अपने अफ्रीका और अमेरिका यात्रा का वर्णन करते हुए इस हफ्ते के स्पाॅट में सद्‌गुरु अफ्रीकी महाद्वीप के अनोखेपन और वहां मौजूद भारतीयों के योगदान की चर्चा कर रहे हैं, साथ ही बता रहे हैं अपने यूएन के संबोधन के बारे में:


अगर अफ्रीका की भूमि व या मिट्टी की बात की जाए तो सबसे पहली चीज जो मैंने गौर की, वह थी मिट्टी की ताकत। इस धरती पर कुछ ही जगहों की मिट्टी ऐसी महसूस होती है। यह काफी महत्वपूर्ण है कि अफ्रीका ने अपने मिट्टी की संपन्नता और हरियाली को बनाए रखने के लिए नीतिगत तरीके से चलता है। हालांकि अफ्रीका का बड़ा भूभाग बंजर है, लेकिन जिन भूभागों में जंगल हैं, उन्हें यथावत बनाए रखने के लिए उसे काफी सावधानी से संभालना होगा। पिछली कुछ सदियों में अफ्रीका के लोगों ने भयानक पीड़ा झेली है।
आज भी वहां के लोग वैसे ही हैं, जैसे एक हज़ार पहले लोग रहे होंगे। इनका खानपान, पहनावा और व्यवहार देखकर लगता है कि यह आज ही धरती से ताजे-ताजे बाहर आए हैं।
शोषण, बाहरी लोगों द्वारा उनके जमीनों पर कब्जा, भीषण दास व्यापार और सांस्कृतिक शक्ति के पतन ने उन लोगों को ऐसे हालात में पहुँचा दिया, जहां वह कम कुशल व कम क्षमतावान दिखाई देने लगे। खुशकिस्मती से वहां की युवा आबादी अपने कामों से गर्व महसूस कर रही है और जोशीले और उत्साहभरे माहौल में भविष्य की ओर आगे बढ़ रही है। उनके इस अभियान में दुनिया को शामिल होने और उनका समर्थन करने की जरूरत है। अफ्रीकन महाद्वीप के अनोखेपन के संरक्षण किया जाना बेहद जरूरी है, क्योंकि यहीं मानव-प्रजाति विकासित हुई थी।
मेरा युगांडा का सफर और केन्या व दक्षिण अफ्रीका में संक्षिप्त विश्राम एक अलग तरह की ताजगी, प्रेरणा व उत्साह से भरने वाला था। प्रेरणा की वजह थी वहां की एक नई तरह की ऊर्जा जिससे आपका सामना होता है। अफ्रीका में युवाओं का उत्साह व उनकी ऊर्जा शहरों व कस्बों में साफ-साफ दिखती और महसूस होती है। अफ्रीका के दूर दराज के इलाके जैसे जादुई नडली वगैरह हैं, जहां तकरीबन 4200 फीट ऊंचे पहाड़, घने जंगल व हरियाली के बीच ज्वालामुखी से बनी झीलें हैं। आज भी वहां के लोग वैसे ही हैं, जैसे एक हज़ार पहले लोग रहे होंगे। इनका खानपान, पहनावा और व्यवहार देखकर लगता है कि यह आज ही धरती से ताजे-ताजे बाहर आए हैं।
इस दौरान यूएन के आयोजन के लिए दुबई होते हुए 20 जून को न्यूयॉर्क पहुँचने में सफल रहा। यहां आयेाजित उप-योग के सत्र में 50 देशों के राजदूतों और 135 देशों के नागरिकों ने हिस्सा लिया। एक तरह से शायद यह अपने आप में एक रिकॉर्ड जैसा था।
जो भी दिखाई देता है, उसे देख कर खुद को यकीन दिलाना पड़ता है। उन्हें देखकर लगता है कि यह कोई और ही युग है। ऐसी जगह पर ईशा के साधकों द्वारा एक स्कूल शुरू करना बड़ी बात है। उन्होंने स्कूल का नाम ‘सद्‌गुरु स्कूल’ रखा है, खुद स्कूल से दूर रहने वाले सद्‌गुरु के नाम पर स्कूल! ईशा के कुछ समर्पित स्वयंसेवी इस स्कूल को सफल करने के लिए अतुलनीय प्रयास कर रहे हैं।
इस इलाके में रह रहे भारतीय मूल के लोग, अपने आप में भारत से बाहर रहने वाले भारतीय समुदाय की व्यापार में सफलता की एक अलग कहानी हैं। जहां पूर्वी अफ्रीका से भारत का संबंध कुछ सदियों पुराना है, वहीं उत्तरी अफ्रीका से उसका रिश्ता कई हजार साल पुराना है। यह देखना अपने आप में अद्भुद बात है कि वहां रहने वाले कुछ भारतीय समुदायों ने पिछली कई सदियों से कैसे अपनी पहचान को अक्षुण्ण रखा है। एक सुदूर धरती पर उन्होंने अपनी भाषा, खान-पान की आदतों, पहनावे और सबसे बड़ी बात अपनी आध्यात्मिकता को संजोए रखा है। पूर्वी अफ्रीका की अर्थव्यवस्था में इन भारतीय मूल के लोगों का महत्वपूर्ण योगदान है।
इस दौरान यूएन के आयोजन के लिए दुबई होते हुए 20 जून को न्यूयॉर्क पहुँचने में सफल रहा। यहां आयेाजित उप-योग के सत्र में 50 देशों के राजदूतों और 135 देशों के नागरिकों ने हिस्सा लिया। एक तरह से शायद यह अपने आप में एक रिकॉर्ड जैसा था। ईस्ट कोस्ट पर आयोजित पहली इनर इंजीनिरिंग रिट्रीट अपने आप में एक सुखद अहसास था। शिकागो में एक छोटे से प्रवास और एक आयोजन के बाद मैं ईशा इंस्टिट्यूट ऑफ़ इनर इंजीनियरिंग यानी आईआईआई, टेनेसी, में तीन दिनों के लिए गया। एक दिन के लिए न्यू यॉर्क, एक दिन बर्लिन और कुछ समय के लिए लंदन में रहूंगा।
गुरु पूर्णिमा के मौके पर ईशा योग केंद्र में होने का बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं। इस साल यह बेहद खास है।

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