एक प्रक्रिया, विधि, तकनीक और विज्ञान है- योग। जो उन सख्त दीवारों को गिराता है जिसे हमने अपने 'व्यक्तित्व’के नाम पर खड़ा कर रखा है। अगर आप एक व्यक्ति हैं तो इसका मतलब है कि आपके इर्द-गिर्द  'मैं’ का एक ढांचा बन गया है, जिसके भीतर केवल आप ही काम कर सकते हैं। अगर आप इस ढांचे को हटा देते हैं तो आप एक इंसान नहीं बस एक मौजूदगी  बन जाएंगे, जैसे जीवन है, जैसे ईश्वर है- बस एक उपस्थिति।

भरपूर मेडिकल और वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि आपके दिमाग के कार्य, आपके भीतर के रसायन और यहां तक कि आपके वंश से आये लक्षणों को भी योगाभ्यास द्वारा बदला जा सकता है। 
इंसान जो कुछ भी करता है, दरअसल उससे उसके व्यक्तित्व की झलक मिलती है। कोई गाता है, कोई नाचता है, कोई किताब लिखता है, और कोई पेंटिंग करता है। आपके भीतर से जो कुछ बाहर आता है, वह आपके व्यक्तित्व को दर्शाता है। हो सकता है आप चेतनता के साथ कार्य करते हों। लेकिन तब भी, आप जो कुछ भी कहते या करते हैं, जो कुछ भी आपके भीतर से बाहर आता है, वह आपके व्यक्तित्व को दर्शाता है।

योग इस मामले में पूरी तरह से उल्टा है, क्योंकि योग ये नहीं बताता है कि आपका व्यक्तित्व कैसा है, बल्कि यह तय करता है कि आप क्या हो सकते हैं। इसका संबंध – इंसान के अस्तित्व की बुनियादी चीजों के रूपांतरण से है। आज इस बात को साबित करने के लिए भरपूर मेडिकल और वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि आपके दिमाग के कार्य, आपके भीतर के रसायन और यहां तक कि आपके वंश से आये लक्षणों को भी योगाभ्यास द्वारा बदला जा सकता है। इसके प्रमाण की कोई ज़रूरत नहीं थी। क्योंकि हम हमेशा से इसके साक्षी रहे हैं। पर आज वैज्ञानिक आंकड़े इसे साबित करते हैं।

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जब से आपका जन्म हुआ है, तमाम तरह के अनुभवों, परिस्थितियों, विचारों, भावों, संबंधों के रूप में जो भी छाप आपके भीतर बनी है और जो कुछ आपने अपनाया है, वे सब चीजें मिलकर आपको एक खास किस्म का इंसान बनाती हैं।
तो योग आपके व्यक्तित्व को नहीं दर्शाता, आप जो बनना चाहते है, उसे निर्धारित करता हैं। जिन तत्वों से आप बने हैं, उनको बदलता हैं- योग।  जिन अन्य माध्यमों के सहारे हम अपने आप को व्यक्त करते हैं, उनके मुकाबले योग में कहीं ज्यादा जुड़ाव की जरूरत होती है। अगर आप किसी खास काम के जरिए अपने आप को पूरी तरह से व्यक्त कर सकते हैं, तो वह काम भी आपको कुछ हद तक रूपांतरित कर सकता है। अगर आप पूरे दिल से खाना बनाते हैं, पूरे मन से गाते हैं, मन से  नाचते हैं,  तब भी कुछ रूपांतरण हो सकता है। उस खास काम में जबर्दस्त जुड़ाव होने की वजह से उसका कुछ असर होगा। लेकिन कुल मिलाकर आपका वह कार्य यह बता ही देता है कि आपका व्यक्तित्व कैसा है। । पर उससे यह तय नहीं होता कि आपकी असली प्रकृति क्या है।

लेकिन सुबह के वक्त आसन करके क्या आप खुद को व्यक्त करते हैं? नहीं। दरअसल, यह खुद को व्यक्त करना नहीं है। यह एक विधि या तकनीक है, जिसके जरिये आप खुद को बदल सकते हैं। एक व्यक्ति के रूप में आप फिलहाल जो भी हैं, वह वंश से आये लक्षणों और पिछले जन्म के कर्मों का एक मिश्रण हैं। इन्हीं कर्मों की वजह से आप एक खास गर्भ का चुनाव करते हैं। जब से आपका जन्म हुआ है, तमाम तरह के अनुभवों, परिस्थितियों, विचारों, भावों, संबंधों के रूप में जो भी छाप आपके भीतर बनी है और जो कुछ आपने अपनाया है, वे सब चीजें मिलकर आपको एक खास किस्म का इंसान बनाती हैं।

शुरू में आप अपने शरीर के स्तर पर काम करते हैं। इसके बाद आपके जीवन के दूसरे पहलुओं - मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और कार्मिक पहलुओं में भी लचीलापन आने लगता है। सब कुछ लचीला हो जाना चाहिए ताकि जैसी जरूरत हो आप वैसे बन सकें।
जब आप कहते हैं कि मैं इस तरह का व्यक्ति हूं, तो दरअसल, आप अपनी कुछ विवशताओं से अपनी पहचान बना लेते हैं। लोग कहते हैं कि मैं तो 'सुबह का आदमी’ हूं, मैं 'रात का आदमी’ हूं। दरअसल उनका मतलब है कि मैं सुबह नहीं उठ सकता, इसलिए मैं रात का आदमी हूं। मैं रात में देर तक जाग नहीं सकता, इसलिए मैं तो सुबह का आदमी हूं। इतना ही नहीं, कुछ लोग ‘ब्लैकबेरी’ वाले हैं, तो कुछ ‘एपल’ वाले। कितने तरीकों से विश्व विभाजित हो गया  है। जिन यंत्रों का आप इस्तेमाल कर रहे हैं, वे आपके लिए सिर्फ यंत्र ही नहीं होते, वे आपकी पहचान बन जाते हैं। कुछ चपाती वाले लोग हैं, कुछ चावल वाले, कुछ डोसा वाले, तो कुछ इडली वाले; हर तरह के लोग हैं।

आपका एक ख़ास किस्म का होना एक मजबूरी है। जब आप किसी ख़ास किस्म के नहीं बनना चाहते तो आप योग की शरण में जा सकते हैं। योग को अपनाने के बाद, आपको जिस पल जैसी जरूरत होगी आप वैसे बन जाएंगे। सुबह के वक्त आप सुबह वाले व्यक्ति होंगे और अगर रात का समय है तो रात वाले बन जाएंगे। अगर आपको किसी भी व्यक्तित्व की ज़रूरत नहीं, तो आप बिना व्यक्तित्व के रह लेंगे। इस तरह आप बेहद लचीले बन जायेंगे। इस लचीलेपन को हासिल करने के लिए शुरू में आप अपने शरीर के स्तर पर काम करते हैं। इसके बाद आपके जीवन के दूसरे पहलुओं - मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और कार्मिक पहलुओं में भी लचीलापन आने लगता है। सब कुछ लचीला हो जाना चाहिए ताकि जैसी जरूरत हो आप वैसे बन सकें।

आप अपने शारीरिक तंत्र के साथ जितनी ज्यादा पहचान बनाएंगे, आप उतने ही ज्यादा चक्रीय होते जाएंगे। आपके अनुभव चक्रीय हैं, जीवन की प्रक्रिया चक्रीय है। अगर आप गौर से देखें तो जीवन में जिन परिस्थितियों का आप सामना करते हैं, वे भी चक्रीय ही हैं।
एक प्रक्रिया, विधि, तकनीक और विज्ञान है- योग। जो उन सख्त दीवारों को गिराता है जिसे हमने अपने 'व्यक्तित्व’के नाम पर खड़ा कर रखा है। अगर आप एक व्यक्ति हैं तो इसका मतलब है कि आपके इर्द-गिर्द  'मैं’ का एक ढांचा बन गया है, जिसके भीतर केवल आप ही काम कर सकते हैं। अगर आप इस ढांचे को हटा देते हैं तो आप एक इंसान नहीं बस एक मौजूदगी  बन जाएंगे, जैसे जीवन है, जैसे ईश्वर है- बस एक उपस्थिति। ढांचे में बंद होने से यह उपस्थिति व्यक्ति बन जाती है। योग करने का अर्थ है कि आपके इस ढाँचे को पतला और छेददार बनाना। जिससे कि एक दिन यह ढांचा टूट जाए।

आपके अनुभव में योग का मतलब है सुबह का योगाभ्यास, और साथ ही यह सवाल कि "आखिर यह साधना ऐसी क्यों है?"  इस जगत में भौतिकता से जुड़े सभी पहलू एक चक्र में घूमते रहते हैं। हमारी धरती सूर्य के चारों ओर घूम रही है, पूरा सौर्य मंडल घूम रहा है। इस आकाशगंगा में हर चीज घूम रही है। आप अपने शारीरिक तंत्र के साथ जितनी ज्यादा पहचान बनाएंगे, आप उतने ही ज्यादा चक्रीय होते जाएंगे। आपके अनुभव चक्रीय हैं, जीवन की प्रक्रिया चक्रीय है। अगर आप गौर से देखें तो जीवन में जिन परिस्थितियों का आप सामना करते हैं, वे भी चक्रीय ही हैं।

जीवन की चक्रीय-रीति को तोड़ने में भी योग की तकनीक काम आती है।अगर मैं कहता हूं कि आप गोल-गोल घूम रहे हैं, तो इसका क्या मतलब हैं? इसका मतलब है कि आप चल रहे हैं, लेकिन वास्तव में आप जा कहीं भी नहीं रहे। आप बस एक ही जगह से बार-बार गुजर रहे हैं। योग का अर्थ है कि जो गोलाकार है उसे खोलकर एक सीधी रेखा बना देना। सीधी रेखा बन जाने के बाद अगर आप इस पर आगे बढ़ेंगे, तो आप कहीं न कहीं ज़रूर पहुंचेंगे ।

अगर साधना बंद कर देंगे तो ये विवशताएं अचानक वापस आ जाएंगी, क्योंकि आपका स्वभाव आपको इतनी आसानी से छोड़ने वाला नहीं है। इसके लिए आपको मेहनत करनी होगी।
हो सकता है कि आप दो साल या पांच साल से साधना कर रहे हों। अपनी साधना को तीन महीने के लिए रोक दीजिए। कई लोग ऐसा कर के परिणाम देख चुके हैं। अगर आपने नहीं किया तो ऐसा मत करीयेगा, क्योंकि मैं आपको परिणाम अभी ही बता रहा हूँ। अचानक आप देखेंगे कि बहुत सारी विवशताएं जो काफी पहले खत्म हो चुकी थीं, अब फिर से वे आपका हिस्सा बन गई हैं। यहां आश्रम में दो बार भोजन मिलता है सुबह 10 बजे और शाम को 7 बजे। जो लोग अपनी साधना सही तरीके से कर रहे हैं, वे सुबह भोजन करते हैं और फिर शाम तक भोजन के बारे में सोचते तक नहीं। नब्बे प्रतिशत लोग ऐसा करते हैं, दस प्रतिशत लोगों को खाने के लिए कुछ न कुछ चाहिए। यहां साधकों को खाने की याद इसलिए नहीं आती क्योंकि खाना अब एक मजबूरी नहीं है। वे जब खाते हैं तो होश में खाते हैं, या फिर नहीं खाते।  तीन महीने के लिए आप अपनी साधना रोक दें और फिर देखें। हमेशा कुछ न कुछ लपकने और उसे मुंह में रखने के लिए आपके हाथ लालायित रहेंगे। अगर साधना बंद कर देंगे तो ये विवशताएं अचानक वापस आ जाएंगी, क्योंकि आपका स्वभाव आपको इतनी आसानी से छोड़ने वाला नहीं है। इसके लिए आपको मेहनत करनी होगी। या फिर आप इस चक्रीय-रीति से जीवन काटकार खुश रहें।

चक्र को एक सर्कस के रूप में भी देखा जा सकता है। अगर आपकी दृष्टि बहुत सीमित है तो आप पूरा चक्र नहीँ देख पाएंगे। लेकिन अगर आप अपने जीवन के पूरे चक्र को देखें, तो अचानक यह एक सर्कस की तरह दिखेगा। एक बार आपको यह पता चल जाए कि यह सर्कस है, तो आप बार-बार इससे होकर गुजरना नहीं चाहेंगे। फिर आप इससे बाहर निकलने के लिए कुछ न कुछ ज़रूर करेंगे।