गुंडेचा ब्रदर्स, ईशा योग केंद्र में महाशिवरात्रि 2009 के दौरान प्रदर्शन करते हुए।

संगीत जो स्थिरता लाए

आपको ध्रुपद संगीत सुनना चाहिए। ध्रुपद में, वे आम तौर पर शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते, सिर्फ एक आलाप ‘आऽऽ…’ लगातार करते हैं। वे घंटों तक सिर्फ एक ध्वनि निकाल सकते हैं। अगर आप ध्रुपद सुनें, तो आपका शरीर स्थिर हो जाता है, आपकी रीढ़ सीधी हो जाती है और आप चुपचाप बैठते हैं क्योंकि यह संगीत आपको स्थिर करने के लिए बनाया गया है।





लय कई अलग-अलग स्तरों पर हो सकती है। अगर यह शरीर की लय है, तो यह एक तरह की होगी। अगर यह मन की लय है, तो दूसरी तरह की होगी। अगर आप आंतरिक ऊर्जा की लय को छुएं, तो यह एक अलग प्रकार की होगी। अगर लय आपके अंतरतम को छुए, फिर आप कुदरती रूप से ध्यानमय हो जाते हैं। एक तरह से, सभी क्रियाओं और ध्यान से आप यही करने की कोशिश करते हैं। हम जो भी करने की कोशिश करते हैं, वह सिर्फ स्थिरता की उस लय में जाने की एक कोशिश है, जो चरम लय है।

अगर वह स्थिर है, तो लय क्या है? हर ध्वनि की एक शुरुआत और एक अंत होता है। जो ध्वनि स्थिरता से निकलती है, उसकी कोई शुरुआत और कोई अंत नहीं होता। जब हम प्रकृति की लय के बारे में बात करते हैं, तो प्रकृति शब्द से हमारा मतलब मुख्य रूप से, धरती, पेड़, जानवर, इंसान, वगैरह होता है। लेकिन प्रकृति कई अलग स्तरों पर भी होती है। शरीर की प्रकृति, मन की, भावनाओं की, ऊर्जा की प्रकृति होती है और स्रष्टा की भी एक प्रकृति होती है।

हम जो भी करने की कोशिश करते हैं, वह सिर्फ स्थिरता की उस लय में जाने की एक कोशिश है, जो चरम लय है।

शिव : शून्य, विराट और असीम अस्तित्व

जिसे आप ‘नेचर्स कॉल’ कहते हैं, वह आपकी किस प्रकृति की पुकार है? अगर वह शरीर की है, तो आप एक दिशा में जाएँगे, अगर वह मन की है, तो आप दूसरी दिशा में जाएँगे, अगर वह ऊर्जा की है, तो आप किसी और दिशा में जाएँगे, अगर वह धरती की है, तो आप एक ख़ास दिशा में जाते हैं, अगर वह अंतरतम की है, तो आप एक अलग दिशा में जाते हैं। ये सभी अलग-अलग कंपनों की लय हैं। लेकिन चरम कंपन, स्थिरता का होता है, जिसे पारंपरिक रूप से शिव कहा जाता है। स्थिरता का कंपन आरंभहीन होता है, इसलिए शिव को स्वयंभू यानी ख़ुद से बना हुआ, कहा जाता है। वह एक अनस्तित्व की स्थिति में मौजूद थे। जब वह चाहते हैं, तो एक प्राणी बन जाते हैं। जब फिर चाहते हैं, तो अनस्तित्व हो जाते हैं।

शिव खुद उभरते हैं और खुद विलीन हो जाते हैं। आप खुद से नहीं निकले हैं, लेकिन आप खुद विलीन हो सकते हैं। अगर आप जानते हैं कि अपने आप कैसे विलीन होना है, फिर आप यह भी जान जाते हैं कि अपने आप कैसे उभरना है। जो जानता है कि इंसानी प्रणाली को व्यवस्थित रूप से कैसे नष्ट करना है, वह उसे वापस बनाना भी सीख लेता है। अगर कोई व्यक्ति तीव्रता या जागरूकता की एक अवस्था में, लेकिन अपने अस्तित्व की प्रक्रिया को जाने बिना, शरीर छोड़ता है, तो वह हमेशा के लिए शरीर छोड़ देता है। जो लोग चेतना में अपने शरीर को नष्ट करते हुए और जिस लय से वे बने हैं, उसकी जटिल परतों को समझते हुए शरीर छोड़ते हैं, वे अगर चाहें तो खुद को वापस जोड़ सकते हैं।

लय चुनने की आज़ादी

जब योगी इस अवस्था को प्राप्त करते हैं, तो उन्हें निर्माणकाया कहा जाता है, जिसका अर्थ है, वह व्यक्ति जो अपने शरीर को फिर से बना सकता है ताकि उन्हें एक माँ की कोख से एक बच्चे के रूप में वापस न आना पड़े, वे अपने इसी रूप में या जिस रूप में चाहें, वापस आ सकते हैं। शिव ने खुद को नष्ट कर दिया और अलग-अलग रूपों में खुद को प्रकट किया। कई बार, जब वह अपनी पत्नी से मिलना चाहते थे, तो उन्होंने खुद को सुंदर बना लिया। कई बार जब वह दूसरी तरह के लोगों से मिलना चाहते थे, तो वह खुद को भयानक बना लेते थे। वह अपनी हर चीज़ बदल लेते थे। वह गैर मौजूदगी से मौजूदगी तक, खुद को नष्ट करते और फिर से बनाते थे।

प्रकृति की लय सिर्फ धरती की लय नहीं है। यहाँ रहने और अपने जीवन के कुछ पहलुओं को चलाने के लिए, धरती की लय के तालमेल में रहना महत्वपूर्ण है। लेकिन साथ ही, अस्तित्व के दूसरे आयामों को जानना और उनसे परे जाना भी एक संभावना है। अगर आपने चेतना में स्थिरता की लय में जाने और जब चाहें उससे बाहर आने की आज़ादी पा ली है, फिर आप लय की पूरी रेंज में से कुछ भी चुन सकते हैं।

महाशिवरात्रि

का लाभ आप कैसे उठा सकते हैं ?

महाशिवरात्रि – क्या यह एक महज़ पारंपरिक त्यौहार है जो बहुत पुराने समय से चला आ रहा है, या इसका कुछ और महत्व भी है? सद्‌गुरु बता रहे हैं कि महाशिवरात्रि का असर आपके जीवन को रूपांतरित करने वाला हो सकता है, चाहे आपकी उम्र या हालात कुछ भी हों। आपको इस अवसर का सबसे बेहतर लाभ उठाने के लिए क्या करना चाहिए – जानने के लिए आगे पढ़ें :

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प्रश्नकर्ता: सद्‌गुरु, आप बहुत तार्किक तरीके से बात करते हैं और मुझे वह अच्छा भी लगता है। लेकिन साथ ही, आप ईशा योग केंद्र में महाशिवरात्रि मनाते हैं। मेरे जैसे युवाओं को, ये धार्मिक त्यौहार घिसे-पिटे रीति-रिवाज़ लगते हैं। क्या आपको लगता है कि महाशिवरात्रि युवाओं के लिए प्रासंगिक है?

सद्‌गुरु: आप किस तरह के त्यौहार पसंद करेंगे? वैलेंटाइंस डे? वह भी धार्मिक है क्योंकि वह संत वैलेंटाइन से जुड़ा है। भारतीय परंपरा में, साल में 365 त्यौहार होते हैं। आजकल, आर्थिक वजहों के कारण और जिस तरह से हमने अपने काम-काज को व्यवस्थित किया है, बहुत से त्यौहार खत्म हो गए हैं। करीब पचास से साठ त्यौहार अब भी अलग-अलग प्रकार के लोगों द्वारा मनाए जाते हैं, लेकिन वह संख्या भी धीरे-धीरे घट रही है। लगभग पांच-छह त्यौहार ही बड़े पैमाने पर मनाए जाते हैं। उनमें से कुछ सामाजिक हैं, लेकिन धार्मिक शायद ही कोई है। लगभग हर भारतीय त्यौहार चंद्र-सौर कैलेंडर से जुड़ा है। उस दिन सौर प्रणाली में क्या घटित हो रहा है, उसे देखते हुए हम कुछ ऐसा करना चाहते हैं, जो लाभदायक हो। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि जिसे आप अभी अपना शरीर कहते हैं, वह इसी धरती से आया है। अधिकांश लोग यह बात नहीं समझते, जब तक कि आप उन्हें मिट्टी में नहीं दफना देते। उन्हें लगता है कि वे कहीं और से आए हैं।

लड़खड़ाहट ही अंतर लाती है

सौर प्रणाली इस शरीर को बनाने के लिए कुम्हार के चाक की तरह काम करती है। सौर प्रणाली में जो कुछ भी होता है, वह किसी न किसी रूप में आपके साथ भी होता है। इस परंपरा में, किसी खास दिन सौर प्रणाली में क्या हो रहा है, इसे बहुत बारीकी से देखा गया और उसी के अनुसार हमने खास तरह के उत्सव तैयार किए, जहां हम कुछ विशिष्ट चीज़ें करते हैं। महाशिवरात्रि की रात को, ऊर्जा कुदरती रूप से ऊपर की ओर चढ़ती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पृथ्वी की गति में एक खास तरह की शुद्धता है। वह सिर्फ अपनी धुरी पर नहीं घूम रही है – उसमें एक तरह की लड़खड़ाहट भी है। वह लड़खड़ाहट धरती पर एक खास तरह की स्थिति पैदा करती है। महाशिवरात्रि को उत्तरी गोलार्ध में ऊर्जा कुदरती रूप से ऊपर की ओर चढ़ती है। अगर आपको विश्वास नहीं है, तो आप किसी पूर्णिमा या अमावस्या की रात को जाकर समुद्र तट पर बैठिए – आप देखेंगे कि समुद्र भी ऊपर की ओर उठ रहा है।





आपके शरीर में दो तिहाई पानी है। शरीर का सारा पानी भी ऊपर उठता है। आप देखेंगे कि मानसिक रोग के अस्पतालों में पूर्णिमा और अमावस्या के दिन रोगियों का ख़ास ध्यान रखा जाता है क्योंकि मानसिक तौर पर विक्षिप्त लोग, और अधिक परेशान हो जाते हैं। लोग सोचते हैं कि चंद्रमा पागलपन बढ़ाता है। चंद्रमा पागलपन नहीं लाता। वह सिर्फ हर चीज़ को बढ़ा देता है। अगर आप थोड़े पागल हैं, तो यह आपको ज्यादा पागल बना देता है। अगर आप थोड़े प्रेममय हैं, तो यह आपको ज्यादा प्रेममय बना देता है। अगर आप थोड़े ध्यानमय हैं, तो यह आपको ज्यादा ध्यानमय बना देता है। आपका जो भी गुण है, उसमें बढ़ोत्तरी हो जाती है क्योंकि शरीर में एक प्रकार का चढ़ाव होता है।

सौर प्रणाली में जो कुछ भी होता है, वह किसी न किसी रूप में आपके साथ भी होता है।

क्या आप इसके लिए तैयार हैं?

21 दिसंबर के आस-पास जो शीत संक्रांति आती है उसके बाद, पृथ्वी की स्थिति ऐसी होती है कि महाशिवरात्रि की रात को ऊर्जा कुदरती रूप से बहुत ज्यादा ऊपर उठती है। अगर आप महाशिवरात्रि को, जब ऊर्जा ऊपर की ओर उठने की कोशिश करती है, लेटे रहते हैं तो आप उसे रोक देते हैं। इससे आप न सिर्फ इसके फायदे खो देते हैं, बल्कि आप बहुत संवेदनशील रूप में खुद को नुकसान भी पहुँचा सकते हैं। ये सभी चीज़ें आपके लिए मायने तभी रखती हैं, जब आप एक पूर्ण विकसित मनुष्य बनना चाहते हैं। एक पूर्ण विकसित मनुष्य बनने का अर्थ है कि आपके अंदर हर वह सुविधा, जिसे खोला जा सकता है, उसे आप खोलना चाहते हैं। आप चाहते हैं कि आपके साथ सब कुछ पूरी तरह से हो, फिर आप सिस्टम में होने वाले इन सभी छोटे-छोटे बदलावों पर गौर करते हैं और उनका ध्यान रखते हैं। इसलिए आप इस रात को सीधा बैठना चाहते हैं और अपनी रीढ़ को सीधा रखना चाहते हैं। जब ऊर्जा ऊपर की तरफ बढ़ती है, तो आप उसे और ऊपर जाने में मदद करना चाहते हैं। इसी के लिए हम ‘जागरण’ करते हैं, जिसमें हम सजग रहते हुए रीढ़ को सीधा रखकर बैठते हैं।

लेकिन आप कई घंटों तक यूँ ही नहीं बैठे रह सकते, इसलिए मुझे आपका मनोरंजन करना पड़ता है। महाशिवरात्रि की रात को, हम शाम के छह बजे से सुबह छह बजे तक का उत्सव मनाते हैं। बारह घंटों का अनवरत संगीत, नृत्य, ध्यान और तमाम दूसरी चीज़ें होती हैं ताकि आप सजग रहें। हमने 26 साल पहले सिर्फ 70 लोगों के साथ ईशा योग केंद्र में महाशिवरात्रि का जश्न शुरू किया था। पिछले साल, लगभग 100 चैनलों ने इसका लाइव टेलीकास्ट किया और करोड़ों लोगों ने उसे देखा। हमारी महाशिवरात्रि इतनी भव्य इसलिए हो गई है क्योंकि लोग उसके फायदे जानते हैं।

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ऊँ नम: शिवाय

महामंत्र की अद्भुत शक्ति

महाशिवरात्रि वर्ष 1995 से ईशा योग केंद्र में बहुत हर्ष और उल्लास के साथ मनाई जाती है। समय के साथ, यह कार्यक्रम विशाल होता गया है, जो हर वर्ष लाखों लोगों तक पहुँचता है। लेकिन महाशिवरात्रि के कुछ तत्व अब भी वैसे ही हैं। एक ऐसा ही पहलू है, सद्‌गुरु के साथ आधी रात का ध्यान, जिसमें महामंत्र – ऊँ नम: शिवाय का जाप शामिल है। यहाँ, सद्‌गुरु इस मंत्र का महत्व बता रहे हैं।

मंत्र क्या है?

सद्‌गुरु: जिसे हम मंत्र कहते हैं, वह शुद्ध ध्वनि है। आज आधुनिक विज्ञान यह साबित करता है कि सारा अस्तित्व सिर्फ ऊर्जा है, जो अलग-अलग रूपों में कंपन कर रही है। जहाँ कंपन है, वहाँ ध्वनि होनी ही है। पूरा अस्तित्व ध्वनि है। उसमें से कुछ ध्वनियों की हमने पहचान की है, जिनमें अलग-अलग आयामों को खोलने की क्षमता है।

कुछ ध्वनियों को एक खास उद्देश्य से इस्तेमाल किया जाता है – इन प्रमुख ध्वनियों को आम तौर पर मंत्र कहा जाता है। कई तरह के मंत्र होते हैं। चीज़ों को जीतने और पाने के लिए मंत्र हैं। खुशी और प्यार लाने के लिए मंत्र हैं। अनुभव के दूसरे आयामों को खोलने के लिए मंत्र हैं।

सही जागरूकता के साथ किसी मंत्र को दोहराना दुनिया के अधिकांश आध्यात्मिक मार्गों में हमेशा मूलभूत साधना रही है। कुछ ही लोग होते हैं, जो किसी मंत्र का प्रयोग किए बिना, केवल ध्यान के जरिए अपनी ऊर्जा को जाग्रत कर सकते हैं। नब्बे प्रतिशत से ज्यादा लोगों को खुद को जाग्रत करने के लिए मंत्र की जरूरत होती है।

यौगिक संस्कृति में जिस मूलभूत मंत्र को महामंत्र माना जाता है, वह है ‘ऊँ नम: शिवाय।’

ऊँ का उच्चारण करने का सही तरीका

ऊँ ध्वनि का उच्चारण ‘ओम’ की तरह नहीं होना चाहिए। पहले अपना मुँह खोलते हुए – ‘आआआ’, और जैसे-जैसे आप धीरे-धीरे अपना मुँह बंद करते हैं, वह ‘उउउ’ और ‘म्म्म’ हो जाता है। यह कुदरती तौर पर होता है, कुछ ऐसा नहीं जो आपको करना पड़ता है। अगर आप अपना मुँह खोलकर साँस छोड़ें, तो वह ‘आआआ’ हो जाता है। जैसे-जैसे आप मुँह बंद करते हैं, तो वह धीरे-धीरे ‘उउउ’ हो जाता है और जब आप उसे बंद करते हैं, तो वह ‘म्म्म’ हो जाता है। ‘आआआ’, ‘उउउ’ और ‘म्म्म’ अस्तित्व की मूलभूत ध्वनियाँ हैं। जब आप इन तीन ध्वनियों को साथ में बोलते हैं, तो ‘ऊँ’ का उच्चारण होता है। ‘ऊँ’ सबसे मूलभूत मंत्र है। तो, महामंत्र का उच्चारण ‘ओम नम: शिवाय’ नहीं, ‘ऊँ नम: शिवाय’ होना चाहिए।

यह विनाशकर्ता शिव का मंत्र है। वह आपका विनाश नहीं करते, बल्कि जो चीज आपके और जीवन की बड़ी संभावनाओं के बीच बाधा बनकर खड़ी है, उसका विनाश करते हैं। इस मंत्र को कर्म के जाल को साफ करने के लिए बनाया गया है ताकि आपका बोध बढ़ जाए और आप अस्तित्व के एक ज्यादा बड़े आयाम के लिए उपलब्ध हो सकें।

महा शक्तिशाली पाँच अक्षर

‘न-म शि-वा-य’ को पंचाक्षर या पाँच अक्षर कहा जाता है। यह मंत्र सिर्फ पाँच अक्षरों की एक शानदार व्यवस्था है, जिससे अद्भुत चीज़ें की जा सकती हैं। समय के इतिहास में, शायद अधिकांश लोगों ने इन पाँच अक्षरों के जरिए अपनी चरम क्षमता को साकार किया है।

पंचाक्षर मानव शरीर के पाँच मुख्य केंद्रों से जुड़े हैं और उन्हें जाग्रत करते हैं। हम इस मंत्र को एक शुद्धीकरण प्रक्रिया के रूप में और साथ ही अपने ध्यान के आधार के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। वरना, अधिकांश लोग अपने अंदर मंत्रों के एक पर्याप्त कंपन के बिना अपने ध्यान को कायम नहीं कर पाते हैं। मंत्र आपके जीवन में वह जरूरी मूल स्पंदन लाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण उपाय है, जो आपकी मानसिक प्रवृत्तियों और शारीरिक ऊर्जा को एक खास स्तर के परे डूबने से रोकता है।

ये पंचाक्षर प्रकृति के पाँच तत्वों को भी दर्शाते हैं। ‘न’ धरती है, ‘म’ जल है, ‘शि’ अग्नि है, ‘वा’ वायु और ‘य’ आकाश है। अगर आप पंचाक्षरों पर अधिकार कर लें, तो वे आपकी चेतना में पाँच तत्वों से बनी हर चीज़ को विसर्जित कर सकते हैं।

पंचतत्वों का स्वामी, जीवन का स्वामी

शिव का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वह भूतेश्वर हैं – यानी, जिनका पाँच तत्वों पर अधिकार है। पूरी सृष्टि इन पंचतत्वों का एक खेल मात्र है। सिर्फ पाँच तत्वों से इतनी भव्य सृष्टि! अगर आप इन पाँच तत्वों पर थोड़ी भी महारत हासिल कर लें, फिर आपको जीवन और मृत्यु और अपने आस-पास की हर चीज़ पर महारत हासिल हो जाएगी, क्योंकि हर चीज़ इन्हीं पाँच तत्वों से बनी है। योग का सबसे बुनियादी अभ्यास भूतशुद्धि या तत्वों का शुद्धिकरण और अपने शरीर के पाँच तत्वों पर अधिकार करना है।

अगर आप पंचतत्वों पर अधिकार कर लें, तो आप अपनी भौतिकता पर पूरा अधिकार कर सकते हैं क्योंकि आपकी समस्त भौतिकता इन पाँच तत्वों का खेल मात्र है। अगर ये पाँच तत्व काम करने के लिए आपसे निर्देश लेने लगें तो सेहत, खुशहाली, सफलता और जीवन पर अधिकार उसका एक स्वाभाविक नतीजा होगा।

सद्‌गुरु द्वारा ‘ऊँ नम: शिवाय’ मंत्र (एक घंटे का)

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