नई तकनीकों के बावजूद क्यों बढ़ रही हैं बीमारियां?
इस वर्ष एक जनवरी को हिंदी दैनिक ‘प्रभात खबर’ ने सद्गुरु का साक्षात्कार प्रकाशित किया। प्रभात खबर के समाचार संपादक रंजन राजन ने देश व समाज के मौजूदा हालातों पर कई प्रश्न किये। इस श्रृंखला के पिछले ब्लॉग में आपने पढ़े देश से जुड़े प्रश्नों के उत्तर, आइये अब पढ़ते हैं स्वास्थ्य और अन्य सवालों के बारे में:
प्र.ख.: चिकित्सा विज्ञान में नित नए अनुसंधान हो रहे हैं। असाध्य रोगों को दूर करने के नए-नए तरीके खोजे जा रहे है, लेकिन बीमारियों से मरनेवालों की संख्या कम नहीं हो रही है। इसका कारण और समाधान क्या है?
सद्गुरु: बीमारियों को दो बुनियादी श्रेणियों में बांटा जा सकता है। पहली श्रेणी की बीमारियां बाहर से प्राप्त संक्रमण से होती हैं। इनकी दवाएं और इलाज मुहैया कराने में चिकित्सा विज्ञान बहुत कारगर रहा है। दूसरी तरह की बीमारियों को, जो सारी बीमारियों का सत्तर प्रतिशत से भी ज्यादा हैं - आपका शरीर खुद पैदा करता है। ये लंबी चलने वाली बीमारियां हैं।
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प्र.ख.: एक अनुमान के मुताबिक हमारे देश में विद्यालय से ज्यादा पूजा स्थल हैं। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश के लिए यह स्थिति कितनी जायज है लगातार बन रहे पूजा स्थल कितने जरूरी हैं?
सद्गुरु: पूजास्थलों को बनाना संविधान द्वारा दी गई धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है। लेकिन अगर आप भारतीय मंदिरों की बात कर रहे हैं, तो आपको समझना होगा कि वे पूजा करने की जगहें नहीं हैं, बल्कि शक्तिशाली ऊर्जा केंद्र हैं। पारंपरिक तौर पर, आपको प्रार्थना करने के लिए या भगवान से कुछ मांगने के लिए मंदिर जाने के लिए नहीं कहा गया, आपसे वहां पर थोड़ी देर बैठने के लिए कहा गया था, जिससे कि आप उस ऊर्जा को आत्मसात करके खुद को विभिन्न स्तरों पर चार्ज कर सकें। चूंकि हर इंसान तमाम तरह की ऊर्जाओं का जटिल मिश्रण है, विभिन्न तरह की जरूरतों वाले इंसानों के लिए मंदिरों का एक जटिल मिश्रण बनाया गया था। प्राचीन मंदिरों ने लोगों को जीवन के एक बिलकुल अलग आयाम में प्रवेश दिलाया।
प्र.ख.: अपनी दिनचर्या के बारे में कुछ बताएं। अपने जीवन में आप सबसे महत्वपूर्ण काम किसे मानते हैं?
सद्गुरु: मेरी आध्यात्मिक साधना सुबह लगभग बीस सेकंड की होती है। मैं बस बैठता हूं, और फिर मैं पूरे दिन के लिए तैयार हूं। मैं हर रोज टहलता नहीं, मैं कोई व्यायाम भी नहीं करता, पर अगर आप मेरे साथ किसी पहाड़ की चढ़ाई करेंगे, तो मैं शायद आपसे काफी आगे निकल जाऊंगा। जब सृष्टि का स्रोत ही आपको उपलब्ध हो, तो आप दिन के लिए खुद को अच्छे से तैयार कर सकते हैं।
लोगों ने इस पर जरुरी ध्यान नहीं दिया है, इसलिए ये दूर की कौड़ी लगती है। आध्यात्मिक प्रक्रिया इतनी लम्बी और अंतहीन इसलिए लगती है, क्योंकि लोग उम्र भर तरह-तरह के अभ्यास तो करते रहते हैं, और बीच-बीच में अवकाश लेते रहते हैं, इधर-उधर मन बहलाते रहते हैं।
मेरा लक्ष्य है कि हर मनुष्य, चाहे वो किसी भी जाति, वर्ग, धर्म या लिंग का हो, उसके भीतर आध्यात्मिक प्रक्रिया की कम-से-कम एक बूंद अवश्य पहुंचे। हम पूरी दुनिया को ये उपलब्ध कराना चाहते हैं।