अनुग्रह का ताना-बाना
आज के स्पॉट में पढ़ें सदगुरु द्वारा रचित यह सुन्दर कविता जो एक पुकार है जीवन को बनाने की - अनुग्रह का ताना-बाना...
अनुग्रह का ताना-बाना
एक बुनकर जैसे करता है कोशिश
एक सुन्दर वस्त्र बनाने की
धागे को धागों में पीरोते हुए।
हर एक धागा
होता है महत्वपूर्ण
धागे का एक सुंदर वस्त्र में रूपांतरण के लिए।
हे प्रिय - वैसे ही यह जीवन है
वस्त्र की तरह
जिसका हर धागा है महत्वपूर्ण।
धागे - अतित और भविष्य के
बुनना चाहिए तुम्हें
इन जीवन-धागों को
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कुछ इस तरह कि
जीवन की जटिल बुनावट
उभरे एक बहुरंगी वस्त्र की तरह
जिसकी खूबसूरती व शोभा
योग्य हो एक दिव्य - असीम सत्ता के।
वस्त्र नहीं है सिर्फ एक साधन
निज शरीर-अंगों को ढकने का
वस्त्र को होना चाहिए
एक द्वार की तरह
जो ले जाए तुम्हें उस पार
जहां छू सको तुम सृष्टि के कोरे सौन्दर्य को
जहां तुम कर सको सहवास
अपनी दिव्य अंतर-सत्ता के साथ।
धागे प्रेम के व विवेक के
धागे खेल के व कर्म के,
धागे नजदीकी व दूरी के,
ये धागे भीगे हुए हैं
समझ की स्थिरता
व परमानन्द के उन्माद में।
इन धागों को जो हैं
विभिन्न बुनावटों व रंगों के,
बुनने में, एक सुशोभित परिधान के रूप में
हे प्रिय – एक ही रास्ता है - भक्ति का।
भक्ति के प्रसाद के बिना
ये धागे बन जाएंगे केवल उलझन भरी गांठ।
हे प्रिय – बना लो जीवन को
अनुग्रह का ताना-बाना