चंद्रा: सद्‌गुरु, अपने यहा योगियों से जुड़ी कई ऐसी कथाएं हैं, जो बताती हैं कि वे हजारों साल तक जीवित रहे। क्या वाकई ऐसे योगी हैं तो कभी नहीं मरते, जो अमर है? वे योगी निर्माण-काया कहलाते हैं

सद्‌गुरु: अपने यहां कुछ योगी ऐसे हुए हैं, जिन्होंने इस दिशा में काम किया है। उन्होंने तय किया कि वे बेहद सू़क्ष्म रूप में रहेंगे। पहले उन्होंने अपने शरीर को विसर्जित किया और उसके बाद फिर से उन्होंने शरीर बना लिया। उन्हें हम ‘निर्माणकाया’ कहते हैं। निर्माणकाया का मतलब हुआ कि अपने शरीर को विसर्जित करके फिर से इसको बनाना। वे अपने शरीर को इस तरह से विसर्जित करते हैं कि इसके सारे तत्व, मूल तत्वों में मिल जाते हैं और बाद में वे उन तत्वों को फिर से इकठ्ठाकर शरीर बना लेते हैं। अपने शरीर को त्यागकर अपने ऊर्जा सिस्टम को लंबे समय तक सुप्तावस्था में रखते हैं और कुछ समय बाद फिर से अपने शरीर को तैयार कर वापस लौट आते हैं। इनका वापस आना किसी बच्चे के रूप में नहीं होता, जो गर्भ से आता हो, बल्कि ये सीधे अपने भौतिक शरीर में आते हैं।

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वे योगी गर्भ में जाने से बचना चाहते हैं

ये लोग फिर से किसी महिला के गर्भ में जाकर, गर्भ की पीड़ा से गुजरना नहीं चाहते। वे नहीं चाहते कि वे फिर बड़े होने की प्रक्रिया से गुजरें। क्योंकि इन प्रक्रियाओं से होकर गुजरने में आप कहीं उसमें फंस कर खो भी सकते हैं। लेकिन जब लोग अपनी काया को विसर्जित कर फिर से बनाते हैं, तो इसके साथ वे बहुत सारे काम नहीं कर सकते, क्योंकि उन्होंने अपना शरीर ऐसे ही बनाया होता है। इस देह की एक खास अवधि होती है, जिसमें काम करने की सीमा होती है। ज्यादातर मामलों में यह बस आकार मात्र होता है। जब आप अपनी काया विसर्जित करते हैं तो इसका यह मतलब नहीं कि वे लोग कहीं और जी रहे हैं, वे लोग तो विसर्जित हो जाते हैं। उन लोगों ने अपनी काया के सूक्ष्म आयाम को बचाए रखा, लेकिन उनका भौतिक शरीर खत्म हो गया, जिसे उन्होंने फिर से बना लिया। बात बस इतनी है कि वे लोग महिला के गर्भ में जाकर वापस आने की सामान्य प्रक्रिया से बचना चाहते हैं।

आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए इसकी जरुरत नहीं

ऐसी चीजें कुछ खास मकसद से की जाती हैं, लेकिन आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले लोग ऐसा करना नहीं चाहते। वे लोग परम विसर्जन यानी परम मुक्ति की चाह रखते हैं, जिससे आपकी निजता(इंडीविशुआलिटी) खत्म हो जाए और आप उस परम प्रकृति का हिस्सा बन जाएं।

उन्हें हम ‘निर्माणकाया’ कहते हैं। निर्माणकाया का मतलब हुआ कि अपने शरीर को विसर्जित करके फिर से इसको बनाना।

अगर आप अस्तित्व की सनातन प्रकृति का आनंद लेना चाहते हैं, अगर आप समय और स्थान से परे जाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको निश्चल(स्थिर) होना पड़ेगा। एक बार अगर आप निश्चल(स्थिर) हो गए तो फिर समय आपके लिए मायने नहीं रखता, वह निरर्थक हो जाता है और आप उस सनातन प्रकृति का हिस्सा बन जाते हैं। एक बार अगर आप सनातन का हिस्सा बन गए तो फिर आप बंधनमुक्त हो जाते हैं। एक बार अगर आप बंधनमुक्त हो गए तो फिर आपके लिए ‘यहां-वहां’ का कोई मुद्दा नहीं रह जाता, तब आपके लिए ‘अभी और बाद में’ जैसी भी कोई चीज नहीं रह जाती और यह स्थिति परम मुक्ति का अहसास कराती है। आप समय और स्थान से मुक्त हो जाते हैं, यही परम मुक्ति है। यह जन्म और मृत्यु से आजादी है। निश्चलता(स्थिरता) ऐसी होती है।

अगर आप निश्चलता(स्थिरता) को छू लेते हैं तो सबसे पहले आपके लिए समय खत्म हो जाता है। अगर समय ही चला गया तो आप नश्वर नहीं रहे, अमर हो गए। तब आप मृत्युंजय हो जाएंगे, जिसका मतलब हुआ कि आप मृत्यु से परे निकल गए।

तुर्या – एक ही समय में सोना और जगे रहना

अगर आप अभी मेरी नाड़ी देखें तो यह 45-47 के बीच में चल रही होगी, क्योंकि अभी कुछ देर पहले ही मैंने खाना खाया है। अगर आप खाली पेट मेरी नाड़ी देखें तो यह आपको 36 से 40 के बीच मिलेगी। यह कुछ ऐसा ही है, मानो मैं अभी गहरी नींद में सोया हुआ हूं। जब शरीर इस स्थिति में हो तो तनाव या थकान का सवाल ही पैदा नहीं होता। तब आपके जीवन में तनाव रहता ही नहीं है। तुर्या का मतलब है कि आप एक ही समय में सोए और जगे दोनों हैं, यहां तक कि आप खुद को सपना देखने से भी नहीं रोक रहे हैं। आप सपनों का आनंद भी ले रहे हैं। अगर आप ऐसी तुर्या की स्थिति में हैं, तो हम कहेंगे कि आप मृत्युंजय हैं। अगर आप अपनी नींद के दौरान भी जागरूक रहते हैं, तो आप उस समय भी जागरूक रहेंगे, जब आपको अपना शरीर छोड़ना होगा। तो ऐसे आदमी के लिए मौत का सवाल ही पैदा नहीं होता।

सोते समय मृत्यु का अभ्यास

जब आप आंखें बंदकर सो रहे होते हैं तो नींद में जाने के आखिरी कुछ पलों में आप जागरूकता खोकर नींद में चले जाते हैं। अगर नींद में गोते लगाने के बजाय जागरूकता के साथ आप सचेतन तरीके से सोने की कोशिश करने लगेंगे तो आपके लिए मृत्यु एक नाटक रह जाएगी। आपके पास रोज मृत्यु का अभ्यास करने का मौका होता है। अगर आप इस पल को संभालना सीख जाएं, अगर आप जागरूकता से नींद की ओर सचेतन तरीके से बढ़ने लगें तो फिर मृत्यु का आपके लिए कोई मतलब ही नहीं रहेगा।