सद्‌गुरु: यह शरीर मिट्टी यानी धरती से बना है, इसलिए धरती जिन बदलावों का अनुभव करती है, इंसान का शरीर भी उनसे गुजरता है। योगिक प्रणाली में गरमियों की संक्रांति (समर सोल्सटाइस) और सर्दियों की संक्रांति (विंटर सोल्सटाइस) के बीच के समय को आम तौर पर ‘साधनापद’ कहा जाता है। खास तौर पर गर्मी वाली संक्रांति के बाद की पहली पूर्णिमा से, जिसे ‘गुरु-पूर्णिमा’ के नाम से जाना जाता है, सर्दियों वाली संक्रांति के बाद के कुछ दिनों तक, लगभग चार-पांच जनवरी तक का समय साधना करने का माना जाता है। इस समय, ख़ास तौर पर उत्तरी गोलार्ध में, साधना के सबसे बेहतर नतीजे मिलते हैं।

आदियोगी के उपदेश का आरंभ

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मैं खाद की तरह हूं। अगर आप अपनी जड़ें मेरे अंदर डुबोएंगे तो आप निश्चित तौर पर खिलेंगे। खाद से प्रार्थना करने की कोशिश मत कीजिए, इससे कुछ नहीं होता।
इस समय को दक्षिणायन के रूप में भी जाना जाता है। इस समय सूर्य पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध के आकाश में दक्षिण की ओर बढ़ने लगता है। सूर्य की यह दक्षिण की ओर होने वाली गति महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी समय आदियोगी के उपदेश का पहला चरण शुरू हुआ था जब उन्होंने सप्तऋषियों को यह सिखाया था कि उन्हें क्या करना चाहिए। वे दक्षिण की ओर मुँह करके बैठे थे, इसलिए उन्हें दक्षिणमूर्ति कहा गया। ऐसा उन्होंने इसलिए किया था क्योंकि सूर्य दक्षिण की ओर मुड़ गया था और इस समय कुछ भी करने का यही बेहतरीन तरीका होता है।

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Sadhana

किसी भी तरह का कोई योग करने वाले इंसान के जीवन में साधनापद महत्वपूर्ण होता है। कोई भी कम करने के लिए, सबसे महत्वपूर्ण चीज यह है कि हमारे हाथों में जो कुछ है, उससे हम सही चीजें करें। अगर हमारे हाथ में कुछ नहीं है, तो हम सिर्फ इंतजार कर सकते हैं। साधना से हमारा मतलब उन चीजों से है, जो हमारे हाथ में हैं। हम कुछ कर सकते हैं, और चीज़ों को वास्तविकता बना सकते हैं। ये छह महीने इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इस समय आप सही चीजें कर सकते हैं। जब आप सही चीजें करेंगे तो फल का समय आने पर सही फल मिलेगा। जब कोई फूल खिलता है, तो उसमें आपका कोई योगदान नहीं होता। पौधे को समय से पानी और खाद देने से फूल आता है। यह भी ऐसा ही है।

मैं खाद की तरह हूं। अगर आप अपनी जड़ें मेरे अंदर डुबोएंगे तो आप निश्चित तौर पर खिलेंगे। खाद से प्रार्थना करने की कोशिश मत कीजिए, इससे कुछ नहीं होता। आपको बस अपनी जड़ें उसमें अच्छे से डालनी हैं। खाद फूल जैसा नहीं दिखता और न ही उसकी गंध फूल की तरह होती है, मगर उससे निश्चित रूप से पौधे में फूल खिलेंगे। आपको सिर्फ यही करना है।

साधनापद के दौरान स्वयंसेवा की क्या अहमियत है?

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ये समझना जरुरी है। साधना का मतलब सिर्फ अपनी आंखें बंद करना नहीं है। अगर आप अपने स्वभाव से ही मेडिटेटिव या ध्यानमग्न होना चाहते हैं, तो आपको कुछ चीजें खर्च करनी होंगी। अगर आप कुछ खास कार्मिक ढांचों को नहीं तोड़ते, तो आप जीवन में कभी ध्यान नहीं कर सकते। आपको उसके लिए सही स्थिति पैदा करनी होगी। सभी दीवारें तोड़नी होंगी और ऐसा करने के लिए सबसे अच्छा तरीका है, कामों में लग जाना। तीव्र और गहन क्रियाकलाप कार्मिक दीवारों को जितनी आसानी से तोड़ सकते हैं, उतनी आसानी से बंद आंखों से उसे नहीं तोड़ा जा सकता।

हमें आश्रम में साधना क्यों करनी चाहिए?

कुछ ऐसे लोग हैं, जो कहीं भी विकास कर सकते हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों को सही माहौल की जरूरत होती है।

एक प्राण-प्रतिष्ठित स्थान को इसलिए बनाया जाता है ताकि चाहे आप जगे हुए हों या सोए हुए, खा रहे हों या शौचालय में बैठे हों, आपकी आध्यात्मिक प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है।
अगर आप अपने घर में सही माहौल बना सकते हैं, तो यह बहुत अच्छी बात है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि ज्यादातर घरों में ऐसा किया जा सकता है। रसोई से ख़ुशबू आने पर आप साधना भूल जाएंगे। आश्रम में हम इतना अधिक बुनियादी ढांचा इसलिए तैयार कर रहे हैं ताकि आप आकर उसका लाभ उठा सकें।

एक प्राण-प्रतिष्ठित स्थान को इसलिए बनाया जाता है ताकि चाहे आप जगे हुए हों या सोए हुए, खा रहे हों या शौचालय में बैठे हों, आपकी आध्यात्मिक प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है। उसे आराम नहीं करना चाहिए। आराम सिर्फ शरीर के लिए होता है, बाकी चीजों को हर समय जाग्रत रहना चाहिए।

संपादक की टिप्प्णी: ईशा योग केंद्र में साधनापद के बारे में अधिक जानकारी के लिए isha.sadhguru.org/sadhanapada पर जाएं। फोन पर जानकारी के लिए कृपया 9300098777 पर संपर्क करें।