29 साल पहले 23 सितंबर के दिन चामुंडी की पहाडिय़ों पर एक घटना घटी (यहां सद्गुरु उस घटना का जिक्र कर रहे हैं जो एक गहन आध्यात्मिक अनुभव था, जिसके बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई)। यह विषुव का दिन था। आप शायद जानते होंगे कि विषुव उस दिन को कहते हैं जब रात और दिन बराबर होते हैं। इसका मतलब है कि इस दिन धरती अपने सौरमंडल के साथ खासकर सूर्य के साथ एक निश्चित स्थान पर संतुलन बनाती है। मेरी जिंदगी में बहुत सारी चीजें रही हैं - शांति, आनंद, परमानंद, उत्साह, पागलपन, लेकिन इन सबसे ऊपर जो प्रमुख चीजें हैं, वे हैं स्पष्टता और संतुलन। इनमें भी संतुलन निश्चित रूप से ज्यादा महत्वपूर्ण है। मेरा जन्म विषुव से 21 दिन पहले हुआ था। परिवार में मेरे जन्म के संबंध में एक कहानी बताई जाती है कि कैसे मैं डॉक्टर के बताए गए समय से 23 दिन बाद पैदा हुआ और वह दिन विषुव से ठीक 21 दिन पहले का था।

 दक्षिणायन में उत्तरी गोलार्ध से ज्यादा दक्षिणी गोलार्ध सूरज के साथ सीध में होता है, लेकिन 23 सितंबर को यह भूमध्यरेखा ही सूर्य के ठीक सामने होती है। 

21 के अंक का महत्व

21 दिन पहले ही क्यों? इस 21 के अंक की क्या विशेषता है? योग विज्ञान में 21 एक खास संख्या है, क्योंकि यह 84 का चौथाई भाग है। यह सृष्टि 84 चक्रों से होकर गुजरी है। इसी तरह आसन भी 84 हैं और चंद्रमा को धरती के 1008 चक्कर लगाने में भी 84 साल का समय लगता है। शारीरिक दृष्टि से 84 और 21 संख्या का एक खास तरह का महत्व है। इसी वजह से योग-मार्ग (ईशा में आयोजित एक कार्यक्रम) 21 दिन का है और शांभवी महामुद्रा का समय भी 21 मिनट है। अगर हम तीन मूल नाडिय़ों को सात चक्रों से गुणा करें तो यह संख्या 21 होगी। इसलिए हम कह सकते हैं कि 21 और 84 संख्या के शारीरिक महत्व के हिसाब से बहुत सारे अलग-अलग पहलू हैं। आपमें से जो लोग कल्पनाओं में उडऩे के आदी हैं, वे यह सोचकर कहीं अंकशास्त्री बनने की कोशिश न करें कि हर एक संख्या का संबंध किसी न किसी बात सेजरूर होगा। बात अंकों की नहीं है। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि योग का मतलब इस सृष्टि की ज्यामिति को समझना और खुद को उसके साथ एक सीध में लाना है। इसका मतलब यह है कि इस शरीर में हर एक चीज का ब्रह्मांड की ज्यामिति के साथ तालमेल हो। आखिरकार ब्रह्मांड की स्थिरता उसकी ज्यामिति में ही निहित है। धरती अपनी कक्षा से लगभग साढ़े तेईस डिग्री के झुकाव के साथ सूर्य के चारों ओर घूम रही है और इस दिन भूमध्यरेखा सूर्य के सामने होती है। इसके अलावा दूसरे दिनों में सूर्य के सामने या तो उत्तरी गोलार्ध होगा या फिर दक्षिणी गोलार्ध। दक्षिणायन में उत्तरी गोलार्ध से ज्यादा दक्षिणी गोलार्ध सूरज के साथ सीध में होता है, लेकिन 23 सितंबर को यह भूमध्यरेखा ही सूर्य के ठीक सामने होती है।

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पुराने समय के योगियों ने धरती की कक्षा को 27 भागों में विभाजित किया और हर एक भाग के चार हिस्से किए। उन्होंने इन 27 भागों को नक्षत्र कहा और चार हिस्सों को पद कहा।  

खुद को ब्रह्माण्ड के साथ एक सीध में लाना होगा

इस जगत की ज्यामिति ऐसी है, इतनी खूबसूरती और भव्यता से इस जगत की रचना हुई है कि अगर आप स्वयं को इसके साथ संरेखित कर लेते हैं, यानी एक सीध में कर लेते हैं तो सारी कायनात आपके अनुकूल हो जाएगी। कई बार मैं अपनी जिंदगी की गुजरी हुई घटनाओं पर गौर करता हूं तो पाता हूं कि कैसे सारी चीजें सही समय पर होती चली गईं, कैसे यह सिस्टम इस ब्रह्मांड की हर एक चीज के साथ एक सीध में आ गया। यह सब अपने आप में अविश्वसनीय लगता है।

आप इस जगत की शानदार रचना को जितने करीब से देखते हैं, इसकी विशुद्ध प्रज्ञा और पूर्णता से आप उतना ही अधिक प्रभावित होते हैं। और फिर इसके सामने नतमस्तक होने से खुद को नहीं रोक पाते हैं। अगर आप इसकी हर एक चीज पर गौर करें तो आपको इंसानों द्वारा की जाने वाली सभी बातें बिल्कुल बेकार और बेमतलब लगती हैं। इस सृष्टि की रचना कैसे हुई होगी, काश इंसान इस पर गौर कर ले, इसकी प्रज्ञा के आयामों को जान ले, इसकी गहराई को समझ ले और यह जान ले कि इस जगत में कैसे सृष्टि में तमाम घटनाएं बिना किसी रुकावट के हो रही हैं! मैं नहीं समझता कि इन सब चीजों को कभी शब्दों में सजाया जा सकता है। शायद इसे व्यक्त करने का एकमात्र तरीका है कि इसे जटिल ज्यामितीय रूप में पेश किया जाए।

आधुनिक वैज्ञानिक ऋग्वेद और शिव सूत्र पढ़ रहे हैं

मानव शरीर की ज्यामितीय संरचना और शरीर-विज्ञान का बारीकी से अध्ययन करके कोई भी व्यक्ति इस अस्तित्व के बारे में सब कुछ स्पष्ट रूप से जान सकता है। आजकल आधुनिक वैज्ञानिक हमारे देश के प्राचीन ग्रंथों, खासकर ऋग्वेद और शिव सूत्र को खंगालने में लगे हैं। आज से 12 से 15 हजार साल पहले ही हमारे देश के लोगों ने प्रकाश की गति के बारे में पता लगा लिया था और इसकी गणना माइक्रोसेकेंड तक कर दी थी। आधुनिक विज्ञान का कहना है कि प्रकाश एक सेकंड में 186,282 मील की रफ्तार से चलता है। प्राचीन काल के योगियों ने इसकी गणना पहले ही कर ली थी और उनकी गणना का तरीका आज की गणना के तरीके से कहीं ज्यादा असाधारण था।

पहले उन्होंने यह देखा कि धरती का क्षेत्र कैसा है। फिर धरती सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाने में जितना समय लेती है, उसकी गणना करके कक्षाओं की गिनती की। तब कहीं जाकर वे 186,258 के अंक के आसपास पहुंचे। यह संख्या आधुनिक विज्ञान की गणना से 24 मील प्रति सेकंड अलग है, और यह आंकड़ा ही ज्यादा सही है। पुराने समय के योगियों ने धरती की कक्षा को 27 भागों में विभाजित किया और हर एक भाग के चार हिस्से किए। उन्होंने इन 27 भागों को नक्षत्र कहा और चार हिस्सों को पद कहा। इस हिसाब से धरती सूर्य के चारों ओर 108 कदम बढ़ती है जबकि धरती और सूर्य के बीच की दूरी सूर्य के व्यास की 108 गुना है। सूर्य का व्यास धरती के व्यास से 108 गुना ज्यादा है।

108 हमारे जीवन का हिस्सा बन गया

इस तरह इन आंकड़ों को हमने अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल कर लिया। जैसे कि अगर आप रुद्राक्ष की माला पहनते हैं तो उसमें भी 108 मनके होते हैं। और तो और, अगर आप मंत्रों को गिन कर जाप करते हैं तो वह भी 108 बार ही, क्योंकि धरती 108 कदम लेती है और इन मंत्रों के उच्चारण से हम भी इतना ही आगे बढ़ते हैं। यह सब इसलिए है, ताकि हम अपने सिस्टम को ब्रह्मांड की ज्यामिति के साथ मिला सकें। हमारे सिस्टम और ब्रह्मांड में कोई फर्क न रहे। जब कोई अंतर ही नहीं रह जाता है तो एक संयोजन बनता है, जिसे हम योग कहते हैं। एक व्यक्ति अपने शुद्ध समर्पण से इसे हासिल कर सकता है। आजकल की सोच है कि यह सबसे ज्यादा मुश्किल काम है, जबकि वास्तव में इससे ज्यादा आसान काम है ही नहीं। मानवीय सिस्टम को ब्रह्मांड की ज्यामिति की सीध में लाने पर खुद ब खुद एक मेल होता है जिसे हम योग कहते हैं। इसी सिद्धांत या बुनियाद पर योग-विज्ञान विकसित हुआ है।

अपने आप को इस ब्रह्मांड के षड्यंत्र के आगे समर्पित कर देना एक तरह की कला है। हालांकि इसके पीछे एक खास तरह का विज्ञान है, लेकिन इस ब्रह्मांडीय साजिश के प्रति खुद को सौंप देने के लिए आपको अपने अंदर एक खास स्तर की विनम्रता, भक्ति और समर्पण का भाव लाना होगा। आप इस बारे में तार्किक तरीके से नहीं सोच सकते। मैंने जब भी इस मामले में सोचने और अपनी अक्ल लगाने की कोशिश की है, मैं हमेशा इससे दूर हो गया। जीवन में कुछ ऐसी परिस्थितियां अचानक आईं, जिन्होंने मुझे वापस रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया। जिस करुणा के साथ यह सृष्टि मेरे साथ व्यवहार करती है, वह अतुलनीय है। अगर मैं कहीं अटक भी गया तो इसने मुझे हमेशा सही रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया।