दीवाली और नरक चतुर्दशी का क्या है हमारे जीवन में महत्व?
दीयों, पटाखों, उत्सव और मिठाई के त्यौहार के रूप में मनाए जाने वाली दीवाली का क्या कुछ आध्यात्मिक और गहन अर्थ भी है? जानते हैं सद्गुरु से
दीवाली आ गई है। दीवाली के अवसर पर आप सभी को शुभकामनाएं। जब हम दीवाली या दीपावली कहते हैं, तो उसका अर्थ होता है ‘प्रकाश का त्यौहार’। मानव जीवन में रोशनी की इतनी अहमियत क्यों है? पहला कारण है, हमारी आंखों की बनावट। अगर वह दूसरे जीवों की तरह कुछ अलग तरह से बनी होतीं, तो हमारे लिए रोशनी का बहुत अधिक मतलब नहीं होता। दूसरे जीवों के लिए रोशनी का मतलब सिर्फ जीवन चलाना होता है। लेकिन एक बार इंसान के रूप में पैदा होने के बाद, प्रकाश का मतलब सिर्फ यह नहीं रह जाता कि हम क्या देख सकते हैं और क्या नहीं। हमारे जीवन में रोशनी के बढ़ने का मतलब एक नई शुरुआत और सबसे बढ़कर स्पष्टता है।
मनुष्यों के अलावा कोई अन्य जीव भ्रमित नहीं होता
ज्यादातर जीव सहज ज्ञान से जीते हैं, इसलिए उनके अंदर कोई भ्रम नहीं होता। उदाहरण के लिए, कभी कोई बाघ बैठकर खुद से यह नहीं पूछता, ‘क्या मैं एक अच्छा बाघ बन पाऊंगा, या एक घरेलू बिल्ली बन कर रह जाऊंगा?’
आप सिर्फ बराबरी करके यह सोच सकते हैं कि आप किसी और से बेहतर हैं। मगर आप नहीं जानते कि खुद में आपकी स्थिति क्या है। मानव बुद्धि ऐसी होती है कि अगर आप उसे सही तरीके से व्यवस्थित न करें तो वह आपके अंदर कहीं अधिक भ्रम और कष्ट पैदा करता है। आपके मस्तिष्क का लाखवां हिस्सा रखने वाले जीव कभी ऐसा अनुभव नहीं करते। उनके अंदर शीशे की तरह स्पष्टता होती है। एक केंचुए को पता होता है कि उसे क्या करना है और क्या नहीं। मगर इंसान के साथ ऐसा नहीं है।
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हमने अपने दिमाग को अपनी समस्या बना लिया है
कभी कोई बुरा केंचुआ या कीड़ा नहीं हुआ है, वे सब परफेक्ट होते हैं। भ्रमित होने के लिए एक खास बुद्धि चाहिए होती है। अभी इंसान की सारी जद्दोजहद हमारी अपनी दिमागी क्षमता के कारण है।
ऐसा लगता है इंसानों का बड़ा दिमाग ही उनकी समस्या है। अगर हम आपका आधा दिमाग निकाल लें, तो आप शांतिपूर्ण हो जाएंगे। बहुत सारे लोगों के लिए बुद्धि एक जबर्दस्त संभावना होने की बजाय एक समस्या बन गई है। वे चाहे अपने कष्ट को तरह-तरह के नाम दें, उसे तनाव, चिंता, अवसाद, पागलपन या दुख कहें, मगर मुख्य रूप से इसका मतलब यही है कि उनकी बुद्धि उनके ही खिलाफ हो गई है। अगर आप कहीं बैठे हैं, और कोई आपको तंग नहीं कर रहा है, फिर भी आप खुद ही दुखी हैं, तो इसका अर्थ है कि आपकी बुद्धि आपके खिलाफ काम कर रही है।
दीपावली और हमारे भीतर की जड़ता का संबंध
जब मानव अस्तित्व की प्रकृति ऐसी है, तो स्पष्टता सबसे महत्वपूर्ण है। यही वजह है कि प्रकाश बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि जब हम ‘प्रकाश’ कहते हैं, तो हमारा मतलब स्पष्टता से होता है। प्रकाश का मतलब सिर्फ बल्बों का जलना नहीं है, उसका मतलब स्पष्टता है। दीपावली इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह स्पष्टता, आपके अंदर के अंधकार को कम करने के लिए समर्पित त्यौहार है। इसका ऐतिहासिक महत्व यह है कि इसी दिन कृष्ण ने नरकासुर का संहार किया था। यह नरकासुर का असली नाम नहीं था, मगर वह अपनी करतूत से हर किसी का जीवन नर्क कर देता था, इसलिए उसे नरकासुर कहते थे। जब हर किसी का जीवन नर्क करने वाले इस व्यक्ति का कृष्ण ने अंत कर दिया, तो लोगों ने घर-घर में दीये जलाकर और पटाखे चलाकर उत्सव मनाया।
नरकासुर वाली घटना शायद काफी बाद में हुई, मगर इस समय दीये जलाने की संस्कृति और परंपरा बारह से पंद्रह हजार साल पुरानी है। लोगों ने महसूस किया कि साल के इस समय जीवन एक प्रकार से सुस्त और जड़ हो जाता है। अगर आप खुद किसी पटाखे की तरह पूरी तरह जीवंत और सक्रिय जीवन नहीं जी रहे हैं, तो कम से कम आपके आस-पास पटाखों का शोर आपको थोड़ा जगा सकता है। इसके पीछे यही मकसद था। भारत में नरक चतुदर्शी के दिन, जो इस साल 18 अक्टूबर को है, सुबह चार बजे से, देश भर में, पटाखे फूटने लगेंगे जिससे कोई सो नहीं पाएगा – हर कोई जाग जाएगा, जीवंत हो जाएगा।
समय की गति एक है, पर अनुभव अलग-अलग
यह इस त्यौहार की प्रकृति है, मगर सबसे महत्वपूर्ण चीज है, जड़ता को हराना। जीवन समय और ऊर्जा का एक खेल है। आपके पास एक निश्चित मात्रा में समय और ऊर्जा होती है।
अगर आप आनंदित हैं, तो यह बहुत छोटा सा जीवन है। इंसान के भीतर की संभावना के लिए सौ साल का जीवन भी तेजी से निकल जाएगा। लेकिन अगर आपके अंदर जड़ता पैठ गई है और आप दुखी हैं, तो ऐसा लगता है कि समय कट ही नहीं रहा। जिन समाजों में लोग दुखी होते हैं, वहां मनोरंजन की जरूरत बहुत बढ़ जाती है। जहां लोग खुश होते हैं, उनके पास मनोरंजन का समय नहीं होता, आनंद उनका सारा समय ले लेता है। आप सुबह उठते हैं, और आपको पता भी नहीं चलता कि कब रात हो गई। जब आप खुश होते हैं, तो आप वह सब कुछ करेंगे, जो आपकी क्षमता में है – आप किसी चीज से नहीं बचेंगे। जब आप दुखी होते हैं, तो आप हर चीज से बचने का तरीका खोजते हैं।
आनंद पैदा करने के लिए जड़ता को दूर करना होगा
‘शुक्र है, शुक्रवार है’ की संस्कृति बढ़ रही है। इसका मतलब है कि पांच दिन कष्ट के होते हैं – दो दिन भी आम तौर पर खुशी के नहीं, नशे के होते हैं। अगर आप चाहते हैं कि लोग हंसें, गाएं, नाचें या कुछ आनंदपूर्ण करें, तो आपको उन्हें नशे में लाना पड़ेगा या कम से कम उन्हें वाइन पिलाना पड़ेगा। वरना खुश होना संभव नहीं होगा। इसकी वजह यह है कि हम कई तरीकों से अपने अंदर जड़ता पैदा कर रहे हैं। जब हमारे अंदर जड़ता आ जाती है, तो समय तेजी से नहीं कटता। ऐसा लगता है कि जिंदगी बहुत बड़ी है।
दीवाली जड़ता को हराने का प्रतीक है, क्योंकि जड़ता नर्क का मूल है। एक बार आपके अंदर जड़ता आ गई, तो आप नर्क में नहीं जाएंगे, आप खुद नर्क बन जाएंगे। चाहे आप अकेले हों, बिना किसी और के कुछ किए, आप लगातार नर्क भुगतेंगे। अगर कुछ होता है, तो लोग कष्ट भोगते हैं। अगर कुछ नहीं होता, तो वे और ज्यादा कष्ट भोगते हैं। इंसान के लिए सबसे बड़ा कष्ट यह होता है कि कुछ नहीं हो रहा। इसलिए दीवाली का बहुत महत्व है।