सम्मोहित
इस बार के स्पॉट में सद्गुरु ने एक कविता भेजी है जिसमें वे अपने भीतरी अनुभव को साझा कर रहे हैं। वे बता रहे हैं कि कैसे उनका जीवन सीमित और अनंत का मेल है।
खुशबू - एक फूल की,
शीतलता – मौसमी बयार का
सुंदरता – रात के स्याह आसमान की
जो सजी होती है अनगिनत तारों से
अनवरत चलने वाली दिल की धड़कन,
और मंद गति- साँसों की -
ये सभी हानिरहित सरल घटनाएँ
बनाती हैं मुझे एक जीवित,
स्पंदनशील और तीव्र जीवन।
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सिर्फ एक मन-रहित,
विचार-शून्य परम प्रज्ञा
ही रच सकती है,
सरल और अतुल्य
का ये अद्भुत मेल।
जीता हूँ अपना ही जीवन
इस परम प्रज्ञा का दास बनकर।
एक जीवन
जिसमें नहीं है कोई व्यक्तित्व,
न ही हैं जिसकी कोई अपनी चाहतें।
एक जीवन जिस पर है
असीम की इच्छा का पूरा अधिकार।
इस शाश्वत भट्ठी की ठंडी अग्नि
मुझे जलाती नहीं,
बल्कि कर देती है
आनंदित और सम्मोहित।