सद्‌गुरुइस बार के स्पॉट में सद्‌गुरु हम सब से एक आह्वान कर रहे हैं कि अगर हमें अपना भविष्य का बचाना है तो उसके लिए खुद उठ खड़े होना होगा। वे बताते हैं कि नदियों के स्थिति को सुधारने में लंबा समय लगेगा और हमें एक दीर्घकालिक नीति की जरुरत है।

नदी अभियान रैली 16 राज्यों से गुजरेगी 

जैसा कि आपमें से कई लोग जानते होंगे कि नदी अभियान रैली का आयोजन 3 सिंतबर से किया जा रहा है।

यह कोई चेतावनी नहीं हैं, इसके पीछे मजबूत वैज्ञानिक प्रमाण हैं। इसे रोकने के लिए कई आसान सी चीजें और उपाय थे, लेकिन वे सब अपनाए नहीं गए। 
सवाल उठ सकता है कि आखिर यह रैली क्यों? आखिर नदियों को लेकर हमें इतनी विशालकाय जागरूकता और समर्थन जुटाने की क्या जरूरत है? भारत की नदियां, जलाशय और मिट्टी में इतनी गंभीरता से क्षरण हो रहा है, जिसका अधिकांश लोगों को या तो अहसास ही नहीं है या फिर वे इसे स्वीकार करना नहीं चाहते। यह कोई चेतावनी नहीं हैं, इसके पीछे मजबूत वैज्ञानिक प्रमाण हैं। इसे रोकने के लिए कई आसान सी चीजें और उपाय थे, लेकिन वे सब अपनाए नहीं गए। अब इस स्थिति में आकर हम ये चीजें किसी व्यक्ति विशेष के ऊपर अब और नहीं छोड़ सकते। हम लोग एक जरूरी तौर पर लागू की जाने वाली नीति बनाए जाने की दिशा में कोशिश कर रहे हैं।

नदियां केंद्र व राज्य सरकार के बीच समवर्ती सूची में आने वाला विषय है। केंद्र तो इस विषय में एक व्यापक नीति या कानून बना सकता है, लेकिन इसे आगे बढ़ना और लागू कराना राज्यों की जिम्मेदारी और काम है। इसीलिए हम रैली के जरिए 16 राज्यों में जा रहे हैं। मैं व्यक्तिगत तौर पर कोयंबटूर से कन्याकुमारी तक गाड़ी चला रहा हूं और उसके बाद ऊपर की ओर हिमालय तक जाऊंगा। इसके पीछे मकसद राज्यों को समर्थन के लिए प्रेरित करना है। खुशकिस्मती से सभी मुख्यमंत्रियों ने अपनी मौजूदगी सुनिश्चित की है। जिस भी शहर में हम जाएंगे, वहां एक बड़ा आयोजन होगा। उससे पहले हमें देश भर में बड़े पैमाने पर जागरूकता फैलाने की जरूरत हैं।

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1 सितंबर का मीडिया अभियान

1 सितंबर को इस रैली को लेकर मीडिया अभियान शुरू होगा। यह अभियान टीवी चैनलों पर अखबारों में हर जगह दिखाई दे रहा है।

स्कूली बच्चों से लेकर देश की बड़ी-बड़ी हस्तियां तक, सीधे सादे किसानों से लेकर देश के बड़े-बड़े नेता तक, हर कोई पूरी तरह से इस अभियान का समर्थन कर रहा है। 
 लगभग सारे अंग्रेजी मीडिया, हिंदी मीडिया और कुछ तमिल मीडिया बिना कोई पैसा लिए खुद ब खुद इस अभियान के समर्थन में अपनी ओर से एक साथ आगे आए। जितने भी प्रमुख मीडिया घराने हैं, वे अपनी तरफ से लोगों में जागरूकता फैला रहे हैं, विज्ञापन दे रहे हैं और इसे लेकर अपनी तरफ से क्रिएटिव प्रयोग कर रहे हैं। सभी दिशाओं से जो समर्थन की लहर दिख रही है, वह अपने आप में अद्भुत है। आपने फिल्मी कलाकारों, क्रिकेटर्स सहित कई और लोगों के ट्वीट्स इस बारे में देखें होंगे। स्कूली बच्चों से लेकर देश की बड़ी-बड़ी हस्तियां तक, सीधे सादे किसानों से लेकर देश के बड़े-बड़े नेता तक, हर कोई पूरी तरह से इस अभियान का समर्थन कर रहा है। यह रैली मुझे या ईशा फाउंडेशन को लेकर नहीं है, यह रैली हमारे देश के लिए और हमारे बच्चों के भविष्य को लेकर है।

इस अभियान के हिस्से के तौर पर देश भर के सभी प्रमुख शहरों में 1 सितंबर को सुबह 8 बजे से 11 बजे के बीच हजारों की संख्या में लोग अपने हाथों में नीली तख्तियां लिए एक साथ खड़ें होंगे, जिन पर लिखा होगा- ‘रैली फाॅर रिवर्स’ या नदी अभियान। मेरे ख्याल से यह अंश अब देने की जरुरत नहीं है - ध्यान रहे कि आपमें से हरेक के हाथ में यह तख्ती हो। आपमें से हरेक व्यक्ति अकेला अपने शहर के किसी एक लोकप्रिय सार्वजनिक स्थल या मुख्य सड़क पर यह तख्ती लेकर खड़ा हो। खड़े होते समय ध्यान रखें कि अपने साथ खड़े होने वाले दूसरे व्यक्ति के लिए कम से कम पचास कदमों का फासला छोड़ दें। किसी एक समूह या दल में न खड़े हों, वर्ना यह अभियान एक विरोध की तरह दिखाई देगा। यह कोई विरोध या धरना-प्रदर्शन नहीं है। धरना प्रदर्शन हमेशा किसी न किसी चीज के विरोध में होता है। कोई भी व्यक्ति इसके विरोध में नहीं है, क्योंकि हरेक व्यक्ति पानी पीता है।

एक लम्बे समय की नीति की जरुरत

आखिर हमें इस अभियान की, इतने मिस्ड कॉल्स की, जन समर्थन व रैली की जरूरत क्यों होनी चाहिए? अगर सरकार इस तरह की कोई नीति बनाना चाहती है तो इसका मतलब है कि वित्तीय बोझ और खर्चा बढ़ेगा और जीवनशैलियों में कई बदलाव होंगे।

अगर एक अरब तीस करोड़ की आबादी की जरूरतें पूरी करने में पानी और मिट्टी फेल होते हैं तो यह अपने आप में एक भयानक त्रासदी होगी। हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि यह नौबत न आए।
इसके लिए कई चीजें करनी होंगी, जो चुनाव जिताने वाली नीतियां नहीं होंगी। अब समय आ गया है कि भारत के लोग सरकार के सामने दो टूक शब्दों में कहें कि हम लोग अब परिपक्व हो गए हैं। हम लोग मुफ्त में कोई उपहार या अहसान की अपेक्षा नहीं कर रहे, बल्कि इस देश की भलाई के लिए एक दीर्घकालीन नीति चाहते हैं। अगर हम चाहते हैं कि यह नीति सफल हो तो हमें आक्रामक रूप से इसके पीछे पड़ना होगा। इसे पूरी तरह से लागू होने में कम से कम आठ से पंद्रह साल का समय लगेगा। अगर हम यह कर लेते हैं तो आने वाले बीस से पच्चीस सालों में नदियों के बहाव में बीस से पच्चीस फीसदी की बढ़ोतरी होगी।

हम चाहते हैं कि सरकार एक दीर्घकालीन नीति बनाए। चूंकि भारत में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार का कार्यकाल पांच साल होता है, इसलिए आमतौर पर वे जो भी करते हैं, उसमें उन्हें अगले चुनाव के बारे में सोचना होता है। इसलिए यह जरूरी है कि भारत के लोग एक साफ साफ यह बात रखें कि ‘हम चाहते हैं कि आप हमारा भविष्य बचाने के लिए कोई दीर्घ कालिक कदम उठाएं और इसके लिए हम इस प्रक्रिया में थोड़ा दर्द भी उठाने के लिए तैयार हैं।’ हम लोग इसके लिए कम से कम दस से तीस करोड़ के बीच मिस्ड फोन कॉल की अपेक्षा कर रहे हैं, जिससे देश के शीर्ष नेता देख सकें कि हमारी इस नीति को कितना विशाल समर्थन मिल रहा है, ताकि वह लोग इस दिशा में इस विश्वास  के साथ काम करें कि लोग उनके साथ हैं। इसके लिए हम लोग छोटे-मोटे जुगाड़ से काम नहीं चलाएंगे। हम लोगों का लक्ष्य इस देश के कल्याण के लिए एक समग्र व दीर्घकालीन समाधान का है।

यह हमारे अस्तित्व के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। देश में पानी की स्थिति और मिट्टी की हालत बेहद खराब है। अगर एक अरब तीस करोड़ की आबादी की जरूरतें पूरी करने में पानी और मिट्टी फेल होते हैं तो यह अपने आप में एक भयानक त्रासदी होगी। हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि यह नौबत न आए। मैं चाहता हं कि आप इस ओर अपनी जिम्मेदारी निभाएं। चलिए हम सब अपनी नदियों और इस देश के भविष्य के लिए उठ खड़े हों।

आइए इसे साकार कर दिखाएं।