राधा से विवाह के लिए एक तरफ कृष्ण का आग्रह था, तो दूसरी तरफ यशोदा और नंद की वंश-मर्यादा। इस पर गुरु गर्गाचार्य ने कृष्ण को उनके जन्म के बारे में सब कुछ बताना शुरू किया। ये सुनते ही कृष्ण के भीतर जबरदस्त बदलाव आए और वे गोवर्धन पर्वत की ओर बढ़ चले...

इसके बाद गर्गाचार्य ने कृष्ण को नारद द्वारा उनके बारे में की गई भविष्यवाणी के बारे में बताया। पहली बार उन्होंने कृष्ण के साथ यह राज साझा किया कि वह नंद और यशोदा के पुत्र नहीं हैं।

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कृष्ण को पता था कि अब उन्हें वहां से विदा लेना है। जाने से पहले उन्होंने एक रास का आयोजन किया।
कृष्ण बचपन से नंद और यशोदा के साथ रह रहे थे। अचानक उन्हें बताया गया कि वह उनके पुत्र नहीं हैं। यह सुनते ही वह वहीं उठ खड़े हुए और अपने अंदर एक बहुत बड़े रूपांतरण से होकर गुजरे। अचानक कृष्ण को महसूस हुआ कि हमेशा से कुछ ऐसा था, जो उन्हें अंदर ही अंदर झकझोरता था। लेकिन वह इन उत्तेजक भावों को दिमाग से निकाल देते थे और जीवन के साथ आगे बढ़ जाते थे। जैसे ही गर्गाचार्य ने यह राज कृष्ण को बताया, उनके भीतर न जाने कैस-कैसे भाव आने लगे! उन्होंने गुरु से विनती की, ‘कृपया, मुझे कुछ और बताइए।’ गर्गाचार्य कहने लगे, ‘नारद ने तुम्हें पूरी तरह पहचान लिया है। तुमने सभी गुणों को दिखा दिया है। तुम्हारे जो लक्षण हैं, वे सब इस ओर इशारा करते हैं कि तुम ही वह मनुष्य हो, जिसके बारे में बहुत से ऋषि मुनि बात करते रहे हैं। नारद ने हर चीज की तारीख, समय और स्थान तय कर दिया था और तुम उन सब पर खरे उतरे हो।’

कृष्ण अपने आसपास के लोगों और समाज के लिए पूरी तरह समर्पित थे। राधे और गांव के लोगों के प्रति उनके मन में गहरा लगाव और प्रेम था, लेकिन जैसे ही उनके सामने यह राज आया कि उनका वहां से संबंध नहीं है, वह किसी और के पुत्र हैं, उनका जन्म कुछ और करने के लिए हुआ है,तो उनके भीतर सब कुछ बदल गया। ये सब बातें उनके भीतर इतने जबर्दस्त तरीके से समाईं कि वह चुपचाप उठे और धीमे कदमों से गोवर्द्धन पर्वत की ओर चल पड़े।

वह इतनी ज्यादा भाव-विभोर और आनंदमय हो गईं कि अपने आसपास की हर चीज से वह बेफ्रिक हो गईं। कृष्ण जानते थे कि राधे के साथ क्या घट रहा है। वह उनके पास गए, उन्हें बांहों में लिया, अपनी कमर से बांसुरी निकाली और उन्हें सौंपते हुए बोले, ‘राधे, यह बांसुरी सिर्फ तुम्हारे लिए है।
पर्वत की सबसे ऊंची चोटी तक पहुंचे और वहां खड़े होकर आकाश की ओर देखने लगे। सूर्य अस्त हो रहा था और वह अस्त हो रहे सूर्य को देख रहे थे। अचानक उन्हें ऐसा लगा, जैसे एक जबर्दस्त शक्ति उनके भीतर समा रही है। यहीं उनके अंदर ज्ञानोदय हुआ और उस पल में उन्हें अपना असली मकसद याद आ गया। वह कई घंटों तक वहीं खड़े रहे और अपने भीतर हो रहे रूपांतरण और तमाम अनुभवों को देखते और महसूस करते रहे। वह जब पर्वत से उतरकर नीचे आए तो पूरी तरह से बदल चुके थे। चंचल और रसिक ग्वाला विदा हो चुका था, उसकी जगह उनके भीतर अचानक एक गहरी शांति नजर आने लगी, गरिमा और चैतन्य का एक नया भाव दिखने लगा। जब वह नीचे आए तो अचानक वे सभी लोग उनके सामने नतमस्तक हो गए, जो कल तक उनके साथ खेलते और नृत्य करते थे। उन्होंने कुछ नहीं किया था। वह बस पर्वत पर गए, वहां कुछ घंटों के लिए खड़े रहे और फिर नीचे आ गए। इसके बाद जो भी उन्हें देखता, वह सहज ही, बिना कुछ सोचे समझे उनके सामने नतमस्तक हो जाता।

कृष्ण को पता था कि अब उन्हें वहां से विदा लेना है। जाने से पहले उन्होंने एक रास का आयोजन किया। जाने से पहले वह अपने उन लोगों के साथ एक बार और नृत्य कर लेना चाहते थे।

वह जब पर्वत से उतरकर नीचे आए तो पूरी तरह से बदल चुके थे। चंचल और रसिक ग्वाला विदा हो चुका था।
उन्होंने जमकर गाया, नृत्य किया। हर किसी को पता था कि वह जा रहे हैं, लेकिन राधे थीं कि भीतर ही भीतर परम आनंद के एक जबर्दस्त उन्माद से सराबोर थीं और भावनाओं की सामान्य हदों से कहीं आगे निकल गई थीं। वह इतनी ज्यादा भाव-विभोर और आनंदमय हो गईं कि अपने आसपास की हर चीज से वह बेफ्रिक हो गईं। कृष्ण जानते थे कि राधे के साथ क्या घट रहा है। वह उनके पास गए, उन्हें बांहों में लिया, अपनी कमर से बांसुरी निकाली और उन्हें सौंपते हुए बोले, ‘राधे, यह बांसुरी सिर्फ तुम्हारे लिए है। अब मैं बांसुरी को कभी हाथ नहीं लगाऊंगा।’ इतना कहकर वह चले गए। इसके बाद उन्होंने कभी बांसुरी नहीं बजाई। उस दिन के बाद से राधे ने कृष्ण की तरह बांसुरी बजानी शुरू कर दी।

आगे जारी ...

Photo courtesy: Shivani Naidu