टेनेसी स्थित ईशा इंस्टिट्यूट ऑफ़ इनर साइंसेज में 16 अक्टूबर 2016 को सदगुरु ने लोगों को संबोधित किया। उन्होंने बताया कि कैसे प्रेरणा और विचार आपको समाज में तो आगे बढ़ाने का काम कर सकते हैं, लेकिन ये जीवन में आपको आगे नहीं बढ़ाते। साथ ही यह भी बताया कि अपने अस्तित्व के दरवाजे खोलने के लिए एक इंसान को कैसे पूर्वाग्रहों से रहित होकर तीव्र ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने अपनी कविता  -जीवन के कारोबार - भी साझा की।

हर काम प्रलोभन से हो रहा है

आप जीवन के किसी भी क्षेत्र में हों, वहीं आपको कुछ न कुछ प्रलोभन दिया जाता है। हर चीज में प्रलोभन है। ‘प्ले फॉर पे’ जुमला भी आपने सुना ही होगा। बचपन से ही आपको प्रलोभन दिए जाते हैं, चाहे आपको बोलना सीखना हो, चलना सीखना हो या ऐसा ही कोई और काम। आपको पढ़ना है तो उसके लिए प्रलोभन, आपको स्कूल जाना है, तो उसके बदले प्रलोभन। अगर प्रार्थना करनी है तो उसके बदले भी हमेशा प्रलोभन दिया जाता है। ये प्रलोभन हर तरह के हैं। अगर आप यह करेंगे तो आपको यह मिलेगा, अगर आपने वह किया तो आपको कुछ और मिलेगा। तरह-तरह के प्रलोभन आपके सामने होते हैं।

एक बूढ़ा यहूदी था, जिसका बेटा हृदयरोग विशेषज्ञ यानी कार्डियोलोजिस्ट था। एक बार इस शख्स को दिल की बीमारी हो गई और उसे बड़ा ऑपरेशन कराना पड़ा। उसके बेटे ने खुद ही सर्जरी करने का फैसला किया। जब वह डॉक्टर अपने बूढ़े पिता को ऑपरेशन से पहले बेहोशी का इंजेक्शन देने वाला था, तभी उसके पिता ने कहा - देखो, अगर मुझे कुछ हो गया तो याद रखना, तुम्हारी मां को तुम्हारे और तुम्हारी पत्नी के साथ आकर रहना पड़ेगा। सर्जरी सही से करने के लिए यह एक तरह का प्रलोभन था। हर चीज के लिए यहां एक इनाम है, लेकिन एक बात हमें समझनी चाहिए कि इन सभी इनामों को लेने के चक्कर में हम सबसे मूलभूत चीज खो देते हैं।

अगर आप कुछ ऐसा सोचते हैं, जो बस आपका मन बहला रहा है, अगर उस चीज़ का मूल्य आपके भीतरी जीवन से भी ज्यादा होने लगे, तो उसका कोई फायदा नहीं है। फायदे की तो छोड़िए, उल्टा यह आपके लिए खतरनाक होगा।
अगर आप अपना जीवन शानदार तरीके से जिएं तो इसके लिए कोई इनाम नहीं है। अंत में आपको कोई सोने का कोई तमगा नहीं मिलने वाला है। यहां तक कि अगर आप बहुत अच्छे तरीके से जिए हैं तो वे आपको स्वर्ग में भेजने का झंझट नहीं लेंगे, क्योंकि आप तो पहले ही इतने अच्छे तरीके से जिए हैं। चूंकि ज्यादातर लोगों के भीतर मूल जीवन का अनुभव नहीं होता, इसलिए अक्सर उनका जीवन चीजों, विचारों और भावों को इकठ्ठा करने में ही निकल जाता है। किसी ने मुझसे कहा - नहीं सदगुरु, मैं तो सिर्फ आपके बारे में ही सोचता हूं। यह तो और भी बुरी बात है। आपको एक नया खिलौना मिल गया। इसका कोई नतीजा नहीं निकलने वाला। जो आप सोचते हैं, अगर वो आपके रूपांतरण का साधन बन जाता है - तब ठीक है। आप जिस बारे में सोचते हैं, वो तभी फायदेमंद है जब उससे आपके भीतर का जीवन सुगन्धित हो जाता है। अगर आप कुछ ऐसा सोचते हैं, जो बस आपका मन बहला रहा है, अगर उस चीज़ का मूल्य आपके भीतरी जीवन से भी ज्यादा होने लगे, तो उसका कोई फायदा नहीं है। फायदे की तो छोड़िए, उल्टा यह आपके लिए खतरनाक होगा।

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आज हम दुनिया में कई तरीकों से ऐसा कर रहे हैं। हम अपने व बाकी मानवता के साथ तमाम तरीकों से ऐसा कर रहे हैं। मैं आपके बारे में नहीं कह रहा हूं। आपमें से कोई भी फैशन मॉडल जैसा नहीं दिखता, जो कि अच्छी बात है। आप एक आम महिला की तरह दिखती हैं, जैसा कि एक महिला को दिखना चाहिए। ज्यादातर फैशन मॉडल जैसी तस्वीरों में नजर आती हैं, वैसी वास्तव में नहीं होतीं।

‘मेरा समय बहुत अच्छा गुजरा, लेकिन वीकेंड जाते ही मेरा फिर वास्तविकता से सामना हो गया’ वास्तकिता शब्द को कुछ इस तरीके से प्रयोग किया जा रहा है। इसके संदर्भ को बदलना होगा। वास्तविकता का अर्थ उस सबसे शानदार चीज से है जो घटित हो रही है।
यह सब फोटोशॉप का कमाल है। मॉडलों को इस तरह से पेश किया जाता है कि उन्हें देखकर तमाम महिलाएं वैसा ही बनना चाहती हैं। उन्हें नहीं पता होता कि मैगजीन में जो तस्वीरें छपी हैं, वे फोटोशॉप का कमाल है। बेचारी महिलाएं उन तस्वीरों के जैसी नजर आने की कोशिश में जी-जान से लगी हैं। उनके लिए शारीरिक रूप से ऐसा बन पाना संभव ही नहीं है। कई तो इसके लिए पागलपन की हद तक चली जाती हैं। वे खुद को बहुत दुःख और प्रताड़ना देतीं हैं, अपने शरीर में बदलाव के लिए वे सर्जरी तक करा लेती हैं। बहुतों की तो जान ही चली गई। इसकी वजह सिर्फ यह है कि हमें कैसा दिखना चाहिए या किसी चीज को कैसा होना चाहिए, इसे लेकर हमारी आशाएं अवास्तविक हैं। जब हम शरीर के बारे में बात करते हैं, तो हम आपको चीज ही कहेंगे क्योंकि यह तो भौतिक है।

जागरूकता सिर्फ वास्तविकता के प्रति हो सकती है

आप वास्तविकता के प्रति ही जागरूक हो सकते हैं। जो चीज वास्तविक नहीं है, उसके प्रति आप जागरूक नहीं हो सकते। पुरुष सुपरमैन बनने की कोशिश में लगे हैं और महिलाएं फोटोशॉप कराना चाहती हैं। यह जीवन है - जो भीतर है बस वही जीवन है। इसके भीतर स्वाभाविक रूप से एक ही आकांक्षा होती है कि इसे पूरी तरह से खिलना है, विकसित होना है। जीवन के लिए पूर्ण रूप से विकसित होना, न तो किसी दूसरे से बेहतर होगा और न किसी से खराब। यह अपने आप में पूर्ण होगा। यह एक संपूर्ण जीवन है।

दरअसल, किसी भी चीज पर निजी राय रखना बेहद बुद्धिमानी की निशानी माना जाता है। वैसे आपको बता दूं कि हर चीज पर एक राय रखने का मतलब है कि आप एक नंबर के बेवकूफ हैं, क्योंकि आप अपनी एक अलग वास्तविकता का निर्माण करना चाहते हैं और वास्तविकता को उस रूप में नहीं देखते, जैसी वह है।
यह ऐसा जीवन नहीं है जो किसी से तुलना करके अस्तित्व में आया है। यह अपने आप में ही पूर्ण है, लेकिन आज सामाजिक रूप से जीवन जीना अस्तित्वपरक जीवन जीने से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। अस्तित्वपरक रूप से देखें तो यह जीवन संपूर्ण है। सामाजिक रूप से यह तुलनात्मक जीवन है। यह तुलना से और दूसरे लोगों की राय से ही चलता है। मजे की बात यह है कि यह सोच उन लोगों की होती है, जिन्हें अपने बारे में भी नहीं पता कि वे कौन हैं। वे दूसरों के बारे में अपनी राय देने में व्यस्त हैं क्योंकि जब आप समाज में रहते हैं, तो हर चीज पर आपकी अपनी एक राय होनी ही चाहिए। नहीं तो आप बेकार हैं। दरअसल, किसी भी चीज पर निजी राय रखना बेहद बुद्धिमानी की निशानी माना जाता है। वैसे आपको बता दूं कि हर चीज पर एक राय रखने का मतलब है कि आप एक नंबर के बेवकूफ हैं, क्योंकि आप अपनी एक अलग वास्तविकता का निर्माण करना चाहते हैं और वास्तविकता को उस रूप में नहीं देखते, जैसी वह है। अगर आप यहां किसी भी चीज के बारे में बिना कोई राय बनाए जीना चाहते हैं तो उसका एक ही तरीका है और वह यह कि आप भरपूर जागरूकता के साथ जिएं।

आपकी राय अस्तित्व के दरवाज़े बंद करती है

पूर्वाग्रह से रहित जागरूकता आपके लिए दरवाजे खोलती है। राय आपके लिए द्वार बंद कर देती है। आप सोचते हैं, अरे यह ऐसा है, वह वैसा है। ऐसा सोचते ही दरवाजे बंद। अगर आप सामान्य रूप से ध्यान देंगे, जागरूक रहेंगे तो आपके लिए दरवाजे खुलने लगेंगे। अस्तित्व के दरवाजे खोलने का तरीका, जीवन के हर पहलू के लिए दरवाजे खोलने का तरीका है तीव्र जागरूकता का भाव। बिना किसी मकसद के, बिना किसी प्रलोभन के केवल जागरूकता ही आपके लिए दरवाजे खोलेगी।

एक बार अगर आपने कोई राय बना ली और आप इसे बदल नहीं पा रहे, तो यह ताबूत के ढक्कन की तरह है। एक बार अगर यह बंद हो गया तो आप इसे खोल नहीं सकते। अंदर से इसे खोलने का कोई तरीका नहीं होता।
लेकिन जिस पल आप किसी चीज के बारे में या किसी इंसान के बारे में कोई राय बनाएंगे, आपके लिए वे द्वार अपने आप बंद हो जाएंगे। आप इस दुनिया में रहें और आपके लिए सभी दरवाजे भी खुले रहें, यही बुद्धिमानी है। इस दुनिया में रहते हुए धीरे-धीरे अपने लिए सभी दरवाजों को बंद करते जाना मौत के जैसा है। एक बार अगर आपने कोई राय बना ली और आप इसे बदल नहीं पा रहे, तो यह ताबूत के ढक्कन की तरह है। एक बार अगर यह बंद हो गया तो आप इसे खोल नहीं सकते। अंदर से इसे खोलने का कोई तरीका नहीं होता। एक बार अगर आप ताबूत में चले गए तो आप दूसरों की दया पर निर्भर हो जाते हैं। कोई और ही उसे खोल सकता है, लेकिन आप नहीं खोल सकते। हम लोग लगातार दूसरों की राय जानने में व्यस्त हैं। दूसरों की राय, विचारों और भावनाओं से हम कुछ कारगर निकालना चाहते हैं। हमारे भीतर मौजूद जीवन दूसरों की राय के आधार पर नहीं टिक सकता। जीवन आपके या किसी और के विचारों, आपके या किसी और की भावनाओं के आधार पर नहीं टिक सकता क्योंकि यह इन सबसे परे है। इस भीतरी जीवन को बाकी जगत के साथ गुंजायमान होना है। जीवन जब बाकी जगत और उसके स्रोत के साथ संरेखित होगा, तभी वह पूरा विकसित होगा। नहीं तो यह बहुत सारी चीजों को इकठ्ठा कर लेगा। एक दिन इकठ्ठी की गई ये तमाम चीजें आपके दिमाग में इतनी हलचल पैदा कर देंगी कि आप पागल हो जाएंगे। आमतौर पर उससे पहले ही इंसान की मौत हो जाती है। एक तरह से यह अच्छी ही बात है।

मृत्यु करुणामय है

अगर आप लोगों को 200 साल तक जीवित रहने का मौका दे दें तो,  मेरा विश्वास करें 90 फीसदी लोग पागल हो जाएंगे। सौभाग्य से उससे पहले ही इंसान चल बसता है। ऐसी घटनाएं हुई हैं। 84 साल की एक महिला तलाक दिलाने वाले एक वकील के पास गई और बोली - मुझे तलाक लेना है।

अगर आप लोगों को 200 साल तक जीवित रहने का मौका दे दें तो,  मेरा विश्वास करें 90 फीसदी लोग पागल हो जाएंगे। सौभाग्य से उससे पहले ही इंसान चल बसता है।
वकील ने कहा - इस उम्र में आपको तलाक चाहिए? आपके पति की उम्र क्या है? बूढ़ी महिला ने कहा - 89 साल। वकील ने फिर पूछा - आपकी शादी को कितने साल हो गए? महिला ने कहा - 67 साल। वकील ने हैरानी से कहा - अब 67 साल के बाद जब आपकी उम्र 84 और आपके पति की 89 साल, तो आपको उनसे तलाक चाहिए? आखिर क्यों? वह बोलीं - बस बहुत हो चुका। किसी न किसी दिन आपको यह कहना ही पड़ता है कि ‘बहुत हो चुका’, नहीं तो आप पागल हो जाएंगे। इससे पहले कि आपको ऐसा कहने की नौबत आए, आमतौर पर मौत नाम की करुणामय दोस्त आपके पास आ धमकती है। नहीं तो आपके पास ‘बहुत हो चुका’ कहने की समझ ही नहीं होती। किसी और को आप पर रोक लगानी पड़ती है।

अगर, अगर, अगर, मैं कितनी बार यह अगर कहूं? अगर आपको जरा भी समझ है तो आप कहेंगे - सदगुरु, अगर मत कहिए, आप कहिए कब? आप इसे तीन बार कह रहे हैं, जिसका मतलब है तीन जीवनकाल। अगर, अगर, अगर, समय की कितनी बर्बादी है। अगर आपको समझ आ जाए, अगर आपको समझ आ जाए, अगर आपको समझ आ जाए, कितनी बार और? सात बार? सभी शगुन वाली संख्या चुन लें।

‘आपको समझ आ गई’ का मतलब यह है कि आप उन चीजों के आधार पर निष्कर्ष नहीं निकालते जो आपने समय के साथ अपने भीतर इकठ्ठी कर ली हैं।
जीरो भी काफी शगुन वाला नंबर है क्योंकि यह गणित की जान है। मैं समझ शब्द का प्रयोग उस ढंग से नहीं कर रहा जैसे आप करते हैं। चूंकि आपकी ज्ञानेंद्रियां काम कर रही हैं, इसलिए आपको कुछ बोध हो रहा है। आपकी आंखें काम कर रही हैं इसीलिए आप उजाले और अंधकार को जान पा रहे हैं। ‘आपको समझ आ गई’ का मतलब यह है कि आप उन चीजों के आधार पर निष्कर्ष नहीं निकालते जो आपने समय के साथ अपने भीतर इकठ्ठी कर ली हैं। आपके विचार, आपकी राय, जीवन में आप पर पड़े प्रभाव, आप इन चीजों के आधार पर कोई निष्कर्ष नहीं निकालते। जैसे ही आपको समझ आती है, आप हर चीज को उस तरह देखने लगते हैं, जैसी कि वह है।

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पूर्वाग्रहों को एक तरफ रखना होगा

क्या आपको समझ आया? जब आपको समझ आती है, इस बात का मतलब यह नहीं है कि आपको कोई नई बुद्धि आ गई। ऐसा नहीं है। बुद्धिमत्ता कहां से आती है? ऐसी कोई चीज नहीं है। बस बात इतनी है कि आपने एकत्र की गई अपनी तमाम बेवकूफी से भरी चीजों को एक तरफ हटा दिया और चीजों को उसी तरह से देखना, सूंघना, सुनना, स्पर्श करना और स्वाद लेना शुरू कर दिया जैसी वे हैं, उस तरह से नहीं जैसा कि आपने उनके बारे में कल्पनाएं की हैं।

लकड़ी आपका विचार है। वह आपकी जरूरत है। आपको फर्नीचर चाहिए। अगर ऐसा न हो तो आप पेड़ को इस तरह देखेंगे जैसे वह एक शानदार जीवन है, आपसे भी बड़ा जीवन।
उस तरह नहीं जैसे कि वे चीजें आपको याद हैं, बल्कि उस तरह से जैसी कि वे हैं। अगर आप चीजों को उसी रूप में देखें जैसी कि वे हैं, तो इसका मतलब है कि आपको समझ है। अगर आपको समझ है तो इसका मतलब है कि आप यहां एक जीवन के रूप में बैठ सकते हैं, एक औरत, एक आदमी, यह या वह के रूप में नहीं। खुशकिस्मती से हमारे पास ज्ञानेंद्रिया हैं, जिनके जरिये हम चीजों को समझ सकते हैं। सृष्टि के द्वारा हमें ज्ञानेन्द्रियाँ दिया जाना जरुरी नहीं थाए क्योंकि इस पूरे ब्रह्माण्ड में हम एक बेहद बारीक सा कण हैं। ब्रह्माण्ड के इतने सूक्ष्म कण होने के बावजूद आपके पास देखने, सुनने, सूंघने, स्वाद लेने और स्पर्श करने की क्षमता है, क्या यह शानदार बात नहीं है? इसीलिए मैंने कहा कि जिस दिन आपको समझ आ जाती है, आप चीजों को उसी रूप में देखने लगते हैं, जैसी वे हैं। तभी आप पेड़ को पेड़ की तरह, एक जीवन की तरह देखते हैं। आप इसे लकड़ी नहीं कहते। लकड़ी आपका विचार है। वह आपकी जरूरत है। आपको फर्नीचर चाहिए। अगर ऐसा न हो तो आप पेड़ को इस तरह देखेंगे जैसे वह एक शानदार जीवन है, आपसे भी बड़ा जीवन। आपने पेड़ को कभी अपनी गोद में नहीं लिया, लेकिन ऐसा कई बार हुआ है कि आप पेड़ की छाया में जाकर बैठे हैं और बैठ सकते हैं। इसलिए वह आपसे कहीं बड़ा जीवन है। लेकिन चूंकि आपको फर्नीचर की जरूरत होती है इसलिए आप इसे लकड़ी के रूप में देखने लगते हैं। मैं ऐसे ही दूसरे उदाहरणों में नहीं जाना चाहता, इससे सब कुछ कुरूप हो जाएगा।

बहुत सारी ऐसी चीजें हैं जिन्हें आप अपनी जरूरतों, अपनी बाध्यताओं के कारण वस्तुओं के तौर पर देखते हैं। इसका मतलब है कि आपको समझ नहीं है। अगर आपको समझ होगी तो आप चीजों को उसी रूप में देखेंगे जैसे कि वे हैं।

क्या आपके विचार और भावनाएं मददगार हैं

अब बात अध्यात्म की प्रक्रिया की। अगर इसका अर्थ आपके रवैये को बदलना है तो इसका कोई लाभ नहीं है। मान लें, आप ज्यादा प्रेममय हो गए। मैं ऐसा उदाहरण इसलिए दे रहा हूं क्योंकि अमेरिका में आजकल ऐसी चर्चा बहुत हो रही है। अपने पड़ोसियों को प्यार करना इतना महत्वपूर्ण कैसे है? वह हंस रहा है क्योंकि उसे पता है कि पड़ोस में कौन है।

अगर ऐसे भाव आपको फंसाने का एक और जरिया बन गए हैं, तो आपके प्रेम के लिए मेरे मन में कोई सम्मान नहीं है। इसकी वजह यह है कि आपको मैं सिर्फ एक जीवन के रूप में महत्व देता हूँ, आपके भावों और विचारों के रूप में नहीं।
अगर आपके विचार और भाव आपकी मुक्ति का जरिया नहीं हैं, अगर वे महज एक ऐसा ढेर हैं जो आपको कुछ समय के बाद डुबो देंगे, अगर वे पूर्वाग्रह का सामान हैं, अगर उनकी वजह से आप जीवन का अनुभव नहीं कर पा रहे हैं तो बेहतर है कि आप इन विचारों और भावों से दूरी बना लें। ‘नहीं सदगुरु, आपके प्रति मेरे पवित्र भाव हैं’ मैं जहां भी जाता हूं, लोग कहते हैं - सदगुरु आप महान हैं, हम आपसे प्रेम करते हैं। अगर आपके विचार आपको विकसित होने में मदद करते हैं, तो मेरा आशीर्वाद वहीं आपके साथ है। अगर आपके भाव आपको विकसित होने में मदद करते हैं, तो उस भाव में रहें, मेरा आशीर्वाद साथ है। अगर आपके विचार आपके खिलने के साधन भर हैं, तो मैं उन विचारों को आशीष देता हूं। उन विचारों के साथ रहें। अगर आपके कर्म आपको खिलने का मौका दे रहे हैं, तो उन कर्मों के भी मैं पक्ष में हूँ। अगर आपको मैं महान लगता हूं, अगर आप मुझे प्यार करते हैं, तो आपके इन भावों को भी मैं स्वीकार करता हूं, बशर्ते वे आपको विकसित होने में मदद कर रहे हों। अगर ऐसे भाव आपको फंसाने का एक और जरिया बन गए हैं, तो आपके प्रेम के लिए मेरे मन में कोई सम्मान नहीं है। इसकी वजह यह है कि आपको मैं सिर्फ एक जीवन के रूप में महत्व देता हूँ, आपके भावों और विचारों के रूप में नहीं।

जीवन के सन्दर्भ में विचारों का कोई मतलब नहीं

मेरी एकमात्र इच्छा है कि आप एक संपूर्ण जीवन के तौर पर खिल उठें, क्योंकि यही जीवन का लक्ष्य है। आपकी जो भी भावनाएं हैं, आपके जो भी विचार हैं या आपकी जो भी बेवकूफियां हैं, उनका जीवन के संदर्भ में कोई मतलब नहीं है। अगर आज आपको यह बात समझ नहीं आ रही है तो जब आप मौत के नजदीक होंगे तो आपको यह बात जरूर समझ आएगी।

लेकिन अगर यह जीवन खिल उठा, वास्तव में विकसित हो गया तो आप पाएंगे कि मौत आपके रास्ते में नहीं आएगी, वह आ ही नहीं सकती क्योंकि यह जीवन पूरी तरह से खिल उठा है।
लेकिन अगर यह जीवन खिल उठा, वास्तव में विकसित हो गया तो आप पाएंगे कि मौत आपके रास्ते में नहीं आएगी, वह आ ही नहीं सकती क्योंकि यह जीवन पूरी तरह से खिल उठा है। जब जीवन पूर्ण विकसित हो जाता है तो इसका किसी चीज से संबंध नहीं होता। जब इसका किसी से संबंध ही नहीं होता तो इसे छीना भी नहीं जा सकता। चूंकि यहां आपका इस जगह से संबंध है, इसलिए आपको इस जगह से छीना जा सकता है। आप इसमें फंस गए हैं द- इसलिए आपको अलग किये जाने की संभावना है।   अगर आप इसमें न फंसें, अगर आप इससे संबंध न रखें . और एक संपूर्ण खिले हुए जीवन बन जाएं। क्योंकि जब जीवन खिलता है, तो व्यक्तित्व की सीमाएं खत्म हो जाती हैं। एक बार अगर व्यक्तित्व की सीमाएं खत्म हो गईं तो आप एक ही साथ जीवन और मौत दोनों को जीते हैं। जीवन और मौत बस एक तरह का लेन-देन हैं, जो चलते रहते हैं।

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एक घंटे पहले मैं वहां बैठा था। मैं भूल गया कि आज दर्शन है। अचानक किसी ने मुझे याद दिलाया। मैंने कहा - ठीक है। मैं कुछ लिखता हूं। मैंने एक कविता लिखी जिसका शीर्षक है ‘ट्रांजैक्शंस ऑफ़ लाइफ’ (जीवन के कारोबार)।

जीवन के कारोबार

जैसे पेड़ अलग-अलग रंग ओढ़ लेते हैं

उत्सव मनाने के लिए उस मृत्यु का

जो इंतज़ार कर रही है।

जैसे एक पत्ता तैरते हुए

गिरता है धरती पर और

घुल मिल जाता है धरती से।

पृथ्वी द्वारा पेड़ को दिया गया पोषण

ही वापस पहुंचता है उस तक पत्ते के रूप में।

ऐसे ही हैं जीवन के लेन-देन -

ये जीवन के चक्रों की श्रृंखलाएं भी।

अगर जीवंतता के साथ हों ये लेन-देन

तो भर देंगे आनंद से आपको।

अगर उत्साह की कमी हो तो

थकान और उदासी बढ़ते-बढ़ते

ले जायेगी अवसाद भरी मृत्यु की ओर।

शरीर रुपी इस पत्ते को गिरने दें।

इच्छुक हो कर पत्ते को गिरने देना

है कृपा - जानें इस कृपा को।

ये रंगीन पत्ते का विलीन होना नहीं

बल्कि जीवन का विलीन हो जाना है।

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पतझड़, शीत, बसंत और ग्रीष्म के ये चक्र, बचपन और जवानी के ये चक्र३क्या मुझे अधेड़ उम्र का भी जिक्र करना चाहिए? अधेड़ उम्र, बुढ़ापा और फिर चले जाना। कम-से-कम इस देश में तो आपका जाना भी अच्छे तरीके से ही होता है। उसके लिए भी आपको लकड़ी की जरूरत पड़ती है। तो बचपन, जवानी, अधेड़ उम्र, बुढ़ापा और फिर चले जाना। फिर से जीवन और मौत का कारोबार।

क्या आपके कर्म आपको एक जीवन के तौर पर खिलने में मदद कर रहे हैं? क्या आपके विचार, भाव और कर्म इस जीवन को विकसित बनाने में आपकी मदद करते हैं? या फिर वे जीवन को सड़ा रहे हैं?
भौतिक अस्तित्व के चक्र। इंसान इन चक्रों से ऊपर तभी उठ पाएगा, जब वह जागरूक होगा। मैं जागरूक शब्द का प्रयोग वैचारिक प्रक्रिया के अगले स्तर के रूप में नहीं कर रहा, जैसा कि आजकल दुनिया में इसके बारे में प्रसार किया जा रहा है। जागरूकता साठ के दशक का शब्द है। उस वक्त इसके मायने कुछ और थे। अब इसका मतलब माइंडफुलनेस से लगाया जाता है। अरे, आखिर किस चीज से आपका दिमाग भरा है? कोई फर्क नहीं पड़ता। ‘नहीं सदगुरु मैं तो ईश्वर के बारे में सोच रहा हूं।’ कोई फर्क नहीं पड़ता। कोई फर्क ही नहीं पड़ता कि आप क्या सोच रहे हैं। सवाल बस यही है कि क्या आपके विचार आपको विकसित होने में मदद करते हैं? ‘नहीं, मैं ईश्वर से प्रेम करता हूं।’ इसका कोई मतलब नहीं है। ‘मैं तो मंदिर जाकर पूजा करता हूं।’ इसका भी कोई मतलब नहीं है। क्या आपके भाव आपको अपने वास्तविक स्वरूप में खिलने में मदद करते हैं। ‘नहीं, मैं गलत काम नहीं करता। मैं तो बस मंदिर में पूजा करता हूं।’ कोई फर्क नहीं पड़ता। क्या आपके कर्म आपको एक जीवन के तौर पर खिलने में मदद कर रहे हैं? क्या आपके विचार, भाव और कर्म इस जीवन को विकसित बनाने में आपकी मदद करते हैं? या फिर वे जीवन को सड़ा रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि वे आपको जीवन के बारे में एक विशेष राय कायम करने को बाध्य कर रहे हों? क्या वे आपको दूसरों से बेहतर महसूस करवाते हैं या फिर वे आपको ऐसा जीवन बना देते हैं जो बस पूरी तीव्रता के साथ गुंजायमान हो रहा है?

गुंजायमान सिर्फ वास्तविकता के साथ हो सकते हैं

आप मेरे बारे में जो कुछ सोचते हैं या जो कुछ कहते हैं, वह केवल तभी प्रासंगिक है, जब आप अपने इन कर्मों, इन विचारों और भावों को अपने को मेरे साथ गुंजायमान करने के लिए उपयोग कर रहे होंगे। मैंने गुंजायमान शब्द का प्रयोग क्यों किया? इसलिए क्योंकि आप केवल वास्तविकता के साथ ही गुंजायमान हो सकते हैं। आप झूठ को सोच सकते हैं।

आप किसी ऐसी चीज के साथ जागरूक नहीं हो सकते जो है ही नहीं, लेकिन ऐसी चीज के बारे में आप सोच अवश्य सकते हैं। आप ऐसी किसी चीज के बारे में भावनाएं जरूर बना सकते हैं, जो है ही नहीं।
आप उन चीजों के बारे में भावनाएँ पैदा कर सकते हैं, जिनका अस्तित्व ही नहीं है, लेकिन आप ऐसी किसी चीज के साथ गुंजायमान नहीं हो सकते जिसका अस्तित्व नहीं है। जागरूक भी आप केवल उसी चीज के प्रति हो सकते हैं, जो वास्तव में है। आप किसी ऐसी चीज के साथ जागरूक नहीं हो सकते जो है ही नहीं, लेकिन ऐसी चीज के बारे में आप सोच अवश्य सकते हैं। आप ऐसी किसी चीज के बारे में भावनाएं जरूर बना सकते हैं, जो है ही नहीं। आप बार-बार ऐसी चीजों को लेकर कर्म करते रह सकते हैं, जिनका अस्तित्व ही नहीं है, लेकिन आप ऐसी चीज के प्रति जागरूक नहीं हो सकते। जागरूक होने का अर्थ है कि आपने अपने बेवकूफी से भरे मन को एक तरफ हटा दिया है। आपके मन के भरे होने का मतलब जागरूक होना नहीं है। आप केवल वास्तविकता के प्रति ही जागरूक हो सकते हैं। आप उस वस्तु के प्रति जागरूक नहीं हो सकते, जो वास्तविक नहीं है। मैं अपने शरीर के प्रति जागरूक हूं। अगर आप भरपूर ध्यान देंगे तो आप देखेंगे कि आपके उस ध्यान में आपका शरीर घुल जाएगा। आपका शरीर बहुत ज्यादा ध्यान को नहीं ले सकताए मैं चाहता हूँ कि अप ये जानें। मुझे पता है कि आजकल शरीर बस ध्यान आकृष्ट करने का उपकरण है। पर शरीर खुद बहुत ज्यादा ध्यान नहीं झेल सकता। बहुत ज्यादा ध्यान आप अपने शरीर पर लगाएंगे तो आप खुद को शरीर रहित महसूस करने लगेंगे। लेकिन आप थोड़ा ही ध्यान लगाते हैं और फिर कल्पनाएं करने लगते हैं। अगर आप तीव्र ध्यान देंगे तो आपका शरीर घुल जाएगा।

कुत्ते में मानसिक सजगता ज्यादा है

भौतिक शरीर एक सीमा से ज्यादा ध्यान सह नहीं सकता। अगर आपका ध्यान सम्पूर्ण रूप से तीव्र हो गया तो सारा शरीर ही घुल जाएगा। जो वास्तव में सच है, केवल उसी का अस्तित्व रह जाएगा। यह है जागरूक होने का मतलब। मन तो एकत्र की गई तमाम चीजों को ढेर है और अगर एकत्र की गई चीजें नहीं होंगी तो मन का कोई मोल ही नहीं होगा। हर कोई अपने को शिक्षित करने को उत्सुक है। इसकी वजह यह है कि वह चाहता है कि जल्दी-से-जल्दी वह ज्यादा-से-ज्यादा एकत्र कर सके।

भौतिक शरीर एक सीमा से ज्यादा ध्यान सह नहीं सकता। अगर आपका ध्यान सम्पूर्ण रूप से तीव्र हो गया तो सारा शरीर ही घुल जाएगा। जो वास्तव में सच है, केवल उसी का अस्तित्व रह जाएगा। यह है जागरूक होने का मतलब।
वह सोचता है कि मैं अपने मन में कितना एकत्र कर सकता हूं। उसे ये पता है कि अगर काफी सारी चीजें एकत्र नहीं कीं तो मन बेकार की चीज है। जागरूक होने का मतलब है उन तमाम चीजों को हटा देना जो आपने एकत्र की हैं। आप बस वास्तविकता के साथ एकाकार हो जाते हैं। इस तरह जागरूकता तमाम तरह की चीजों से भरे मन की जगह नहीं ले सकती। आपको पता है आदमी का सबसे अच्छा दोस्त कौन है? औरत मत कहना। आदमी का सबसे अच्छा दोस्त कुत्ता है। औरत का भी सबसे अच्छा दोस्त कुत्ता ही है। क्यों? कुत्ता आदमी का सबसे अच्छा दोस्त इसलिए बन गया क्योंकि जब इंसान लगातार खतरे में रहता था तो कुत्ता ही उसकी जान बचाता था। कुत्ता आपसे कहीं ज्यादा मानसिक रूप से चुस्त है। उसे भौतिक वास्तविकता की आपसे ज्यादा समझ है। आपको नींद आ सकती है, लेकिन वह हर हल्की-से-हल्की आवाज, हर गंध और आसपास होने वाली हर गतिविधि पर चैकन्ना हो जाता है। तो जब जंगलों में रहने के कारण इंसान के आसपास लगातार खतरा बना रहता था तो उसका पूरा जीवन कुत्ते पर ही निर्भर था। बस इस तरह कुत्ता इंसान का सबसे अच्छा दोस्त बन गया, लेकिन अब एक बार फिर आप लोग अपने घरों में अकेले रहने लगे हैं। ऐसे में एक बार फिर कुत्ता आपका सबसे अच्छा दोस्त बन गया है। आपने अपने आपको घर के भीतर कैद कर लिया है। लोगों से भी आप कम ही मिलते-जुलते हैं। ऐसे में कुत्ता ही आपका सच्चा साथी रह गया है।

 

आप उसके साथ जो चाहे करें, लेकिन जब आप काम से लौटकर आएंगे, तो वह फिर आपको प्यार करने लगेगा। ऐसा कोई इंसान नहीं कर सकता। चाहे तो आप प्रयोग करके देख लें। ऑफिस जाने से पहले जरा अपने कुत्ते को लात मारिए। डरकर या गुस्से में वह कहीं जाकर बैठ जाएगा, लेकिन शाम को जब आप वापस आएंगे तो वह फिर आपके पास प्यार से आ जाएगा और आपका सबसे अच्छा दोस्त होगा।

ऑफिस जाने से पहले जरा अपने कुत्ते को लात मारिए। डरकर या गुस्से में वह कहीं जाकर बैठ जाएगा, लेकिन शाम को जब आप वापस आएंगे तो वह फिर आपके पास प्यार से आ जाएगा और आपका सबसे अच्छा दोस्त होगा।
कोई इंसान यह सब नहीं सहेगा। आप किसी इंसान के साथ ऐसा करके देखिए, आपके संबंध हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे। कुत्ते की स्थिति दुनिया में बदल गई है। वह सच्चा दोस्त है, लेकिन आज वह अलग वजहों से भी खास हो गया है। उसकी योग्यता यह है कि वह आपसे कहीं ज्यादा मानसिक रूप से सजग है इसीलिए जंगलों में रहने के दौरान वह इंसान का सबसे अच्छा दोस्त बना, लेकिन अब वह आपका सबसे अच्छा दोस्त दूसरी वजह से बन रहा है। हर कुत्ते का दिन आता है, लेकिन इंसान का अपना समय कब आएगा?

 

हमारा वक्त वह नहीं है जब हम इस दुनिया को नष्ट कर देंगे और राख के ढेर पर बैठे होंगे। हमारा वक्त वह नहीं होगा, जब पूरी दुनिया पर हम हावी होंगे और इस धरती पर मौजूद हर प्राणी पर भी हमारा वर्चस्व होगा। हमारा वक्त वह होगा जब जैसे पेड़ पर पूरी तरह से बहार आ जाती है, फूल खिल उठते हैं, ठीक उसी तरह इंसान पूर्ण विकसित हो जाएगा। ऐसा मौसम कब आएगा? सद्गुरु किस युग में ऐसा संभव होगा? अमेरिकी लोग इसे बसंत तक टाल देंगे और भारतीय इसे अगले युग तक।

वैसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह सब आप एक पल के लिए टाल रहे हैं या एक सदी के लिए क्योंकि कल तो कभी आता नहीं है।
सतयुग आना है, लेकिन वह तो कई हजार साल बाद आएगा। आप जैसे-जैसे ज्यादा-से-ज्यादा इतिहास और संस्कृति इकठ्ठी करते जाएंगे, चीजों को हजारों साल आगे टालते रहने की क्षमता आपके अंदर आती जाएगी। अगर आपको इतिहास और संस्कृति का ज्यादा ज्ञान नहीं होगा तो आप ऋतुओं के हिसाब से चीजों को आगे टालेंगे। अभी तो सर्दियां हैं, इसलिए मुझे परेशानी हो रही है, बसंत आते ही सब ठीक हो जाएगा। जब आपके पीछे इतिहास की भारी समझ होगी और संस्कृति की भी बहुत बड़ी मात्रा आपके इर्द-गिर्द होगी तो आप चीजों को हजारों साल के लिए टाल देंगे क्योंकि उस स्थिति में आपकी स्मृति बहुत पीछे चली जाती है। वैसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह सब आप एक पल के लिए टाल रहे हैं या एक सदी के लिए क्योंकि कल तो कभी आता नहीं है।

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कल अच्छा होगा - यही सबसे बड़ा षड्यंत्र है

माफ करना अगर मैं जेम्स बाँड की तरह बोल रहा हूं। जेम्स बाँड ने इसे अपनाया हैए ठीक है। भारत में इन दिनों एक चुटकुला चल रहा है क्योंकि पूर्व जेम्स बाँड पान पराग का विज्ञापन कर रहे हैं। जो लोग पान पराग नहीं जानते, उन्हें बता दूं कि यह सुपारी और थोड़े से तंबाकू का मिश्रण होता है। तंबाकू को मुंह के कैंसर का एक बड़ा कारण माना जाता है।

इसीलिए मैं कहता हूं कि इस धरती पर सबसे बड़ी बुराई वह उम्मीद है जो आपको यह दिलासा दिलाती है कि कल आज से बेहतर होगा। एक बार अगर आप अपने को ऐसी दिलासा दिलाई, तो सब बेकार।
अब पूर्व जेम्स बाँड पान पराग का ऐड कर रहे हैं। पान पराग के बॉक्स के साथ वह लोगों को ज़मीन पर गिरा रहे हैं और तमाम बड़े-बड़े काम करते नजर आ रहे हैं। वह मानवता के खिलाफ षडयंत्र के भेद खोल रहे हैं। ये पान पराग मानवता के खिलाफ षड्यंत्र ही है। मानवता के खिलाफ सबसे बड़ा षडयंत्र यह है कि कल आज से बेहतर होगा। ये मानवता के खिलाफ सबसे बड़ा षड्यंत्र है। कि कल आज से बेहतर होगा। लोग इसे उम्मीद कहते हैं। मैं इसे नाउम्मीदी कहता हूं। जैसे ही आप यह सोचते हैं कि कल आज से बेहतर होगा, आप हमेशा हमेशा के लिए एक तरह के धोखे में रहना शुरू कर देते हैं। कल हमेशा ही अच्छा होगा क्योंकि कल कभी आता ही नहीं है। कर्नाटक में एक अंधविश्वास हैं कि शाम को सूरज छिपने से पहले आपको घर में तेल का दीया जला देना चाहिए। मान्यता है कि अगर आपने सूरज छिपने से पहला ऐसा नहीं किया तो भूत-प्रेत बाहर इंतजार कर रहे हैंए और वे आपके घर में घुस सकते हैं। अगर कभी सूरज डूबने से पहले कोई अपने घर में तेल का दीया नहीं जला पाया तो इससे बचने का तरीका है कि वह घर के दरवाजे पर लाल पेंट से लिख देगा ‘नाले बा’। इसका मतलब है कल आना। ऐसे में भूत-प्रेत आते हैं और जब आपके दरवाजे पर ‘कल आना’ लिखा देखते हैं तो उन्हें लगता है अरे ये घर तो कल के लिए है। और वैसे भी आप ये चाहते हैं कि वो आपके पडोसी के घर चले जाएं। वे यह सोचकर चले जाते हैं कि उन्हें अब कल आना होगा। चूंकि कल कभी नहीं आता इसलिए भूत-प्रेत कभी भी आपके घर में घुस ही नहीं पाते। यह एक अच्छा तर्क है।

इसीलिए मैं कहता हूं कि इस धरती पर सबसे बड़ी बुराई वह उम्मीद है जो आपको यह दिलासा दिलाती है कि कल आज से बेहतर होगा। एक बार अगर आप अपने को ऐसी दिलासा दिलाई, तो सब बेकार। ऐसे खूबसूरत लोल्लिपोप जैसे बच्चे जो यहां बैठे हैं, हम उन्हें ये सब चीज़ें बता रहे हैं। दुर्भाग्य से हम उनके जीवन को जहरीला बना रहे हैं। हम उन्हें बता रहे हैं कि - “यह कर लो फिर सब अच्छा हो जाएगा। पढ़ाई पूरी कर लो, उसके बाद तो सब अच्छा ही अच्छा है। नौकरी मिल जाए, फिर सब ठीक हो जाएगा। बस शादी और हो जाए, फिर तो सब कुछ ठीक हो जाएगा।” फिर आपके जाने के बाद ही सब अच्छा होगा। नहीं, ऐसा न करें। जिस पल आपने उम्मीद पैदा की, उसी पल आप नाउम्मीद हो जाते हैं।

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जो लोग हतोत्साहित अवसाद ग्रस्त हो चुके हैं, उनके लिए आशा ठीक है। जो लोग अपने विचारों और भावों के दास बन चुके हैं, उनके लिए आशा एक अच्छा यंत्र है - या फिर वे ऐसा सोचते हैं। लेकिन इस जीवन को आशा की जरूरत नहीं है। इसे उल्लास और प्राचुर्य की जरूरत है। इसे आपके आसपास मौजूद हर चीज के साथ गुंजायमान होना चाहिए और यह अभी किया जा सकता है।

लेकिन अगर आप निराशा में हैं, तनाव या अवसाद में हैं तो आप एक भी प्लान को पूरा नहीं कर सकते। आप प्लान बनाते तो हैं, लेकिन प्लान बनाते-बनाते ही उसे जीना शुरू कर देते हैं। एक निराशा से भरे शख्स के साथ ऐसा ही होता है।
यह कल नहीं हो सकता। आप कल में नहीं जी सकते। आपको आज में ही जीना होगा। आप कल के बारे में सोच सकते हैं। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आपको कल की योजना ही नहीं बनानी चाहिए, लेकिन अगर आप अभी इसी पल काफी उल्लास और मस्ती में हैं तो आप पाएंगे कि आपके पास करने के लिए रोज पांच प्लान होंगे। अगर ये सभी असफल हो जाते हैं तो भी आपकी मस्ती कम नहीं होगी, वह और बढ़ जाएगी। लेकिन अगर आप निराशा में हैं, तनाव या अवसाद में हैं तो आप एक भी प्लान को पूरा नहीं कर सकते। आप प्लान बनाते तो हैं, लेकिन प्लान बनाते-बनाते ही उसे जीना शुरू कर देते हैं। एक निराशा से भरे शख्स के साथ ऐसा ही होता है। आप प्लान बनाने की कोशिश करते हैं और आधा बनने के बाद ही उसे जीना शुरू कर देते हैं। जब आप एक ऐसी चीज को जीना शुरू कर देते हैं जो वास्तविक ही नहीं है तो जाहिर है कहीं-न-कहीं यह लड़खड़ाकर गिरेगी ही। जब यह लड़खड़ाकर गिरेगी, तो आपको परेशानी होगी। इस तरह लोग ऐसे दिन की परेशानी को भी झेलते हैं, जो अभी आया ही नहीं। वे आने वाले कल की परेशानी झेल लेते हैं, है न? यह भी हो सकता है कि कोई ज्यादा ही काबिल हो और वह आने वाले कल से अगले दिन की परेशानी को भी आज ही झेल ले। अगर आप अंडरग्रैजुएट हैं तो आप आने वाले कल के कष्टों को लेकर आज ही परेशान हो लेते हैं और अगर आप ग्रैजुएट हैं तो आप आने वाले कल के बाद वाले दिन की परेशानी को भी आज ही झेल लेते हैं। और अगर आप पीएचडी हैं तब तो आप आने वाली एक सदी की समस्याओं को लेकर आज ही परेशान हो सकते हैं।

वास्तविकता शब्द का प्रयोग ठीक से करना होगा

आध्यात्मिक प्रक्रिया का मतलब असामान्य होना नहीं है। इसका मतलब यह भी नहीं है कि सुबह से शाम तक आप कुछ ऐसा बड़बड़ाते रहें जिसे कोई समझ ही न सके। इसका संबंध पूजा से भी नहीं है और न ही इसका संबंध प्रेम से है। इसका मकसद लोगों का रवैया बदलना भी नहीं है। इसका मतलब जीवन के साथ तारतम्य बैठा लेना है जिससे यह जीवन संपूर्ण रूप से खिल सके। यही है जो आप कर सकते हैं। बाकी सब झूठ है। देवता, राक्षस कुछ नहीं हैं। सब आपके दिमाग की बनाई हुई चीजे हैं। अब आपको सदगुरु मिल गए हैं।

मैं कोई वादा नहीं हूँ, मैं जीता-जागता अस्तित्व हूं। वादा हमेशा कल के लिए होता है। अभी अगर आप इच्छुक हैं तो हम अभी साथ में गुंजायमान हो सकते हैं। अगर आप कल के बारे में सोचते हैं तो आप स्वर्ग जा सकते हैं।
उन्हें भी आप देवता के स्तर पर ले जा रहे हैं। उन्हें डर है कि उन्हें किसी भी समय देवता के रूप में स्थापित किया जा सकता है क्योंकि देवता बनने के बाद वह आपके घरों की दीवारों पर टांग दिए जाएंगे। अगर उनकी मौजूदगी से आपका जीवन गुंजायमान हो रहा है तो बहुत अच्छा है। लेकिन अगर आप उन्हें अपने घर की दीवार पर टांगने की तैयारी कर रहे हैं तो इसका कोई फायदा नहीं है। इस काम के लिए किसी और को ढूंढिए। मैं आपके घरों की दीवार पर टंगने का इच्छुक नहीं हूं। मैं ऊपर नहीं चढ़ना चाहता। मैं मरने के बाद छितरा जाऊंगा। ठीक है? अरे सदगुरु हमने तो सोचा था कि आप स्वर्ग में जाएंगे और हमारी प्रतीक्षा करेंगे। नहीं, मैं बिखर जाऊंगा। मैं ऊपर नहीं चढूंगा। मैं कोई वादा नहीं हूँ, मैं जीता-जागता अस्तित्व हूं। वादा हमेशा कल के लिए होता है। अभी अगर आप इच्छुक हैं तो हम अभी साथ में गुंजायमान हो सकते हैं। अगर आप कल के बारे में सोचते हैं तो आप स्वर्ग जा सकते हैं। आपको मैं वहां नहीं मिलूंगा, क्योंकि मुझे बेवकूफी से भरे उस स्वर्ग से बेहतर जगह मिल गई है, जहां वे बिना शरीरों के खाते हैं और बिना शरीरों के ही सहवास करते हैं। मुझे इस तरह की कल्पनाएं पसंद नहीं। क्या आप वास्तविकता के लिए तैयार हैं? या फिर आपको कुछ ऐसा शानदार चाहिए, जो सच नहीं है।

ओह मैं वास्तविता में वापस आ गया। लोग इसका मतलब समहते हैं, कि मैं एक नीरस और बकवास जगह वापस आ गया। वास्तविकता को लोगों ने इसी तरीके से समझा है। नहीं, वास्तविकता बेहद शानदार जगह है। आपकी कल्पना वास्तविकता की कब्ज भरी अभिव्यक्ति है। क्या वास्तविकता आपकी कल्पना के बल पर पोषित हो रही है या आपकी कल्पना ने वास्तविकता से थोड़ा कुछ लिया है? इनमें क्या सही है? आपकी कल्पना ने वास्तविकता का एक छोटा सा कण उठा लिया है और वह उसे ही सब कुछ समझ रही है। नहीं? वास्तविकता का स्थान बहुत ही विशाल है। ‘मेरा समय बहुत अच्छा गुजरा, लेकिन वीकेंड जाते ही मेरा फिर वास्तविकता से सामना हो गया’ वास्तकिता शब्द को कुछ इस तरीके से प्रयोग किया जा रहा है। इसके संदर्भ को बदलना होगा। वास्तविकता का अर्थ उस सबसे शानदार चीज से है जो घटित हो रही है। तो बात वास्तविकता की है, कल्पना की नहीं। बात आशा की या आने वाले कल की नहीं। बात इसी पल की है।