सम्यमा के बीच में, सद्‌गुरु इस सप्ताह का स्पॉट लिख रहे हैं, जिसमें वह न सिर्फ इस गहन ध्यान कार्यक्रम बल्कि संपूर्ण रूप से अपने काम की चुनौतियों और आनंद के बारे में बता रहे हैं। उनकी ‘फेब्रिक ऑफ लाइट’ कविता इसे बहुत मार्मिक तरीके से व्यक्त करती है।

सद्‌गुरुसद्गुरु : एक गहन सम्यमा से गुजरते हुए शायद पिछले कुछ सप्ताहों की सारी घटनाएं मेरे दिमाग से धुल गई हैं। हालांकि हाल में बहुत सारी घटनाएं हुई हैं, मगर मैं किसी खाली स्लेट की तरह हो गया हूं। आप कर्म सम्यमा का असर देख सकते हैं। जब मेरे दिमाग में कुछ नहीं होता, तो लगता है कि मेरे अंदर से कविता फूटने लगती है। सम्यमा हॉल में करीब 800 लोगों को ध्यान और परमानंद के चरम तक पहुंचाना ऊर्जा के स्तर पर एक मुश्किल चुनौती है, मगर इसमें उत्साह, पीड़ा, सिहरन, आनंद, भी है।

प्रकाश के वस्त्र
मेरी इस कोशिश में

कि दुनिया को कर सकूं

आच्छादित प्रकाश के परिधान से

यह वस्त्र शरीर का

होता जा रहा है कमजोर और पुराना

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इससे पहले कि फटने लगे यह

जरूरत है इसे मजबूती देने की,

भक्ति और वीरता से भीगे

यौवन के धागों से

काम से परे प्रेम के धागों से

संशय से परे भक्ति के धागों से

निजता से परे भागीदारी के धागों से

केवल इन्हीं धागों से तुम बुन सकते हो –

परिधान प्रकाश का।

हां - मैं चाहता हूं

इस दुनिया को पहनाना

प्रकाश का परिधान.

क्योंकि यह नग्न दुनिया तो

चाहेगी अन्धकार में ही रहना। 

Love & Grace