सद्‌गुरुअक्सर यह सोच हमारे काम को प्रभावित करती है कि लोग क्या कहेंगे या क्या सोचेंगे, जिसकी वजह से हम बहुत से काम बेमन से या आधे-अधूरे मन से करते हैं। आज के स्पाॅट में सद्‌गुरु इसी संदर्भ में चर्चा कर रहे हैं। तो कितनी सही है यह सोच?


इंसाान के भीतर जितनी संभावनाएं मौजूद हैं, उसके लिए जीवन में समय कम है। जीवन तो उनके लिए लंबा है, जिन्होंने अपने अस्तित्व के सारे आयामों को पूरी गहराई से जानने की कोशिश नहीं की।
अगर आप अपनी क्षमताओं और बुद्धि का सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल करते हैं तो हर दिन संभावनाओं का एक विस्फोट होगा।
उनका जीवन कष्टों और अवसाद से भर जाता है और इसलिए उन्हें अपना जीवन लंबा लगने लगता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वक्त एक सापेक्षिक अनुभव है। अगर आप खुद को जोश, उत्साह और खुशी से भरा हुआ रखते हैं तो यह जीवन बेहद छोटा लगने लगता है। जो भी आप कर सकते हैं उसमें अगर आपने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया तो फिर अतीत में जीने का कोई तुक नहीं है। महत्वपूर्ण चीज यह है कि कल जो आपने अपना सर्वश्रेष्ठ किया, वह आपके आज के लिए काफी नहीं है। आज आप जो कर रहे हैं, वह कल से कहीं बेहतर होना चाहिए। अगर ऐसा है तो इसका मतलब है कि आप विकास कर रहे हैं।
अगर आप अपनी क्षमताओं और बुद्धि का सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल करते हैं तो हर दिन संभावनाओं का एक विस्फोट होगा। अगर आप तेजी से अपनी गाड़ी दौड़ा रहे हैं तो पीछे मुड़ कर देखने के लिए आपके पास वक्त नहीं होगा।
गुजरे हुए वक्त की समीक्षा करने या उसकी चीरफाड़ करने का कोई तुक नहीं है। आने वाले कल का सृजन ही महत्वपूर्ण है। एक रोमांचक भविष्य के निर्माण के लिए आपको अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर पर होना पड़ेगा। विकास का मतलब है खुद को इस तरह बनाना, जैसा आप बनना चाहते हैं।
केवल वही लोग, जो एक खड़ी गाड़ी में बैठे हैं, गाड़ी के आइने में पीछे का नजारा देखेंगे, क्योंकि वे कहीं आगे नहीं जा रहे। गुजरे हुए वक्त की समीक्षा करने या उसकी चीरफाड़ करने का कोई तुक नहीं है। आने वाले कल का सृजन ही महत्वपूर्ण है। एक रोमांचक भविष्य के निर्माण के लिए आपको अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर पर होना पड़ेगा। विकास का मतलब है खुद को इस तरह बनाना, जैसा आप बनना चाहते हैं। और आप कैसा बनना चाहते हैं यह आपकी परिपक्वता के साथ बदल जाता है। आप यह तय करें कि आपके अनुसार किसी भी आयाम में - शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक, आपका सर्वोच्च स्तर क्या हो। अब यही आपका लक्ष्य है, जिसके लिए आपको आगे बढ़ना चाहिए।

आपको किसी दूसरे से बेहतर बनने की जरूरत नहीं है, लेकिन आप जो कर सकते हैं या बन सकते हैं, उससे जरा सा भी कम नहीं होना चाहिए। अगर आपको लगता है कि आपके जीवन का कुछ मूल्य है, या यह जीने योग्य है तो आपको अपनी क्षमताओं के सर्वश्रेष्ठ स्तर पर होना चाहिए। उससे जरा भी कम होने का मतलब जीवन को बर्बाद करना है। अगर आप जिंदगी को पूरे जोश के साथ जीते हैं तो जीवन शानदार है। अगर आप आधे-अधूरे तौर पर जिदंगी जीते हैं तो हर चीज दुखदायी है। एक तरीके से आप खुद के लिए नर्क तैयार कर रहे हैं। अगर आप अपने को शानदार बनाते हैं तो फिर आपके हालात कैसे भी हों, आप अच्छे ही रहेंगे। वर्ना तो आप स्वर्ग में भी हों तो आप उसे नर्क में बदल देंगे।

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अगर आप अपने भविष्य का निर्माण करना चाहते हैं तो यह जरूरी है कि आप अपने अतीत को भी एक सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करें न कि एक बोझ की तरह ढोएं।

आपको किसी दूसरे से बेहतर बनने की जरूरत नहीं है, लेकिन आप जो कर सकते हैं या बन सकते हैं, उससे जरा सा भी कम नहीं होना चाहिए।
आपका अतीत जितना दुखदायी था, आपको दूसरों की अपेक्षा उतना ही अधिक बुद्धिमान और दूसरों से उतनी ही जल्दी परिपक्व हो जाना चाहिए। जब घटनाएं हमारे साथ घटित होती हैं तो हम या तो चोटिल हो जाते हैं या फिर समझदार। हमारे सामने यही दो विकल्प होता है। यह सोचकर आप एक कोने में मत बैठ जाइए कि चुपचाप कोने में बैठ जाने से आपके साथ कुछ बुरा नहीं होगा। जीवन इस तरह से नहीं चलता। आपके जीवन में जो कुछ भी होता है, उसे आप अपने सौभाग्य में बदल सकते हैं। जब हमने ईशा योग केंद्र को स्थापित करने की शुरुआत की तो शहर में एक हलचल मच गई। लोगों ने हमारे आसपास इकठ्ठा होना शुरू कर दिया, क्योंकि कुछ प्रभावशाली परिवारों को यह रास नहीं आ रहा था। वे लोग आपस में मिले और उन्होंने आपस में मिलकर योजना बनाई कि वे कुछ लोगों के साथ मिलकर ईशा योग केंद्र आएंगे और उसे तहस-नहस कर देंगे। उनमें एक समझदार बुजुर्ग भी थे, जिन्होंने उन लोगों को समझाया, ‘तुम लोगों को पता नहीं है कि तुमलोग किसके साथ उलझ रहे हो। अगर तुमलोग उस पर पत्थर फंेकोगे तो वह उससे भी कुछ न कुछ बना लेगा। इसलिए यह गलती मत करना।’ तो जीवन आपके सामने क्या लाता है, किस तरह के हालात आपके जीवन में आते हैं- ये सारी चीजें हमेशा आपके हाथ में नहीं होतीं। लेकिन आप उन चीजों से क्या बनाते हैं या उसका कैसा इस्तेमाल करते हैं, यह हमेशा आपके हाथ में होता है।

अपने जीवन में इस चीज का नियंत्रण अपने हाथों में रखें। इससे कोई फर्क नही पड़ता कि लोग क्या कहते हैं, जीवन आपके साथ कैसे पेश आता है, दुनिया आपके साथ क्या बर्ताव करती है, आपके सामने जो भी आए, उसे आप अपनी बेहतरी के एक मौके में बदल दीजिए।

अफसोस की बात है कि तकरीबन 90 फीसदी आबादी अपनी क्षमता से काफी नीचे काम कर रही है। इसकी वजह यह है कि किसी ने कुछ कह दिया या किसी ने कुछ कर दिया या फिर उन्हें डर था कि कहीं कोई दूसरा उनके बारे में कुछ न सोचे या न कहे।
इसके लिए आपको एक संतुलन की जरूरत होती है। बिना कोई भेदभाव या सोच विचार के, चाहे आपके सामने जो भी हो, चाहे आप जो भी काम करते हों, बस अपना सर्वश्रेष्ठ दीजिए। हर चीज और हर व्यक्ति को एक सी तीव्रता और जुड़ाव के साथ देखना सीखिए। चुनी हुई चीजों के साथ जुड़ाव का मतलब आधी अधूरी जिंदगी जीना है। एक संपूर्ण इंसान के रूप में परिपक्व होने के लिए आप जो भी छोटे से छोटा काम करें, उसमें आपकी कोशिश हमेशा अपनी क्षमताओं के सर्वोच्च स्तर पर काम करने की होनी चाहिए।

अफसोस की बात है कि तकरीबन 90 फीसदी आबादी अपनी क्षमता से काफी नीचे काम कर रही है। इसकी वजह यह है कि किसी ने कुछ कह दिया या किसी ने कुछ कर दिया या फिर उन्हें डर था कि कहीं कोई दूसरा उनके बारे में कुछ न सोचे या न कहे। अगर ऐसा है तो इसका मतलब है कि आप दूसरे लोगों के मन या विचारों में रहते हैं, रहने की यह कितनी बेकार और गंदी जगह है! कोई दूसरा आपके बारे में क्या सोचता है, क्या कहता है और क्या करता है, उसका इस्तेमाल अपनी बेहतरी के लिए करना सीखिए। अगर कोई आपके खिलाफ जहर उगलता है तो आपको पता होना चाहिए कि आप कैसे उसका इस्तेामल अपनी बेहतरी के लिए कर सकते हैं। देखिए आज जहर को भी दवा में बदल दिया गया है, क्योंकि लोगों ने गौर किया किया कि समस्या की जड़ ही उसका समाधान है।

कन्नड़ में एक कहावत है कि अगर कोई व्यक्ति गलत काम करता है और दूसरे लोग उसके बारे में बातें करते हैं, तो उस गलत काम का नकारात्मक प्रभाव उसे करने वाले से ज्यादा उन लोगों पर होता है, जो उसके बारे में बातें करते हैं।

इससे कोई फर्क नही पड़ता कि लोग क्या कहते हैं, जीवन आपके साथ कैसे पेश आता है, दुनिया आपके साथ क्या बर्ताव करती है, आपके सामने जो भी आए, उसे आप अपनी बेहतरी के एक मौके में बदल दीजिए।
जो आपके बारें में बातें करें उन्हें इसका बोझ ढोने दीजिए। अगर कोई आपको गाली देता है तो उसी का मुंह गंदा होता है। यह आपकी समस्या नहीं है। कोई दूसरा व्यक्ति आपके बारे में क्या कहता, सोचता या करता है, ये आपको प्रभावित नहीं करना चाहिए। अगर आप हर वक्त अपना सर्वश्रेष्ठ दे रहे हैं तो वे जो भी कहेंगे, आप उसके आर-पार देखने में सक्षम होंगे। उसमें से जो भी महत्वपूर्ण है, उसे आप एक सुझाव के तौर पर ले सकते हैं। बाकी को आप छोड़ दीजिए।

अगर आप अपनी क्षमता से कम दे रहे हैं तो और फिर कोई व्यक्ति आपके बारे में कुछ कहता है तो आप खुद को लेकर भ्रम में पड़ जाएंगे। हालांकि इसका यह मतलब नहीं है कि आप अपने व्यक्तित्व को हमेशा के लिए एक जैसा ही ढाल लें। विकास एक सतत प्रक्रिया है। यह खुद का अपनी चरम संभावनाओं की ओर बढ़ाना है। ज्यादातर लोग इस मायने में बेहद अस्थिर होते हैं - एक पल तो वे एक शानदार इंसान होते हैं और अगले ही पल वे निर्लज्ज या नीच हो जाते हैं। इसके बजाय आपकी कोशिश होनी चाहिए कि अभी के लिए आप अपना सर्वोच्च स्तर तय करें और फिर वहां पहंुचने की कोशिश करें। आप अपने जीवन के हर पहलू में इस चीज को लाइए और सर्वश्रेष्ठ से जरा भी कम मत दीजिए।