भारतीय परंपरा में जीवन को चार चरणों में बांटा गया है, जिसे वर्णाश्रम धर्म कहा गया है - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। इंसान के जीवन को इन चार पहलुओं में बांट कर देखा गया है। ब्रह्मचर्य से मतलब है कि यह समय सीखने का है, बाहर जाकर चीजों को जानने-समझने का है। अगला चरण गृहस्थ का है, जहां वह अपने आस-पास की दुनिया की बेहतरी के लिए काम करता है, दुनिया व मानव जाति के निर्माण में अपना योगदान देता है। इस दौरान वह ब्रह्मचर्य जीवन के दौरान सीखी गई चीजों का इस्तेमाल कर अपने व अपने आसपास के लोगों को एक बेहतर जीवन देने की कोशिश करता है। वानप्रस्थ का मतलब है कि अब वह पारिवारिक जीवन से रिटायर हो कर खुद को जीवन के अगले चरण यानी संन्यास के लिए तैयार कर रहा है।

बाल अवस्था और संन्यास में एक समानता है

संन्यास का मतलब है कि व्यक्ति ने कम से कम एक खास स्तर की मानसिक व शारीरिक गरिमा हासिल कर ली है, जहां उसके लिए भौतिक चीजें महत्वपूर्ण नहीं रह गई हैं।
अपने चारों तरफ एक छोटा सा कांटेदार घेरा तैयार किए बिना शुरू में इस रास्ते पर आगे बढ़ना व विकास करना संभव ही नहीं हो पाता।
जब आप पैदा होते हैं तो आप नंगे पैदा होते हैं, आपको आगे चलकर कपड़े दिए जाते हैं। जब आप बाल अवस्था में होते हैं तो आप ज्यादा कपड़ों में नहीं होते। लेकिन जैसे ही आप ब्रह्मचर्य में प्रवेश करते हैं, आपके लिए पहनावा बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। आपको सही तरीके से कपड़े पहनने पड़ते हैं। गृहस्थ को भी अपने शरीर को ढंककर रखना पड़ता है। हालांकि अपने घर के भीतर उसे थोड़ी आजादी होती है कि वह जैसे चाहे रह सकता है। लेकिन ब्रह्मचर्य में खुद को सही तरीके से ढंककर रहना पड़ता है, यह नियम है। वानप्रस्थ तो एक तरह की तैयारी है। संन्यास का मतलब एक बार फिर बच्चे की तरह नंगा हो जाना है, एक बार फिर से बच्चे की तरह मासूम हो जाना है। इंसान एक बार फिर तरोताजा हो जाता है, और हर तरह के बोझ से मुक्त हो जाता है।   शायद आपको मालूम होगा कि अपने यहां एक परंपरा है, कि जब कोई व्यक्ति मरता है, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, तो लोग उसके अंतिम संस्कार के लिए उसे ले जाते समय पूरी तरह से नग्न ले जाते हैं। अब यह सिर्फ ब्राह्मणों में ही देखने को मिलता है, दूसरे समुदायों में ऐसा नहीं होता। दूसरे लोग तो मृतक को अच्छे कपड़े पहनाते हैं, उसे ताबूत में रखकर कई तरह की बेकार की चीजें करते हैं। पश्चिम में तो लोग दफनाने वाले मृत शरीर का हॉलिवुड कलाकारों से भी ज्यादा साज श्रृंगार करते हैं। लेकिन भारत में जब लोग मरते हैं तो वे इस धरती से वैसे ही वापस चले जाते हैं, जैसे वे पैदा होते समय आए थे। इसके पीछे मकसद है कि जब आप जीवित थे, तब भले ही आपको इसका अहसास न हो पाया हो, लेकिन अब कम से कम उन लोगों को तो अहसास हो, जो आपको मरने के बाद देख रहे हैं – कि अब कपड़ों का कोई मतलब नहीं रह गया है।

ब्रह्मचर्य का असली अर्थ

मैं शिक्षण की प्रक्रिया को भी ब्रह्मचर्य कहूंगा, क्योंकि यह अपने आप में सीखने की प्रक्रिया भी है।
अपने चारों तरफ एक छोटा सा कांटेदार घेरा तैयार किए बिना शुरू में इस रास्ते पर आगे बढ़ना व विकास करना संभव ही नहीं हो पाता।
हो सकता है कि आपमें से बहुत सारे लोग ब्रह्मचर्य से गुजरे बिना सीधे गृहस्थ अवस्था में पहुंच गए हों। लेकिन अब समय है कि आप एक कदम पीछे लें और ब्रह्मचर्य अवस्था में जाएं। ब्रह्मचर्य को आम अर्थ में समझने की कोशिश मत कीजिए। यह अपने आप में अध्यात्म का मार्ग है। यह सीखने की वह प्रक्रिया है, जो आपको अध्यात्म के रास्ते की ओर ले जाती है। यह आपको अपने भीतर से और बाहर से भी असली जीवन के लिए तैयार करती है। आमतौर पर लोग सोचते हैं कि संन्यासी पत्थर की तरह होते हैं, जो बड़े सख्त व जड़ होते हैं। हालांकि यह बात सभी संन्यासियों पर लागू नहीं होती, लेकिन आम तौर पर लोगों की राय ऐसी ही है, क्योंकि उनमें से ज्यादातर ऐसे ही हुए हैं।

ब्रह्मचर्य और संन्यास एक सुरक्षा घेरे की तरह हैं

अगर आप जंगल में जाकर देखेंगे, तो पाएंगे कि ऐसी कंटीली झाडिय़ों में, जहां आप पहुंच भी नहीं सकते, वहां भी फूल खिला है। बिना उस कठोरता के, बिना उस दृढ़ता के, शुरुआत में बिना कुछ खास तरह की सख्ती के इंसान विकास कर भी नहीं सकता। अपने चारों तरफ एक छोटा सा कांटेदार घेरा तैयार किए बिना शुरू में इस रास्ते पर आगे बढ़ना व विकास करना संभव ही नहीं हो पाता। यह कुछ वैसा ही है, जैसे आप कोई पौधा रोपते हैं तो शुरू में आप उसके चारों तरफ एक सुरक्षा घेरा बनाते हैं। इसी तरह से ब्रह्मचर्य और संन्यास आपके लिए सुरक्षा घेरे हैं, जिससे यह पौधा कुचल कर बर्बाद न हो जाए। लेकिन इस प्रक्रिया का मकसद इंसान को जीवनहीन या कठोर बनाना नहीं है। यह सिर्फ बाहरी घेरा है, जिसे हमने इसलिए तैयार किया है, जिससे यह छोटा सा पौधा नष्ट न किया जा सके।

संन्यास का मतलब जीवन से मूंह फेरना नहीं है

क्या आपको लगता है कि विकास के इस स्तर पर आकर, समझदारी के इस स्तर पर पहुंचकर किसी सुरक्षा घेरे की जरूरत होती है? इस सख्ती का मतलब जीवन से मुंह फेरना नहीं। संन्यास का मतलब जीवन को नकारना नहीं है। संन्यास का मतबल जीवन के उच्चतर मार्ग पर आगे बढ़ना है। हो सकता है कि दुनिया के लिए संन्यास का मतलब किसी चीज़ को या चीज़ों को छोड़ देना हो। लेकिन संन्यास का मतलब यह नहीं है। संन्यास का मतलब तो सबसे ऊंचे को पाना है। तो हमने जो सुरक्षा घेरे तय किए हैं, उन्हें अच्छा होना चाहिए। शुरू में जब आप कोई पौधा रोपते हैं तो उसका सुरक्षा घेरा पौधे से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। और यह सुरक्षा घेरा तब तक महत्वपूर्ण होता है, जब तक पौधा बड़ा नहीं हो जाता।

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