एम एम कीरवानी: सद्‌गुरु, पश्चिम की महिलाओं की तुलना में भारतीय महिलाओं में आपको क्या खूबियां नजर आती हैं? उनका कौन सा गुण आपको सबसे सुंदर लगता है? वे किन मामलों में दुनियाभर की दूसरी महिलाओं से बेहतर हैं?

सद्‌गुरु: देखिए, मुझे समझ में नहीं आता कि हमारा सारा फोकस सिर्फ महिलाओं पर ही क्यों है? शायद इसलिए क्योंकि हम मानते हैं कि वे या तो सही हो सकती हैं या गलत, और पुरुष तो हमेशा सही ही होते हैं। आपको समझना होगा कि प्रकृति ने महिलाओं को बड़ी जिम्मेदारी दी है, चाहे वह बच्चे को जन्म देने की बात हो या बच्चे की शुरुआती जीवन को प्रभावित करने की बात हो। यह मत समझिए कि यह बात सिर्फ प्रजनन तक है, आज हम और आप यहां हैं तो इसी वजह से हैं। अगर आपका जन्म सामान्य तरीके से हुआ है तो इसका मतलब है कि हमारा जीवन एक महिला के शरीर में ही शुरु हुआ है। आज हम महिला या पुरुष होने का जो बायोलॉजिकल(शारीरिक) पहलू है, उसे कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ा रहे हैं।

हमारा दुनिया को देखने का तरीका ही गलत है

मेरा कहना है कि जब आप सड़क पर चल रहे हों तो आपको इस बात की चिंता क्यों होनी चाहिए कि सामने वाला व्यक्ति स्त्री है पुरुष? यह चीज सिर्फ बाथरूम या बेडरूम में ही मायने रखती है, बाकी किसी जगह इस बात का कोई महत्व नहीं होता। सड़क पर, काम करने की जगह पर या फिर हम कहीं भी हों, वहां इस बात का फर्क क्यों पडऩा चाहिए कि कोई व्यक्ति स्त्री है या पुरुष। आप उन्हें सिर्फ इंसान के तौर पर क्यों नहीं देख सकते? मुझे लगता है कि हम लोगों ने बहुत ज्यादा इस विषय को फोकस दे दिया है, जिसने बेहद अस्वस्थ माहौल बना दिया है।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.
औरतों के अधिकारों को लेकर बात करने की कोई जरूरत नहीं है। इसकी जगह हमें मानव अधिकारों की बात करनी चाहिए और महिलाएं भी इसका एक हिस्सा हैं।

इसका मतलब हुआ कि हम लगातार शारीरिक अंगों से बहुत ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं। इसीलिए हम लोगों को उनके लिंग से पहचान रहे हैं। लोगों को आप उनकी बुद्धि से नहीं, उनकी काबिलियत से नहीं, उनकी क्षमता से नहीं, बल्कि उनके लिंग से पहचान रहे हैं। दुनिया को देखने का यह तरीका ठीक नहीं है। हमारे जीवन के कुछ पहलुओं के लिए लिंगगत पहचान महत्वपूर्ण होती है, लेकिन जीवन के बाकी हिस्से में ज्यादा अहम यह होता है कि आपके पास दिमाग कितना है, आप कितने योग्य हैं। लिंग से पहचानना जीवन के कुछ खास रिश्तों के लिए जरूरी होती है। बाकी रिश्तों में लिंग से पहचानने की बात तो बीच में आनी ही नहीं चाहिए। केवल तभी दोनों के बीच समानता होगी। औरतों के अधिकारों को लेकर बात करने की कोई जरूरत नहीं है। इसकी जगह हमें मानव अधिकारों की बात करनी चाहिए और महिलाएं भी इसका एक हिस्सा हैं।

 

बराबरी होने पर स्त्री गुण यानी कोमलता ख़त्म हो जाएगी

आपने भारतीय महिलाओं की बात की, तो इस देश में हमने बहुत लंबे समय तक बहुत सारी शानदार चीजों को पोसा और संजोया है। लेकिन कई तरह की नासमझियों के चलते इन शानदार चीजों ने भी भयावह रूप ले लिया। कई ऐसी सहज व सरल चीजें थीं, जो महिलाओं की सुरक्षा व उनके कल्याण के लिए बनाई गई थीं, लेकिन समय के साथ आगे चलकर उन्हीं चीजों ने भेदभाव का और शोषण का एक भयानक रूप ले लिया। हमें पीछे मुड़कर एक बार जरुर देखना चाहिए कि आखिर क्यों ये छोटी-छोटी चीजें बनाई गई थीं। आज पश्चिमी दुनिया रंगरलियों में डूबी हुई है, क्योंकि वे लोग महिला और पुरुष को समान बनाना चाहते हैं।

अगर आप दुनिया में स्त्रैण गुण की अहमियत नहीं समझेंगे, तो दुनिया से सारी सौम्यता खत्म हो जाएगी और तब आपका घर भी बाजार हो जाएगा।

दोनों का बराबर होना जरूरी नहीं है। दोनों के लिए समान अवसर होना चाहिए। यह जरूरी नहीं है कि एक औरत से भी उन सब कामों को करने की उम्मीद की जाए, जो एक पुरुष करता है। अगर ऐसा है तो फिर प्रकृति द्वारा बनाए गए लिंगगत अंतर का क्या मतलब हुआ? दुनिया में स्त्रैण-गुण की भी उतनी ही जरूरत है, जितनी पुरुषैण गुण की। लेकिन आज समानता के नाम पर महिलाएं उस मुकाम पर पहुंच रही हैं, जहां वे पुरुषों की तरह व्यवहार करना शुरू कर देती हैं, क्योंकि वे जान रही हैं कि दुनिया में अगर उन्हें सफल होना है तो इसका एक ही रास्ता है कि वे पुरुषों की तरह काम करें। अगर आपने स्त्रैण प्रकृति को नष्ट कर दिया तो सही मायनों में आप औरत को गुलाम बना देंगे। अगर आप दुनिया में स्त्रैण गुण की अहमियत नहीं समझेंगे, तो दुनिया से सारी सौम्यता खत्म हो जाएगी और तब आपका घर भी बाजार हो जाएगा। आपकी शादी भी एक बाजार हो जाएगी।

शादी को एग्रीमेंट में मत बदलें

लोग शादी करने से पहले ही ‘एग्रीमेंट’ बना रहे हैं कि ‘जब हम अलग होंगे, तो इस घर में किसके हिस्से में क्या होगा?’ आखिर दो लोग इस तरह कैसे रह सकते हैं? लेकिन यहाँ फिर भी इस बात की खुशी है कि दो लोग एक हो रहे हैं और जीवन का आंनद ले रहे हैं। हो सकता है कि कुछ समय बाद आपस में लड़ाई हो। फिर भी इस बात की खुशी तो है कि आप दो जिंदगियों को एक साथ जोड़ रहे हैं। लेकिन जब आप बराबरी के नाम पर शंकालु होकर जिंदगी में प्रवेश करते हैं, तो कभी भी आप एक दूसरे को जानने का आनंद, एक दूसरे से घुलने-मिलने की खुशी, एक दूसरे के साथ एक होने का मतलब जान ही नहीं पाएंगे। ऐसा समानता की गलत सोच के चलते होता है। समानता की तो आपको बात भी नहीं करनी चाहिए। हमें एक दूसरे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों की बात करनी चाहिए।