वस्त्र
इस हफ्ते के स्पॉट में सद्गुरु ने एक कविता लिखी है।
ArticleMay 23, 2012
वस्त्र
परिधान की बुनावट, ताने-बाने और रंग
सभी बढ़ाते हैं आंखों और हाथों की आसक्ति को
वासना भरी निगाहों के लिए परिधान बनते हैं बाधा
उसकी लिप्सा, लंपटता और लालसा की राह में।
दुनिया को बनाने वाले शिल्पी के हाथों ने
इतनी खूबसूरती से उकेरा है तुम्हारे शरीर को
कल्पना भी नहीं कर सकते रंगरेज, बुनकर व कद्रदान जिसकी कभी
फिर भला क्यों चाहिए आवरण इस खूबसूरत शरीर को।
खो गए शिल्पी की कला में इस कदर
किंतु भूल न जाना उस शिल्पी को कभी
यह अनुपम कृति शरीर, एक निवास है
उस अलबेले शिल्पी का, उस अद्वैत का।
Love & Grace
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