प्लास्टिक प्रदूषण - जरुरी है ऐसा हल जो सभी को आर्थिक फायदा पहुंचाए
इस बार के स्पॉट में सद्गुरुप्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण से लड़ने के व्यावहारिक समाधान बता रहे हैं। इसमें वह उस बुनियादी मुद्दे की ओर भी इशारा कर रहे हैं कि कैसे इसने मानवता और दूसरे प्राणियों को तबाही के कगार पर पहुँचा दिया है। सद्गुरु के शब्द - विश्व पर्यावरण दिवस पर उनके, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के कार्यकारी निदेशक, एरिक सोलहेम और संयुक्त राष्ट्र गुडविल एम्बेसडर दिया मिर्ज़ा के बीच - दिल्ली में हुए संवाद से लिए गए हैं।
हमारा जीवन आस-पास की चीज़ों से जुड़ा हुआ है
अफसोस की बात है कि हम लोग अभी भी एक बड़ी समस्या को टुकड़ों में बाँट कर देख रहे हैं। हम लोग एक समय में एक ही चीज पर फ़ोकस कर रहे हैं।
हमारे देश में जमीन की हालत, मिट्टी और पानी की हालत बेहद डरावनी स्थिति में पहुंच चुकी है। हम लोग एक अरब और तीस करोड़ की आबादी के साथ अगर पानी और जमीन को इस कदर जर्जर स्थिति तक पहुंचने दे रहे हैं तो इसका मतलब है कि हमने अभी भी देश के हाल को अपने हाथ में नहीं लिया। नदी अभियान के रूप में हमने पानी के साथ पर्यावरण को बचाने की शुरुआत की। अब प्लास्टिक यूनाइटेड नेशंस का एक प्रमुख मुद्दा और एक चिंता का विषय बन चुका है। आज प्लास्टिक एक सटीक उदाहरण पेश करता है कि हम कितने गैर जिम्मेदार हैं। हमने इस धरती पर जितने भी पदार्थ विकसित किए, उनमें से प्लास्टिक एक सबसे शानदार पदार्थ है। अगर हम इसे ठीक तरह से इस्तेमाल करें तो यह बार-बार रिसाइकल कर इस्तेमाल में लाया जा सकता है। लेकिन हमने इसे इतने गैरजिम्मेदार तरीके से इस्तेमाल किया कि यह जहर बनकर हर जगह घुस गया है। वैज्ञानिक बता रहे हैं कि बहुत सारे माइक्रोब्स(सूक्ष्म कीटाणु) अपने भीतर प्लास्टिक लेकर घूम रहे हैं।
कानून बनाने से समाधान निकलेगा
यह समय बहस करने का नहीं है। ये समय काम करने का है। यहां ऐसे बहुत से शानदार लोग हैं, जो तुरंत प्रतिक्रिया देंगे, लेकिन मुझे नहीं लगता कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा खुद चीजों को सुधारेगा। उन्हें सुधारने के लिए कानून का डर चाहिए। इसलिए हम लोग सिर्फ एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक पर पूरी तरह पाबंदी की बात कर रहे हैं।
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प्लास्टिक का विनाशकारी रूप पिछले 20 सालों में ही सामने आया है। उससे पहले इस देश में प्लास्टिक का इस्तेमाल इस हद तक कभी नहीं हुआ। अगर हमारे घर में प्लास्टिक का थैला कभी आ जाता तो मेरी मां उसे मोड़कर संभालकर आगे के इस्तेमाल के लिए रख देती, फिर हम लोग इसका इस्तेमाल दो-तीन साल तक करते। उस समय की तरह रहना इतना मुश्किल नहीं है। एक व्यक्ति के तौर पर हम जो भी छोटी-मोटी कोशिशें करते हैं, वह इस दिशा में हमारे कमिटमेंट को दिखाने के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन समस्या कहीं बड़ी है। इसलिए उस समस्या का समाधान भी उसी हिसाब से होना चाहिए।
पैकिंग के लिए प्लास्टिक को रिसाइकल करना होगा
फिलहाल लगभग चालीस प्रतिशत प्लास्टिक का इस्तेमाल पैकिंग के कामों में होता है। यही वह क्षेत्र है, जहां हमें काम करने की जरूरत है, क्योंकि यही वह एक चीज है, जिससे आसानी से बचा जा सकता है।
प्लास्टिक उद्योग खुद इस बात को महसूस कर चुका है कि उन्हें अपने अस्तित्व को बचाने के लिए यह करना होगा। अब यह कंपनियां नीदरलैंड की कुछ यूनिवर्सिटी और कुछ मार्केटिंग कंपनियों के साथ मिलकर पेट बोतल को एक लगातार रीसाइक्लिंग प्रक्रिया बनाने की कोशिश कर रही है। इसका मतलब हुआ कि एक बोतल एक बार इस्तेमाल होने की जगह फिर से लगभग हमेशा इस्तेमाल होगी। इस दिशा में बदलती हुई जीवनशैली भी महत्वपूर्ण है। लेकिन हम लोग लगभग साढ़े सात अरब लोगों की बात कर रहे हैं। इतने सारे लोगों की जीवनशैली बदलना एक दीर्घकालिक(लम्बे समय की) योजना है। और जब तक आप एक पीढ़ी को बदलेंगे, तब तक दूसरी पीढ़ी तैयार हो जाएगी, जो कुछ और कर रही होगी। हमें ऐसा कानून बनाने की जरूरत है, जिसमें रीसाइक्लिंग को ज़रूरी कर दिया जाए।
यहां एक और महत्वपूर्ण पहलू है - प्लास्टिक के कई ग्रेड या स्तर होते हैं। उनमें से कुछ ग्रेड की प्लास्टिक ऐसी हैं जिन्हें बिलकुल री-साइकल नहीं किया जा सकता। ऐसे प्लास्टिक पर पूरी तरह से रोक लगा देनी चाहिए। रीसाइकिल योग्य प्लास्टिक की भी कई किस्में हैं। अमेरिका में हमने कुछ लोगों का ऐसा पावरफ़ुल ग्रूप बनाया, जो वहां के बड़े-बड़े उद्योगों से संपर्क कर उन्हें इसका समाधान देने की कोशिश कर रहे है। उदाहरण के लिए कोक की बोतल आसानी से रिसाइकल हो जाएगी, लेकिन इस पर लगने वाले पेपर के लेबल की वजह से यह रिसाइकल नहीं हो सकती। अगर आप इसके पेपर के साथ रिसाइकल करते हैं तो आपको निचले दर्जे की प्लास्टिक मिलेगी, जो फूड ग्रेड यानी खाने-पीने की चीज़ों के लिए इस्तेमाल होने लायक नहीं होगी। अगर बोतल पर लगने वाला लेबल भी बोतल के दर्जे वाली प्लास्टिक का होगा, तब यह आसानी से रिसाइकल हो जाएगा। हम लोग ऐसी कंपनियों से भी बात कर रहे हैं, जो बोतल पर ही प्रिंटिंग करने में सक्षम हों।
ऐसा समाधान जो आर्थिक रूप से फायदेमंद हो
हम लोग व्यावसायिक कंपनियों का विरोध करने या फिर उनका कारोबार खत्म करने के लिए नहीं, बल्कि उनके पास समाधान के साथ जाना चाहते हैं। किसी भी बिजनेस या देश के आर्थिक सरोकार भी महत्वपूर्ण होते हैं।
हम लोगों को उन बिजनेस कंपनियों को बदलना होगा, जो पर्यावरण को बड़े पैमाने पर प्रदूषित कर रहे हैं। उन्हें बदलकर काम करने के ऐसे तरीकों में लगाना होगा, जो पर्यावरण के प्रति संवेदनशील(सेंसिटिव) तरीके हों। इस चीज का ध्यान हर स्तर पर रखना होगा। आप सिर्फ एक लोकल दुकानदार को यह नहीं कह सकते, ‘तुम प्लास्टिक का इस्तेमाल मत करो।’ अगर वह प्लास्टिक का इस्तेमाल ना करे तो इसकी जगह किसका इस्तेमाल करेगा? उससे यह कहने की बजाय यह बताना होगा प्लास्टिक के विकल्प के रूप में किस चीज़ का इस्तेमाल कर सकता है, वह कैसे इसका इस्तेमाल कर सकता है, कैसे यह नई चीज़ उसके व उसके ग्राहक के लिए ज्यादा से ज्यादा फायदेमंद हो सकता है। बिजनेस उद्योग का विरोध करने की बजाय इन चीजों को सामने लाना होगा, क्योंकि दीर्घकाल(लम्बे समय) में यह काम नहीं करेगा – अर्थव्यवस्था(इकॉनमी) ही जीतेगी। अगर हम चाहते हैं कि पर्यावरण जीते तो हमें पर्यावरण और अर्थव्यवस्था(इकॉनमी) दोनों को साथ लेकर चलना होगा। और मैं यही कोशिश कर रहा हूं।