हमलोग सन 2013 के समापन के करीब हैं। बीस साल पहले 1993 में लगभग इसी समय मैंने पहली बार सेवेंथ हिल की चोटी को देखा था। उसके अगले साल जून के महीने में नब्बे दिन का ‘होलनेस’ (संपूर्णता) प्रोग्राम हुआ था। उसमें जो लोग शामिल हुए उनमें से अड़सठ लोग पहले तीस दिन वहां रहे, और बाद में उनतालीस लोग तीन महीने तक वहां रहे। आज आप ईशा को जिस रूप में देख रहे हैं इसकी बुनियाद, कई तरह से यही लोग रहे हैं। उनमें से कई लोग अभी भी यहां हैं, किसी भी चीज का श्रेय लिए बिना, चुपचाप अपना काम करते रहे हैं, क्योंकि यही वह संस्कृति है जिसके बीज हमने पहले ही दिन बोए थे। ऐसे काफी लोग हैं जिन्हें जो भी काम सौंप दिया जाता है, उसे वो बिना कोई सवाल किए, लगातार करते रहे हैं। ईशा योग केंद्र का यह बीसवां साल शुरु हो रहा है। हमें इसका उत्सव मनाना चाहिए।

मानव जाति के लिए जितना काम करने की जरूरत है, उसके लिहाज से एक जीवनकाल में जो काम किया जा सकता है, वह निश्चित रूप से कम पड़ेगा। हम सौ साल जिएं और हर दिन काम करते रहें, तो भी यह कम पड़ेगा। इसका एकमात्र तरीका है...

वैसे पिछले बीस साल से हम सब अपने-अपने काम में लगातार लगे हुए हैं। हमारे चारों तरफ जो घट रहा है, उस पर हमने बहुत ध्यान नहीं दिया। हर दिन कहीं-न-कहीं कोई कार्यक्रम हो रहा है। हर कार्यक्रम बड़े से बड़ा और हमारी सामर्थ्य से ज्यादा बड़े पैमाने पर हो रहा है – ऐसा लगता है कि हम हर पल संकट की घड़ी में हैं। आप नहीं जानते कि रोजाना इस तरह जीने का मतलब क्या होता है! जेब में दस रुपए होने पर भी हम हमेशा सौ रुपए का काम कर रहे हैं। अगर हमारे पास दस लोग हैं तो हम पच्चीस लोगों जितना काम कर रहे हैं।

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परसों की ही बात है, कोई मुझसे कह रहा था, “सद्‌गुरु, आप जिंदगी के प्रति बहुत लालची हैं।” मैं बता दूं कि मैं सिर्फ लालची नहीं, बल्कि जिंदगी के प्रति कामुक भी हूं। मैं ‘कामुक’ शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूं, क्योंकि प्रेम के मामले में अगर सामने वाला साथ न दे तो प्रेम गायब हो जाता है, पर कामुकता किसी और के भरोसे नहीं होती; यह खुद-ब-खुद जारी रहती है। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि मानव जाति के लिए जितना काम करने की जरूरत है, उसके लिहाज से एक जीवनकाल में जो काम किया जा सकता है, वह निश्चित रूप से कम पड़ेगा। हम सौ साल जिएं और हर दिन काम करते रहें, तो भी यह कम पड़ेगा। इसका एकमात्र तरीका है- अगली पीढ़ी को प्रेरित करना, जो काम को बड़े पैमाने पर आगे बढ़ा सके। 

जो लोग बीस साल पहले यहां थे, उन्होंने ट्रैंग्ल ब्लाक के लिए कंक्रीट ढोने का काम किया था, ध्यानलिंग के लिए ईंटे ढोई थीं। उनके मन में इस बात की संतुष्टि है कि वो इसका हिस्सा रहे हैं। मगर उस वक्त आपमें से जो बहुत-से लोग यहां नहीं थे, उनको भी हम यह मौका देना चाहते हैं। अब चूंकि हम बीस साल पूरे करने जा रहे हैं, इसलिए हम चाहते हैं कि अगले छह महीने तक कोई नया काम हाथ में नहीं लिया जाए, बल्कि अब तक हमने जो कुछ किया है उसको फिर से संगठित किया जाए। दरअसल हमको कभी पीछे मुड़ कर देखने का वक्त ही नहीं मिला। हमारे दिमाग में ऐसे बहुत-से विचार हैं कि किन चीजों को कैसे होना चाहिए। मैं चाहता हूं कि आप सब इस स्थान को पुनर्गठित करने के काम में हाथ बंटाएं और किसी ऐसी चीज का निर्माण करने की खुशी महसूस करें, जिसका लाखों लोग एक लंबे समय तक आनंद लें और इसकी सराहना करें।

हम पुनर्गठन का काम एक खास प्रक्रिया से करेंगे- अपने काम करने के तरीके, भौतिक ढांचों और मानव संसाधन पर गौर करेंगे। हमने अच्छा काम किया है, लेकिन हम जानते हैं कि हममें इससे भी अच्छा करने की काबीलियत है। यहां लोगों के दिल में जो निष्ठा, समर्पण और लगन है, उससे लगता है कि हम अभी जितना कर रहे हैं, हमें उससे कहीं ज्यादा करना होगा। मैं नहीं चाहता कि अनुचित काम कर के लोगों के दिलों की खूबसूरती बेकार चली जाए। जब मैं ‘अनुचित’ कहता हूं, तो मेरा मतलब है कि यदि हम अपनी क्षमता जितना नहीं कर रहे हैं, हम जितनी बढ़िया चीजें बना सकते हैं उतनी नहीं बना रहे, तो मैं समझता हूं कि यह अनुचित है। यह मानव जीवन को बेकार ही गंवाना है। अब तक यहां सारा काम अत्यंत तीव्रता, प्रेम और लगन से हुआ है। मैं चाहता हूं कि यह स्थान उसकी कहानी कहे। लोगों के हृदय की धड़कन इस स्थान में झलके। जो भी कोई यहां कदम रखे, वह उसे महसूस करे।

मैं चाहता हूं कि ऐसा करने में आपमें से हर एक हमारा साथ दे, क्योंकि निर्माण करने में एक विशेष आनंद मिलता है, वो भी तब और बढ़ जाता है जब आप खुद से बहुत बड़ी किसी चीज का निर्माण कर रहे हों। एक ऐसी तृप्ति मिलती है, जो ज्यादातर लोगों को अपनी जिंदगी में कभी नसीब नहीं हो पाती। ज्यादातर लोग अपनी जिंदगी दो वक्त की रोटी कमाने में गुजार देते हैं। लेकिन एक ऐसा साधन बनाना, एक ऐसा स्थान बनाना, जो आने वाले दिनों में लाखों लोगों की जिंदगी को छुए और उन्हें रूपांतरित कर दे....मैं चाहता हूं कि आप इसके निर्माण के, इसको साकार करने के आनंद को अनुभव करें। कृपया आप सब इसमें भाग लें, और देखें कि आप किस तरह इसका हिस्सा बन सकते हैं, और किसी ऐसी चीज के निर्माण की खुशी महसूस कर सकते हैं, जो आपके और मेरे बाद भी बनी रहेगी।

आपमें से जो यहां नहीं रहते, मैं उनसे कहना चाहता हूं कि अपने जीवन को कृपा से सराबोर होने दें, उसे अभिभूत होने दें। ऐसा होने के लिए, आपको खुद को प्रेम और भक्ति में भिगोना होगा। अपने अस्तित्व की मिठास को अपने आस-पास की दुनिया में बिखरने दें। जब भी हो सके, आप यहां जरूर आएं।

आपमें मौजूद हूं मैं

Love & Grace