सद्‌गुरुभारत में समाधि शब्द शायद ही किसी के लिए नया हो, लेकिन क्या है समाधि का मतलब? क्या यह एक स्मारक है या कुछ और? सद्‌गुरु बता रहे हैं कि समाधि की स्थिति में बुद्धि समत्व की अवस्था में पहुंच जाती है

समाधि की लालसा से बच नहीं सकते

अस्तित्व दो चीजों से मिलकर बना है – ‘वह जो है’ और ‘वह जो नहीं है’। ‘वह जो है’ में आकार-प्रकार, रूप, गुण, सुंदरता है जबकि ‘वह जो नहीं है’ में ये चीजें नहीं होतीं। मगर वह मुक्त होता है। ‘वह जो नहीं है’ कहीं-कहीं ‘वह जो है’ में फूट पड़ता है। जैसे-जैसे ‘वह जो है’ अधिक चेतन होता जाता है, वह ‘वह जो नहीं है’ बनने के लिए लालायित हो जाता है। हालांकि हमें उसके रूप-गुण, विशेषताएं और सुंदरता अच्छी लगती है, मगर अस्तित्व की पूर्ण आजादी की अवस्था को पाने की लालसा से हम बच नहीं सकते।

आध्यात्मिक प्रक्रिया एक कारगर आत्महत्या है

यह सिर्फ समय की बात है और समय तथा स्थान का बंधन भी ‘वह जो है’ का एक छलावा है।

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 एक विचारशील मन के लिए आध्यात्मिक प्रक्रिया जानते बूझते हुए आत्महत्या करने जैसा है। मगर यह आत्महत्या नहीं है, उससे कहीं आगे की चीज है। 
‘वह जो नहीं है’ को समय या स्थान का बोध नहीं होता क्योंकि वह असीम और शाश्वत है। वह समय और स्थान की सीमाओं की बेड़ियों से मुक्त है। जब अस्तित्व की मूल प्रक्रिया से आजाद होने की यह लालसा पैदा होती है, तो मन और भावना की आशंकापूर्ण प्रकृति इसे आत्म-विनाश के रूप में देखने लगती है। एक विचारशील मन के लिए आध्यात्मिक प्रक्रिया जानते बूझते हुए आत्महत्या करने जैसा है। मगर यह आत्महत्या नहीं है, उससे कहीं आगे की चीज है। आत्महत्या अपना अंत करने की चाह का एक खराब तरीका है। खराब से मेरा मतलब है कि यह तरीका असफल होता है। यह कारगर नहीं होता। मगर इस संस्कृति में कुछ लोग इसे कारगर तरीके से करने में निपुण होते हैं – यही आध्यात्मिक प्रक्रिया है।

समाधि का एक अर्थ - कब्र या स्मारक

भारत में ‘समाधि’ शब्द आम तौर पर कब्र या स्मारक के लिए इस्तेमाल किया जाता है।  

 श्री पलानी स्वामी को यह नाम ऐसे ही मिला क्योंकि वह पलानी नामक जगह पर समाधि में बैठे। 
जब‍ किसी स्थान पर किसी व्यक्ति को दफनाया जाता है और उसके ऊपर किसी तरह का स्मारक बनाया जाता है, तो उसे समाधि कहा जाता है। मगर ‘समाधि’ मानव चेतना की उस सबसे ऊंची अवस्था को भी कहते हैं, जिसे व्यक्ति प्राप्त कर सकता है।

जब किसी व्यक्ति के मरने पर उसे दफनाया जाता है, तो उस स्थान को उस व्यक्ति का नाम दिया जाता है। लेकिन जब कोई व्यक्ति किसी खास जगह पर एक खास अवस्था को हासिल कर लेता है, तो उस व्यक्ति को उस स्थान का नाम दे दिया जाता है। इसी वजह से कई योगियों का नाम किसी खास जगह के नाम से मिलता है। श्री पलानी स्वामी को यह नाम ऐसे ही मिला क्योंकि वह पलानी नामक जगह पर समाधि में बैठे। लोगों ने उन्हें पलानी स्वामी कहना शुरू कर दिया क्योंकि उन्होंने कभी किसी को अपना परिचय नहीं दिया। उन्होंने कभी लोगों को अपना नाम नहीं बताया क्योंकि उनका कोई नाम ही नहीं था। उस स्थान पर ज्ञान प्राप्त करने के कारण लोगों ने उन्हें पलानी स्वामी कहना शुरू कर दिया। बहुत से योगियों और साधु-संतों का नाम ऐसे ही पड़ा।

समाधि का वास्तविक अर्थ

‘समाधि’ शब्द सम और धी को जोड़ कर बना है। सम का मतलब है, समानता, धी का अर्थ है बुद्धि।  

समूचा अस्तित्व, सृष्टि के कई रूप तभी तक मौजूद होते हैं, जब तक बुद्धि सक्रिय रहती है। जैसे ही आप अपनी बुद्धि को विलीन कर देते हैं, सब कुछ एक में विलीन हो जाता है।  
अगर आप बुद्धि की एक समानतापूर्ण अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं, तो इसे समाधि कहते हैं। जब आपकी बुद्धि  जाग्रत होती है, तो आप एक चीज को दूसरी से अलग करने में समर्थ होते हैं। यह एक वस्तु है और वह दूसरी, इस तरह का भेदभाव सिर्फ बुद्धि के सक्रिय होने के कारण ही संभव है।

जैसे ही आप बुद्धि से परे हो जाते हैं, यह भेदभाव समाप्त हो जाता है। सब कुछ एक हो जाता है, जो कि वास्तविकता में है। इस अवस्था में समय और स्थान का बोध नहीं होता। आपको भले लगे कि कोई व्यक्ति तीन दिन से समाधि में बैठा है, मगर उसके लिए यह कुछ पलों के बराबर होता है। समय बस यूं ही निकल जाता है। जो है और जो नहीं है, वह उसकी दुविधा से परे चला जाता है। वह इस सीमा से परे जाकर उसका स्वाद चखता है, जो नहीं है, जिसका कोई आकार-प्रकार, रूप-गुण, कुछ नहीं है।

समूचा अस्तित्व, सृष्टि के कई रूप तभी तक मौजूद होते हैं, जब तक बुद्धि सक्रिय रहती है। जैसे ही आप अपनी बुद्धि को विलीन कर देते हैं, सब कुछ एक में विलीन हो जाता है।