दीक्षा: छोटे बच्चों की मां होने के नाते मैं उनकी शिक्षा को लेकर चिंतित रहती हूं, क्योंकि आजकल कॉम्पीटीशन का बहुत ज्यादा दबाव है। आज शिक्षा का मतलब सिर्फ अपनी पढ़ाई में आगे बढ़ना ही नहीं है, बल्कि खेलकूद, नाच-गाने जैसी हर चीज में अच्छा करना होता है। सद्‌गुरु कृपया सलाह दें कि मैं कैसे अपने बच्चों की मदद कर सकती हूं?

सद्‌गुरु: आपके बच्चे सिर्फ आपके ही प्रभाव में नहीं हैं। यहां ऐसी बहुत सी दूसरी ताकतें भी हैं, जो हर रोज उन्हें लगातार प्रभावित कर रही हैं। ये मत सोचिये कि मैं शिक्षकों की ओर इशारा कर रहा हूं, उनका तो बेहद सीमित प्रभाव होता है। आजकल फेसबुक पर सलाह देने वाले दोस्त, टीवी सहित बहुत सारी दूसरी चीजें हैं, जो उन्हें प्रभावित कर रही हैं। आपका प्रभाव तो उन पर धीरे-धीरे कम होता जा रहा है।

आजकल बचपन से ही टीवी का प्रभाव पड़ रहा है

देखिए, शुरू में ऐसा होता था कि जब तक बच्चे चार या पांच साल के होते थे, उन पर विशेष रूप से मां का प्रभाव रहता था। पांच-छह साल से दस साल का होते-होते पिता की भूमिका भी शुरू हो जाती थी। और फिर जब तक वे चौदह या पंद्रह के होते थे, तो दोस्त व दूसरे लोग आते थे। लेकिन अब ऐसा बिलकुल नहीं होता है। आपका तीन साल का बच्चा टीवी से चिपका रहता है। हमें नहीं पता कि जो टीवी पर दिखाया जा रहा है, वह उसे कितना और कैसे समझ रहा है। यहां तक कि आप भी नहीं पता लगा सकते कि टीवी पर क्या चल रहा है, यह इतना ज्यादा बदलता रहता है। टीवी पर कोई एक सुंदर दुनिया बनाने की बात करता है तो अगले ही पल आपको कहीं बम फटता दिखाई देता है, अगले ही पल कुछ और हो रहा होता है। अगर आप सहज रूप से टीवी देख रही होंगी तो आप देखेंगी कि टीवी पर भयानक अव्यवस्था दिखाई देती है। अगर दो या तीन साल का बच्चा आराम से टीवी देख रहा है, तो हम नहीं जानते कि इन चीजों का भविष्य में उसके जीवन पर क्या प्रभाव होगा। जाहिर सी बात है कि इसका कोई बहुत अच्छा प्रभाव तो नहीं होगा।

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ईशा होम स्कूल में बच्चे कंप्यूटर से दूर रहते हैं

हम आश्रम में एक स्कूल चलाते हैं - ईशा होम स्कूल। इस स्कूल में बच्चों को तब तक कंप्यूटर नहीं छूने दिया जाता, जब तक कि वे चौदह साल के नहीं हो जाते। दरअसल, शिक्षा आपके जीवन के क्षितिज के विस्तार को बड़ा करने का साधन है। तो इस ईशा होम स्कूल में, जब तक बच्चे चौदह साल के होते हैं, तब तक बिलकुल अलग तरीके से काम करते हैं। यहां तक कि उन बच्चों को अपने माता-पिता को ईमेल भेजने की भी इजाजत नहीं होती है। उन्हें हाथ से ही चिट्ठी लिखनी होती है।

शुरु में उन्होंने यहां कुछ विद्रोही तेवर दिखाए- ‘यहां मोबाइल फोन क्यों नहीं है, मैं अपना आईफोन क्यों नहीं इस्तेमाल कर सकता?’

क्या यह बेहद पुराना तरीका है? नहीं। क्योंकि हमने सुनिश्चित किया है कि स्कूल के पास सौ एकड़ से ज्यादा जगह हो, साथ ही हमारे स्कूल के पास ही दस हजार वर्ग किलोमीटर का जंगल है। अगर आप चीजों को गौर से देखना चाहते हैं, तो आपके आसपास काफी कुछ है प्रकृति से लेने के लिए, जिसे लेकर आप अपने भीतर एक खास तरीके का विकास कर सकते हैं। हमारे यहां कुछ बच्चे हैं, ऐसे बच्चे जो छह साल की उम्र से हमारे साथ बड़े हुए, लेकिन उनके साथ कोई समस्या नहीं है। यहां कुछ बच्चे दिल्ली और मुंबई के स्कूल से बारह या तेरह साल की उम्र में आए। शुरु में उन्होंने यहां कुछ विद्रोही तेवर दिखाए- ‘यहां मोबाइल फोन क्यों नहीं है, मैं अपना आईफोन क्यों नहीं इस्तेमाल कर सकता?’ हालांकि कुछ समय बाद वे यहां अच्छी तरह से ढल गए। अब यहां का पहला बैच निकलने वाला है। फिलहाल वे अपनी बारहवीं की परीक्षा दे रहे हैं और उसके बाद वे यहां से चले जाएंगे। उनमें से 90 फीसदी बच्चे कह रहे हैं कि अपनी ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद वे यहां स्कूल में वापस आना चाहेंगे और कम से कम एक साल यहां पढ़ाना चाहेंगे। यह वे अपनी तरफ से स्कूल को देना चाहते हैं।

नशीले पदार्थों का बढ़ता चलन

इनमें से एक बच्चा दिल्ली से है, जो वहां के एक बेहद समृद्ध परिवार से है। जब वह यहां आया तो उसके साथ बहुत सारी समस्याएं थीं। उसने एक लेख भी लिखा है, अपने बारे में वह लिखता है- ‘अगर मैं यहां नहीं आया होता तो मैं कहीं खो चुका होता। अब तक या तो मैं नशीले पदार्थों का आदी हो चुका होता या फिर ऐसी न जाने कितनी चीजें कर ली होतीं, क्योंकि मैंने 11-12 साल की उम्र में ही ये सब करना शुरू कर दिया था।’ और आज वह लड़का यहां से पढ़ाई पूरी करके निकल रहा है। उसमें यह कहने की समझ आ गई है, ‘अगर मैं यहां नहीं आया होता तो आज मैं कुछ और बन गया होता। यह स्कूल बच्चों के साथ जो अलोकप्रिय चीजें और काम करता है, उसने मुझे इस तरह का बनाया कि मैं आज आपके सामने हूं।’

आधुनिक होने की आपकी सोच बेवकूफी भरी है। आपके लिए आधुनिकता का मतलब बस वही चीजें करना है, जो पश्चिम में कोई और कर रहा हो और वे लोग यह करके बुरी तरह से परेशान भी हो रहे हैं।

तो यह वाकई अफसोस की बात है कि यह पूरी तरह से आपके हाथ में नहीं है। आज समाज में दूसरे जगह हो रही चीज़ों की नकल करने का चलन बहुत बढ़ चुका है। क्या आप अपने नवजात बच्चे के हाथ में तेज धारदार चाकू देंगे। मैं बता रहा हूं कि आज आपके पास जो तकनीक है, वह चाकू से ज्यादा धारदार है। इसे संभालने से पहले आपके पास एक सही उम्र और परिपक्वता का एक खास स्तर होना चाहिए। केवल इसलिए कि आपके पास कंप्यूटर है, क्या आप इसे अपने चार साल के बच्चे को सिखाएंगे? आधुनिक होने की आपकी सोच बेवकूफी भरी है। आपके लिए आधुनिकता का मतलब बस वही चीजें करना है, जो पश्चिम में कोई और कर रहा हो और वे लोग यह करके बुरी तरह से परेशान भी हो रहे हैं।

तकनीक - मदद भी है, और परेशानी भी

तकनीक दोधारी तलवार की तरह है। एक तरफ तो यह आपके लिए कई तरह की संभावनाएं खोलती है, तो दूसरी तरफ आपको बुरी तरह से सीमित व नाकाबिल बनाती है। अगर मैं आपसे पूछूं, ‘दो और दो कितने होते हैं?’ तो आप अपना कैलकुलेटर निकाल लेंगे। मेरे जीवन में एक समय ऐसा था कि जब मुझे कम से कम पांच सौ फोन नंबर याद थे। मैं अपनी याद से कोई भी नंबर मिला देता था। मैं अपने जीवन में कभी टेलिफोन डायरी लेकर नहीं चला, लेकिन आज मुझे अपने घर तक का नंबर याद नहीं है। इसके लिए मुझे अपने सैलफोन को देखना पड़ता है। हालांकि इसके फायदे भी हैं, लेकिन अगर यह मोबाइल खो जाए या फिर किसी वजह से कभी काम न करे, तो फिर अब आपके पास कामकाजी दिमाग तो बचा ही नहीं है।

मूल कारण – हमने अपना भीतरी विकास नहीं किया है

तो तकनीक ने इंसान को दुखी नहीं बनाया, बल्कि समझदारी की कमी ने समस्या बढ़ाई है। अगर आप यह नहीं जानते कि किसी चीज का कितना उपयोग किया जाए तो हर चीज एक समस्या होगी। तकनीक की कमी एक समस्या होगी, तो तकनीक की उपलब्धता भी समस्या होगी, अगर आपके पास समझदारी नहीं होगी तो हर चीज समस्या होगी। फिलहाल लोग कह रहे हैं कि दुनिया में बहुत सी बीमारियां ऐसी हैं, जो अमीरी के कारण होती हैं तो क्या इसका मतलब हुआ कि आप गरीबी की वकालत कर रहे हैं? क्या दुनिया को गरीब रखा जाए? यह तो समाधान नहीं है। हम पहले गरीबी की स्थिति में ही थे। हमने इस स्थिति से बाहर निकलने की खुद कोशिश की। इससे जो हल निकला, हम उस हल से भी एक समस्या पैदा कर रहे हैं। उसकी वजह है - कि हम एक इंसान के रूप में विकसित नहीं हुए हैं। कोई भीतरी काम नहीं हुआ है।