भीतरी प्रकृति के दो आयाम

बात जब भीतरी आयामों को खोजने की आती है तो इसे लेकर दो अहम पहलू सामने आते हैं। पहला पहलू है मुक्ति। जब आपको अनुभव होता है कि यह जीवन और इसका बार-बार का दुहराव(एक ही चीज़ बार-बार होना) बिल्कुल निरर्थक है, तब आप इस जीवन-चक्र से आजाद होना चाहते हैं। तब मुक्ति आपका एकमात्र लक्ष्य हो जाता है। लेकिन आपकी भीतर की यात्रा का एक दूसरा आयाम भी है, और वह है - सृष्टि की प्रकृति के बारे में जानना। हर प्राणी में यह स्वाभाविक इच्छा होती है कि वह अपने अस्तित्व के भौतिक पहलुओं से परे जाकर जीवन के सूक्ष्म पहलुओं को जाने। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि भौतिक पहलुओं की कोई अहमियत नहीं होती। इसका यह मतलब भी बिल्कुल नहीं है कि कोई व्यक्ति भौतिक पहलुओं को सबसे अच्छे तरीके से संभालने के तरीकों को न सीखे।

 

आध्यात्मिक लोग नीरस क्यों लगते हैं

आम तौर पर लोग इस नतीजे पर पहुंच जाते हैं कि आध्यात्मिकता उन लोगों के लिए है, जिन्हें अपनी जिंदगी में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसकी वजह है कि जब आप ऐसे किसी व्यक्ति को केवल बाहरी तौर पर देखते हैं, तो आपको लगता है कि जिस चीज में आपकी बेहद दिलचस्पी है, उसमें उसकी कोई रुचि ही नहीं है। आप कई तरीकों से अपनी जिंदगी में दिलचस्पी ले सकते हैं। आपकी दिलचस्पी की वजह आपके पड़ोस में रहने वाली एक लड़की भी हो सकती है या फिर आपकी दिलचस्पी अपने जीवन के भीतरी पहलुओं को जानने में भी हो सकती है। एक वैज्ञानिक के बारे में सोचिए, जो अपने माइक्रोस्कोप से चीजों को देखने में लगा है या फिर एक खगोलशास्त्री, जो अपने टेलिस्कोप से दूर की चीजों को देख रहा है, उन्हें अपने पड़ोस की लड़की में कोई रुचि नहीं होती। ऐसा इसलिए नहीं है कि उन्हें यह सब बेकार की चीज लगती है, बल्कि इसकी वजह है कि एक जटिल और गंभीर चीज ने उनका ध्यान अपनी ओर खींच रखा है।

ऐसा इसलिए नहीं है कि उन्हें यह सब बेकार की चीज लगती है, बल्कि इसकी वजह है कि एक जटिल और गंभीर चीज ने उनका ध्यान अपनी ओर खींच रखा है।

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दरअसल, जब कभी इंसान की बुद्धि जिंदगी की जटिलताओं को जानने में लग जाती है, तो उसकी खाने-पीने और बाकी रहन-सहन से संबंधित चीजों में दिलचस्पी कम हो जाती है। आप इन चीजों के खिलाफ नहीं होते, बल्कि ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि आप अपनी जिंदगी को इस तरह चलाना चाहते हैं कि आपका समय और ऊर्जा दोनों महत्वपूर्ण पहलुओं को खोजने में लगें।

 

धरती पर सभी प्राणियों में से इंसान सबसे ऊपर है

अगर हमें जानना है कि इस धरती पर जीवन किस तरह से है, तो हमें यह समझना होगा कि सभी प्राणियों के बीच इंसान सबसे ऊपर है। इसकी वजह है कि इंसान का प्रजनन एक खास तरह से ग्रहों के साथ जुड़ा हुआ है। इंसान का प्रजनन संबंधी चक्र 28 दिनों का होता है और चंद्रमा का चक्र भी 28 दिनों का होता है। अगर हमें इस धरती पर मौजूद जीवन और उसकी प्रकृति के बारे में जानना है, यहां तक कि बेजान चीजों के बारे में भी जानना है तो सबसे अच्छा तरीका यह है कि हम इंसान के बारे में जानें, क्योंकि इसकी रचना में सब शामिल हैं।

 

इंसान के सिस्टम में एक सौ चौदह ऊर्जा-बिंदु हैं, जिन्हें हम चक्र कहते हैं। जब ये सारे चक्र अपने चरम तक पहुंच जाएंगे तो इंसान को शरीरहीनता का अनुभव होगा, यानी उसे शरीर से परे का अनुभव होगा। यह इंसान के सबसे विकसित प्राणी होने का एक और प्रमाण भी है।

 

एक सौ चक्रों का विज्ञान

इन एक सौ चौदह चक्रों में से दो शरीर के बाहर होते हैं और इसलिए उन्हें अलग आयाम के रूप में देखा जाता है। कुछ सिस्टम शरीर को नौ आयामों के रूप में देखते हैं, यानी सात में दो बाहरी आयाम जोड़ दिए जाते हैं। लेकिन योगिक प्रणाली इसे ऐसे नहीं देखती। दरअसल, हम यह देखते हैं कि हम किस चीज पर काम कर सकते हैं। जिन पर हम काम कर सकते हैं, वे एक सौ बारह चक्र हैं। इनमें चार ऐसे हैं, जो स्वाभाविक रूप से तब जाग्रत हो जाते हैं, जब हम बाकी के एक सौ आठ चक्र पर काम करें। इस आधार पर सात आयाम जाने जाते हैं, जिनमें हर एक के सोलह पहलू हैं। इस तरह ये एक सौ बारह की संख्या तक पहुंचते हैं। सात आयामों को आमतौर पर सात चक्र या योग की सात विधाओं के रूप में भी जाना जाता है।

तो इस तरह से जो सात विधाएं विकसित हुईं उनके नाम इस तरह हैं - मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्धि और आज्ञा।

 

जो सात ऋषि आदियोगी शिव के पास बैठे थे, उन पर आरोप लगता है कि उन्होंने योग की सात विधाओं की शुरुआत की। दरअसल, आदियोगी को लगा कि योग की सभी बातों को ग्रहण करना किसी एक शख्स के बस की बात नहीं है, इसलिए उन्होंने हर एक ऋषि को सोलह पहलू दे दिए। फिर वह एक ऐसे रूप में चले गए, जहां सातों ऋषियों ने उन्हें सब कुछ समर्पित कर दिया। इस तरह सारा ज्ञान सबके लिए उपलब्ध हो गया। तो इस तरह से जो सात विधाएं विकसित हुईं उनके नाम इस तरह हैं - मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्धि और आज्ञा। सातवें को वास्तव में विधा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उसका कोई सिस्टम नहीं है। यह एक ऐसा आयाम है, जो व्यवस्थित नहीं हो सकता, लेकिन फिर भी उस तक पहुंचा जा सकता है, उसका नाम है - सहस्रार।