भारत : अध्यात्म का प्रवेशद्वार
हम अपने देश के गणतंत्र दिवस पर कई तरह के समारोह करते हैं और उसकी खुशियां मनाते हैं। लेकिन क्या कभी हम सोचते हैं कि क्या है हमारे देश की विशिष्टता और कैसे इसे बचाएं और बढ़ाएं? आइए सद्गुरु के इन शब्दों में अपने राष्ट्र की इस विशिष्टता कोनिहारें -
हम अपने देश के गणतंत्र दिवस पर कई तरह के समारोह करते हैं और उसकी खुशियां मनाते हैं। लेकिन क्या कभी हम सोचते हैं कि क्या है हमारे देश की विशिष्टता और कैसे इसे बचाएं और बढ़ाएं? आइए सद्गुरु के इन शब्दों में अपने राष्ट्र की इस विशिष्टता को निहारें -
सद्गुरु:
हम अकसर ‘राष्ट्र' की बात करते हैं, लेकिन ‘राष्ट’ सिर्फ एक विचार है, कोई हकीकत नहीं। लोगों को जाति, धर्म, रंग, वर्ग या संप्रदाय के नाम पर बांटने की बजाय हम उन्हें राष्ट्रीयता के नाम पर बांटते हैं। सीमाओं में बंधे देशों व वहां के लोगों में राष्ट्रीयता को लेकर जो प्रबल भाव भरे हैं, वह पिछले सौ सालों में ज्यादा उभरे हैं। उससे पहले राष्ट्रीयता कोई इतनी प्रबल भावना नहीं हुआ करती थी। इस धरती पर ऐसे कई लोग हुए जो किसी एक देश के नहीं थे। हालांकि अब ऐसा नहीं है। आज आपको किसी न किसी देश से संबंध रखना ही होगा, वर्ना आप एक एलियन(किसी दूसरे ग्रह के प्राणी) लगने लगेंगे।
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आज हालत यह है कि इस दुनिया में कोई भी इंसान बिना किसी देश विशेष से संबंधित हुए, नहीं रह सकता है। उसे पासपोर्ट की, एक पहचान पत्र की जरूरत होती है। आज आप बिना किसी पहचान के नहीं रह सकते, आपकी कोई न कोई पहचान होनी ही चाहिए जो कहीं से जुड़ी हो। हालांकि यह कोई महान विचार नहीं है, लेकिन आज एक विशाल जन-समूह को किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए किसी हद तक राष्ट्र की अवधारणा काफी महत्वपूर्ण हो चुकी है। इस विचार के बिना बहुत से लोग हर चीज से वंचित रह जाएंगे। इस वजह से भारत का गणतंत्र बनना इस देश के जीवन का ही नहीं, बल्कि तमाम भारतवासियों के जीवन का भी महत्वपूर्ण अवसर है।
आज बहुत से लोग हिंदुस्तान में रहना नहीं चाहते, लेकिन वे अंतिम समय में यहीं वापस आकर मरना चाहते हैं। यहां तमाम ऐसी जगहे हैं, जिनके बारे में उन्हें विश्वास है कि अगर वे यहां मरे तो उन्हें मुक्ति मिलेगी। भले ही आज यह हास्यास्पद लगे, लेकिन इसके पीछे एक वास्तविक आधार भी है। ऐसा क्यों है कि जमीन के किसी टुकड़े या हिस्से के बारे में लोगों को लगता है कि इसमें किसी दूसरी जगह से बेहतर संभावनाएं हैं। ऐसा जीवन के सभी क्षेत्रों में होता है। अगर आप पढ़ाई के लिए आगे जाना चाहते हैं तो ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड या अमेरिका जाते हैं। मृत्यु
कुछ खास जगहें कुछ संभावनाओं को ध्यान में रखकर तैयार की जाती हैं। शिक्षा पाने के लिए आप एक खास जगह पर जाना चाहते हैं। अगर आप शास्त्रीय संगीत सीखना चाहते हैं तो चेन्नै जाते हैं। इसी तरह मुक्ति चाहने वाले लोग हजारों सालों से भारत भूमि की ओर आते रहे हैं। दरअसल, इसकी वजह यह रही कि यहां भीतरी आयाम में बड़े स्तर पर संभावनाओं को तलाशने और उन्हें साकार करने पर बहुत काम हुआ । तभी यहां ध्यानलिंग जैसे यंत्रों का निर्माण हुआ जो एक प्रकाश-स्तंभ की तरह है। अगर आप किसी चीज को पाना चाहते हैं और आप इसे खुद अपने बल पर पा सकते हैं तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन कितने ऐसे लोग होंगे, जो बिना किसी बाहरी मदद या खास यंत्र के ऐसा कर पाते होंगे?
इसलिए सही चीज के लिए सही जगह पर पहुंचना भी एक महत्वपूर्ण कदम है। भारत हमेशा से अध्यात्म का प्रवेशद्वार रहा है। इस लिहाज से इस देश की मौलिक प्रकृति को बनाए रखना बेहद महत्वपूण हो जाता है, और हम एक देश के तौर पर शेष दुनिया के लिए बेहद महत्वपूण हो जाते हैं। अगर आप इस देश के ज्ञान-कोष को, जो आज भी यहां मौजूद है, पुनर्जीवित कर देते हैं तो आप बस उसी के सहारे पूरा देश चला सकते हैं। दरअसल, इंसान की भीतरी प्रकृति से जुड़ी बेहद बुनियादी बातें आज भी पूरी दुनिया के लोगों को हैरान किए हुए है। जबकि यहां पर इन चीजों को खोजे और जाने हुए हजारों साल हो चुके हैं। हमारा शोध और विकास मानवता के क्षेत्र में एक जबदस्त निवेश साबित हुआ है। लोगों ने अपना पूरा जीवन, कई-कई पीढ़ियां यह जानने में लगा दीं कि इंसान की भीतरी प्रकृति कैसी है। अगर हम उस ज्ञान को वापस ले आएं तो पूरी दुनिया अपने भीतरी खुशहाली और आत्म-कल्याण के लिए भारत आना चाहेगी।