सद्‌गुरुएक साधक ने सद्‌गुरु से प्रश्न पूछा कि प्रार्थना करने, मन्त्रों का उच्चारण करने और प्राणायाम करने में से सबसे असरदार कौन सी साधना है? आइये समझते हैं साधना के इन तीनों आयामों को ...और साथ ही जानते हैं वास्तु-शांति के बारे में

प्रश्न: हममें से ज्यादातर लोग अपनी दिनचर्या में रोज प्राणायाम करते हैं, इसके अलावा कई तरह की स्तुतियां जैसे विष्णु सहस्रनाम, रुद्रम चमकम आदि का पाठ करते हैं। कहा जाता है कि अगर इनका समुचित लय और सुर में पाठ किया जाए तो यह अपने आप में प्राणायाम है। सद्‌गुरु, कृपया इस बारे में हमें कुछ जानकारी दीजिए।

सद्‌गुरु: देखिए, संस्कृत भाषा और मंत्रों का हम पर एक खास तरह का असर होता है। अगर इन्हें पूरी निष्ठा और समझ के साथ उच्चारित किया जाए तो बेशक यह हमारे भीतर एक खास तरह की ऊर्जा पैदा करते हैं। इसे प्राणायाम कहना ठीक नहीं होगा। क्योंकि एक प्रक्रिया के तौर पर प्राणायाम का असर हमारे भीतर मंत्रोच्चारण से कहीं ज्यादा गहरा होता है।

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प्रार्थनामय होने का मतलब है कि आपमें बड़प्पन का भाव नहीं आना चाहिए यानी खुद को बड़ा नहीं समझना चाहिए। भारत में हम इसे उपासना कहते हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि मंत्र का हमारे ऊपर बेहद लाभदायक असर होता है। हो सकता है वे शायद ऐसा इसलिए कह रहे हों, क्योंकि ब्राह्मण संस्कृति में प्राणायाम का आशय नाड़ी शुद्धि से होता है। अगर आप नाड़ी शुद्धि को प्राणायाम कह रहे हैं तो हो सकता है कि मंत्रों का उच्चारण उतना ही प्रभाव पैदा कर दे। लेकिन अगर आपको लगता है कि यह एक प्रार्थना है जो ईश्वर तक पहुंचती है और फि र उसके हिसाब से चीजें आपके साथ होती हैं, तो आपकी समझ गलत है। प्रार्थना वह नहीं है जो आप करते हैं, प्रार्थना वह है जो आप बन जाते हैं। प्रार्थना एक गुण है।

मंत्र जाप से प्राथना तक का सफ़र

एक बहुत रोचक कहानी है। एक बार अमेरिका की एक बैप्टिस्ट मिशनरी यानी ईसाई धर्म प्रचारक साइबेरिया के दूर दराज के इलाके में गया। वहां के लोगों को वह अपने महान धर्म में परिवर्तित करना चाहता था। वह जब वहां कस्बे में पहुंचा तो उसने देखा कि वहां के लोग किन्हीं तीन संतों के बारे में बात कर रहे हैं, जो साइबेरिया के एक विशाल झील के बीच स्थित एक छोटे से द्वीप पर रहते हैं। उस धर्म प्रचारक के मन में उत्सुकता हुई कि आखिर ये लोग कौन हैं। उसने उन लोगों से मिलने का निश्चय किया। उसने एक नाव और एक नाविक लिया और उनसे मिलने चल पड़ा। वहां पहुंच कर उसने पाया कि वे तीनों पूरी तरह से अशिक्षित और अनपढ़ चरवाहे थे। उसने पास जाकर उन्हें देखा। वे तीनों बेहद गंदे और घिनौने लग रहे थे, जो किसी तरह से उस द्वीप पर गुजारा कर रहे थे। देखने में भी वे जंगली लगते थे। उस ईसाई धर्म प्रचारक ने उन लोगों से पूछा, ‘अच्छा यह बताइए आप किस तरह की प्रार्थना करते हैं?’ इस पर पहले ने जवाब दिया, ‘हर रोज मैं प्रार्थना करता हूं कि मेरी सारी भेड़ें अच्छी रहें और वे रोज शाम को घर लौटें। कोई भी भेड़ इस ठंड में खोए नहीं। यही प्रार्थना मैं करता हूं।’ यह सुनकर प्रचारक के मन में ख्याल आया कि यह तो अज्ञानी मूर्ख है, जो इसे प्रार्थना बता रहा है। उसके बाद उसने दूसरे से यही सवाल किया। उसने भेड़ों के स्वास्थ्य के बारे में और यहां-वहां की बातें कीं। तीसरे आदमी ने स्थानीय भाषा में उससे कहा कि उसके और भेड़ों के बालों में जुएं हैं। वह नहीं चाहता कि भेड़ें जुओं के चलते होने वाली दिक्कतों से इस तरह परेशान हों।

उनकी बातें सुनकर उस प्रचारक के मन में विचार आया, ‘यह तो मूर्खता है कि ऐसे लोगों को संत समझा जा रहा है।’ उसने उन लोगों से कहा कि ‘मैं एक काम करता हूं। मैं तुम लोगों को अभी ईसाई धर्म में परिवर्तित करके ईसाई बनाता हूं। तुम लोग बस यह प्रार्थना याद कर लो।’ फि र उसके बाद उसने उन तीनों को एक बड़ी सी प्रार्थना सिखाई। चूंकि चरवाहे अनपढ़ थे, इसलिए उन्हें ये प्रार्थना सीखने में तीन-चार दिन लगे। उसके बाद उनकी बातचीत और सीखी गई प्रार्थना से काफी हद तक संतुष्ट होकर उस ईसाई ने लौटने का फैसला किया।

अगर आप नाड़ी शुद्धि को प्राणायाम कह रहे हैं तो हो सकता है कि मंत्रों का उच्चारण उतना ही प्रभाव पैदा कर दे।
वह जब वापस जा रहा था और लगभग आधे रास्ते में पहुंचा तो उसने देखा कि वो तीनों चरवाहे पानी पर दौड़ते हुए उसकी तरफ चले आ रहे हैं। वे उससे कह रहे थे, ‘अरे आपकी बताई प्रार्थना की चौथी लाइन क्या थी? हमें याद नहीं आ रही।’ उसने उन लोगों को जब पानी पर चलते और दौड़ते देखा तो उसने उनसे कहा, ‘नहीं-नहीं, मैं तुम लोगों को कोई प्रार्थना नहीं सिखा सकता। तुम अपनी प्रार्थना करो। लगता है कि मेरी प्रार्थना से ज्यादा तुम्हारी प्रार्थना बेहतर काम कर रही है।’

प्राथना करना नहीं प्रार्थना बन जाना होगा

तो सवाल यहां संस्कृत भाषा या ग्रीक या लैटिन का नहीं है। बात सिर्फ इतनी है कि आप प्रार्थनामय हो उठते हैं। प्रार्थनामय होने का मतलब है कि आपमें बड़प्पन का भाव नहीं आना चाहिए यानी खुद को बड़ा नहीं समझना चाहिए। भारत में हम इसे उपासना कहते हैं। उपासना यानी उप-आसन, यह एक सुंदर शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ हुआ मुख्य आसन न होकर गौण या दूसरे दर्जे का आसन। यही आपके जीवन में लागू होती है, इसमें आप मुख्य आसन या सीट पर न बैठकर दूसरी सीट पर बैठने का चयन करते हैं। जब आप अपने जीवन में अपना स्थान गौण या दूसरे दर्जे का कर लेते हैं, तो कोई और या कहें ईश्वर या जिसकी आप उपासना कर रहे हैं, वह प्रधान स्थान ले लेता है। और तब आप उपासना में होते हैं।

यहां सवाल भाषा का नहीं है। बात सिर्फ इतनी है कि आपने खुद को बेहद छोटा बना लिया है और कोई दूसरा बड़ा या प्रमुख बन गया है। अब यह ‘कोई दूसरा’ चाहे भगवान हो, गुरु हो, पति हो, पत्नी हो, बच्चा हो या फि र कोई और हो, इससे कोई फ र्क नहीं पड़ता। आप प्रार्थनामय हो उठते हैं। इसलिए प्रार्थना एक गुण है।

मंत्र एक विज्ञान है

आप मंत्र के बारे में जो बात कर रहे थे, वह विज्ञान है। विज्ञान को विज्ञान की तरह ही लेना चाहिए और बिलकुल उसी रूप में उसका इस्तेमाल करना चाहिए। कुछ मंत्र ऐसे भी हैं, जिनमें आपकी भावनाओं की जरूरत होती है। जबकि कुछ मंत्र ऐसे भी हैं, जो भावनाओं के साथ मिलकर सब गड़बड़ कर देंगे। इसलिए इनका इस्तेमाल आपको बिल्कुल विज्ञान की तरह करना चाहिए। यह रयासन विज्ञान की तरह हैं। आपको इसे बिल्कुल उसी रूप में करना होगा, तभी ये काम करेंगे। लेकिन आज ज्यादातर लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती और वह हर चीज को मिला देते हैं, इसलिए जो लोग इन्हें कर रहे हैं, आप उन पर इसका कोई महत्वपूर्ण असर या लाभ होता नहीं देखते। इसकी वजह सिर्फ इतनी है कि न तो उनमें इसके लिए जरूरी स्पंदन होता है और न ही इसके लिए जरूरी जानकारी, समझ और जागरूकता। जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूं कि बिना जरुरी जागरूकता के अगर किसी चीज को बार-बार दोहराया जाए तो वह दोहराव आपमें सुस्ती व ढीलापन ही लाता है। आप बहुत सारे ऐसे लोगों को पाएंगे, जिन्हें लगता है कि वे प्रार्थना कर रहे हैं, लेकिन इस दोहराव की प्रक्रिया के चलते वे सुस्त हो चुके हैं। बिना जरूरी जागरूकता के बार-बार किया जाने वाला उच्चारण मन को सुस्त बना देता है।

सत्यनारायण की पूजा

प्रणय: हम लोगों के कुछ खास विश्वास हैं, जैसे एक विश्वास है कि हमें सत्यनारायण की पूजा हर साल जरुर करनी चाहिए। या फि र अगर आप किसी नए घर में जाते हैं तो आपको वास्तु शांति करानी चाहिए। इन दोनों पूजाओं के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?

सद्गुरु: इससे कोई फ र्क नही पड़ता कि आप कितनी सत्यनारायण पूजा करते हैं, लेकिन अपने रोजमर्रा के जीवन में जो झूठ आप लगातार रच रहे हैं, उससे आपको सत्यनारायण की कोई पूजा नहीं बचा सकती। अगर आप सबसे बड़ी सत्यनारायण की कोई पूजा कर सकते हैं तो वो यह है कि आप सत्यनिष्ठ रहें, कम से कम अपने आप से तो सच बोलें।

जहां तक दूसरी पूजा की बात है, जब कोई नई इमारत बनती है तो कई बार कुछ कारणों से वहां नकारात्मक वायु या वातावरण बन जाता है। तो इसके पीछे विचार था कि मंत्रों, पूजा व होम हवन से वहां एक नई सकारात्मक ऊर्जा तैयार की जाए।
अगर आप औरों के साथ सत्यनिष्ठ नहीं रह सकते, तो मैं उसके लिए आपको छूट दे सकता हूं। लेकिन कम से कम आप अपने साथ तो सौ फीसदी सच्चे रहिए। यही अपने आप में सबसे बड़ी सत्यनारायण पूजा है, जिसका तत्काल नतीजा मिलता है। आपके यहां होने वाली सत्यनारायण पूजा में वैसे भी पूजा आप तो करते नहीं, कोई दूसरा आपके लिए पूजा करता है। हो सकता है कि इस पूजा से उसे फायदा होता हो। लेकिन जहां तक आपके फायदे की बात है तो किसे पता? उस पूरी पूजा के दौरान आप हवन के धुंए का पान करते हैं और अगले दिन आपको बुरी तरह जुकाम हो जाता है, आपको साइनस की समस्या हो जाती है, उसमें सूजन आ जाती है। आप बस सच्चे बनिए, इसी रूप में आप सत्यनारायण का सबसे बड़ा व्रत कर सकते हैं। अगर आप औरों के लिए नहीं, दुनिया के लिए नहीं, तो कम से कम अपने लिए तो सच्चे बन ही सकते हैं। हालांकि दुनिया के लिए भी आप सच बोलने का व्रत ले सकते हैं। यह अपने आप में बेहद शानदार है। लेकिन अगर यह कर पाना आपके लिए संभव नहीं है तो अपने साथ आप बिल्कुल ईमानदार और सच्चे रहें। आप देखेंगे कि जीवन कितना सुंदर हो उठा है।

वास्तु शांति की पूजा

जहां तक दूसरी पूजा की बात है, जब कोई नई इमारत बनती है तो कई बार कुछ कारणों से वहां नकारात्मक वायु या वातावरण बन जाता है। तो इसके पीछे विचार था कि मंत्रों, पूजा व होम हवन से वहां एक नई सकारात्मक ऊर्जा तैयार की जाए। होम, अग्निहोत्र या ऐसी ही दूसरी चीजों का भी अपना प्रभाव होता है, ये सारी चीजें किसी वातावरण को साफ व शुद्ध करती हैं। इसके अलावा, सबसे बड़ी बात यह है कि आप एक नई जगह पर जा रहे हैं, आप कोई ऐसी हस्ती नहीं हैं, जो हर चीज से परे हो। आप जागरूकता की उस स्थिति में नहीं हैं, तो आपको किसी नई जगह पर जाने के लिए एक मनोवैज्ञानिक सहारे या मनोबल की जरूरत होती है, क्योंकि आपकी बुनियादी भावना डर है। ऐसे में कोई छोटी सी चीज भी आपकी पूरी जिंदगी में उथल-पुथल ला सकती है। मान लीजिए आप नए घर में आए, या तो नए घर में पेंट की वजह से या फि र किसी और कारण से आप ठीक से सो नहीं पा रहे और आप सोचने लगते हैं, ‘अरे यह क्या बात हुई? अपने पुराने घर में तो मैं ठीक से सो रहा था, लेकिन नए घर में लगता है कि कोई भूत वगैरह है।’ पता चला कि इस डर ने कर दिया आपका काम। बहुत सारे लोग खुद को एक ही तरह की सोच की कैद से बाहर निकाल ही नहीं पाते। वे एक ही बात को सोचते रहेंगे, सोचते रहेंगे और इतना सोचेंगे कि खुद को खत्म कर लेंगे। तो वास्तुशांति से कुछ उस तरह के विचार से मुक्ति मिलती है, इसके अलावा, इसके पीछे कुछ विज्ञान भी है। कुछ खास तरह की ध्वनियों का उच्चारण और सुगंध वहां एक खास तरह का माहौल बनाती हैं।