सद्‌गुरुइस बार के स्पॉट में सद्‌गुरु बुद्ध के जीवन से जुड़ी एक रोचक कहानी के जरिए बताने की कोशिश कर रहे हैं कि जिसे भी आप अपने जीवन में सर्वश्रेष्ठ माानते हैं उसके लिए अपना जीवन समर्पित कर दीजिए।


यह दुनिया झूठ और कपट से चल रही है। सबसे ज्यादा भद्दापन सबसे उंचे स्तर पर हो रहा है। अगर आप दुनियाभर में होने वाले चुनाव प्रचारों को देखें तो आपको लगेगा कि सारी सीमाएं टूट चुकी हैं, मानो लोकतंत्र का मतलब ही हो गया है कमर के नीचे वार करना। अब ऐसा लगता है कि कोरा झूठ बोलना कोई शर्मिंदगी की बात ही नहीं है। आज झूठ मुख्य धारा में आ चुका है, जबकि सच्चाई किनारे जा चुकी है। आज जब पूरी दुनिया में यह हालत है, ऐसे में सत्य के लिए जीने व मरने वाले लोगों का बड़ा समूह खड़ा करना एक बहुत महत्वपूर्ण काम है।

सत्य और विश्वास में अंतर

सत्य कोई विश्वास नहीं है। आप जो चाहें, उस पर विश्वास कर सकते हैं, जरुरी नहीं है कि इसका सच्चाई से कोई लेना देना हो। अगर आप बड़े पैमाने पर लोगों को किसी चीज पर विश्वास करने में लगाएंगे तो झूठ ही मुख्य धारा में होगा। एक बार जब आप विश्वास करने लगते हैं तो फिर आपकी सारी पहचान उसी विश्वास के ऊपर बनने लगती है।

हम चाहें तो हर दिल व दिमाग पर सत्य दस्तक दे सकता है। तकनीक ने हमें इस मुकाम तक पहुँचा दिया है। सत्य को इस धरती की असली ताकत बनाने का यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ समय है।
विश्वास लोगों को सबसे ज्यादा हास्यास्पद चीजों को विशुद्ध सत्य की तरह स्वीकार कर लेने के लिए प्रेरित करता है। हालांकि सच को मुख्य धारा में लाने के लिए काफी कुछ किया गया है, लेकिन ऐसी अनेक शक्तियां हैं जिन्होंने सच को हाशिए पर धकेलने का काम किया है। अब ऐसा समय आ चुका है, जहां पूरी दुनिया से संवाद स्थापित करने की मानव क्षमता पहले से कहीं ज्यादा बढ़ चुकी है।

सत्य को फैलाने में तकनीक मदद कर सकती है

हम चाहें तो हर दिल व दिमाग पर सत्य दस्तक दे सकता है। तकनीक ने हमें इस मुकाम तक पहुँचा दिया है।

भिक्षु दिन के समय भिक्षा मांगने के लिए जाते थे। ऐसे में एक दिन गौतम बुद्ध के चचेरे बडे़ भाई आनंद तीर्थ की मुलाकात एक वेश्या से हो गई।
सत्य को इस धरती की असली ताकत बनाने का यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ समय है। आप सोशल मीडिया पर गपशप शुरू करते हैं तो यह हर जगह पहुँच जाती है। जब वह गपशप पूरी दुनिया में पहुंच सकती है तो सत्य को भी पूरी दुनिया तक फैलाया जा सकता है। आज कोई भी पुराणों और ग्रंथों की मुश्किल चीजें नहीं सुनना चाहता, लेकिन अगर आप इसमें बताए सत्य को गॉसिप की तरह कहेंगे तो हर कोई इसके बारे में जानना चाहेगा।

गौतम बुद्ध ने बनाया सन्यासियों के लिए नियम

फिलहाल मानसून के मौसम में भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी व उत्तरी भागों में भारी बारिश हो रही है।

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आप सोशल मीडिया पर गपशप शुरू करते हैं तो यह हर जगह पहुँच जाती है। जब वह गपशप पूरी दुनिया में पहुंच सकती है तो सत्य को भी पूरी दुनिया तक फैलाया जा सकता है।
ऐसे ही मौसम को देखकर अपने शिष्यों की बड़ी मंडली के साथ लगातार यात्रा करने वाले गौतम बुद्ध ने नियम बनाया था कि बारिश के दो-ढाई महीनों में भिक्षुक एक जगह पर रह सकते हैं। आमतौर पर नियम था कि बुद्ध के साथ रहने वाले संन्यासी व भिक्षुक एक ही जगह पर दो दिन से ज्यादा नहीं ठहर सकते थे। लेकिन बारिश के दिनों में जंगलों से होकर गुजरना काफी खतरनाक होता था, जिसमें कई लोगों की जानें चली गयीं होंगी। इसलिए इस मौसम में वे किसी बड़े कस्बे या नगर में रुक जाते थे और कई घरों में फैल जाते थे।

गौतम बुद्ध के शिष्य आनंद तीर्थ की मुलाक़ात वेश्या से हुई

भिक्षु दिन के समय भिक्षा मांगने के लिए जाते थे। ऐसे में एक दिन गौतम बुद्ध के चचेरे बडे़ भाई आनंद तीर्थ की मुलाकात एक वेश्या से हो गई। उसने उन्हें भिक्षा दी और उनकी तरफ देखने लगी। वेश्या ने देखा कि सामने एक लंबा, सुंदर युवक खड़ा है। उसने आनंद से कहा, ‘मैंने सुना है कि भिक्षुक रहने के लिए आसरा ढूंढ रहे हैं। आप क्यों नही आकर मेरे घर रुक जाते?’ आंनद तीर्थ ने उसे जवाब दिया, ‘मुझे इस बारे में गौतम बुद्ध से पूछना होगा कि मैं कहां ठहरूं?’ इस पर वेश्या ने आनंद पर व्यंग्य कसते हुए कहा, ‘अच्छा, तो आप अपने गुरु से जाकर पूछना चाहते हैं? जाइए और जाकर उनसे पूछिए।

समय बीतता गया। जब बारिश रुकी और चलने का समय आया तो आनंद बुद्ध के पास पहुंचे तो वह अकेले नहीं थे, उनके साथ एक महिला संन्यासिनी भी थी।
देखते हैं कि वो क्या कहते हैं?’ आनंद गौतम बुद्ध के पास गए और उन्हें भिक्षा में जो कुछ भी मिला था, वो सब उनके चरणों में अर्पित कर दिया। हर किसी से यह उम्मीद की जाती थी कि वह जहां भी जाए भोजन व आसरा ढूंढे। इसलिए उन्होंने गौतम से पूछा, ‘यह महिला मुझे अपने यहां बुला रही है। क्या मैं उसके यहां रह सकता हूं?’ बुद्ध ने जवाब दिया, ‘अगर वह महिला तुम्हें बुला रही है तो तुम्हें अवश्य जाना चाहिए और वहां रहना चाहिए।’ इतना सुनते ही वहां मौजूद नगर के लोगों ने अपनी त्यौरियां चढ़ा लीं और बोले, ‘क्या, एक भिक्षु एक वेश्या के घर पर रहेगा। क्या यही बाकी रह गया है। ये पूरी आध्यात्मिक प्रक्रिया ही भ्रष्ट हो चुकी है।’ यह सुनकर गौतम ने उन सबकी की ओर देखा और कहा, ‘आप लोगों को इतनी चिंता क्यों हो रही है? वह महिला उसे बुला रही है। उसे वहां रहने दीजिए। इसमें आखिर समस्या क्या है?’

आनंद तीर्थ के साथ रह कर वेश्या रूपांतरित हो गयी

इतना सुनते ही लोग वहां से उठकर जाने लगे। गौतम बुद्ध ने उनसे कहा, ‘ठहरो, मैं इस रास्ते पर इसलिए चल रहा हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि यह जीवन जीने का सबसे कीमती और शक्तिशाली तरीका है। अब आप लोग मुझे बता रहे हैं कि उसका तरीका मेरे तरीके से ज्यादा शक्तिशाली है। अगर यही सच है तो मुझे भी उसके साथ जाकर उसके तरीके से रहना चाहिए।’ एक सच्चे खोजी को ऐसा ही करना चाहिए कि अगर आपको कुछ श्रेष्ठ मिले तो आपको उसे पाने की कोशिश करनी चाहिए।

हो सकता है कि इसमें कुछ मेहनत लगे, लेकिन वैसी मेहनत नहीं लगेगी जैसी सप्तऋषियों, गौतम बुद्ध, कृष्ण व कई अन्य लोगों को करनी पड़ी था। इसकी वजह है कि उनके पास सत्य को पूरी दुनिया भर में फैलाने की कोई तकनीक नहीं थी।
खैर, यह सुनकर लेाग बुरी तरह से चकरा गए और जाहिर है कि उनमें से कई लोग वहां से उठकर चले गए। आनंद उसी महिला के घर चले गए। बारिश की वजह से मौसम ठंढा हो गया था। वह पतला परिधान पहने थे, इसलिए उस महिला ने उन्हें बेहतरीन रेशमी वस्त्र लपेटने के लिए दिया। आनंद ने उस वस्त्र से खुद को अच्छी तरह से ढंक लिया। जब लोगों ने इसे देखा तो उन्होंने सबूत के तौर पर मान लिया कि आनपंद पथभ्रष्ट हो गए हैं। महिला ने उनके लिए बढ़िया भोजन तैयार किया। आनंद ने उस भोजन को खाया। शाम को उस महिला ने आनंद के लिए नृत्य किया। वह उसके सामने बैठकर पूरे ध्यान से उसका नृत्य देखते रहे। लोगों ने जब उस घर से संगीत के आने की आवाज सुनी तो उन्हें यकीन हो गया कि आनंद गिर चुके हैं। समय बीतता गया। जब बारिश रुकी और चलने का समय आया तो आनंद बुद्ध के पास पहुंचे तो वह अकेले नहीं थे, उनके साथ एक महिला संन्यासिनी भी थी। सत्य के मार्ग पर चलने की यही ताकत होती है। इंसान में सत्य को पाने की जन्मजात जिज्ञासा होती है। उन्हें बस एक मौका दिए जाने की जरुरत है।

लोगों से संवाद स्थापित करने की क्षमता का इस्तेमाल करना होगा

आजकल लोग कई तरह की चीजों में उलझे हुए हैं, लेकिन अंततः हर व्यक्ति सर्वोच्च को पाने की इच्छा रखता है। हमें उन्हें बस यह दिखाना है कि वह जहां टिक रहे हैं उससे भी आगे, उससे भी बेहतर, उससे भी ऊंचा कुछ है। शराब और ड्रग्स के नशे से ज्यादा नशा दूसरी चीजें में होता है। सामाजिक नाटकों में उलझने से बेहतर चीजें भी हैं, किसी व्यक्ति विशेष से आगे निकलने से भी अधिक सुखदायी कुछ है।

मानव अस्तित्व का मूल स्वभाव ही कुछ ऐसा है कि आप जो कर सकते हैं, अगर उसे नहीं करेंगे तो यह आपको जीवन के अंतिम छोर तक, मृत्युशैया तक परेशान करता रहेगा।
हमेशा से साधु, संतों, योगियों और गुरुओं ने लोगों को सत्य के मार्ग पर चलना सिखाया है, जिससे वे लेाग सत्य का अनुभव कर सकें। महज अपनी कृपा से ही उन लोगों ने अपने आसपास के कई लोगों को रूपांतरित कर दिया। लेकिन उनके पास ऐसा कोई साधन नहीं था, जिससे वे हर इंसान तक पहुँच जाएं। आज हमारे पास एक कठिन जिम्मेदारी है, क्योंकि हमारे पास न सिर्फ तकनीक है, बल्कि संवाद स्थापित करने की वो क्षमता भी है जिसके बारे में उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी।

जैसा कि मैं बार -बार कहता हूं कि अपने जीवन में अगर हम वो काम नहीं करते हैं, जो हम नहीं कर सकते थे तो इसमें कोई समस्या नहीं। लेकिन हम जो कर सकते हैं और अगर वो नहीं करते तो हम दुर्भाग्यपूर्ण जीवन जी रहे हैं। मेरी कामना है, खाकसर सभी युवाओं के लिए मेरी इच्छा है कि वे जीवन में जिसे भी सर्वश्रेष्ठ मानते हों, उसके लिए उठ खड़े हों।

आपको अपना सर्वश्रेष्ठ स्तर पाना होगा

जीवन में आपको बाकी हर किसी से बेहतर बनने की जरूरत नहीं है, लेकिन आपको अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर को पाना चाहिए। जो भी आपको परम या सर्वश्रेष्ठ लगता है, अगर आप उसमें अपना जीवन नहीं लगाएंगे, तो आपका जीवन व्यर्थ है। ‘हां सद्‌गुरु, लेकिन...’ जरूरत इसी लेकिन को लात मार कर भगाने की है। हरेक के पास अपना किंतु होता है। हर व्यक्ति के पास इसका एक बहाना होता है कि वह अपने जीवन में जो सर्वश्रेष्ठ कर सकते हैं, उसे क्यों नही करते।

मान लीजिए कि घटाघोप अंधेरा है तो यह आपकी सांसें रोक सकता है। लेकिन अगर आप प्रकाशवान हैं तो यह बिना किसी प्रयास के चला जाएगा। अज्ञानता की यही प्रकृति होती है।
हम अपने ईशा के निःशुल्क शुरुआती कार्यक्रमों से लेकर ईशा के हर कार्यकम में आपसे उन बहानों को दूर करने की कोशिश करते हैं, जिसकी वजह से आप अपनी जिंदगी का सर्वश्रेष्ठ नहीं कर पा रहे। ‘मैं इसे करना तो चाहता हूं, लेकिन . . .’ - जिम्मेदारी का मतलब है कि आपके पास नहीं करने का कोई बहाना नहीं है। ‘सद्‌गुरु, इन सबको करने से मुझे क्या फायदा होगा? मैं दुनिया को नहीं बदलना चाहता।’ यह कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसे आप चुन सकें। ना ही यह कोई ऐसी चीज है, जिसे मैं आपके भीतर रखने की कोशिश कर रहा हूं। मानव अस्तित्व का मूल स्वभाव ही कुछ ऐसा है कि आप जो कर सकते हैं, अगर उसे नहीं करेंगे तो यह आपको जीवन के अंतिम छोर तक, मृत्युशैया तक परेशान करता रहेगा। अगर आप एक संपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं तो आपको वह अवश्य करना चाहिए, जिसे आप सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। वर्ना आपको हमेशा एक अपूर्णता का अहसास होता रहेगा।

आधुनिक तकनीक और साधन सत्य फैलाने में मदद करेंगे

कई तरीके से दुनिया की बहुत सारी शक्तियां एक साथ हो रही हैं। फूल जैसी नाजुक चीज भी अपने आसपास के पूरे माहौल को सुगंधित कर सकती है। आपको किसी से लड़ने की जरूरत नहीं है। आप अंधेरे से नहीं लड़ सकते। उसके लिए आपको बस रोशनी करने की जरूरत होती है। अगर आप रोशनी कर देते हैं तो अंधेरा भाग जाएगा। अंधकार सबसे डरावना व भयावह लगता है। मान लीजिए कि घटाघोप अंधेरा है तो यह आपकी सांसें रोक सकता है। लेकिन अगर आप प्रकाशवान हैं तो यह बिना किसी प्रयास के चला जाएगा। अज्ञानता की यही प्रकृति होती है। झूठ की भी यही प्रकृति होती है। इससे लड़ने की जरूरत नहीं है।

हमें उन्हें बस यह दिखाना है कि वह जहां टिक रहे हैं उससे भी आगे, उससे भी बेहतर, उससे भी ऊंचा कुछ है। शराब और ड्रग्स के नशे से ज्यादा नशा दूसरी चीजें में होता है।
अगर आप रोशनी करेंगे तो यह गायब हो जाएगा। हम देख रहे हैं कि कैसे आपको व इस धरती के हरेक इंसान को प्रकाशवान किया जाए। हो सकता है कि इसमें कुछ मेहनत लगे, लेकिन वैसी मेहनत नहीं लगेगी जैसी सप्तऋषियों, गौतम बुद्ध, कृष्ण व कई अन्य लोगों को करनी पड़ी था। इसकी वजह है कि उनके पास सत्य को पूरी दुनिया भर में फैलाने की कोई तकनीक नहीं थी। हमारे पास वो औज़ार है, वो साधन जो आज से पहले कभी किसी के पास नहीं था। इसलिए हमें ऐसा कुछ जरूर करना चाहिए, जो कभी किसी ने न किया हो। यही मेरी कामना और मेरा आशीर्वाद है।

Love & Grace