सद्‌गुरुइस स्पॉट में, सद्‌गुरु न्यूयार्क से अपनी नई किताब ‘इनर इंजीनियरिंग: योगी ने दिखाई आनंद की राह’ के बारे में लिख रहे हैं। इस पुस्तक का हाल ही में उत्तरी अमेरिका में लोकार्पण किया गया। सद्‌गुरु बता रहे हैं कि इस पुस्तक का लक्ष्य क्या है और वह कितनी असरदार होगी। वे हमें बता रहे हैं कि उन्होंने दुनिया को जो भेंटें दी हैं, उनमें इस पुस्तक का क्या स्थान है और यह उनकी बाकी किताबों से ही नहीं, बल्कि बाजार में मौजूद किसी भी दूसरी किताब से क्यों अलग है। ‘यह कोई उपदेश नहीं है। इसमें एक ऐसे आयाम से आपका मेल होता है, जो भौतिक प्रकृति से परे है।’

मैं आज न्यूयार्क सिटी में हूं, जहां इनर इंजीनियरिंग के बारे में एक नई किताब का आधिकारिक रूप से लोकार्पण हो रहा है। बीस सालों से मैं इस पुस्तक के बारे में सोच रहा था। यह हमारी ओर से एक और भेंट है। यह सब एक योजनाबद्ध तरीके से किया गया है। चौदह दिवसीय शुरूआती ईशा योग कार्यक्रम से हमारे पास स्वयंसेवियों का एक मजबूत आधार तैयार हो गया, जो अब कई तरह से संगठन की रीढ़ है।

हमने इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम के कुछ हिस्से अब पुस्तक में डाल दिए हैं, जो कि हमने इससे पहले कभी नहीं किया। यह पुस्तक अपने आप में एक छोटे कार्यक्रम की तरह ही है।
वहां से शुरु कर के हम साप्ताहिक इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम पर पहुंचे और फिर इनर इंजीनियरिंग ऑनलाइन और अब इनर इंजीनियरिंग पुस्तक तक हम आ चुके हैं। हमने धीरे-धीरे इसे आसान बनाया है ताकि इनर इंजीनियरिंग ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके। हमने इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम के कुछ हिस्से अब पुस्तक में डाल दिए हैं, जो कि हमने इससे पहले कभी नहीं किया। यह पुस्तक अपने आप में एक छोटे कार्यक्रम की तरह ही है। हमारी बाकी सभी पुस्तकें प्रेरणादायी हैं और यह पुस्तक रूपांतरणकारी है।

पूरे महीने मैं सफर में ही रहूंगा क्योंकि उत्तरी अमेरिका के कई बड़े शहरों और विश्वविद्यालयों में बहुत से समारोह हैं। समय की बाध्यता की वजह से फिर ऐसा दौरा संभव नहीं हो पाएगा। लोग इन समारोहों से बहुत उम्मीद लगा कर बेहद उत्साहित हैं क्योंकि वे जानते हैं कि अप्रत्याशित की उम्मीद भी की जा सकती है। यहां कुछ भी पूर्वनियोजित या मानक नहीं है। मैं लोगों को देखकर निर्णय लेता हूं कि हमें क्या करना चाहिए।

खुशी की खोज अमेरिकी संविधान में ही निहित है। मगर आज यह खोज जरूरत से अधिक हो रही है, यह जाने बिना कि खुशी किस दिशा में मिलेगी।
यह सिर्फ पुस्तक का लोकार्पण नहीं है, इसका लक्ष्य है कि यहां आने वाला हर व्यक्ति एक अनुभव से गुजरे। पश्चिम के पाठकों के लिए यह मेरी पहली किताब है। जब लोग अपनी भाषा में कोई चीज पढ़ते हैं और मुझे अपनी भाषा में, अपनी ही शैली में, अपने सांस्कृतिक मूल्यों के हिसाब से बोलते सुनते हैं, तो वे तुरंत जुड़ जाते हैं। इसी बात से फर्क आता है। इस ‘पुस्तक-दौरे’ का मुख्य उद्देश्य अमेरिका को एक बड़े स्तर पर छूना है। अगर अमेरिका आंतरिक आयाम की तरफ मु‌ड़ता है, तो बाकी दुनिया भी उसका अनुसरण करेगी।

यह पुस्तक प्रस्तुतीकरण और विषय के मामले में बाजार में मौजूद सभी ‘सेल्फ-हेल्प-बुक्स’ से बहुत अलग है। यह और भारतीय गुरुओं की किताबों से भी अलग है, क्योंकि यह किसी धार्मिक किताब, धर्म या दर्शन पर आधारित नहीं है। इसमें मेरे जीवन के अनुभव हैं, जिसके कारण इसमें एक अनूठापन है। हर कोई इससे जुड़ सकता है क्योंकि इसका संबंध किसी खास परंपरा या संस्कृति से नहीं है, बल्कि अपने भीतर के आयाम से है। ये न पूरब से जुड़ी है न पश्चिम से।

इंसान को यह सीखने की जरूरत है कि बिना कारण के आनंदित कैसे रहा जाए। इसका मुझसे कोई संबंध नहीं है। इसका ईशा से कोई संबंध नहीं है। यह एक ऐसी चीज है, जो मानवता के साथ घटित होनी चाहिए।
यह एक आंतरिक आयाम है, जिसे हर इंसान को खोजना चाहिए। यह ईश्वर के बारे में भी नहीं है। यह आपको किसी धर्म या संप्रदाय में परिवर्तित करने के लिए नहीं है। इसका लक्ष्य आपको वह बनाना है, जो आप वास्तव में हैं। अभी लिंग, राष्ट्रीयता, जाति, धर्म, जैसी पहचानों के कारण आप ऐसी चीजों का एक मिश्रण बन गए हैं, जो ‘आप’ नहीं हैं। मुख्य रूप से, आप सिर्फ एक जीवन हैं। मगर हो सकता है कि आपने कभी उसका अनुभव न किया हो। मेरा काम आपको फिर से सिर्फ एक जीवन बनाना है।

अमेरिका को दूध और शहद का देश कहा जाता है। दूध और शहद तभी तक अच्छे हैं, जब आप उन्हें थोड़ी मात्रा में लेते हैं, उसमें डूब नहीं जाते। खुशी की खोज अमेरिकी संविधान में ही निहित है। मगर आज यह खोज जरूरत से अधिक हो रही है, यह जाने बिना कि खुशी किस दिशा में मिलेगी। अमेरिका जो सपना देखता है, पूरी दुनिया भी उसी को पाना चाहती है।

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इंसान को यह सीखने की जरूरत है कि बिना कारण के आनंदित कैसे रहा जाए। इसका मुझसे कोई संबंध नहीं है। इसका ईशा से कोई संबंध नहीं है। यह एक ऐसी चीज है, जो मानवता के साथ घटित होनी चाहिए।
मगर यह ‘सपना’ बहुत विनाशकारी है। ‘लिविंग प्लैनेट’ की रिपोर्ट कहती है कि अगर धरती के सभी सवा सात अरब लोग एक औसत अमेरिकी की जीवनशैली में जीवन बिताएं, तो हमें चार ग्रहों की जरूरत पड़ेगी। मगर हमारे पास बस आधा ग्रह बचा है। किसी समाज का जीवन और लक्ष्य अगर इस सोच पर आधारित हो कि बाहरी चीजों को ठीक करने पर सब कुछ ठीक हो जाएगा, तो यही परिणाम होगा।

अब समय है यह समझने का कि इंसान का सुख और खुशहाली बाहरी दुनिया को ठीक करने से नहीं मिलने वाला। हो सकता है कि आप किसी एयरकंडीशंड कमरे में बैठें हो फिर भी अपने भीतर बेचैन हों, उबल रहें हों। अमेरिका, जो दुनिया के सबसे संपन्न देशों में से एक है, उस जैसे देश में आप इस बात की उम्मीद कर सकते हैं यहां के लोग निर्भीक और आजाद होंगे। मगर दुर्भाग्यवश यह सच्चाई नहीं है। लोग सिर्फ भौतिक स्तर पर आजाद हैं। लेकिन अपने भीतर कहीं गहराई में वे डरे हुए और कष्ट में हैं। वे अपनी मनपसंद गाड़ियां चला रहे हैं, मगर वे किनारे आ चुके हैं। एक छोटी सी बात से ही वे टूट सकते हैं। ऐसा सिर्फ अमेरिका में नहीं, हर जगह के संपन्न और प्रभावशाली लोगों के साथ यही हाल है। इसीलिए इनर इंजीनियरिंग बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। जब आप अपनी आंतरिक आयाम को ठीक करेंगे, तभी आप भौतिक चीजों और सुख-सुविधाओं का आनंद ले पाएंगे।

हमने बाहरी दुनिया की इंजीनियरिंग अब काफी कर ली है, अब समय है कि हम अपने भीतरी आयाम की इंजीनियरिंग करें। बाहरी दुनिया को बदलने में अच्छा-खासा समय लगेगा, लेकिन अपनी आंतरिक आयाम को आप एक पल में बदल सकते हैं। बस आपके अंदर इच्छा होनी चाहिए। यह कोई उपदेश नहीं है।

हमने बाहरी दुनिया की इंजीनियरिंग अब काफी कर ली है, अब समय है कि हम अपने भीतरी आयाम की इंजीनियरिंग करें।
इसके लिए आपको बस एक ऐसे आयाम से परिचित कराना होगा, जो भौतिक प्रकृति से परे है। अभी जीवन का आपका सारा अनुभव आपके अस्तित्व के भौतिक पहलुओं तक ही सीमित है। और सारी भौतिक चीजें वे हैं जो आपने इकट्ठी की हैं। धरती के निन्यानवे फीसदी लोगों का जीवन उन्हीं कुछ चीज़ों के इर्द गिर्द घूमता है जो उन्होंने इकट्ठी की हैं। इकट्ठा की गई चीजें कुछ भी हों - चाहे वह एक पुरुष हो, एक स्त्री हो, आपका बच्चा हो, अपना शरीर हो, घर, शिक्षा, पैसा या और कुछ हो, आप जो कुछ इकट्ठा करते हैं, वह आपका हो सकता है, मगर वह 'आप' कभी नहीं हो सकते। अगर आप इस बात को समझ गए, तो यह आपको रूपांतरित कर सकता है।

अभी दुर्भाग्यवश अमेरिका दुनिया को जीवन की नकारात्मक चीजों की ओर प्र‍ेरित कर रहा है। दुनिया के ज्यादातर लोगों को अमेरिका की ठाट-बाट दिखती है। मैं देखना चाहता हूं कि अमेरिका सही चीजें करने में अगुआई करे। फिर दुनिया भी सही चीजें करेगी। दो बुनियादी चीजें हैं जो हम में से हर किसी को किसी न किसी रूप में दुनिया के लिए करनी चाहिए।

अमेरिका, जो दुनिया के सबसे संपन्न देशों में से एक है, उस जैसे देश में आप इस बात की उम्मीद कर सकते हैं यहां के लोग निर्भीक और आजाद होंगे। मगर दुर्भाग्यवश यह सच्चाई नहीं है।
पहला यह कि यह भौतिक दुनिया हमें जिस रूप में मिली थी, उसे थोड़ी बेहतर स्थिति में छोड़ कर जाएं। मेरे ख्याल से हम इसमें बिल्कुल विफल रहेंगे। पहले ही काफी नुकसान हो चुका है। हम अपने जीवन काल में इसे ठीक नहीं कर सकते। मगर हम उस दिशा में सही चीजें करना शुरू कर सकते हैं। एक और बहुत महत्वपूर्ण चीज यह पक्का करना है कि अगली पीढ़ी हमसे बेहतर हो। जब तक कि अगले दस, पंद्रह सालों में हम गंभीरता से इस दिशा में प्रयास नहीं करेंगे, हम इस पहलू में भी विफल रहेंगे।

न्यूयार्क सिटी में कितने लोग बिना टेलीविजन, ड्रामा, फिल्मों, दोस्तों, यहां तक कि वाइन के गिलास के बिना अपने आप को स्थिर और शांत रख सकते हैं? संभवत: पंचानवे फीसदी लोग खुद को शांत करने के लिए किसी न किसी रसायन का इस्तेमाल कर रहे हैं। खुश होने के लिए उन्हें एक तगड़ी खुराक की जरूरत पड़ती है।

जीवन को सुखद रूप में अनुभव करना और किसी न किसी तरह से उस सुख को लगातार बढ़ाना इंसान की स्वाभाविक इच्छा होती है। इसके लिए अगर आप उन्हें अपने भीतर मौका नहीं देंगे, तो वे ड्रग्स जैसे बाहरी समाधान ढूंढ लेंगे।
आनंदविभोर होने के लिए उन्हें बहुत जबर्दस्त नशे की जरूरत पड़ती है। यह बहुत दुखद स्थिति है। अगर हम मानव चेतना की दिशा और दशा को सुधारने के लिए अगले पंद्रह से बीस सालों में कुछ महत्वपूर्ण नहीं करेंगे, तो साठ-सत्तर सालों में नब्बे फीसदी आबादी तेज नशे की आदी होगी। जीवन को सुखद रूप में अनुभव करना और किसी न किसी तरह से उस सुख को लगातार बढ़ाना इंसान की स्वाभाविक इच्छा होती है। इसके लिए अगर आप उन्हें अपने भीतर मौका नहीं देंगे, तो वे ड्रग्स जैसे बाहरी समाधान ढूंढ लेंगे। यही स्थिति हम बदलना चाहते हैं।

इंसान को यह सीखने की जरूरत है कि बिना कारण के आनंदित कैसे रहा जाए। इसका मुझसे कोई संबंध नहीं है। इसका ईशा से कोई संबंध नहीं है। यह एक ऐसी चीज है, जो मानवता के साथ घटित होनी चाहिए। यह रूपांतरण की एक ऐसी प्रक्रिया के जरिये घटित हो सकता है, जो न तो धार्मिक हो और न लोगों को बांटे। एक ऐसी प्रक्रिया जिसके लिए कोई खास पृष्ठभूमि या काबिलियत होना भी जरूरी न हो। हर इंसान जिसे अपना कर खुद में और दुनिया में फर्क ला सके। इनर इंजीनियरिंग पुस्तक को अमेरिका में जबर्दस्त प्रतिक्रिया मिल रही है। अमेरिका में होने वाले सभी समारोहों की सारी टिकटें बिक चुकी हैं। जो लोग कार्यक्रम में हिस्सा नहीं ले पा रहे, वे इनर इंजीनियरिंग पुस्तक को खरीदें - मुझे अपने घर लाने का यह भी एक तरीका है।

Love & Grace

संपादक की टिप्पणी:

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ये पुस्तक हिंदी में अगले साल के जून माह में उपलब्ध होगी।