Sadhguruयोग में 84 मुख्य योगासन का अभ्यास संभव है। इनमें से कौन-से योग आसन पहले और कौन-से बाद में करने चाहिएं? कितना जरुरी है आसनों के सही क्रम की जानकारी लेना?

प्रशन:

योगासन करने का क्रम कितना महत्वपूर्ण है? क्या हम क्रम को बदल सकते हैं।

सद्‌गुरु:

यह क्रम आपने या मैंने नहीं बनाया – यह न सिर्फ स्थूल शरीर बल्कि पूरी मानव प्रणाली के संचालन के अनुसार तय होता है। आपके शरीर में, कंकाल, मांसपेशियों, अंगों और ऊर्जा के लिए राहत या आराम की व्यवस्था होती है। अगर आप किसी आराम कुर्सी पर बैठें, तो आपकी मांसपेशियों को राहत मिलेगी लेकिन आपके जोड़ खिंचेंगे। आपने ध्यान दिया होगा कि जब आप विमान या कार में कुछ समय तक आराम की मुद्रा में बैठते हैं, तो अपनी मंजिल पर पहुंचने तक आप थक जाते हैं। सीधा बैठने पर ऐसा नहीं होता है। जब आप पीछे झुककर बैठते हैं, तो सिर्फ आपकी मांसपेशियों को आराम मिलता है, लेकिन कंकाल के ढांचे और सबसे बढ़कर आपके अंगों पर काफी दबाव पड़ता है।

जीवन के लिए जरूरी अंग, धड़ के साथ मशीनी पुर्जों से कसे हुए नहीं होते बल्कि इस तरह लटके रहते जैसे किसी नेट में रखे हों। जब आप आराम की मुद्रा में बैठते हैं, खासकर चलती गाड़ी में, तो आपके अंगों को बहुत नुकसान पहुंचता है।

यह मानव शरीर की संरचना के अनुरूप है। हमें उसे एक सिरे से दूसरे सिरे तक सक्रिय करना पड़ता है। एक खास हिस्से को अचानक सक्रिय करने से बिखराव आ जाएगा।

योग करते समय सावधानियां

चलती गाड़ी में आपको हमेशा सीधा बैठना चाहिए ताकि आपके अंगों को काफी आराम मिले। अगर आप पीछे झुकेंगे, तो एक अंग दूसरे को दबाएगा। इसी लिए कहा जाता है कि आपको भोजन के तुरंत बाद लेटना नहीं चाहिए। भारत में हमेशा से आपको बताया जाता रहा है कि आपको सूर्यास्त से पहले या ठीक बाद भोजन कर लेना चाहिए और उसके कम से कम चार घंटे बाद सोना चाहिए। क्योंकि उस समय तक भोजन पेट से निकल चुका होता है। जब पेट भरा होता है और आप लेटते हैं, तो वह दूसरे अंगों को दबाता है। मान लीजिए, आपके पेट में एक-डेढ़ किलो खाना है और आप कुछ घंटों के लिए लेट जाते हैं, तो यह भार आपके शरीर को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।

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हठ योग में, अंगों को आराम देने पर हमेशा ध्यान दिया जाता है। ऊर्जा के आराम पर भी ध्यान दिया जाता है। आपकी ऊर्जा इस तरह काम करती है कि अगर आप अपनी ऊर्जा के एक पहलू को सक्रिय किए बिना दूसरे पहलू को सक्रिय कर दें, तो आपका शरीर असंगत हो जाएगा। असंगत शरीर हर कहीं देखने को मिलते हैं। असंगत ऊर्जा का मतलब है, खंडित जीवन। हो सकता है कि आप किसी तरह लंबी जिंदगी जी लें, मगर आपकी जिंदगी में चाहे जो आए जाए, आप पूर्ण नहीं होंगे। आप लॉटरी जीत सकते हैं, आप दुनिया के सबसे अच्छे पुरुष या महिला से विवाह कर सकते हैं, आप दिन के 24 घंटे पूजा-पाठ कर सकते हैं मगर कुछ भी करके आप एक टूटा-फूटा जीवन ही जिएंगे।

योगासन का क्रम

योगासन करने का क्रम मेरी या आपकी पसंद के मुताबिक नहीं रखा गया है। यह मानव शरीर की संरचना के अनुरूप है। हमें उसे एक सिरे से दूसरे सिरे तक सक्रिय करना पड़ता है। एक खास हिस्से को अचानक सक्रिय करने से बिखराव आ जाएगा।

आपने ध्यान दिया होगा कि जब आप विमान या कार में कुछ समय तक आराम की मुद्रा में बैठते हैं, तो अपनी मंजिल पर पहुंचने तक आप थक जाते हैं। सीधा बैठने पर ऐसा नहीं होता है।
आपके जीवन में ऐसी स्थितियां आ सकती हैं कि आपके पास यह फैसला करने का समय नहीं होगा कि आपको कैसे काम करना है और सब कुछ व्यवस्थित नहीं होगा। चाहे स्थितियां जैसी भी हों, आपको तुरंत कार्यवाही करनी होगी। लेकिन अगर आपने अपने शरीर को एक खास तरीके से सक्रिय कर लिया है, तो चाहे आपके जीवन में जो भी परिस्थिति आए, आप अपने शरीर में ज्यादा हलचल मचाए बिना उसे संभालने में कामयाब होंगे। यह साफ-साफ देखा जा सकता है – अगर आप परंपरागत योगासन करते हैं, तो चाहे आपके सामने जो भी स्थितियां आएं, वे आपको अस्त-व्यस्त नहीं कर पाएंगी। यह तैयारी शरीर में एक खास संपूर्णता उत्पन्न करती है। इसलिए योगासन करने का क्रम पसंद से नहीं, मानव शरीर की संरचना के हिसाब से तय किया जाता है।

प्रश्‍न :

क्या किसी इंसान के शरीर में लचीलेपन के स्तर और उसके अंगों के लचीलेपन से उसकी मानसिक स्थिति, उसकी शख्सियत या उसके पिछले जन्म के कर्मों के बारे में कुछ बताया जा सकता है?

सद्‌गुरु :

यह जीवन को देखने का बहुत पक्षपात पूर्ण तरीका होगा। हमें अपने आस-पास के लोगों का मूल्यांकन नहीं करना चाहिए। किसी इंसान को झुकने या फर्श पर बैठने में बहुत सी वजहों से परेशानी हो सकती है। इस तरह लोगों के बारे में राय बनाना गलत और गैरजरूरी है। लेकिन लचीलेपन के सवाल को सामान्य तौर पर देखें तो एक मांसपेशी लचीली होने पर ही उपयोगी होती है। जहां भी शरीर को 100 फीसदी दृढ़ता की जरूरत है, वहां उसने हड्डियां बनाईं।

जो भी हो, हम व्यक्ति के लचीलेपन से उसके बारे में इस तरह राय नहीं बना सकते, “मुझे बताओ कि आप कौन सा योगासन नहीं कर सकते और मैं बता दूंगा कि आप किस तरह के इंसान हैं।”
जहां उसे 75 फीसदी दृढ़ता चाहिए, उसने नसें बनाईं। जहां उसे 50 फीसदी दृढ़ता चाहिए, उसने उपास्थि (कार्टिलेज) पैदा की। जहां उसे पूरा लचीलापन चाहिए, वहां मांसपेशियां बनाई। शरीर का ढांचा लचीलेपन के अलग-अलग स्तरों से बना है। अगर शरीर का हर हिस्सा लचीला होता, तो आप बीन बैग की तरह बैठे होते।

योगासन और लचीला शारीर

शरीर के कुछ अंग दृढ़ या कठोर होते हैं, कुछ थोड़े कम दृढ़ होते हैं और कुछ लचीले होते हैं - यह बहुत बुद्धिमानी से तय किया गया है। इन्हें उसी रूप में रखना चाहिए जिस रूप में सृष्टा ने उन्हें तैयार किया है। तीन साल के बच्चे में इतना लचीलापन होता है कि वह कोई भी योगासन कर सकता है। आपने अपने अंगों का इस्तेमाल न करके इस लचीलेपन को खो दिया है, क्योंकि आप अपने शरीर को कब्र के लिए संजो कर रखना चाहते हैं। आप मृत्यु के समय अच्छी स्थिति में होना चाहते हैं लेकिन दुनिया में मौजूद होते हुए आप अच्छी स्थिति में नहीं हैं।

अगर आपकी मांसपेशियों को किसी तरह की कोई चोट या नुकसान नहीं पहुंचा है और फिर भी वे सख्त हैं, तो शायद आप अपने शरीर में एसिड उत्पन्न कर रहे हैं। आप इस पर गौर कर सकते हैं - अगर किसी खास दिन आप मानसिक तनाव की स्थिति में हैं, तो अगले दिन आपको झुकने में ज्यादा परेशानी होगी। एसिड का स्तर बढऩे के साथ मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं।

सख्त मांसपेशियां और सख्त मस्तिष्क अच्छी चीज नहीं हैं। आपका मस्तिष्क और मांसपेशियां तभी उपयोगी होते हैं, जब वे लचीले होते हैं। अगर आप आनंदपूर्वक यहां बैठेंगे, तो शरीर में एसिड उत्पन्न नहीं होगा। लेकिन अगर आप पांच मिनट के लिए भी गुस्से में आते हैं, तो आपके खून में एसिड का स्तर काफी बढ़ जाएगा, वह इस हद तक बढ़ जाता है कि आपके शरीर में जहर बनने लगता है और यह जहर आपकी मांसपेशियों को सख्त बना देता है। इसके अलावा, लचीलेपन की कमी की वजह आपके रहन-सहन से जुड़ी भी हो सकती है क्योंकि आपको फर्श पर बैठने या अपने शरीर को ज्यादा इस्तेमाल करने की आदत नहीं है।

जो भी हो, हम व्यक्ति के लचीलेपन से उसके बारे में इस तरह राय नहीं बना सकते, “मुझे बताओ कि आप कौन सा योगासन नहीं कर सकते और मैं बता दूंगा कि आप किस तरह के इंसान हैं।”

योगासन से अंगों को आराम दें

शरीर के अंगों के आराम में होने का खास महत्व है। इसके कई पहलू हैं। फिलहाल हम इसके सिर्फ एक पहलू पर विचार कर रहे हैं। शरीर के ज्यादातर महत्वपूर्ण अंग छाती और पेट के हिस्से में होते हैं। ये सारे अंग न तो सख्त या कड़े हैं और न ही ये नट या बोल्ट से किसी एक जगह पर स्थिर किए गए हैं। ये सारे अंग ढीले-ढाले और एक जाली के अंदर झूल रहे से होते हैं। इन अंगों को सबसे ज्यादा आराम तभी मिल सकता है, जब आप अपनी रीढ़ को सीधा रखकर बैठने की आदत डालें।

आधुनिक विचारों के मुताबिक, आराम का मतलब पीछे टेक लगाकर या झुककर बैठना होता है। लेकिन इस तरह बैठने से शरीर के अंगों को कभी आराम नहीं मिल पाता। इस स्थिति में, शारीरिक अंग उतने ठीक ढंग से काम नहीं कर पाते जितना उनको करना चाहिए - खासकर जब आप भरपेट खाना खाने के बाद आरामकुर्सी पर बैठ जाएं। आजकल काफी यात्राएं आराम कुर्सी में होती हैं।

अगर किसी खास दिन आप मानसिक तनाव की स्थिति में हैं, तो अगले दिन आपको झुकने में ज्यादा परेशानी होगी। एसिड का स्तर बढऩे के साथ मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं।”
मेरा कहना यह है कि अगर आप कार की आरामदायक सीट पर बैठकर एक हजार किलोमीटर की यात्रा करते हैं, तो आप अपने जीवन के कम-से-कम तीन से पांच साल खो देते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि लगातार ऐसी मुद्रा में बैठे रहने की वजह से आपके अंगों पर इतना बुरा असर होता है कि उनके काम करने की शक्ति में नाटकीय ढंग से कमी आ जाती है या फिर वे बहुत कमजोर हो जाते हैं।

शरीर को सीधा रखने का मतलब यह कतई नहीं है कि हमें आराम पसंद नहीं है, बल्कि इसकी सीधी सी वजह यह है कि हम आराम को बिल्कुल अलग ढंग से समझते और महसूस करते हैं। आप अपनी रीढ़ को सीधा रखते हुए भी अपनी मांसपेशियों को आराम में रहने की आदत डाल सकते हैं। लेकिन इसके विपरीत, जब आपकी मांसपेशियां झुकीं हों, तो आप अपने अंगों को आराम में नहीं रख सकते। आराम देने का कोई और तरीका नहीं है। इसलिए यह जरूरी है कि हम अपने शरीर को इस तरह तैयार करें कि रीढ़ को सीधा रखते हुए हमारे शरीर का ढांचा और स्नायुतंत्र आराम की स्थिति में बने रहें।